HariHara Stavan

श्री हरिहर स्तवन हिन्दी अर्थ सहित | Vaikuntha Chaturdashi 2025 Special

🌿 वैकुण्ठ चतुर्दशी — हरिहर मिलन दिवस का महापर्व

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी कहा जाता है — यह भगवान विष्णु और भगवान शिव के दिव्य मिलन का दिन है। इस दिन हरिहर की संयुक्त आराधना से मोक्ष, वैकुण्ठगमन, और सर्वपाप नाश होता है।

🌸 तिथि व विशेषता

  • पर्व: वैकुण्ठ चतुर्दशी (देव दीपावली से एक दिन पूर्व)
  • महत्व: भगवान विष्णु और शिव का दिव्य मिलन
  • अन्य नाम: हरिहर मिलन दिवस, हरिहर संगम, हरिवैकुण्ठ महोत्सव

🔱 पौराणिक कथा

🌸 पौराणिक कथा — वैकुण्ठ चतुर्दशी की दिव्य उत्पत्ति

एक बार भगवान विष्णु अपने दिव्य लोक वैकुण्ठधाम से पृथ्वी पर आए। उनका उद्देश्य था — काशी नगरी (वाराणसी) में भगवान विश्वेश्वर महादेव का दर्शन और पूजन करना। काशी नगरी स्वयं भगवान शिव की अनन्त लीला-भूमि है, जहाँ मोक्ष और भक्ति का मिलन होता है।

भगवान विष्णु ने वहाँ पहुँचकर शिवजी की भक्ति करने का निश्चय किया। उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों की माला मँगवाई, ताकि उन कमलों से शिवलिंग का पूजन कर सकें। पूजा का आरंभ हुआ — भगवान विष्णु अत्यंत भक्ति भाव से एक-एक कमल अर्पित कर रहे थे।

परंतु जब उन्होंने गणना की, तो पाया कि एक कमल कम है। अब उनके पास केवल 999 कमल बचे थे।

यह देखकर भगवान विष्णु चिंतित हो गए —
उन्होंने सोचा, “मेरी पूजा अधूरी रह जाएगी, और मैं अपने आराध्य भगवान महादेव को पूर्ण अर्पण नहीं कर पाऊँगा।”

तभी उन्हें स्मरण हुआ कि लोग उन्हें “कमलनयन” कहते हैं — अर्थात् जिनकी आँखें स्वयं कमल के समान हैं।

विष्णु ने निश्चय किया —

“जब एक कमल कम है, तो मैं अपने हृदय में स्थित इस कमल समान नेत्र को अर्पित करूँगा।”

उन्होंने तुरंत अपना एक नेत्र निकालकर शिवलिंग पर अर्पण करने का प्रयास किया।


भगवान शिव का प्रकट होना और वरदान

भगवान शिव इस अद्भुत भक्ति और त्याग से अत्यंत प्रसन्न हो गए। वे प्रकट हुए और बोले —

“हे विष्णो! तुम्हारी भक्ति, करुणा और समर्पण ने मेरा हृदय जीत लिया है।
तुमने सच्चे अर्थों में मुझे ‘हृदय का कमल’ अर्पित किया है।
इसलिए आज से यह तिथि — जब भक्त सच्चे हृदय से भक्ति रूपी कमल अर्पित करे — ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ कहलाएगी।”

इसके बाद भगवान शिव ने विष्णु को आशीर्वाद दिया —

“जो कोई भी इस दिन मेरी पूजा तुम्हारे साथ करेगा — अर्थात् शिव और विष्णु दोनों का संयुक्त पूजन करेगा —
उसे वैकुण्ठलोक की प्राप्ति होगी, और वह मोक्ष का अधिकारी बनेगा।”


🌼 वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा-विधि

🕉️ प्रातःकालीन आराधना

  • स्नान के बाद मंत्र जप करें:
    ॐ नमो नारायणाय और ॐ नमः शिवाय
  • विष्णु को तुलसीदल, पीत वस्त्र, पीत पुष्प अर्पित करें।
  • शिव को बिल्वपत्र, दूध, धतूरा, गंगाजल अर्पित करें।

🌞 मध्याह्न

  • “ॐ नमो हरिहराय नमः” का 108 बार जप करें।
  • हरि और हर के सामने दीपदान करें।

🌙 रात्रि

  • हरिहर कथा, विष्णु सहस्रनाम, या शिव-विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।
  • दीपदान करें — इसे “वैकुण्ठ दीपदान” कहा जाता है।

🌼 श्री हरिहर स्तवन हिन्दी अर्थ सहित 🌼

॥ मंगलाचरणम् ॥

हरिहर संयुक्त मंत्र:

ॐ हरिहराय नमः।
ॐ नमो हरिहराय नमः।
ॐ नमो हरिहरायैकात्मने नमः।

श्लोक:

हरिर्हरश्चैकतनू विभातौ,
शिवो विष्णुश्चैव न भिद्यते कः।
यं भजति भक्तः समदर्शनैक्यं,
स वैकुण्ठं याति निरामयात्मा॥

अर्थ:
हरि और हर एक ही तत्व हैं। जो इस संयुक्त रूप की भक्ति करता है, वह वैकुण्ठ की अमर अवस्था को प्राप्त होता है।


ॐ नमो हरिहरायैक्यरूपाय धीमते ।
विश्वनारायणायैव परमात्मने नमः ॥१

अर्थ:
मैं उस हरिहर एकरूप परमात्मा को प्रणाम करता हूँ — जो विष्णु रूप में विश्व का पालन करते हैं और शिव रूप में उसका संहार कर पुनः सृजन करते हैं।

🍁
शिवो विष्णुः शिवो विष्णुः, इत्येकं तत्त्वमव्ययम्।
भिद्यते न कदाचित् तदेकं ब्रह्म सनातनम्॥२

अर्थ:
शिव और विष्णु भिन्न नहीं हैं — दोनों एक ही सनातन ब्रह्म हैं, जो कभी विभक्त नहीं होते।

🍁
वैकुण्ठे यः सदा विष्णुः, काश्यां तु विश्वेश्वरः शिवः।
एको देवो द्विधा जातः, भक्तानां मंगलाय च॥३

अर्थ:
जो विष्णु वैकुण्ठ में विराजते हैं, वही शिव काशी में विश्वेश्वर रूप में हैं; दोनों भक्तों के मंगल हेतु प्रकट हुए हैं।


🍁॥ हरिहर ऐक्य महिमा ॥
हरिर्यदि न भवेत् तत्र, न स्याद्भक्तिर्न पावनम्।
हरश्चेद्विष्णुरूपो न, न स्यान्मोक्षः कदाचन॥४

अर्थ:
यदि हरि न हों तो भक्ति अधूरी है, और यदि हर रूप में विष्णु न हों तो मोक्ष असंभव है।

-🍁
विष्णोः प्रसादात् शिवो भूत्वा, जगत्पाति शिवार्चनः।
शिवस्य कृपया विष्णुश्च, सर्वं संसारमुद्धरेत्॥५

अर्थ:
विष्णु की कृपा से शिव सृष्टि की रक्षा करते हैं और शिव की कृपा से विष्णु जगत को उद्धार देते हैं।

🍁
हरिश्च हरिरूपेण, हरिश्च हरिमेव हि।
यो भजत्येकभावेन, स याति परमं पदम्॥६

अर्थ:
जो साधक हरि और हर को एक भाव से भजता है, वही परम पद — वैकुण्ठ को प्राप्त करता है।

-🍁
त्रिपुरारिर्नारायणः साक्षात्, साक्षादेकं महोदयम्।
यो ज्ञात्वा नान्यदेवान् च, पूजयेत्स फलप्रदः॥७

अर्थ:
त्रिपुरारी ही नारायण हैं — जो इस सत्य को जानकर केवल हरिहर को पूजता है, वही सिद्धि और फल प्राप्त करता है।

🍁
नारायणोऽपि संहारं, कृत्वा लीलामहेश्वरः।
एक एव स्वयंज्योतिः, विभाति ब्रह्मरूपतः॥८

अर्थ:
जब विष्णु संहार करते हैं तो वह महेश्वर बन जाते हैं; वास्तव में दोनों एक ही ज्योतिस्वरूप ब्रह्म हैं।

🍁
विष्णुश्च शिवरूपश्च, शिवो विष्णुरसंशयम्।
द्वौ रूपौ प्रेमभाजन्यौ, भक्तानां रक्षणाय च॥९

अर्थ:
विष्णु और शिव — दोनों प्रेम के स्वरूप हैं और भक्तों की रक्षा के लिए भिन्न रूप धारण करते हैं।


॥ वैकुण्ठ-काशी ऐक्य ॥
🍁
काश्यां स्थितं विश्वनाथं, वैकुण्ठे श्रीहरिं तथा।
उभौ नित्यं हृदि ध्यायेत्, स योगी मुक्तिमाप्नुयात्॥१०

अर्थ:
जो योगी अपने हृदय में काशी के विश्वनाथ और वैकुण्ठ के हरि — दोनों का ध्यान करता है, वह मुक्त होता है।

🍁
तुलसीदलविल्वेन, युग्मं पूजयते नरः।
स तिष्ठति हरौ लोके, शिवलोकसमन्विते॥११

अर्थ:
जो भक्त तुलसी और बिल्वपत्र से हरि-हर की पूजा करता है, वह हरि-शिव संयुक्त लोक में वास करता है।

🍁
यत्र गंगा सरस्वत्योः संगमं पुण्यमुत्तमम्।
तत्र हरिहरौ नित्यं, वसतः भक्तरक्षणे॥१२

अर्थ:
जहाँ गंगा और सरस्वती मिलती हैं, वहाँ हरि-हर सदा भक्तों की रक्षा हेतु वास करते हैं।

-🍁
काशी वैकुण्ठमित्येकं, रूपं दिव्यं सनातनम्।
ज्ञानदीपं प्रज्वलय्य, जीवो ब्रह्मसमो भवेत्॥१३

अर्थ:
काशी और वैकुण्ठ वास्तव में एक ही दिव्य लोक हैं; जो वहाँ के हरिहर का ध्यान करता है, वह ब्रह्मस्वरूप हो जाता है।

🍁
हरिश्चतुर्दशी प्राप्य, यः स्नायाद्गङ्गया जलम्।
वैकुण्ठं स गतो नूनं, न संशयोऽत्र विद्यते॥१४

अर्थ:
जो वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गंगाजल से स्नान करता है, वह निश्चित रूप से वैकुण्ठ को प्राप्त करता है।

🍁
हरिदीपं शिवाय दद्याद्, शिवदीपं हराय च।
एवं दीपसमाराध्यं, सर्वपापप्रणाशनम्॥१५

अर्थ:
यदि कोई हरि को शिवदीप और शिव को हरिदीप अर्पित करे — तो वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।


॥ भक्ति, दीपदान और एकत्व प्रार्थना ॥

🍁
दीपज्योतिः परं ब्रह्म, हरिहरैकसंस्थितम्।
यः पश्यति तदा भक्त्या, तस्य चित्तं विशुद्ध्यति॥१६

अर्थ:
दीप की ज्योति ही हरि-हर का संयुक्त ब्रह्म है; जो भक्त भाव से उसे देखता है, उसका चित्त निर्मल होता है।

🍁
हरिर्हि हृदये शम्भुः, शम्भुर्हृदि जनार्दनः।
यो वेत्ति सर्वमेकत्वं, स याति परमं सुखम्॥१७

अर्थ:
शिव हृदय में हरि हैं और हरि के हृदय में शिव — जो इस सत्य को जानता है, वह परम आनंद को प्राप्त करता है।

-🍁
नारायणं महादेवं, नमामि प्रेमपूर्वकम्।
ययोः कृपया संसारो, भवसिन्धोः परं तरेत्॥१८

अर्थ:
मैं नारायण और महादेव — दोनों को प्रेमपूर्वक नमस्कार करता हूँ; जिनकी कृपा से जीव संसारसागर से पार होता है।

🍁
न हि भेदोऽस्ति देवेषु, शिवविष्ण्वादिषु क्वचित्।
भक्त्यैक्यं तत्र साध्यं, नान्यथा मोक्षसिद्धये॥१९

अर्थ:
देवताओं में कोई भेद नहीं है — केवल भक्तिभाव का ऐक्य ही मोक्ष की प्राप्ति का साधन है।

🍁
हरिर्हरं समालभ्य, भक्तो दीपं समर्पयेत्।
एषा वैकुण्ठचतुर्दश्याः, परमं रहस्यमुच्यते॥२०

अर्थ:
जो भक्त इस दिन हरि-हर का ध्यान करके दीप अर्पित करता है, वह इस पर्व का परम रहस्य जान लेता है।

🍁
एकदा वैकुण्ठनिकेतने श्रीहरिः शंकरं ययौ।
प्रणम्य प्रेमभक्त्या तं, पूजयामास भावतः॥२१

अर्थ:
एक बार श्रीहरि स्वयं वैकुण्ठ से निकलकर कैलास गए और वहाँ भगवान शंकर को प्रेमपूर्वक प्रणाम कर उनकी आराधना की।

🍁
ततोऽभवदनुग्रहः, शूलपाणेरनुत्तमः।
“हरिर्मे हृदये तिष्ठतु” इति वाक्यं जगद्गुरोः॥२२

अर्थ:
महादेव प्रसन्न होकर बोले — “हरि सदा मेरे हृदय में निवास करें।” यह ब्रह्मवाक्य सम्पूर्ण जगत के कल्याण हेतु हुआ।

-🍁
अथ शंभोर्नृसिंहार्ते, हरिः प्रकटितो विभुः।
शिवोऽपि नटराजाख्यः, तं प्रणम्यावतारवान्॥२३

अर्थ:
जब हिरण्यकशिपु का संहार करने को नृसिंह रूप प्रकट हुआ, तब स्वयं शिव नटराज बनकर उस अद्भुत अवतार को प्रणम्य हुए।

🍁
तयोरेव कृपायोगात्, सृष्टिः स्थितिः प्रणश्यति।
शिवः सृष्टौ जनार्दनः, संहारेऽपि हरिर्हरः॥२४

अर्थ:
शिव और विष्णु की पारस्परिक शक्ति से ही सृष्टि, पालन और संहार होते हैं — एक दूसरे में नित्य समाहित।

🍁
वेदवेद्यौ द्विजप्रियौ, जगन्नाथौ सनातनौ।
भक्तानां प्रतिपालार्थं, द्विरूपं धारयन्ति हि॥२५

अर्थ:
जो वेदस्वरूप और द्विजप्रिय हैं, वही हरि-हर भक्तों की रक्षा हेतु द्विरूप धारण करते हैं।


॥ योगान्तरैक्य रहस्य ॥

🍁
मूलाधारे हरिर्देवी, सहस्रारे महेश्वरः।
मध्यस्था योगिनी शक्तिः, तयोरेकत्वबोधिनी॥२६

अर्थ:
मूलाधार में हरि की शक्ति स्थित है और सहस्रार में महेश्वर की; बीच में स्थित योगिनी शक्ति उनके ऐक्य का सेतु है।

🍁
प्राणायामे विष्णुरूपं, रेचके च महेश्वरम्।
पूरके जगदीशं तं, ध्यानं यः कुरुते बुधः॥२७

अर्थ:
योग में श्वास लेते समय विष्णु का, छोड़ते समय शिव का, और धारण करते समय जगदीश्वर का ध्यान किया जाए।

🍁
हरिहरस्मरणं नित्यं, ध्यानं योगसमाश्रितम्।
संसारजालविनाशाय, मोक्षदं परमं पदम्॥२८

अर्थ:
हरि-हर का नित्य स्मरण योगमार्ग में करने से संसार के बंधन नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

🍁
शिवाय विष्णुरूपाय, विष्णवे शंकरात्मने।
नमोऽस्तु भक्तवत्सल्य, दयासिन्धो नमो नमः॥२९

अर्थ:
विष्णु जो शिवरूप हैं, और शिव जो विष्णुरूप हैं — उन दयामय भक्तवत्सल परमात्मा को नमस्कार है।

🍁
नानातत्त्वानि दृश्यन्ते, नामरूपविकल्पितम्।
एकमेव परं तत्त्वं, हरिहरैकसंस्थितम्॥३०

अर्थ:
नाम और रूप अनेक हैं, परंतु सत्य केवल एक है — हरि और हर का एकत्व तत्त्व।


॥ दीपदान-महिमा ॥

🍁
यः प्रदीपं हरौ दद्यात्, शिवायापि समर्पयेत्।
तस्य जन्मशतं पुण्यं, कल्पकोटिफलं भवेत्॥३१

अर्थ:
जो भक्त एक दीपक हरि और शिव दोनों को समर्पित करता है, उसे शतजन्मों का पुण्य और कल्पों का फल प्राप्त होता है।

-🍁
तुलसीदलं बिल्वपत्रं, संयुतं यः निवेदयेत्।
स सर्वपापविनिर्मुक्तो, यान्ति वैकुण्ठमुत्तमम्॥३२

अर्थ:
जो भक्त तुलसी और बिल्वपत्र एक साथ अर्पित करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर वैकुण्ठ को प्राप्त होता है।

-🍁
नारायणं महादेवं, संयुतं दीपमर्पयेत्।
स पश्यति परां मुक्तिं, देहान्ते नात्र संशयः॥३३

अर्थ:
जो हरि-शंकर को संयुक्त दीप अर्पण करता है, वह शरीरांत में परम मुक्ति को प्राप्त करता है।

🍁
कैलासवैकुण्ठयोः मध्ये, ज्योतिः स्थिरं विभाव्यते।
तद्रूपं हरिहरयोः, योगिनां दृग्गोचरं भवेत्॥३४

अर्थ:
कैलास और वैकुण्ठ के मध्य एक दिव्य ज्योति है — वही हरिहर का वास्तविक स्वरूप है, जो केवल योगियों को दृष्टिगोचर होता है।

🍁
दीपार्चना हरिशम्भोः, मोक्षमार्गस्य साधनम्।
यत्र दीपो ज्वलत्येष, तत्र भक्तिर्विराजते॥३५

अर्थ:
हरि-शंकर की दीपार्चना ही मोक्ष का साधन है — जहाँ दीप जले, वहाँ भक्ति स्वयं प्रकट होती है।


॥ हरिहर एकात्म्य ज्ञान ॥

🌹
नारायणो महेशश्च, सर्वदैवैककारणम्।
सृष्टिस्थितिलयैकत्वं, बिभ्रतो नान्यथाभवेत्॥३६

अर्थ:
नारायण और महेश ही इस सृष्टि के एकमात्र कारण हैं — वे सृष्टि, स्थिति और लय तीनों में अभिन्न हैं।

🍁
विष्णोः शिरसि गङ्गा च, शम्भोर्मूर्ध्नि तुलसी तथा।
एते संयुक्तरूपेण, धारयन्ति जगत्परम्॥३७

अर्थ:
गंगा शिव के मस्तक पर और तुलसी विष्णु के सिर पर — दोनों का संगम जगत को पवित्र रखता है।

🍁
हरिर्नारायणः शान्तः, शिवः क्रोधोऽपि सुस्थितः।
युगपत्स्थितयोः तस्मात्, ब्रह्मैकत्वं निरामयम्॥३८

अर्थ:
हरि शान्त स्वरूप हैं, शिव तामस रूप; दोनों का संतुलन ही शुद्ध ब्रह्म का ऐक्य है।

🍁
हरिणा विना शम्भुर्न, शम्भुना विना हरिः।
यत्रैकत्वं न दृश्येत्, तत्र धर्मो न वर्धते॥३९

अर्थ:
हरि के बिना शिव नहीं, और शिव के बिना हरि नहीं — जहाँ उनका ऐक्य न हो, वहाँ धर्म का क्षय होता है।

🍁
विष्णोः कृपां विना शम्भोः, न स्यात्सिद्धिर्न मोक्षता।
शम्भोः प्रसादं विना विष्णोः, न स्यात्सत्त्वं न निर्भयम्॥४०

अर्थ:
विष्णु की कृपा के बिना शिव की सिद्धि नहीं, और शिव की कृपा के बिना विष्णु का सत्व स्थिर नहीं — दोनों परस्पर आश्रित हैं।


॥ वैकुण्ठचतुर्दशी फलश्रुति ॥

🍁
वैकुण्ठचतुर्दश्यां तु, यः पठेद्देवसंनिधौ।
हरिहरैकभावेन, स याति परमं पदम्॥४१

अर्थ:
जो व्यक्ति वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन हरिहर के समक्ष इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह परमपद को प्राप्त होता है।

🍁
यः श्रावयेत्समाहित्य, भक्तानां मध्ये भावतः।
स पापान् नाशयेत्सर्वान्, यथाग्निर्दारुकान्यथ॥४२

अर्थ:
जो इसे भक्ति-भाव से दूसरों को सुनाता है, वह अपने और श्रोताओं के सभी पापों को भस्म कर देता है।

🍁
अशक्तो यदि पठ्येत, नाममात्रं स्मरेन्नरः।
तस्मै हरिहरौ दद्यात्, आयुः आरोग्यसम्पदः॥४३

अर्थ:
जो व्यक्ति पाठ न कर सके, केवल स्मरण करे, उसे हरिहर दीर्घायु, आरोग्य और संपत्ति प्रदान करते हैं।

🍁
तुलसीवनबिल्वान्ते, दीपदानं विशेषतः।
करिष्यति यदि भक्तः, स विष्णुलोकमाप्नुयात्॥४४

अर्थ:
जो भक्त तुलसी या बिल्ववृक्ष के पास दीपदान करता है, वह विष्णुलोक की प्राप्ति करता है।

-🍁
काश्यां वा वैकुण्ठे वा, यत्र हरिहरौ स्थितौ।
तत्र स्नानं जपं दानं, सर्वपापप्रणाशनम्॥४५

अर्थ:
काशी या वैकुण्ठ — जहाँ हरिहर निवास करते हैं — वहाँ स्नान, जप या दान करने से सभी पाप नष्ट होते हैं।

-🍁
यत्र हरिश्च हरिश्चैव, संयुक्तौ भक्तरक्षणे।
तत्र वैकुण्ठमित्याहु:, योगिनां ध्यानगोचरम्॥४६

अर्थ:
जहाँ हरि और हर भक्तों की रक्षा हेतु संयुक्त हों, वही स्थान वैकुण्ठ कहलाता है — जिसे योगी ध्यान में देखते हैं।

-🍁
शिवो विष्णुर्नारायणोऽहमेकः, इति ज्ञानं परमं वदन्ति।
यो वेत्ति तत्त्वं हरिहरस्वरूपं, स याति शान्तिं परमां परस्य॥४७

अर्थ:
जो जानता है कि “मैं ही हरि और शिव का एकत्व स्वरूप हूँ”, वही परमशान्ति को प्राप्त होता है।

-🍁
भक्तो यः शरणं याति, हरिहरचरणद्वये।
तं संसारो न स्पृशति, स मुक्तः पुरुषोत्तमः॥४८

अर्थ:
जो भक्त हरि-हर के चरणों में शरण लेता है, उसे संसार कभी बाँध नहीं सकता; वह पुरुषोत्तम स्वरूप हो जाता है।

🍁
हरिदर्शनमात्रेण, शम्भुदर्शनमाप्यते।
शम्भोर्दर्शनमात्रेण, हरिदर्शनमेव च॥४९

अर्थ:
जो हरि का दर्शन करता है, वह शिव को देखता है, और जो शिव का दर्शन करता है, वह हरि को — दोनों दर्शन एक ही हैं।

🍁
अन्ते स्मृत्यैव यः कश्चित्, हरिहरं संप्रधारयेत्।
स देहत्यागे मुक्तोऽसौ, परं ब्रह्माधिगच्छति॥५०

अर्थ:
जो मरते समय हरि-हर के ऐक्य का स्मरण करता है, वह शरीर त्यागकर परम ब्रह्म को प्राप्त होता है।

🍁
यः श्रद्धया पठति नित्यं हरिहरस्तवनं नरः ।
स लभेतां शिवं विष्णुं कृपां तयोर्न संशयः ॥

अर्थ:
जो मनुष्य श्रद्धा से प्रतिदिन इस हरिहर स्तवन का पाठ करता है,
वह निश्चय ही भगवान शिव और विष्णु — दोनों की कृपा प्राप्त करता है।


🌺 हरिहर ऐक्य का रहस्य

शिव और विष्णु भिन्न नहीं हैं — दोनों एक ही सनातन ब्रह्म हैं।
हरि के बिना हर नहीं, हर के बिना हरि नहीं।

👉 यही कारण है कि इस दिन शिव-विष्णु संयुक्त पूजा से भक्त को द्विगुण पुण्य और मोक्ष प्राप्त होता है।


🌕 दीपदान का महापुण्य

“जो हरि को शिवदीप और शिव को हरिदीप अर्पित करे — वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।”

वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन हरिहर संयुक्त दीपदान पितृ शांति, संतोष, धन और मोक्ष का मार्ग खोलता है।


🌼 हरिहर स्तवन का फल

यः पठेद्देवसंनिधौ हरिहरैकभावेन,
स याति परमं पदम्।

अर्थ:
जो व्यक्ति इस स्तवन का पाठ करता है, वह हरि-हर के परम धाम को प्राप्त करता है।


🔔 निष्कर्ष (Conclusion)

वैकुण्ठ चतुर्दशी पर हरिहर की संयुक्त उपासना केवल एक पर्व नहीं — यह शिव-विष्णु एकत्व का उत्सव है।
जो इस दिन दीपदान, स्तोत्रपाठ या ध्यान करता है, वह स्वयं हरि-हर के एकत्व का अनुभव करता है।

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