Saraswati Stotram in Sanskrit and Hindi

श्री सरस्वती चालीसा | Shri Saraswati Chalisa in Hindi

🌸 श्री सरस्वती चालीसा का महत्व

माँ सरस्वती ज्ञान, बुद्धि, कला और विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनके बिना जीवन अधूरा है। श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने से विद्या, बुद्धि, और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। विद्यार्थी, कलाकार, और लेखक विशेष रूप से इसका पाठ करते हैं।

नियमित रूप से सरस्वती चालीसा पढ़ने से आलस्य, भ्रम, और अज्ञानता का नाश होता है तथा जीवन में सफलता का मार्ग खुलता है।


🙏 श्री सरस्वती चालीसा के लाभ (Benefits of Saraswati Chalisa)

  • विद्या, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  • विद्यार्थियों को पढ़ाई में सफलता मिलती है।
  • कला, संगीत और लेखन में निपुणता आती है।
  • नकारात्मक विचार दूर होकर आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • जीवन में सफलता और सम्मान प्राप्त होता है।

📜 श्री सरस्वती चालीसा पाठ विधि (Path Vidhi)

  1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. माँ सरस्वती की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, धूप और पुष्प अर्पित करें।
  3. पीले या सफेद पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. श्रद्धा और एकाग्रता के साथ श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करें।
  5. पाठ के बाद “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।

श्री सरस्वती चालीसा (पूर्ण पाठ)

॥ दोहा ॥

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

॥ चालीसा ॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥1
रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥2
तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥3
रामचरित जो रचे बनाई। आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥4
तुलसी सूर आदि विद्वाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा। केव कृपा आपकी अम्बा॥5
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता। तेहि न धरई चित माता॥6
राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥7
मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥8
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥9
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी। सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥10
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा। क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥11
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा। सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥12
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥13
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥14
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे। कानन में घेरे मृग नाहे॥15
सागर मध्य पोत के भंजे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥16
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥17
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥18
भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥19
रामसागर बाँधि हेतु भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी। 20

॥दोहा॥

मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

✅ निष्कर्ष

श्री सरस्वती चालीसा का पाठ विशेष रूप से बसंत पंचमी, विद्यारंभ और परीक्षा के समय अत्यंत फलदायी होता है।
जो विद्यार्थी, लेखक और कलाकार माँ सरस्वती का भजन करते हैं, उन्हें विद्या, कला और सफलता में कभी बाधा नहीं आती।

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