Maa Kaalratri

नवरात्रि का सातवाँ दिन: माँ कालरात्रि की कहानी, पूजा विधि और महिमा | Navratri Seventh Day – Maa Kalaratri

नवरात्रि का सातवाँ दिन (Navratri Seventh Day)

नवरात्रि के सातवें दिन माँ दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। इनका रूप भयंकर और रौद्र है, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए हमेशा मंगलकारी और शुभ फल देने वाली हैं।


माँ कालरात्रि की कहानी (Maa Kalaratri Ki Kahani in Hindi)

पौराणिक कथा के अनुसार, जब दानवों का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया, तब देवी ने अपने इस भयानक रूप को धारण किया।

  • माँ कालरात्रि का पूरा शरीर काला है।
  • इनके बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत जैसी चमकते हार हैं।
  • वे गधे पर सवार रहती हैं।
  • इनके चार हाथ हैं – एक हाथ वरद मुद्रा, एक हाथ अभय मुद्रा में, और दो हाथों में तलवार व कांटा शूल है।

माँ कालरात्रि ने अनेक असुरों का संहार किया और भक्तों की रक्षा की।


माँ कालरात्रि की पूजा विधि (Maa Kalaratri Puja Vidhi in Hindi)

नवरात्रि के सातवें दिन भक्त इस प्रकार पूजा करते हैं:

  1. स्नान और संकल्प – प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
  2. कलश पूजन और दीप प्रज्वलन – कलश स्थापित कर दीप जलाएँ।
  3. माँ कालरात्रि का ध्यान – माता की प्रतिमा या चित्र को पूजास्थल पर स्थापित करें।
  4. पुष्प और धूप अर्पण – माता को लाल पुष्प और धूप अर्पित करें।
  5. भोग – गुड़ और तिल का भोग माँ कालरात्रि को अति प्रिय है।
  6. मंत्र जपॐ देवी कालरात्र्यै नमः।
  7. आरती और प्रार्थना – माता की आरती करें और भय दूर करने व रक्षा की प्रार्थना करें।

माँ कालरात्रि की महिमा (Maa Kalaratri Ki Mahima)

  • माँ कालरात्रि की पूजा से सभी प्रकार के भय और संकट दूर होते हैं।
  • साधक को अपराजेय साहस और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
  • इस दिन पूजा करने से रोग, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
  • माँ की कृपा से भक्त को आध्यात्मिक शक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • जो साधक तंत्र-मंत्र साधना करते हैं, उनके लिए यह दिन विशेष फलदायी होता है।

निष्कर्ष

नवरात्रि का सातवाँ दिन माँ कालरात्रि की पूजा का दिन है। उनका रौद्र स्वरूप असुरों का संहार करता है, लेकिन भक्तों के लिए वे कल्याण और शुभ फल देने वाली हैं।

👉 श्रद्धा और विश्वास से माँ कालरात्रि की पूजा करने पर जीवन से भय और बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं और साधक को शक्ति व शांति की प्राप्ति होती है।

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