🌺 परिचय | Introduction
श्रीहनुमान नवरत्न स्तोत्रम् एक अत्यंत दुर्लभ और शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान हनुमान जी की नौ रत्न समान स्तुतियों से निर्मित है।
यह स्तोत्र केवल भक्तिपूर्ण भाव से पढ़ने मात्र से ही भय, रोग, संकट, शत्रु, ग्रहदोष, और मानसिक तनाव का नाश करता है।
हनुमान जी की आराधना में यह स्तोत्र रामकार्य सिद्धि, बल, बुद्धि, विजय और निर्भयता प्रदान करने वाला माना गया है।
इस स्तोत्र का पाठ मंगलवार, शनिवार या हनुमान जयंती के दिन करने से
श्रीराम भक्ति, साहस, आत्मविश्वास और संकटमोचन कृपा की प्राप्ति होती है।
🔶 ॥ श्रीहनुमान नवरत्न स्तोत्रम् ॥
(१)
श्रितजनपरिपालं रामकार्यानुकूलं
धृतशुभगुणजालं यातुतन्त्वार्तिमूलम्।
स्मितमुखसुकपोलं पीतपाटीरचेलं
पतिनतिनुतिलोलं नौमि वातेशबालम्।।
भावार्थ:
मैं वायुपुत्र हनुमान को प्रणाम करता हूँ — जो रामकार्य में नित संलग्न रहते हैं,
भक्तों की रक्षा करते हैं, जिनका मुख सदैव मुस्कुराता है,
जो शुभ गुणों के भंडार हैं और राक्षसों के कष्टों का अंत करते हैं।
(२)
दिनकरसुतमित्रं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं
शिशुतनुकृतचित्रं रामकारुण्यपात्रम्।
अशनिसदृशगात्रं सर्वकार्येषु जैत्रं
भवजलधिवहित्रं स्तौमि वायोः सुपुत्रम्।।
भावार्थ:
मैं उस वायुपुत्र की स्तुति करता हूँ जो सूर्यपुत्र शनि के मित्र हैं,
पाँच मुख और तीन नेत्रों वाले हैं, वज्र के समान शरीर वाले हैं,
जो हर कार्य में विजय दिलाते हैं और भक्तों को जीवन-सागर से पार कराते हैं।
(३)
मुखविजितशशाङ्कं चेतसा प्राप्तलङ्कं
गतनिशिचरशङ्कं क्षालितात्मीयपङ्कम्।
नगकुसुमविटङ्कं त्यक्तशापाख्यशृङ्गं
रिपुहृदयलटङ्कं नौमि रामध्वजाङ्कम्।।
भावार्थ:
मैं उस हनुमान को प्रणाम करता हूँ जिनका मुख चाँद को भी लज्जित करता है,
जिन्होंने लंका पाकर राक्षसों का भय मिटाया,
जो पवित्र हृदय वाले, शाप-मुक्त, और शत्रुओं के हृदय को कंपाने वाले हैं।
(४)
दशरथसुतदूतं सौरसास्योद्गगीतं
हतशशिरिपुसूतं तार्क्ष्यवेगातिपातम्।
मितसगरजखातं मार्गिताशेषकेतं
नयनपथगसीतं भावये वातजातम्।।
भावार्थ:
वह दशरथसुत श्रीराम के दूत हैं, जिनकी गति गरुड़ के समान है,
जिन्होंने सीता माता का पता लगाया और रावण का अभिमान नष्ट किया।
(५)
निगदितसुखिरामं सान्त्वितैक्ष्वाकुवामं
कृतविपिनविरामं सर्वरक्षोऽतिभीमम्।
रिपुकुलकलिकामं रावणाख्याब्जसोमं
मतरिपुबलसीमं चिन्तये तं निकामम्।।
भावार्थ:
मैं उस हनुमान का ध्यान करता हूँ जिन्होंने राम को सुख का संदेश दिया,
जिनकी भयंकरता से राक्षस डरते हैं, और जिन्होंने रावण का दर्प चूर किया।
(६)
निहतनिखिलशूरः पुच्छवह्निप्रचारः
द्रुतगतपरतीरः कीर्तिताशेषसारः।
समसितमधुधारो जातपम्पावतारो
नतरघुकुलवीरः पातु वायोः कुमारः।।
भावार्थ:
मैं उस वायुपुत्र को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने लंका दग्ध की,
जिनकी गति बिजली से भी तेज है, जो सम्पूर्ण संसार में पूज्य हैं।
(७)
कृतरघुपतितोषः प्राप्तसीताङ्गभूषः
कथितचरितशेषः प्रोक्तसीतोक्तभाषः।
मिलितसखिहनूषः सेतुजाताभिलाषः
कृतनिजपरिपोषः पातु कीनाशवेषः।।
भावार्थ:
मैं उस हनुमान की स्तुति करता हूँ जिन्होंने सीता जी के आभूषण लाए,
राम को प्रसन्न किया, और सेतु निर्माण की प्रेरणा दी।
(८)
क्षपितबलिविपक्षो मुष्टिपातार्तरक्षः
रविजनपरिमोक्षो लक्ष्मणोद्धारदक्षः।
हृतमृतिपरपक्षो जातसीतापरोक्षो
विरमितरणदीक्षः पातु मां पिङ्गलाक्षः।।
भावार्थ:
वह पिंगलाक्ष हनुमान, जिन्होंने लक्ष्मण को जीवित किया,
जो मृत्यु और भय को दूर करते हैं, वे मुझे सदैव सुरक्षित रखें।
(९)
सुखितसुहृदनीकः पुष्पयानप्रतीकः
शमितभरतशोको दृष्टरामाभिषेकः।
स्मृतपतिसुखिसेको रामभक्तप्रवेकः
पवनसुकृतपाकः पातु मां वायुतोकः।।
भावार्थ:
हनुमान जी जिन्होंने राम के राज्याभिषेक का दर्शन किया,
जो सभी दुखों को हर लेते हैं, और परम भक्त हैं — वे वायुपुत्र मुझे सदैव रक्षा प्रदान करें।
🌼 फलश्रुति (Benefits & Significance):
🔹 इस स्तोत्र के पाठ से भय, रोग, संकट और ग्रहदोष दूर होते हैं।
🔹 शत्रु, नकारात्मक शक्तियाँ और मानसिक कमजोरी समाप्त होती है।
🔹 हनुमान जी की कृपा से साहस, बुद्धि, आत्मविश्वास और विजय प्राप्त होती है।
🔹 रामभक्ति और हृदय की पवित्रता का संचार होता है।


