✨ भूमिका
सनातन धर्म में “अवतार” का अर्थ है — भगवान् का धरती पर मानव रूप में अवतरण ( भगवान् अवतार क्यों लेते हैं )। जब अधर्म बढ़ता है, जब धर्म पर संकट आता है, या जब भक्तों की पुकार असहनीय हो जाती है — तब परमात्मा स्वयं अवतरित होकर संतुलन स्थापित करते हैं।
इसी दिव्य रहस्य को परम ब्रह्मनिष्ठ संत श्री उड़ियाबाबाजी महाराज ने बड़े सरल और भावपूर्ण शब्दों में समझाया है।
🕉️ परमात्मा निराकार से साकार क्यों होते हैं?
एक बार श्री गौरांगदेवजी महाराज बैठे थे। तभी एक शिष्य ने पूछा —
“महाराज! परमात्मा तो निराकार हैं, फिर वे साकार कैसे हो गए?”
यह सुनकर श्रीमहाप्रभु जी की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने कहा —
“अरे! जब परमात्मा सर्वशक्तिमान हैं, तब क्या वे निराकार से साकार नहीं हो सकते? यदि भक्त संकट में है, तो क्या भगवान् स्वयं प्रकट होकर उसकी रक्षा नहीं करेंगे?”
भगवान् तभी अवतार लेते हैं जब —
- धर्म की पुनः स्थापना करनी हो,
- अधर्म का नाश आवश्यक हो, या
- भक्त की भक्ति से अभिभूत होकर दर्शन देना हो।
💫 भगवान् और भक्त का संबंध
एक ब्रह्मनिष्ठ महात्मा कहा करते थे —
“जिस ईश्वर से हम बात नहीं कर सकते, जिसके साथ सुख-दुःख नहीं बाँट सकते, ऐसे निराकार ईश्वर से हमें क्या लेना? हमें तो वही ईश्वर चाहिए, जिसके संग हम खेल सकें, जैसे कृष्ण के सखा।”
यही कारण है कि भक्त के प्रेम से भगवान् साकार हो जाते हैं।
वे साकार होते हुए भी निराकार हैं — यह ईश्वर की अद्भुत लीला है।
🪔 भगवान् के अवतारों के प्रकार
हमारे शास्त्रों में अवतारों को पाँच भागों में विभाजित किया गया है —
- पूर्णावतार – जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण
- अंशावतार
- विशेषावतार
- अविशेषावतार
- नित्यावतार
इसके अलावा दो मुख्य श्रेणियाँ बताई गई हैं —
- निमित्त अवतार
- नैमित्तिक अवतार
हर अवतार का उद्देश्य होता है — सभी जीवों का कल्याण।
🌼 श्रीकृष्णावतार का प्रेममय स्वरूप
ब्रह्मा, वसिष्ठ और महर्षि वाल्मीकि जिनका ध्यान नहीं पा सके —
उन्हीं श्रीकृष्ण की पीठ पर ग्वालबाल सवारी करते थे!
यही तो प्रेम की चरम अवस्था है — जब ईश्वर स्वयं भक्त के संग बालसखा बन जाते हैं।
🧠 अवतार को पहचानने की योग्यता
अहंकारी और शंकालु व्यक्ति भगवान् के अवतार को पहचान ही नहीं पाता।
जैसा कि श्रीकृष्ण ने कहा —
“अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्॥”
(गीता 7.24)
अर्थात् —
अज्ञानी लोग मुझे शरीरधारी व्यक्ति समझते हैं, वे मेरे अव्यय, सर्वोच्च स्वरूप को नहीं जानते।
🙏 तर्क नहीं, भक्ति ही मार्ग है
कुछ लोग कहते हैं —
“श्रीराम और श्रीकृष्ण अवतार नहीं, केवल महापुरुष थे।”
परंतु ऐसे संशयी कथनों पर ध्यान न दें।
सच्चा साधक शास्त्रसिद्ध अवतारों में दृढ़ निष्ठा रखता है और भक्ति तथा सत्कर्मों के मार्ग पर चलता है।
तर्क-वितर्क से भ्रम बढ़ता है, जबकि श्रद्धा और विश्वास से कल्याण होता है।
🌹 निष्कर्ष
भगवान् अवतार लेते हैं ताकि —
- धर्म की पुनः स्थापना हो,
- अधर्म का नाश हो,
- और भक्तों को साक्षात् ईश्वर का स्नेह मिले।
भक्ति के मार्ग पर स्थिर रहकर यदि हम भगवान् का स्मरण करें, तो वही हमें हर विपत्ति से उबारते हैं।
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