tulsi stotram

🌿 श्री तुलसी लक्ष्मी स्तोत्र, तुलसी षटकम् और श्री हरिप्रिया तुलसी स्तोत्रम् (हिन्दी अर्थ सहित)

🌸 परिचय (Introduction)

तुलसी माता को हिन्दू धर्म में देवी लक्ष्मी का अवतार माना गया है। वे भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी हैं और भक्ति, समृद्धि, शुद्धता तथा मोक्ष की अधिष्ठात्री हैं। तुलसी का स्मरण, पूजन, और पत्र अर्पण न केवल आध्यात्मिक उत्थान देता है, बल्कि जीवन के कष्टों को भी हर लेता है। नीचे दिए गए तीन प्रमुख तुलसी स्तोत्र — श्री तुलसी लक्ष्मी स्तोत्र, तुलसी षटकम्, और श्री हरिप्रिया तुलसी स्तोत्रम् — तुलसी माता की महिमा का सुंदर वर्णन करते हैं।

🌷 १. श्री तुलसी लक्ष्मी स्तोत्र (हिन्दी अर्थ सहित)

तुलसी देवी स्वयं भगवती लक्ष्मी का अंशरूपा हैं। जो तुलसी माता का ध्यान करता है, उसे हरि-भक्ति, सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मुख्य भावार्थ:
तुलसी श्यामवर्णा, कमलनयन, चार भुजाओं वाली देवी हैं जो कमल, शंख, वर और अभय मुद्रा धारण करती हैं। वे किरीट, हार, कुण्डल से अलंकृत हैं और कमलासन पर विराजमान रहती हैं। उनके जड़ में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, और मंजरी में शिव का निवास है। जो तुलसी की पूजा करता है, वह हरि-भक्ति और मोक्ष प्राप्त करता है।

तुलसी देवी स्वयं भगवती लक्ष्मी का अंशरूपा रूप हैं, जो श्रीकृष्ण की अनन्य प्रिया बनकर वृन्दा देवी कहलाती हैं।
उनका स्मरण, ध्यान, पूजा, और पत्र अर्पण — यह सब मनुष्य को हरि-भक्ति, सुख, समृद्धि, और मोक्ष प्रदान करते हैं।

🍁
ध्यायेच्च तुलसीं देवीं श्यामां कमललोचनम्।
प्रसन्नां पद्मकहलावराभय चतुर्भुजाम्॥१

अर्थ:
भक्त को चाहिए कि वह तुलसी देवी का ध्यान करे —
जो श्यामवर्णा हैं, जिनकी आँखें कमल की पंखुड़ियों के समान हैं,
जो प्रसन्नमुखी हैं, जिनके चार भुजाएँ हैं, और जो पद्म (कमल), खलार (शंख), वर और अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं।

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किरीटहार केयूर कुण्डलादिविभूषिताम्।
धवलांशुक संयुक्ता पद्मासन निषेदुषीम्॥२

अर्थ:
वे किरीट (मुकुट), हार, केयूर (बाहुबंध), कुण्डल आदि से अलंकृत हैं,
धवल वस्त्रों से युक्त हैं और कमलासन पर विराजमान हैं।

🍁
तुलसीं पुष्पसारां च सतीं पूता मनोहराम्।
कृतपापेघ्मदाहाय ज्वलदग्निशिखोपमाम्॥३

अर्थ:
मैं उस तुलसी देवी का ध्यान करता हूँ जो पुष्पों का सार (मर्म) हैं,
पवित्र सती और मनोहर हैं, और जिनकी शक्ति पापों को जला डालने वाली अग्निशिखा के समान तेजस्विनी है।

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पुष्पेषु तुलना यस्या नास्ति वेदेषु भाषितम्।
पवित्ररूपा सर्वासु तुलसी सा च कीर्तिता॥४

अर्थ:
वेदों ने कहा है कि तुलसी के समान कोई भी पुष्प नहीं है।
वह सर्वत्र पवित्ररूपा कही गई हैं, और सब पुष्पों में श्रेष्ठ मानी गई हैं।

🍁
तस्या मूले स्थितो ब्रह्मा मध्ये देवो जनार्दनः।
मंजर्यां वसते रूद्रस्य तुलसी तेन पावनी॥५

अर्थ:
तुलसी के मूल (जड़) में भगवान ब्रह्मा निवास करते हैं,
मध्यभाग में भगवान विष्णु (जनार्दन) और मंजरियों में भगवान रुद्र (शिव) का निवास है —
इसलिए तुलसी त्रिदेवमयी एवं परम पावनी है।

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शिरोधार्या च सर्वेषामीप्सिता विश्वपावनी।
जीवनमुक्तां मुक्तिदां च भजे तां हरिभक्तिदाम्॥६

अर्थ:
वह तुलसी देवी सभी के द्वारा सिर पर धारण करने योग्य और विश्व को पवित्र करने वाली हैं।
वह स्वयं जीवन्मुक्ता (मुक्ति की अधिष्ठात्री) हैं और अपने भक्तों को हरिभक्ति तथा मोक्ष प्रदान करती हैं — ऐसी देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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यस्या देवास्तुला नास्ति विश्वेषु निखिलेषु च।
तुलसी तेन विख्याता तां यामि शरणं प्रियाम्॥७

अर्थ:
जिस देवी की समता किसी भी देवता से नहीं — वे अद्वितीया हैं।
ऐसी प्रिय तुलसी देवी के शरण में मैं जाता हूँ।

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कृष्णजीवनरूपा या शश्वत्प्रियतमा सती।
तेन कृष्णजीवनीति मम रक्षतु जीवनम्॥८

अर्थ:
जो श्रीकृष्ण की जीवनशक्ति के समान हैं, और जो सदा उनकी प्रिय सती हैं —
वह कृष्णजीवनी तुलसी मेरा जीवन सुरक्षित रखें।

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वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारां नंदनी च तुलसी कृष्ण जीवनी॥९

अर्थ:
वह देवी वृन्दा हैं — वृन्दावन में निवास करने वाली,
संपूर्ण जगत द्वारा पूजिता और विश्व को पवित्र करने वाली।
वे पुष्पों की साररूपा, नंदिनी और कृष्ण की जीवनशक्ति हैं — ऐसी तुलसी माता को नमन।
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🌸 २. श्री तुलसी षटकम् (हिन्दी अर्थ सहित)

इस स्तोत्र में तुलसी माता की पाप-नाशक और पुण्यदायिनी शक्ति का वर्णन है।

मुख्य भावार्थ:
तुलसी वन के दर्शन से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। तुलसी का स्पर्श शरीर को पवित्र करता है, वंदन से रोग नष्ट होते हैं, और तुलसीमूल की मिट्टी धारण करने वाला यमराज से भी निर्भय रहता है। जहाँ तुलसी का वास होता है, वहाँ स्वयं भगवान विष्णु निवास करते हैं। तुलसी श्रीलक्ष्मी की सखी हैं, पापहारिणी और पुण्यदायिनी हैं।

— तुलसीवन माहात्म्य और पाप-नाशिनी तुलसी की महिमा
—तुलसी के दर्शन, स्पर्श, पूजन और रोपण से जीवन पवित्र होता है, पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

🍁
पापानि यानि रविसूनुपटस्थितानि
गोब्रह्मबालपितृमातृवधादिकानि।
नश्यन्ति तानि तुलसीवनदर्शनेन
गोकोटिदानसदृशं फलमाशु च स्यात्॥१॥

अर्थ:
जो पाप सूर्य की किरणों से भी नष्ट नहीं होते — जैसे गोवध, ब्रह्मवध, बालक या माता-पिता की हत्या आदि,
वे भी केवल तुलसीवन के दर्शन मात्र से नष्ट हो जाते हैं।
तुलसीवन का दर्शन करने से उतना ही फल मिलता है, जितना गोदान की कोटियों से प्राप्त होता है।

🍁
या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुः पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्ताऽन्तकत्रासिनी।
प्रत्यासक्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः॥२॥

अर्थ:
जो तुलसी — दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश करती हैं,
स्पर्श से शरीर को पवित्र करती हैं,
वन्दन करने से रोगों को दूर करती हैं,
सिंचन (जल चढ़ाने) से मृत्यु के भय को नष्ट करती हैं,
और जो श्रीकृष्ण के चरणों में रोपी जाती हैं,
वह तुलसी मोक्ष देनेवाली है —
ऐसी भगवती तुलसी को बारंबार नमस्कार है।

🍁
ललाटे यस्य दृश्येत तुलसीमूलमृत्तिका
यमस्तं नेक्षितुं शक्तः किमु दूता भयङ्कराः॥३॥

अर्थ:
जिस मनुष्य के ललाट पर तुलसीमूल की मिट्टी (मृत्तिका) लगी होती है,
उसे यमराज भी देख नहीं सकते —
फिर उनके भयावह दूतों की तो क्या सामर्थ्य है!

🍁
तुलसीकाननं यत्र यत्र पद्मवनानि च।
वसन्ति वैष्णवा यत्र तत्र सन्निहितो हरिः॥४॥

अर्थ:
जहाँ तुलसी का वन हो, या जहाँ कमलवन (पद्मवन) हो,
जहाँ वैष्णव भक्त वास करते हैं —
वहाँ स्वयं भगवान् हरि सदैव निवास करते हैं।

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पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा।
वासुदेवादयो देवाः वसन्ति तुलसीवने॥५॥

अर्थ:
पुष्कर आदि पवित्र तीर्थ, गंगा आदि नदियाँ,
और स्वयं वासुदेव तथा अन्य सभी देवता —
ये सब तुलसीवन में निवास करते हैं।
इसलिए तुलसीवन सर्वतीर्थसम है।

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तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये॥६॥

अर्थ:
हे तुलसीदेवी! श्रीलक्ष्मी की सखी, कल्याणमयी,
सभी पापों को हरनेवाली और पुण्य देनेवाली देवी!
आपको नमस्कार —
आप नारद मुनि द्वारा वंदिता हैं और नारायण की अत्यन्त प्रिया हैं।
🌿 ॥ इति श्री तुलसी स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥ 🌿
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🌺 ३. श्री हरिप्रिया तुलसी स्तोत्रम् (हिन्दी अर्थ सहित)

यह स्तोत्र तुलसी माता के प्रति प्रेम, आस्था और आध्यात्मिक लाभ का वर्णन करता है।

मुख्य भावार्थ:
तुलसी सभी पापों को नष्ट करने वाली और हरि की प्रिया हैं। एक तुलसी-दल अर्पण करने से भी भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं। तुलसी का दर्शन, पूजन, और स्मरण करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त विष्णुलोक प्राप्त करता है। तुलसी का जल, पुष्प, और लकड़ी — सब मोक्षदायिनी मानी गई हैं। जो तुलसी का पूजन नहीं करता, उसका जन्म व्यर्थ बताया गया है।

फलश्रुति:
जो भक्त श्रद्धा से इस तुलसी स्तोत्र का पाठ करता है, उसे हरिप्रेम और मोक्ष की प्राप्ति होती है — इसमें कोई संशय नहीं।

श्रीगुरवे नमः।
श्रीहरये नमः।
श्रीतुलस्यै नमः।

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नमामि तुलसीं दिव्यां, सर्वपापप्रणाशिनीम्।
हरिप्रियां हरिवल्लभां, विश्वपूज्यां सुवन्दिनीम्॥१॥

अर्थ: मैं उस दिव्य तुलसी माता को नमस्कार करता हूँ, जो सभी पापों को नष्ट करनेवाली हैं, भगवान हरि की प्रिय और उनकी प्रिया स्वरूपा हैं, जिन्हें सम्पूर्ण जगत पूजता है और जो सुगंध रूप में सर्वत्र व्याप्त हैं।

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गङ्गातोयं समानेन, तुलसीदलमर्पितम्।
कृष्णस्य तुष्यते नित्यं, न तु चन्द्रार्ककोटिभिः॥२॥

अर्थ: गंगाजल में अर्पित एक तुलसी-दल भी श्रीकृष्ण को उतना ही प्रसन्न करता है, जितना करोड़ों सूर्य-चन्द्रों की ज्योति नहीं कर सकती।

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तुलस्याः पत्रमेकं च, हरिपादे निधापितम्।
कलेशं नाशयत्याशु, महापातककोटिभिः॥३॥

अर्थ: भगवान हरि के चरणों में चढ़ाया गया एक तुलसी पत्र ही करोड़ों पापों और दुःखों को तुरंत नष्ट कर देता है।

🍁
तुलसीं या समर्चयेत्, भक्त्या शुद्धेन चेतसा।
तस्य पापानि नश्यन्ति, दग्धानि हुतभस्मवत्॥४॥

अर्थ: जो भक्त शुद्ध भाव से तुलसी का पूजन करता है, उसके सभी पाप अग्नि में भस्म की भाँति जलकर नष्ट हो जाते हैं।

🍁
तुलसीं या प्रपूजयेत्, तुलसीं या समर्चयेत्।
तस्य कुलं विमुक्तं स्यात्, पातकाद्भूरिकर्मभिः॥५॥

अर्थ: जो तुलसी का पूजन या आराधना करता है, उसका कुल अनेक जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।

🍁
तुलस्याः दर्शनं पुंसां, सर्वरोगनिवारणम्।
स्पर्शनं पावनं पुण्यं, सर्वदारिद्र्यनाशनम्॥६॥

अर्थ: तुलसी का दर्शन सभी रोगों को दूर करता है, उनका स्पर्श पवित्रता देता है और सम्पूर्ण दरिद्रता का नाश करता है।

🍁
तुलसी वनमासाद्य, यः किञ्चिदपि नर्चयेत्।
तस्य पुण्यं भवेत् तावत्, यावदिन्द्रः स पुर्यते॥७॥

अर्थ: जो व्यक्ति तुलसीवन में जाकर थोड़ा सा भी पूजन करता है, उसे उतना पुण्य प्राप्त होता है जितना इन्द्र के राज्य तक पहुँचने वाला पुण्य होता है।

🍁
तुलसीकाष्ठगिरेषु वा, यत् यजते नैवेद्यं नरः।
स याति वैष्णवं धाम, न पापं न संशयः॥८॥

अर्थ: जो व्यक्ति तुलसी की गिरी हुई या सूखी लकड़ी की आग पर भगवान को नैवेद्य अर्पित करता है, वह मृत्यु के बाद वैष्णव लोक (वैकुण्ठ धाम) को प्राप्त होता है; इसमें कोई संशय नहीं।

🍁
तुलसीदलं ये भुक्त्वा, जलं वा तस्य सेवया।
ते मुक्ताः सर्वपापेभ्यः, विष्णुलोकं प्रयान्ति ते॥९॥

अर्थ: जो तुलसी दल का सेवन करते हैं या तुलसीजल पीते हैं, वे सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं।

🍁
तुलसीं या न पूजयेत्, तस्य जन्म व्यर्थमेव हि।
हरिप्रिया न पूज्येत, स जीवन् मृत एव हि॥१०॥

अर्थ: जो तुलसी का पूजन नहीं करता, उसका जन्म व्यर्थ है; जो हरि की प्रिया तुलसी की उपासना नहीं करता, वह जीवित होते हुए भी मृत समान है।

🍁
तुलसीकुसुमैः युक्तं यः दीपकं प्रज्वलयेत्।
सर्वसिद्धिप्रदं भवति, आयुष्मान् भवति नित्य॥११॥

अर्थ: तुलसी पुष्पों से सजाकर दीपक जलाने वाला व्यक्ति सभी सिद्धियों में सफल और दीर्घायु होता है।

🍁
तुलसीजलसंपर्के यदि स्नानं क्रियते।
सर्वपापविनिर्मुक्तं, विष्णुप्रसादसम्भवः॥१२॥

अर्थ: तुलसी जल से स्नान करने वाला व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु प्रसाद प्राप्त करता है।

🍁
तुलसीकुशसंपर्के यदि यज्ञः सम्पद्यते।
सर्वसिद्धिप्रदं भवति, धन्यः भवति नित्य॥१३॥

अर्थ: तुलसीकुश से यज्ञ करने वाला व्यक्ति सभी सिद्धियों का अधिकारी और धन्य होता है।

🍁
तुलसीस्मरणं यस्तु हृदये विधिना क्रियते।
सर्वसौख्यविनिर्मुक्तं, धर्ममार्गेण स्थिरः॥१४॥

अर्थ: जो व्यक्ति तुलसी का विधिपूर्वक स्मरण हृदय में करता है, वह सभी सुखों से मुक्त और धर्ममार्ग में स्थिर रहता है।

🍁
तुलसीकाष्ठसंभूते यदि यज्ञे प्रयुज्यते।
सर्वसिद्धिप्रदं भवति, आयुष्मान् भवति नित्य॥१५॥

अर्थ: तुलसी की लकड़ी से यज्ञ करने वाला व्यक्ति सभी सिद्धियों में सफल और दीर्घायु होता है।
🍁
तुलसीस्नेहसंपन्नं हृदयं यदि स्थिरं।
सर्वसौख्यविनिर्मुक्तं, विष्णुप्रसादसम्भवः॥१६॥

अर्थ: जो व्यक्ति तुलसी से स्नेह रखता है, वह सुखी और विष्णु प्रसाद का अधिकारी होता है।

🍁
तुलसीकुसुमसंपर्के यदि भोजनं साधयेत्।
सर्वसौख्यप्रदं भवति, धन्यः प्राप्नोति शुभम्॥१७॥

अर्थ: तुलसी पुष्पों के साथ भोजन करने वाला व्यक्ति सभी सुखों और शुभताओं का अधिकारी बनता है।

🍁
तुलसीजलधारा यदि प्रतिदिन क्रियते।
सर्वरोगविनाशिनी, आयुष्मान् भवति नित्य॥१८॥

अर्थ: जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी जल का उपयोग करता है, वह रोगमुक्त और दीर्घायु होता है।
🍁
तुलसीकुसुमसंपर्के दीपक यदि प्रज्वलिते।
सर्वसिद्धिप्रदं भवति, विष्णुप्रसादसम्भवः॥१९॥

अर्थ: तुलसी पुष्पों के साथ दीपक जलाने वाला व्यक्ति सभी सिद्धियों में सफल और विष्णु प्रसाद का अधिकारी होता है।

🍁
तुलसीस्मरणं यदि प्रतिदिन क्रियते।
सर्वपापविनिर्मुक्तं, धन्यः भवति नित्य॥२०॥

अर्थ: जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी का स्मरण करता है, वह सभी पापों से मुक्त और धन्य होता है।

🍁
तुलसीकुष्ठसंपर्के यदि यज्ञः सम्पद्यते।
सर्वसिद्धिप्रदं भवति, धन्यः भवति नित्य॥२१॥

अर्थ: तुलसीकुश से यज्ञ करने वाला व्यक्ति सभी सिद्धियों का अधिकारी और धन्य होता है।

🍁
तुलसीस्नेहसंपन्नं हृदयं यदि स्थिरं।
सर्वसौख्यविनिर्मुक्तं, धर्ममार्गेण संचरन्॥२२॥

अर्थ: जो व्यक्ति तुलसी से स्नेह रखता है, वह सुख-समृद्ध और धर्ममार्ग में स्थिर रहता है।

🍁
तुलसीकुसुमसंपर्के यदि यज्ञः सम्पद्यते।
सर्वपापविनाशकं, विष्णुप्रसादसम्भवः॥२३॥

अर्थ: तुलसी पुष्पों से यज्ञ करने वाला व्यक्ति सभी पापों से मुक्त और विष्णु प्रसाद का अधिकारी होता है।

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तुलसीजलसंपर्के यदि दीपक प्रज्वलिते।
सर्वसिद्धिप्रदं भवति, आयुष्मान् भवति नित्य॥२४॥

अर्थ: तुलसी जल से दीपक जलाने वाला व्यक्ति सभी सिद्धियों में सफल और दीर्घायु होता है।

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तुलसीस्मरणं यस्तु प्रतिदिन विधिना करे।
सर्वसौख्यविनिर्मुक्तं, विष्णुप्रसादसम्भवः॥२५॥

अर्थ: जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी का स्मरण विधिपूर्वक करता है, वह सभी सुखों से मुक्त और विष्णु प्रसाद का अधिकारी होता है।

🍁 फलश्रुति
इदं तुलसीस्तोत्रं यः पठेत् श्रद्धयान्वितः।
स लभेत् हरिप्रेम, च मुक्तिं चापि न संशयः॥

अर्थ: जो श्रद्धा से इस तुलसी स्तोत्र का पाठ करता है, उसे भगवान हरि का प्रेम और अंत में मुक्ति अवश्य प्राप्त होती है।

🌼 तुलसी पूजा का आध्यात्मिक महत्व (Spiritual Significance of Tulsi Puja)

तुलसी केवल एक पौधा नहीं, बल्कि जीवन की पवित्र ऊर्जा का प्रतीक है। तुलसी माता का पूजन करने से घर में सकारात्मकता, आरोग्य, और समृद्धि आती है। तुलसी जल का सेवन मन और शरीर दोनों को शुद्ध करता है। तुलसी के प्रति प्रेम रखने से व्यक्ति धर्ममार्ग में स्थिर रहता है और विष्णु प्रसाद का अधिकारी बनता है।


🌿 निष्कर्ष (Conclusion)

तुलसी माता न केवल भगवान विष्णु की प्रिय हैं बल्कि समस्त भक्तों के कल्याण का माध्यम भी हैं। इन स्तोत्रों का नियमित पाठ करने से मन, तन और धन — तीनों की शुद्धि होती है। तुलसी पूजन जीवन में हरि भक्ति, शांति और मोक्ष प्रदान करता है।

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