Tripurasur Vadh Katha

🔱 त्रिपुरासुर वध कथा: भगवान शिव का त्रिपुरांतक अवतार और पौराणिक रहस्य

शिव क्यों कहलाए त्रिपुरारी? एक ही बाण से तीनों लोकों के असुरों का संहार

Tripurasur Vadh Katha: तारकासुर के तीन पुत्र थे, उनके नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युनमाली थे। इनके पास तीन घूमने वाले शहर थे, जिन्हें त्रिपुरा नगरी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सभी देवता इनका वध करने में सक्षम नहीं थे और फिर भगवान शिव ने अपने एक ही बाण से त्रिपुरा नगरी को जला कर भस्म कर दिया था और त्रिपुरारी नाम से प्रसिद्ध हो गए।

इसका उल्लेख शिवपुराण में मिलता है, जहाँ यह बताया गया कि आखिर वह कौन-सा कारण था जिसकी वजह से भोलेनाथ को त्रिपुरारी कहा जाने लगा और क्यों भगवान शिव ने अपने एक ही बाण से त्रिपुरा नगरी को जला कर भस्म कर दिया था।

मित्रों, आज जानते हैं कि कौन था त्रिपुरासुर और वह आखिर कैसे इतना शक्तिशाली हो गया कि कोई भी उसका वध नहीं कर पा रहा था। क्या है इसके पीछे की संपूर्ण कहानी, आइए जानते हैं।


त्रिपुरासुर: वह शक्तिशाली असुर जिसे केवल शिव ही मार सकते थे

त्रिपुरासुर कौन थे?

त्रिपुरासुर असुरों की एक तिकड़ी थी, जिसमें तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नाम के तीन भाई शामिल थे। ये तीनों महान असुर तारकासुर के पुत्र थे। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए, इन तीनों ने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया।

अद्भुत और अजेय वरदान

ब्रह्मा जी ने जब उन्हें वरदान मांगने को कहा, तो उन्होंने अमरत्व की मांग की। ब्रह्मा जी ने अमर होने का वरदान देने से मना कर दिया। इस पर तीनों असुर भाइयों ने एक चतुर वरदान मांगा:

  1. उनके लिए तीन अलग-अलग और अजेय पुरियाँ (किले) बनवाई जाएँ।
  2. पहली सोने की स्वर्ग में, दूसरी चाँदी की आकाश में और तीसरी लोहे की पृथ्वी पर स्थित हो।
  3. हर हज़ार वर्ष बाद, ये तीनों पुरियाँ एक सीध में आकर ‘त्रिपुरा’ नामक एक नगरी का निर्माण करें।
  4. उनकी मृत्यु तभी संभव हो, जब कोई एक ही बाण से इस संयुक्त ‘त्रिपुरा’ को नष्ट कर दे।

ब्रह्मा जी ने “तथास्तु” कह दिया। विश्वकर्मा ने तीनों दिव्य पुरियों का निर्माण कर दिया। तारकाक्ष को स्वर्ण पुरी, कमलाक्ष को रजत पुरी और विद्युन्माली को लौह पुरी मिली।

त्रिपुरा का आतंक और देवताओं की चिंता

इन अजेय पुरियों में रहकर, तीनों असुरों ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया। देवता उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे थे। वे सबसे पहले ब्रह्मा जी के पास गए, लेकिन ब्रह्मा ने अपने दिए वरदान के कारण मदद करने से इनकार कर दिया। फिर वे शिव के पास पहुँचे, परन्तु शिव ने कहा कि जब तक असुर धर्म का पालन कर रहे हैं, तब तक वह उन पर आक्रमण नहीं कर सकते।

विष्णु की चाल: असुरों को पापी बनाना

समस्या का हल ढूंढते हुए, सभी देवता विष्णु जी के पास गए। विष्णु जी ने एक योजना बनाई। उन्होंने कहा कि यदि असुरों को पापी बना दिया जाए, तो शिव उन्हें दंड देने के लिए विवश हो जाएंगे। विष्णु ने एक मुंडन किए हुए, फीके कपड़े पहने एक ऐसे व्यक्ति का निर्माण किया, जो वेदों के विरुद्ध एक नए धर्म का प्रचार करे। इस व्यक्ति ने जंगल में जाकर उपदेश देना शुरू किया, जिसमें यह बताया गया कि न कोई स्वर्ग है, न नरक और न ही कोई पुनर्जन्म। उसकी शिक्षाएँ इतनी प्रभावशाली थीं कि ऋषि नारद भी भ्रमित हो गए।

नारद ने इस “अद्भुत” नए धर्म के बारे में असुर राजा विद्युन्माली को बताया। नारद जैसे महान ऋषि के परिवर्तित होने से प्रभावित होकर, तीनों असुर भाई भी इस नए धर्म में दीक्षित हो गए। उन्होंने वेदों का त्याग कर दिया और शिवलिंग की पूजा करना बंद कर दिया। अब असुर पापी हो चुके थे।

शिव का क्रोध और त्रिपुरा का संहार

अब देवता फिर से शिव के पास गए और असुरों के पापों के बारे में बताया। शिव त्रिपुरा को नष्ट करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने शिव के लिए एक दिव्य रथ, धनुष और बाण बनाया। इस रथ के सारथी स्वयं ब्रह्मा बने। सारे देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियाँ उस एक बाण में समाहित कर दीं। विष्णु स्वयं उस बाण में प्रवेश कर गए।

जैसे ही हर हज़ार साल बाद तीनों पुरियाँ एक सीध में आकर ‘त्रिपुरा’ बनीं, भगवान शिव ने ठीक उसी क्षण अपना विनाशकारी पाशुपतास्त्र छोड़ा। एक ही बाण ने तीनों पुरियों को बींध दिया और उन्हें जलाकर राख कर दिया। इस प्रकार त्रिपुरासुर का अंत हुआ।

त्रिपुरारी और रुद्राक्ष की उत्पत्ति

इस महान विजय के बाद, भगवान शिव ‘त्रिपुरारी’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। तीनों पुरियों को जलाकर भस्म कर देने के बाद शिव का हृदय द्रवित हो उठा और उनकी आँखों से आँसू की कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरीं। इन्हीं आँसुओं से रुद्राक्ष के पेड़ उत्पन्न हुए। ‘रुद्र’ (शिव) और ‘अक्ष’ (आँसू) से मिलकर बना यह नाम आज भी भक्तों के लिए पवित्र है।


सारांश: यह कहानी भगवान शिव के त्रिपुरारी नाम पड़ने की उत्पत्ति की कथा है, जो शिव पुराण और महाभारत के खंड पर्व में वर्णित है। इसमें तारकासुर के तीन पुत्रों—तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली—द्वारा प्राप्त अजेय वरदान, उनके द्वारा मचाए गए आतंक और अंततः भगवान शिव द्वारा एक ही बाण से उनके तीनों दुर्गों (त्रिपुरा) के संहार का विस्तृत वर्णन है।


🌕 त्रिपुरासुर वध और कार्तिक पूर्णिमा का संबंध

त्रिपुरासुर वध का यह दिव्य युद्ध कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था।
इसी कारण इस तिथि को त्रिपुरी पूर्णिमा या देव दीपावली भी कहा जाता है।
इस दिन भगवान शिव की पूजा, दीपदान और स्नान का विशेष महत्व है।


🪔 धार्मिक महत्व और प्रेरणा

  • शिव की असीम शक्ति और करुणा का प्रतीक है यह कथा।
  • यह सिखाती है कि सत्य, संयम और समर्पण से ही दुष्टता पर विजय संभव है।
  • गणेश आराधना का महत्व दर्शाती है — हर कार्य से पहले विघ्नहर्ता का स्मरण आवश्यक है।
  • रुद्राक्ष की उत्पत्ति का रहस्य भी इसी कथा से जुड़ा है।

🔔 निष्कर्ष: त्रिपुरासुर वध कथा

त्रिपुरासुर वध कथा न केवल भगवान शिव की शक्ति का वर्णन करती है, बल्कि धर्म और अधर्म के शाश्वत संघर्ष का प्रतीक भी है।
जब अहंकार और अत्याचार अपने चरम पर पहुँचते हैं, तब शिव का “त्रिपुरांतक” रूप सृष्टि को संतुलन में लाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस कथा का स्मरण करने से व्यक्ति के जीवन में नकारात्मकता का नाश और दिव्यता का उदय होता है।

🌕 कार्तिक पूर्णिमा 2025: तिथि, पूजा विधि, महत्व और पौराणिक कथा

मृतसञ्जीवनी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित (Mrutsanjeevani Stotra with Hindi Meaning) : जीवन रक्षक और अमृत कवच

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *