Shri Vishnu Chalisa

श्री विष्णु चालीसा: पाठ, महत्व और चमत्कारी लाभ

श्री विष्णु चालीसा का महत्व

एकादशी तिथि भगवान श्री विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस दिन श्रद्धापूर्वक श्री विष्णु चालीसा का पाठ करने से भगवान सभी दुख-दर्द और कष्टों को दूर करते हैं। भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा जीवन में सुख-समृद्धि आती है।


श्री विष्णु चालीसा पाठ विधि

  1. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएँ।
  3. श्री विष्णु के चित्र या मूर्ति के सामने बैठें।
  4. तुलसी दल, पीले फूल और प्रसाद अर्पित करें।
  5. श्रद्धा भाव से श्री विष्णु चालीसा का पाठ करें।

श्री विष्णु चालीसा पाठ के लाभ

  • पापों का नाश होता है और मन पवित्र होता है।
  • जीवन से सभी दुख और मानसिक पीड़ा दूर होती है।
  • घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  • भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
  • मृत्यु के बाद विष्णु लोक (वैष्णव धाम) की प्राप्ति होती है।

श्री विष्णु चालीसा (पूरा पाठ)

दोहा

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।

कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।

चौपाई

नमो विष्णु भगवान खरारी।

कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।

त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत।

सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥

तन पर पीतांबर अति सोहत।

बैजन्ती माला मन मोहत॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे।

देखत दैत्य असुर दल भाजे॥

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।

काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥

संतभक्त सज्जन मनरंजन।

दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।

दोष मिटाय करत जन सज्जन॥

पाप काट भव सिंधु उतारण।

कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥

करत अनेक रूप प्रभु धारण।

केवल आप भक्ति के कारण॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।

तब तुम रूप राम का धारा॥

भार उतार असुर दल मारा।

रावण आदिक को संहारा॥

आप वराह रूप बनाया।

हरण्याक्ष को मार गिराया॥

धर मत्स्य तन सिंधु बनाया।

चौदह रतनन को निकलाया॥

अमिलख असुरन द्वंद मचाया।

रूप मोहनी आप दिखाया॥

देवन को अमृत पान कराया।

असुरन को छवि से बहलाया॥

कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।

मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।

भस्मासुर को रूप दिखाया॥

वेदन को जब असुर डुबाया।

कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥

मोहित बनकर खलहि नचाया।

उसही कर से भस्म कराया॥

असुर जलंधर अति बलदाई।

शंकर से उन कीन्ह लडाई॥

हार पार शिव सकल बनाई।

कीन सती से छल खल जाई॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।

बतलाई सब विपत कहानी॥

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।

वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥

देखत तीन दनुज शैतानी।

वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।

हना असुर उर शिव शैतानी॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।

हिरणाकुश आदिक खल मारे॥

गणिका और अजामिल तारे।

बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥

हरहु सकल संताप हमारे।

कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।

दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥

चहत आपका सेवक दर्शन।

करहु दया अपनी मधुसूदन॥

जानूं नहीं योग्य जप पूजन।

होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण।

विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥

करहुं आपका किस विधि पूजन।

कुमति विलोक होत दुख भीषण॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।

कौन भांति मैं करहु समर्पण॥

सुर मुनि करत सदा सेवकाई।

हर्षित रहत परम गति पाई॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई।

निज जन जान लेव अपनाई॥

पाप दोष संताप नशाओ।

भव-बंधन से मुक्त कराओ॥

सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।

निज चरनन का दास बनाओ॥

निगम सदा ये विनय सुनावै।

पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥

निष्कर्ष

श्री विष्णु चालीसा का पाठ हर किसी के लिए कल्याणकारी है। विशेष रूप से एकादशी के दिन इसका पाठ करने से भगवान विष्णु भक्तों की सभी बाधाएँ दूर करके आशीर्वाद प्रदान करते हैं। श्रद्धा और विश्वास से किया गया यह पाठ जीवन में दिव्य शांति और सुख लेकर आता है।

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