🔱 प्रस्तावना | Introduction
श्री तारा शतनाम स्तोत्रम् देवी उपासना के दुर्लभ स्तोत्रों में से एक है। इसमें माँ तारा के 100 दिव्य नामों का उल्लेख है, जो साधक को भय, रोग, और पाप से मुक्त करते हैं। यह स्तोत्र स्वर्णमालातन्त्र से लिया गया है और इसका पाठ करने से साधक को मोक्ष तथा सिद्धि की प्राप्ति होती है।
🕉️ ध्यान | Dhyana (Meditation Verse)
ध्यायेत् कोटि-दिवाकरद्युति-निभां बालेन्दुयुक्छेखरां
रक्ताङ्गीं रसनां सुरक्त वसनां पूर्णेन्दुबिम्बाननां।
पाशं कर्तृ-महाङ्कुशादि-दधतीं दोर्भिश्चतुर्भिर्युतां
नानाभूषण-भूषितां भगवतीं तारां जगत्तारिणीं॥
Meaning (in English):
Meditate upon Goddess Tara — radiant like a million suns, adorned with red garments, holding noose, goad, and other divine symbols in her four hands. She is the saviouress of the world — Jagat Tarini.
🙏 श्री तारा शतनाम स्तोत्रम् | Shri Tara Shatanam Stotram
श्रीशिव उवाच –
तारिणी तरला तन्वी तारा तरुणवल्लरी।
तीररूपा तरी श्यामा तनुक्षीणपयोधरा ॥ १॥
तुरीया तरला तीव्रगमना नीलवाहिनी ।
उग्रतारा जया चण्डी श्रीमदेकजटाशिराः ॥ २॥
तरुणी शाम्भवीछिन्नभाला च भद्रतारिणी ।
उग्रा चोग्रप्रभा नीला कृष्णा नीलसरस्वती ॥ ३॥
द्वितीया शोभना नित्या नवीना नित्यनूतना ।
चण्डिका विजयाराध्या देवी गगनवाहिनी ॥ ४॥
अट्टहास्या करालास्या चरास्या दितिपूजिता ।
सगुणा सगुणाराध्या हरीन्द्रदेवपूजिता ॥ ५॥
रक्तप्रिया च रक्ताक्षी रुधिरास्यविभूषिता।
बलिप्रिया बलिरता दुर्गा बलवती बला ॥ ६॥
बलप्रिया बलरता बलरामप्रपूजिता ।
अर्धकेशेश्वरी केशा केशवासविभूषिता ॥ ७॥
पद्ममाला च पद्माक्षी कामाख्या गिरिनन्दिनी ।
दक्षिणा चैव दक्षा च दक्षजा दक्षिणे रता ॥ ८॥
वज्रपुष्पप्रिया रक्तप्रिया कुसुमभूषिता ।
माहेश्वरी महादेवप्रिया पञ्चविभूषिता ॥ ९ ॥
इडा च पिङ्गला चैव सुषुम्ना प्राणरूपिणी ।
गान्धारी पञ्चमी पञ्चाननादि परिपूजिता ॥ १०॥
तथ्यविद्या तथ्यरूपा तथ्यमार्गानुसारिणी ।
तत्त्वप्रिया तत्त्वरूपा तत्त्वज्ञानात्मिकाऽनघा ॥ ११॥
ताण्डवाचारसन्तुष्टा ताण्डवप्रियकारिणी।
तालदानरता क्रूरतापिनी तरणिप्रभा ॥ १२॥
त्रपायुक्ता त्रपामुक्ता तर्पिता तृप्तिकारिणी ।
तारुण्यभावसन्तुष्टा शक्तिर्भक्तानुरागिणी ॥ १३॥
शिवासक्ता शिवरतिः शिवभक्तिपरायणा ।
ताम्रद्युतिस्ताम्ररागा ताम्रपात्रप्रभोजिनी ॥ १४॥
बलभद्रप्रेमरता बलिभुग्बलिकल्पिनी ।
रामरूपा रामशक्ती रामरूपानुकारिणी ॥ १५॥
इत्येतत्कथितं देवि रहस्यं परमाद्भुतम् ।
श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति तारादेव्याः प्रसादतः ॥ १६॥
य इदं पठति स्तोत्रं तारास्तुतिरहस्यकम्।
सर्वसिद्धियुतो भूत्वा विहरेत् क्षितिमण्डले ॥ १७॥
तस्यैव मन्त्रसिद्धिः स्यान्ममसिद्धिरनुत्तमा ।
भवत्येव महामाये सत्यं सत्यं न संशयः ॥ १८॥
मन्दे मङ्गलवारे च यः पठेन्निशि संयतः ।
तस्यैव मन्त्रसिद्धिस्स्याद्गाणपत्यं लभेत सः ॥ १९॥
श्रद्धयाऽश्रद्धया वापि पठेत्तारारहस्यकम् ।
सोऽचिरेणैव कालेन जीवन्मुक्तः शिवो भवेत् ॥ २०॥
सहस्रावर्तनाद्देवि पुरश्चर्याफलं लभेत् ।
एवं सततयुक्ता ये ध्यायन्तस्त्वामुपासते।
ते कृतार्था महेशानि मृत्युसंसारवर्त्मनः ॥ २१॥
इति स्वर्णमालातन्त्रे ताराशतनाम स्तोत्रं समाप्तम्॥
🌺 स्तोत्र पाठ का फल | Benefits of Reciting Tara Shatanam Stotram
- सभी पापों का नाश और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
- साधक को मंत्रसिद्धि और आध्यात्मिक जागृति प्राप्त होती है।
- देवी तारा की कृपा से जीवन में भय, रोग और दुःख समाप्त होते हैं।
- जो व्यक्ति इस स्तोत्र का नियमित पाठ करता है, वह जीवन्मुक्त हो जाता है।
🌼 निष्कर्ष | Conclusion
श्री तारा शतनाम स्तोत्रम् न केवल एक स्तुति है, बल्कि यह देवी तारा के सौ नामों के माध्यम से ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अनुभव करने का साधन है।
जो साधक इसे श्रद्धा और नियमितता से पाठ करता है, वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर दिव्यता को प्राप्त करता है।


