🌸 परिचय
“श्री कमलेश्वरी नारायणी लक्ष्मी स्तोत्र” एक अत्यंत शक्तिशाली देवी स्तुति है, जिसमें माँ लक्ष्मी को नारायणी, कमलेश्वरी, महालक्ष्मी, चण्डिका और दुर्गा के रूप में आराधना की गई है। यह स्तोत्र केवल धन प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति और दिव्य आशीर्वाद का स्रोत है।
🔱 स्तोत्र का महत्व
इस स्तोत्र का पाठ करने से —
- दरिद्रता और ऋण से मुक्ति मिलती है।
- परिवार में सुख-समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
- नकारात्मक ऊर्जा, भय और असुर प्रभाव समाप्त होते हैं।
- साधक के जीवन में लक्ष्मी की कृपा स्थायी रूप से बनी रहती है।
यह स्तोत्र स्वयं भगवान विष्णु द्वारा माँ लक्ष्मी की स्तुति में कहा गया माना गया है।
🟨🔱 कमलेश्वरी नारायणी लक्ष्मी स्तोत्र 🔱🟨
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🟧⚜️🔶 श्रीकमलेश्वरी ध्यानम् 🔶⚜️🟧
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सिंहपीठे कमलासने शुभवपुः सूर्याभकान्तिं परां
रक्ताम्बरां त्रिनयनां मणिविभूषाढ्यां महाशक्तिम्।
शङ्खं च चक्रं च धनुर्बाणं च गदां च कलशं च पद्मं च।
धत्त्वी सदा वरमभयं च दधतीं भक्तिप्रियां नमामः॥१॥
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उद्यन्मार्तण्डसदृशां पद्ममालां वहन्तीं शुभां
कान्तिं सौन्दर्यनिलयां श्रीकण्ठीं कमलाननाम्।
नारदादिमुनिसेव्यां नारायणप्रियां सदा
वैकुण्ठे महाद्वीपस्थां श्रीकमलेश्वरीं भजे॥२॥
भावार्थ:
(श्लोक १)
हम देवी कमलेश्वरी महालक्ष्मी का ध्यान करते हैं—
जो सिंह की पीठ पर स्थित कमलासन पर विराजमान हैं,
जिनका स्वरूप परम शुभ है और उगते हुए सूर्य की भाँति दीप्तिमान है।
वे लाल वस्त्रधारण करती हैं, तीन नेत्रों वाली हैं,
मणिरत्नों से सुसज्जित हैं, और महाशक्ति स्वरूपा हैं।
वे आठ भुजाओं में क्रमशः
शंख, चक्र, धनुष, बाण, गदा, धनकलश, कमलपुष्प,
तथा अभय और वरमुद्रा धारण करती हैं —
उन भक्तवत्सला देवी को हम नमस्कार करते हैं।
(श्लोक २)
जो देवी उदित सूर्य की प्रभा के समान कांतिमती हैं,
कमलमाल पहनती हैं, सौंदर्य की निधि हैं,
जिनकी कमल-सी ग्रीवा और सुंदर मुख-मंडल है,
नारद आदि ऋषि–मुनियों द्वारा पूजित हैं,
नारायण की प्रिय हैं,
जो महावैकुण्ठ के महाद्वीप में स्थित दिव्य सिंहासन पर विराजमान हैं —
उन श्रीकमलेश्वरी नारायणी देवी को मैं भजता हूँ।
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त्रिनेत्रभास्वती देवीं रक्ताम्बरधरा शुभाम्।
रत्नाभरणसंयुक्तां नमामि कमलेश्वरीम्॥१
भावार्थ:
मैं तीन नेत्रों वाली, लाल वस्त्रधारिणी, रत्नाभूषणों से सुशोभित देवी कमलेश्वरी को नमस्कार करता हूँ।
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अष्टभुजां वरदां देवीं शङ्खचक्रगदाधराम्।
पद्मधनग्रन्थधारिणीं नमामि भक्तवत्सलाम्॥२
भावार्थ:
जो देवी आठ भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, कमल, धनपात्र और ग्रंथ धारण करती हैं, तथा वर और अभय प्रदान करती हैं — उन भक्तवत्सला को मैं प्रणाम करता हूँ।
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सिंहवाहनमारूढां रक्तकमलमण्डिताम्।
लक्ष्मीं नारायणप्राणां वन्दे त्रैलोक्यसुन्दरीम्॥३
भावार्थ:
सिंह पर विराजमान, रक्तकमलों से सुसज्जित, नारायण की प्रिया लक्ष्मी और त्रिभुवनसुन्दरी देवी को मैं वन्दन करता हूँ।
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त्रिगुणात्मिकमायां तां ब्रह्मविष्णुशिवप्रियाम्।
कमलेश्वरीमम्बां तां नमामि सकलेश्वरीम्॥४
भावार्थ:
जो देवी त्रिगुणात्मक माया हैं, ब्रह्मा-विष्णु-शिव की प्रिय हैं, वही सकल जगत की अधीश्वरी कमलेश्वरी माता हैं — उनको मैं नमस्कार करता हूँ।
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ज्वालारूपां जगद्धात्रीं करुणामृतवर्षिणीम्।
शरणागतपालिन्यै लक्ष्म्यै भक्त्या नमोऽस्तु मे॥५
भावार्थ:
जो ज्वाला-स्वरूपिणी होते हुए भी करुणा और अमृतवर्षिणी हैं, समस्त जगत की धात्री हैं, और शरण में आये भक्तों की रक्षिका हैं — ऐसी लक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ।
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वेदवेदाङ्गसंसेव्यां मन्त्रतत्त्वप्रदायिनीम्।
सिद्धिसंपत्स्वरूपां तां नमामि वरदां शिवाम्॥६
भावार्थ:
वेद और मंत्रों से पूजित, सिद्धियों की दात्री और सम्पत्ति की स्वरूपा, वरदायिनी देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।
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श्रीचक्रनिलयां देवीं श्रीविद्यारूपिणीं पराम्।
भुक्तिमुक्तिफलप्रदां त्रिनेत्रां तां नमाम्यहम्॥७
भावार्थ:
जो देवी श्रीचक्र में निवास करती हैं, श्रीविद्या स्वरूपा हैं, त्रिनेत्री हैं, तथा भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करती हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
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क्लीं ह्रीं श्रीं बीजयुक्तां तां तेजःपूरितविग्रहम्।
भजामि कमलेशीं तां जगज्जननिकारिणीम्॥८
भावार्थ:
जो देवी क्लीं, ह्रीं, श्रीं बीजमंत्रों से युक्त, तेजस्वी विग्रह वाली हैं और सम्पूर्ण जगत की जननी हैं — उस कमलेश्वरी को मैं भजता हू।
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नवरत्नमयोल्लासां हारकेयूरशोभिताम्।
काञ्चनाभरणोपेतां नमामि कमलप्रियम्॥९
भावार्थ:
जो देवी नवरत्नों से शोभित हार, केयूर और अन्य स्वर्णाभरणों से विभूषित हैं, और जिन्हें कमल अत्यंत प्रिय है — उन लक्ष्मीस्वरूपा देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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नारदादिमुनिसेव्यां सिद्धगन्धर्ववन्दिताम्।
भक्तानुग्रहदात्रीं तां नमामि परमेश्वरीम्॥१०
भावार्थ:
जो नारद आदि ऋषियों द्वारा सेविता हैं, सिद्धों और गन्धर्वों द्वारा वन्दिता हैं, और अपने भक्तों पर अनुग्रह करती हैं — उन परमेश्वरी को मैं नमस्कार करता हूँ।
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लक्ष्मीं कल्याणनिलयां शुभदां भक्तवत्सलाम्।
दुष्टघ्नीं दुःखनाशिन्यै नमोऽस्तु कमलेश्वरीम्॥११
भावार्थ:
कल्याण की निवासिनी, शुभफलदायिनी, भक्तों पर सदा स्नेह रखनेवाली, दुष्टों का संहार और दुःख का नाश करनेवाली कमलेश्वरी को नमस्कार।
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रक्तवर्णां विशालाक्षीं पुण्यगन्धानुलेपनाम्।
दीप्तामण्डलसंयुक्तां वन्दे देव्या महाशुभाम्॥१२
भावार्थ:
जो देवी रक्तवर्णा, विशाल नेत्रों वाली, पुण्यगन्ध से अभिषिक्त और दिव्य तेज मंडल से आच्छादित हैं — उन शुभमयी देवी को मैं वन्दन करता हूँ।
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कमलासनसमारूढां सिंहपीठविहारिणीम्।
दिव्यगन्धानुलिप्ताङ्गीं नमामि वरदां शुभाम्॥१३
भावार्थ:
कमलासन और सिंहपीठ दोनों पर विराजमान, दिव्य गन्ध से सुगंधित अंगों वाली, और वरदान देने वाली शुभ देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।
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सप्तलोकप्रपूज्यां तां यज्ञकर्मप्रदायिनीम्।
वेदशास्त्रमयीं देवीं नमामि जगदम्बिकाम्॥१४
भावार्थ:
जो देवी सप्त लोकों में पूज्या हैं, यज्ञ और कर्म की सिद्धि प्रदान करती हैं, और वेद-शास्त्रों में प्रतिपादित हैं — उस जगदम्बिका को मैं नमस्कार करता हूँ।
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शान्तस्वरूपां सौम्यां तां उग्ररूपां च रक्षिणीम्।
भयानाशकरीं लक्ष्मीं नमामि जगदम्बिकाम्॥१५
भावार्थ:
जो शांत और सौम्य स्वरूप में भी उग्र रूप में रक्षिका हैं, भय का नाश करने वाली लक्ष्मी हैं — उस जगतजननी को मैं नमस्कार करता हूँ।
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शारदायाः सहाधीशां सरस्वत्याः च संयुताम्।
वाण्याः विज्ञानदात्रीं तां नमामि कमलेश्वरीम्॥१६
भावार्थ:
जो देवी सरस्वती के साथ विद्या की अधीश्वरी हैं, वाणी और विज्ञान की प्रदात्री हैं — उन कमलेश्वरी देवी को मैं वन्दन करता हूँ।
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त्रैलोक्यमोहनाकर्यं सौभाग्यं यत्पदादतः।
प्रसन्ना या कृपाकर्रा सदा सा कमलेश्वरी॥१७
भावार्थ:
जिनके चरणों से त्रिलोक का मोहन और सौभाग्य प्राप्त होता है, जो सदा कृपा करनेवाली हैं — वही कमलेश्वरी देवी हैं।
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महाशक्त्याः स्वरूपायै ब्रह्मविद्याप्रकाशिनीम्।
आनन्दलक्ष्मीं तां देवीं नमामि भावसम्भृता॥१८
भावार्थ:
जो महाशक्ति की स्वरूपा हैं, ब्रह्मविद्या को प्रकाशित करती हैं और आनंदस्वरूप लक्ष्मी हैं — उन्हें मैं भावपूर्वक नमस्कार करता हूँ।
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अनन्तशक्तिसंयुक्तां योगमायामयीं शिवाम्।
विष्णुप्रियां महालक्ष्मीं भजामि भक्तवत्सलाम्॥१९
भावार्थ:
जो अनन्त शक्तियों से युक्त, योगमाया से ओतप्रोत, विष्णु की प्रिय महालक्ष्मी हैं — उन भक्तों पर स्नेह करनेवाली देवी को मैं भजता हूँ।
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श्रीयं ददाति या नित्यं स्मरणादेव भक्तिनः।
सा कामधेनुरूपायै नमो देव्यै महेश्वरि॥२०
भावार्थ:
जो स्मरणमात्र से भक्तों को धन–समृद्धि देती हैं, जो कामधेनु स्वरूपा हैं — उन महेश्वरी देवी को मेरा नमस्कार है।
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लक्ष्मीरूपेण या सदा नारायणाङ्गसम्भवा।
सर्वभूतहिते रक्ता नमामि जनपालिनीम्॥२१
भावार्थ:
जो लक्ष्मी स्वरूपा हैं, नारायण के अंश से उत्पन्न हैं और सभी प्राणियों के हित में रता रहती हैं — उन जनों की पालिका देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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वसुधाधारिणीं देवीं कोशदात्रीं समृद्धिदाम्।
मातृरूपां प्रसन्नां तां नमामि कमलालयाम्॥२२
भावार्थ:
जो पृथ्वी को धारण करनेवाली, कोश (धन) की दात्री, समृद्धि प्रदान करनेवाली, मातृरूपा और प्रसन्नचित्त हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
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अशुभनाशिनीं देवीं शुभलक्षणसंयुताम्।
चन्द्रकान्तिसमप्रख्यां नमामि जगदम्बिकाम्॥२३
भावार्थ:
जो देवी अशुभ का नाश करनेवाली, शुभलक्षणों से युक्त, चंद्रकांति के समान प्रकाशित हैं — उन्हें मैं जगदम्बा मानकर प्रणाम करता हूँ।
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विविधरत्नसमायुक्तां किरीटिनीं मनोहराम्।
मुक्ताहारविलोलाङ्गीं नमामि श्रीमणिप्रियम्॥२४
भावार्थ:
जो विविध रत्नों से सुशोभित हैं, दिव्य मुकुटधारी और मनोहर रूपवाली हैं, जिनके अंगों पर मुक्ताओं की माला लहराती है — उन श्रीमणिप्रिया देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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श्रीवत्सवक्षसि रम्यां कौस्तुभेन विभूषिताम्।
विष्णुप्रियामनन्यां तां लक्ष्मीं वन्दे पुनःपुनः॥२५
भावार्थ:
जिनके वक्षस्थल पर श्रीवत्स शोभायमान है और कौस्तुभ मणि से वे विभूषित हैं, जो विष्णु की अनन्य प्रिया हैं — ऐसी लक्ष्मी को मैं बारंबार वन्दन करता हूँ।
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सप्तच्छदसमायुक्तामष्टसिद्धिसमन्विताम्।
भक्तैः सेव्यमहादेवीं नमामि वरदां शिवाम्॥२६
भावार्थ:
जो सप्तच्छद (पवित्र वृक्ष) के समान रक्षा प्रदान करती हैं, अष्टसिद्धियों से युक्त हैं, और भक्तों द्वारा सदा पूज्य हैं — उन वरदायिनी महादेवी को प्रणाम।
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मणिसिंहासनासीनां दीपमालाविराजिताम्।
सुधाकल्पवृक्षवाटीं नमामि दिव्यमातृकाम्॥२७
भावार्थ:
जो मणिमय सिंहासन पर विराजमान हैं, दीपों की मालाओं से दीप्त हैं और अमृत देने वाले कल्पवृक्षों से युक्त वाटिका में विराजती हैं — उस दिव्य मातृका को मैं प्रणाम करता हूँ।
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चन्द्रबिम्बाननां देवीं पद्मरागविलोचनाम्।
विभातिकमलच्छायां नमामि वरदां शुभाम्॥२८
भावार्थ:
चन्द्र के समान सुंदर मुखवाली, कमलराग जैसे नेत्रोंवाली और पूर्ण खिले कमल जैसी छवि से दीप्त — ऐसी वरदायिनी शुभ देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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भानुकोटिप्रतीकाशां रक्तपद्मविलासिनीम्।
तेजोमयीं विश्वजननीं नमामि शरणागताम्॥२९
भावार्थ:
जो करोड़ों सूर्य के समान तेजस्वी, रक्तकमल पर क्रीड़ा करनेवाली, और समस्त विश्व की जननी हैं — उन शरणागतवत्सला देवी को प्रणाम करता हूँ।
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मङ्गलाम्बारकान्तारां सौभाग्यफलदायिनीम्।
विवाहदात्रीं मातॄं तां नमामि शुभकारिणीम्॥३०
भावार्थ:
जो मंगलवस्त्र धारण करनेवाली हैं, सौभाग्य प्रदान करनेवाली हैं, विवाह जैसी कामनाओं को पूर्ण करनेवाली मातृस्वरूपा हैं — उस शुभकारिणी देवी को प्रणाम।
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तुष्टिं पुष्टिं शुभां दीप्तिं कनकप्रभमण्डलाम्।
दारिद्र्यध्वंसिनीं लक्ष्मीं नमामि कमलालयाम्॥३१
भावार्थ:
जो संतोष, पोषण, शुभता और तेज की अधिष्ठात्री हैं, जो स्वर्णप्रभा से मंडित हैं और दरिद्रता का नाश करती हैं — उन कमल में निवासिनी लक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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वित्तेश्वर्याः सहायां तां कुबेरप्रेमवल्लभाम्।
भक्तैः स्तुत्यां निधिपत्नीं नमामि हरिवल्लभाम्॥३२
भावार्थ:
जो पद्मिनी के रूप में कुबेर की सहायक हैं, निधियों की अधिष्ठात्री हैं और भक्तों द्वारा सदा स्तुत्य हैं — उस हरिप्रिया देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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सप्तवारमहादेवीं सप्तनद्याः प्रवाहिनीम्।
सप्तस्वरमयीं लक्ष्मीं नमामि भक्तवत्सलाम्॥३३
भावार्थ:
जो सात बार पूज्य महादेवी हैं, सप्तनदियों के प्रवाह की अधिष्ठात्री हैं और सप्तस्वरों में व्याप्त हैं — उन भक्तवत्सला लक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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जगद्धात्रीं जगद्वन्द्यां जगत्साक्षिस्वरूपिणीम्।
त्रैलोक्यजननीं लक्ष्मीं नमामि श्रीसमन्विताम्॥३४
भावार्थ:
जो संपूर्ण जगत की धात्री, पूज्य और साक्ष्यस्वरूपिणी हैं, त्रिलोक की जननी हैं और श्रीरूपा हैं — उन लक्ष्मी को मैं वन्दन करता हूँ।
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ब्रह्मलोकसदासीनां वैकुण्ठालयनायिकाम्।
साक्षात्कारमहेश्वर्यां नमामि मङ्गलप्रदाम्॥३५
भावार्थ:
जो ब्रह्मलोक और वैकुण्ठ में नित्य प्रतिष्ठित हैं, साक्षात महेश्वरी हैं, और मङ्गल प्रदान करती हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
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त्रिपथगामिनीं देवीं स्वर्णरेखाप्रदायिनीम्।
भुवनत्रयसंचारिणीं नमामि दिव्यचेतनाम्॥३६
भावार्थ:
जो तीनों मार्गों — भूमि, आकाश और पाताल — में गमन करती हैं, स्वर्णरेखा प्रदान करती हैं और त्रिभुवन में विचरण करती दिव्य चेतना हैं — उन्हें प्रणाम।
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श्रीविद्यायाः स्वरूपायै श्रीचक्रनिलयाय च।
गुप्तविद्याविभूतायै नमस्ते तेजरूपिणि॥३७
भावार्थ:
जो श्रीविद्या की स्वरूपा हैं, श्रीचक्र में निवास करती हैं, और गुप्त विद्याओं की विभूति हैं — हे तेजस्विनी! आपको नमस्कार है।
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कामधेनुस्वरूपां तां कल्पलतेव विभ्राम्याम्।
प्रार्थितार्थप्रदात्रीं तां नमामि वरलक्षणाम्॥३८
भावार्थ:
जो कामधेनु और कल्पलता के समान इच्छित फलों की दात्री हैं, और सभी श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त हैं — उन देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।
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सप्तचक्रविलासिनीं मूलाधाराधिसंस्थिताम्।
ब्रह्मरन्ध्रात्परां शक्तिं नमामि योगमायिनीम्॥३९
भावार्थ:
जो सप्तचक्रों में विलास करती हैं, मूलाधार से ब्रह्मरन्ध्र तक व्याप्त परमशक्ति हैं — उस योगमाया स्वरूपा को मैं प्रणाम करता हूँ।
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शत्रुहन्त्रीं महामायां त्रिकालज्ञां तपस्विनीम्।
सर्वबाधाप्रशमिनीं नमामि महिषार्दिनीम्॥४०
भावार्थ:
जो शत्रुओं की संहारिणी, महामाया, त्रिकालज्ञा और तपस्विनी हैं, जो समस्त बाधाओं का शमन करती हैं — उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ।
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रत्नमालाविभूषाढ्यां रक्ताम्बरधरां शुभाम्।
कराङ्कितायुधां देवीं नमामि विजयप्रदाम्॥४१
भावार्थ:
जो रत्नमालाओं से विभूषित, लाल वस्त्रधारिणी, हथियारों से युक्त और विजय देनेवाली देवी हैं — उन्हें नमस्कार।
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भक्तानुकम्पिनीं लक्ष्मीं धर्मकामार्थदायिनीम्।
मोक्षमार्गप्रवर्तिन्यै नमोऽस्तु श्रीनिवासिनी॥४२
भावार्थ:
जो भक्तों पर अनुकम्पा करती हैं, धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष चारों पुरुषार्थ देती हैं, और मोक्षमार्ग में प्रेरणा देती हैं — उन श्रीनिवासिनी को नमस्कार।
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पद्मगर्भसमुत्पन्नां वैकुण्ठे नित्यविभ्रमाम्।
अविनाशिनीं अमायां तां नमामि महामतिम्॥४३
भावार्थ:
जो पद्मगर्भ से उत्पन्न, वैकुण्ठ में नित्य विलासिनी, अविनाशी और अमायिक महान बुद्धि वाली देवी हैं — उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ।
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भोगमोक्षप्रदात्रीं तां चतुर्वर्गफलप्रदाम्।
तारिणीं सर्वलोकानां नमामि शुभकारिणीम्॥४४
भावार्थ:
जो भोग और मोक्ष देनेवाली, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष सभी प्रदान करनेवाली, समस्त लोकों को तारनेवाली शुभकारिणी देवी हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
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क्लीं ह्रीं श्रीं जपमानानां सिद्धिदात्रीं नमाम्यहम्।
स्वरूपज्ञानदात्रीं तां लक्ष्मीं कमलवासिनीम्॥४५
भावार्थ:
जो “क्लीं ह्रीं श्रीं” जपनेवालों को सिद्धि देती हैं, स्वरूपज्ञान प्रदान करती हैं, और कमल में निवास करती हैं — उन लक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ।
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मधुपर्कप्रियां देवीं शुद्धगन्धानुलेपनाम्।
चम्पकाशोककुन्दाभां नमामि दैवतैः सदा॥ ४६
भावार्थ:
जो मधुपर्क प्रिय हैं, शुद्ध गन्धों से लेपित हैं, चम्पा, अशोक और कुन्द के समान कान्तिवाली हैं — उन देवी को मैं देवताओं सहित नमन करता हूँ।
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दधि क्षीरघृतार्चिष्णुं सौम्यां सोमसमप्रभाम्।
ऋतुपुष्पार्चितां देवीं नमामि नन्दिवल्लभाम्॥ ४७
भावार्थ:
जो दधि, क्षीर, घृत जैसी वस्तुओं से पूजित होती हैं, सौम्यस्वरूपा हैं, ऋतुपुष्पों से अर्चित हैं — नन्दी के प्रिय देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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नवदुर्गास्वरूपां तां महिषासुरमर्दिनीम्।
शम्बरारिविनाशिन्यै नमामि चण्डिकां शिवाम्॥ ४८
भावार्थ:
जो नवदुर्गा स्वरूपा हैं, महिषासुर और शम्बर जैसे राक्षसों की संहारिका हैं — उन चण्डिका रूपी शिवा को मैं नमन करता हूँ।
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नित्यशुद्धां निराकारां निर्विकारां निरञ्जनाम्।
निर्मलां निर्मितेशां तां नमामि मुक्तिदायिनीम्॥ ४९
भावार्थ:
जो सदा शुद्ध, निराकार, निर्विकारी, निर्मल और निर्मिति की अधीश्वरी हैं — उन मुक्तिदायिनी देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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ज्ञानविज्ञानदात्रीं तां विद्येशीं विद्याप्रदाम्।
बुद्धिलक्ष्मीं महाशक्तिं नमामि शिवनामभाम्॥५०
भावार्थ
जो ज्ञान और विज्ञान की दात्री हैं, विद्या की अधीश्वरी हैं, बुद्धि स्वरूपिणी लक्ष्मी हैं और महाशक्ति हैं — उन्हें नमस्कार।
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सप्तस्वराधिष्ठात्रीं तां तन्त्रीनादसमाश्रयाम्।
वीणावाद्यप्रिये लक्ष्मीं नमामि सुरनायकाम्॥ ५१
भावार्थ:
जो सप्तस्वरों की अधिष्ठात्री हैं, तन्त्री के नाद में व्याप्त हैं, वीणा आदि वाद्य प्रिय हैं — उन लक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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तारास्वरूपिणीं देवीं सौम्यां स्वरमयीं शुभाम्।
शब्दब्रह्मप्रदात्रीं तां नमामि मङ्गलप्रदाम्॥ ५२
भावार्थ:
जो तारास्वरूपा हैं, स्वरमयी और शुभा हैं, जो शब्दब्रह्म की दात्री हैं — उस मंगलप्रदा देवी को मैं नमन करता हूँ।
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वाणीरूपधरा देवीं पद्मिनीं पद्मसन्निभाम्।
अमृतांशुविलासिनीं नमामि योगमानिनीम्॥ ५३
भावार्थ:
जो वाणी रूप धारण करती हैं, पद्मिनी हैं, कमल सदृश दीप्त हैं, और अमृत के अंश में विलास करती हैं — उन्हें योगमयी जानकर प्रणाम करता हूँ।
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मङ्गल्यधामिनीं देवीं सौभाग्यफलवर्षिणीम्।
दीनदयां जगद्रक्षां नमामि कमलेश्वराम्॥५४
भावार्थ:
जो मङ्गल की धाम हैं, सौभाग्य की वर्षा करती हैं, दीनों पर दया करनेवाली और संपूर्ण जगत की रक्षिका हैं — उन कमलेश्वरी को प्रणाम।
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विपत्तिनाशिनीं लक्ष्मीं सर्वविघ्नविनाशिनीम्।
शरणागतपालां तां नमामि वरदां शिवाम्॥ ५५
भावार्थ:
जो विपत्तियों और विघ्नों का नाश करती हैं, शरण में आए जनों की रक्षा करती हैं — उन वरदायिनी लक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ।
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रक्तचम्पकवर्णाभां श्रीवत्साङ्कितवक्षसाम्।
श्रीहरिप्रणयां देवीं नमामि श्रीसमन्विताम्॥५६
भावार्थ:
जो रक्तचम्पक के समान कान्तिवाली हैं, वक्षःस्थल पर
श्रीवत्स चिह्न है, और श्रीहरि की प्रियतमा हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
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ॐ नमो देवि महाशक्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।
दारिद्र्यं मे नाशय त्वं कृपया शुभदायिनि॥५७
भावार्थ:
हे महाशक्ति, हे महालक्ष्मी! आपको मेरा प्रणाम है। कृपया मुझ पर कृपा करके मेरा दरिद्रता रूपी दुख नष्ट कीजिए और शुभ फल दीजिए।
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रक्तवर्णा महाकालीं सिंहवक्त्रासना शुभाम्।
चक्रगदाधरा देव्यै नमस्ते भक्तवत्सले॥५८
भावार्थ:
जो देवी रक्तवर्णा हैं, सिंहमुख के समान भयंकर हैं, हाथों में चक्र और गदा धारण करती हैं — उन भक्तों पर सदा स्नेह करनेवाली देवी को नमस्कार है।
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त्रिनेत्रा च महासिद्धिः महाशक्तिः महोर्जिता।
दुष्टनाशकरी देवी लक्ष्मीः पातु सदा मम॥५९
भावार्थ:
त्रिनेत्री, महान सिद्धि और शक्ति की अधिष्ठात्री, महान तेज से युक्त तथा दुष्टों का नाश करनेवाली देवी लक्ष्मी मेरी सदा रक्षा करें।
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शंखपद्मगदाचक्रं धारयन्ती महाबला।
अभयमुद्रया युक्ता वरदां त्वां नमाम्यहम्॥६०
भावार्थ:
जो देवी शंख, पद्म, गदा और चक्र धारण करती हैं, अपार बल की स्वामिनी हैं, अभय और वरदान की मुद्रा में स्थित हैं — उनको मैं नमस्कार करता हूँ।
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ज्वालामालाभिराजंता रक्ताम्बरपरिच्छदा।
द्रविणं देहि मे लक्ष्मि त्वद्भक्तः सदा भवेत्॥६१
भावार्थ:
जिनका शरीर ज्वालामालाओं से सुशोभित है, जो रक्त वस्त्रों में सुशोभित हैं — हे लक्ष्मी! मुझे धन दो, जिससे मैं आपका भक्त सदा बना रहूँ।
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काली करालवदना महाशूलधराभया।
भक्तानां वरदा देवी दुष्टघ्नी च दयालुता॥६२
भावार्थ:
जो देवी काली हैं, जिनका मुख प्रचंड है, जो त्रिशूल धारण करती हैं, भक्तों को वरदान देती हैं और दुष्टों का संहार करती हैं — वे अत्यंत दयालु देवी हैं।
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रक्तमाल्यसमायुक्ता रत्नकुण्डलमण्डिता।
मुक्ताहारलसत्कण्ठा नारायणी नमोऽस्तु ते॥६३
भावार्थ:
रक्तमाल्य और रत्नकुण्डलों से विभूषिता, मुक्ताओं की माला जिनके गले में शोभायमान है — उन नारायणी देवी को मेरा नमस्कार है।
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धनदात्रीं वरां शक्तिं सिद्धिदां च शुभप्रदाम्।
भजामि त्वां महालक्ष्मि सर्वकामार्थसिद्धये॥६४
भावार्थ:
जो धन देनेवाली हैं, शक्ति और सिद्धि प्रदान करती हैं, और कल्याणदायिनी हैं — मैं उन महालक्ष्मी की आराधना करता हूँ ताकि मेरे सभी कार्य सफल हों।
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यस्याः स्मरणमात्रेण ह्यशुभं नश्यते क्षणात्।
सा मां पातु महालक्ष्मीः सर्वसिद्धिप्रदायिनी॥६५
भावार्थ:
जिनके स्मरण मात्र से सभी अशुभता तुरंत नष्ट हो जाती है — वही महालक्ष्मी मेरी रक्षा करें और मुझे सिद्धियाँ प्रदान करें।
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सप्तशतीसमायुक्तां दुर्गारूपधरीं शुभाम्।
सप्तचक्रस्थितां देवीं ध्यानाम्यहमनन्यधीः॥६६
भावार्थ:
जो देवी दुर्गा रूप में सप्तशती में वर्णित हैं, सप्तचक्रों में स्थित हैं — मैं उन उग्र देवी का ध्यान करता हूँ।
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नमो देव्यै महालक्ष्म्यै सर्वदुष्टप्रणाशिन्यै।
उग्ररूपधरा त्वं हि महासंख्ये महाबलाम्॥६७
भावार्थ:
हे महालक्ष्मी! जो समस्त दुष्टों का नाश करती हैं, जिनका उग्र रूप है, और जिनमें महान बल निहित है — ऐसी देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।
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रक्ताम्बरधरा देवी रक्तमाल्यविभूषिता।
रक्तवर्णा महाशक्तिः रक्तपद्मासना शिवा॥६८
भावार्थ:
जो देवी रक्तवस्त्र धारण करती हैं, लाल पुष्पों की माला पहनती हैं, स्वयं लालवर्णा हैं, और कमलासन पर विराजमान हैं — वे महाशक्ति शिवस्वरूपा हैं।
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चक्रगदाधरा देवी शङ्खपद्मविभूषिता।
सिंहवाहा च सौम्या च कालरात्रिस्वरूपिणी॥६९
भावार्थ:
देवी जिनके हाथों में चक्र, गदा, शंख और कमल हैं, जो सिंह पर विराजमान हैं, और सौम्य होते हुए भी कालरात्रि के समान उग्र स्वरूप धारण करती हैं।
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उग्रं ते रूपमाश्रित्य कालानलसमानका।
संहर्त्री सर्वदुष्टानां लक्ष्मीः शत्रुनिवारिणी॥७०
भावार्थ:
आपका उग्र रूप कालाग्नि के समान है। आप समस्त दुष्टों की संहारिणी हैं और शत्रु-विनाशिनी लक्ष्मी देवी हैं।
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धनदात्री च सौभाग्यं विद्यां मे यच्छ सर्वदा।
त्वं मातः सर्वसंपत्तेः कारणं सर्वसिद्धिदा॥७१
भावार्थ:
हे माता! आप ही धन, सौभाग्य और विद्या की दात्री हैं। आप ही समस्त सम्पत्तियों और सिद्धियों का कारण हैं — मुझे कृपा कर यह सब प्रदान कीजिए।
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त्वं श्रीः त्वं धृतिर्मेधा त्वं बुद्धिः त्वं गतिः शुभा।
त्वमेव विजया लक्ष्मीः त्वं भुक्तिमुक्तिदायिनी॥७२
भावार्थ:
आप ही श्री, धृति, मेधा, बुद्धि और परम कल्याणदायिनी गति हैं। आप ही विजय लक्ष्मी हैं, जो भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करती हैं।
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या त्वां स्तौति नरा भक्त्या उग्ररूपेण भावयेत्।
तस्य नश्यन्ति दोषाश्च रोगदुःखादयः क्षणात्॥७३
भावार्थ:
जो भक्त उग्र भाव से आपकी स्तुति करता है, उसके सभी दोष, रोग और दुःख क्षण भर में ही नष्ट हो जाते हैं।
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सर्वसंपत्समायुक्तो विजयी सर्वकामदः।
भवेत्स त्वां स्मरन् नित्यं लक्ष्मीमाप्त्वा सुखी भवेत्॥७४
भावार्थ:
जो नित्य आपकी स्मरण करता है, वह सभी प्रकार की संपत्ति, विजय और इच्छाओं की पूर्ति को पाकर सुखी हो जाता है।
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रक्तसिंहासनारूढा रक्तपद्मविभूषिता।
रक्तचन्दनसंलिप्ता रक्तगर्भसमप्रभा॥७५
भावार्थ:
देवी लाल रंग के सिंहासन पर विराजमान हैं, लाल कमलों से सुशोभित हैं, लाल चन्दन से अनुगन्धित हैं, और गर्भस्थ अग्नि की तरह तेजस्वी हैं।
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वह्निशिखासमप्रख्या देहज्वालाविवर्धिनी।
दुष्टमर्दिनि दुर्गे त्वं लक्ष्म्याख्ये वरदा सदा॥७६
भावार्थ:
आप अग्निशिखा के समान प्रखर हैं, आपका देह-तेज सबको विस्मित करता है। आप दुष्टों का मर्दन करने वाली दुर्गा हैं, जो लक्ष्मी रूप में सदा वर देती हैं।
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भयत्रस्तजनाश्वासे भक्तार्तिनिवारिणि।
शरणागतपालिन्यै नमो भक्तिप्रदायिनि॥७७
भावार्थ:
आप भयभीत लोगों को आश्रय देने वाली हैं, भक्तों की पीड़ा दूर करने वाली हैं, शरण में आए जनों की रक्षक हैं — आपको नमस्कार है।
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नवदुर्गास्वरूपायै नारायण्यै दयालुते।
उग्रायै तेजसे पूर्णे सदा शुभप्रदायिनि॥,७८
भावार्थ:
आप नवदुर्गा स्वरूपा हैं, नारायणी हैं, दयालु हैं, उग्र तेज से युक्त हैं और सदा कल्याण प्रदान करने वाली देवी हैं।
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चण्डिकायै च कौलेन्द्रे सिद्धलक्ष्म्यै नमो नमः।
महाविद्ये महालक्ष्मि महाशक्ते नमोऽस्तु ते॥७९
भावार्थ:
हे चण्डिका! हे कुल की अधीश्वरी! हे सिद्धलक्ष्मी! हे महाविद्या, हे महाशक्ति – आपको बारम्बार नमस्कार है।
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कामधेनुस्वरूपायै कल्पवृक्षस्वरूपिणि।
सर्वाभीष्टप्रदायै च योगमाये नमो नमः॥८०
भावार्थ:
आप कामधेनु के समान इच्छापूर्ति करने वाली हैं, कल्पवृक्ष के समान सब देने वाली हैं, समस्त इच्छाओं को पूर्ण करनेवाली योगमाया हैं।
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भोगमोक्षप्रदात्री त्वं धर्मार्थकाममोक्षदा।
त्वमेव जननी देवी त्वमेव परमेश्वरी॥८१
भावार्थ:
आप ही भोग और मोक्ष की दात्री हैं, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की फलप्रदा हैं। आप ही जननी हैं, आप ही परमेश्वरी हैं।
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शक्तित्रयस्वरूपायै ब्रह्मविष्णुहरिप्रिये।
त्रिगुणात्मिके माये त्वं परा परमार्थदा॥,८२
भावार्थ:
आप त्रिदेवी (शक्ति-त्रय) स्वरूपा हैं — ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र की प्रिया हैं। त्रिगुणमयी होते हुए भी आप परा माया हैं, जो परमार्थ (मोक्ष) देती हैं।
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मन्त्रिणी मन्त्रदात्री च मन्त्रसिद्धिप्रदायिनी।
सर्वोपचारसंयुक्तं स्तवमेतत्पठेन्नरः॥८३
भावार्थ:
आप मंत्रिणी हैं, मंत्रों की दात्री हैं और मंत्रों की सिद्धि देने वाली हैं। यह स्तोत्र सभी उपचारों सहित है, जो इसे पढ़ता है वह सिद्ध होता है।
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नारायणप्रिया त्वं हि नारायणपरायणा।
सर्वदेवमयी शक्तिः सर्वसिद्धिप्रदायिनी॥८४
भावार्थ:
हे देवी! आप नारायण की परम प्रिया हैं, उन्हीं में समर्पित हैं। आप समस्त देवियों की शक्ति का स्वरूप हैं और सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं।
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द्रविणं च महद्देहि मे कृपा करुणामये।
दुर्बलस्य बलं त्वं हि निर्धनस्य धनं शिवे॥८५
भावार्थ:
हे करुणामयी! मुझे अपार धन दीजिए। आप ही दुर्बलों की शक्ति और निर्धनों का धन हैं — हे शिवा! मुझे कृपा दीजिए।
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श्रीविद्ये च महासिद्धे महामाये च शोभने।
श्रीचक्रनिलये देवि भक्तानां वरदायिनि॥८६
भावार्थ:
हे श्रीविद्या स्वरूपा, महान सिद्धि की देवी, शोभायुक्त महामाया! आप श्रीचक्र में निवास करती हैं और अपने भक्तों को वरदान देती हैं।
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वन्दे त्वां कमलां देविं सर्वसंपत्तिकल्पिनीम्।
त्रैलोक्यजननीं श्रीं त्वां भजामि परमेश्वरीम्॥८७
भावार्थ:
मैं आपको नमस्कार करता हूँ — हे कमला! आप ही समस्त सम्पत्ति की कल्पवृक्ष समान देनेवाली हैं। आप तीनों लोकों की जननी हैं, परमेश्वरी हैं।
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जगद्वन्द्ये महालक्ष्मि विश्वपूज्ये च शाश्वती।
सर्वधारास्वरूपायै विश्वेन्द्र्यैकसंगिनि॥८८
भावार्थ:
हे महालक्ष्मी! आप संपूर्ण जगत द्वारा पूजित हैं, शाश्वत हैं। आप ही विश्व की आधारशक्ति और समस्त इन्द्रियों की नियंत्रक हैं।
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मङ्गलप्रदिनी त्वं हि मङ्गलेष्वपि मङ्गलम्।
सर्वेषां जीवनाधारा त्वमेव परमेश्वरी॥८९
भावार्थ:
आप मंगल देनेवाली हैं और मङ्गलों में भी परम मंगलस्वरूपा हैं। आप ही समस्त जीवों की जीवनाधार देवी हैं।
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त्वं बीजं सर्वविद्यानां त्वं मूलं सर्वसिद्धयः।
त्वमेव सर्वदृष्टीनां धारका शक्तिरूपिणी॥९०
भावार्थ:
आप समस्त विद्याओं की बीजरूपा हैं, सभी सिद्धियों की मूल हैं और समस्त दृष्टियों की धारिणी शक्ति हैं।
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त्वद्भक्तः कुर्वते कर्म सर्वं सिद्ध्यत्यशेषतः।
स्तुतिं तव पठेद्यस्तु लभते सर्वसंपदः॥९१
भावार्थ:
जो आपके भक्त हैं, उनके सभी कार्य पूर्ण होते हैं। जो आपकी इस स्तुति का पाठ करता है, वह समस्त प्रकार की संपत्तियों को प्राप्त करता है।
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राज्यं सौख्यं यशो वृद्धिं कीर्तिं मे देहि शोभने।
त्वत्पादार्चनमात्रेण प्रीता भवति दायकि॥९२
भावार्थ:
हे शोभामयी देवी! मुझे राज्य, सुख, यश, कीर्ति और वृद्धि प्रदान कीजिए। आप केवल चरणों की पूजा मात्र से ही प्रसन्न होकर सब कुछ दे देती हैं।
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अन्नपानवसात्राणि पुत्रान्पशुवसून्यपि।
त्वत्प्रीत्यै लभते भक्तो लक्ष्मि त्वां चेतसा स्मरन्॥९३
भावार्थ:
जो भक्त श्रद्धा से आपको स्मरण करता है, वह अन्न, जल, वस्त्र, पुत्र, पशु और धन सभी को प्राप्त करता है — केवल आपकी कृपा से।
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सर्वसङ्कल्पसिद्ध्यर्थं ये पठन्ति मनुजास्त्विमाम्।
तेषां सिद्धिर्भवेत्सत्यमिह लोके परत्र च॥ ९४
भावार्थ:
जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, उनके सब संकल्प इस लोक और परलोक में पूर्ण होते हैं — यह निश्चित है।
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पठनं कीर्तनं ध्यानं यः करोति समाहितः।
सर्वसौभाग्यमायुः श्रीं कीर्तिं पुत्रं धनं लभेत्॥ ९५
भावार्थ:
जो भक्त ध्यानपूर्वक इसका पाठ, कीर्तन करता है — उसे आयु, श्री, कीर्ति, संतान और धन की प्राप्ति होती है।
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रोगानशेषान्विनुदत्यशेषान् कामानवाप्नोति च सत्वरं हि।
स्तोत्रस्यास्य पाठनेन नित्यं सुखं समृद्धिं लभते नरोऽत्र॥
९६।।
भावार्थ:
इस स्तोत्र के नित्य पाठ से समस्त रोग शीघ्र दूर होते हैं, मनोवांछित फल मिलता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
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यः पठेत्संहितां पुण्यां स्तुतिं कमलेश्वरीम्।
भक्त्या संस्मरते नित्यं स याति परमां गतिम्॥ ९७।।
जो भक्त इस पुण्य स्तुति का नित्य पाठ करता है और कमलेश्वरी का स्मरण करता है, वह परमगति को प्राप्त होता है।
इत्येतत् स्तोत्ररत्नं तु कमलेश्वरीसम्भवम्।
श्रीविद्यानन्दतीर्थेन विरचितं शुभप्रदम्॥
भावार्थ:
यह “कमलेश्वरी” स्तोत्ररत्न श्रीविद्योपासक श्रीविद्यानन्द तीर्थ द्वारा विरचित है, जो भक्तों को कल्याण और शुभफल प्रदान करता है।
इति श्रीकमलेश्वरी नारायणी स्तोत्रम् समाप्तम्॥
🔔 पाठ विधि (कैसे करें पाठ)
- दिन: शुक्रवार, पूर्णिमा या दीपावली के दिन विशेष फलदायी।
- स्थान: स्वच्छ पूजास्थान या लक्ष्मी मंदिर में।
- सामग्री: पीला पुष्प, धूप, दीपक, शुद्ध घी, और लाल वस्त्र।
- मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री कमलेश्वरी नारायण्यै नमः॥”
- पाठ के बाद: लक्ष्मी आरती करें और माँ से अपनी मनोकामना कहें।
🌼 लाभ (Benefits of Shri Kamaleshwari Narayani Lakshmi Stotra)
- धन और वैभव की प्राप्ति
- घर में स्थायी लक्ष्मी का वास
- व्यापार और नौकरी में उन्नति
- मन की शांति और नकारात्मकता से रक्षा
- परिवार में सौहार्द और सौभाग्य
🕉️ निष्कर्ष
“श्री कमलेश्वरी नारायणी लक्ष्मी स्तोत्र” माँ लक्ष्मी की अद्भुत कृपा प्राप्त करने का दिव्य उपाय है। जो व्यक्ति श्रद्धा से इसका नियमित पाठ करता है, उसके जीवन में कभी दरिद्रता, भय या अभाव नहीं रहता।
“माँ कमलेश्वरी नारायणी सदैव हमारे घर में वास करें, यही मंगल कामना।”
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