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श्रीमहालक्ष्मी स्तोत्रम् | Shri Mahalakshmi Stotram in Hindi and Sanskrit with Meaning

Laxmi Chalisa

🌸 Introduction: श्रीमहालक्ष्मी स्तोत्रम् का महत्व

महालक्ष्मी स्तोत्रम् देवी लक्ष्मी की आराधना का अत्यंत पावन स्तोत्र है। इस स्तोत्र का पाठ करने से दरिद्रता, बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं तथा संपत्ति, सौभाग्य, शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।
इंद्रदेव द्वारा रचित यह स्तोत्र देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सबसे प्रभावी उपाय माना गया है।

🕉️ ॥ श्रीमहालक्ष्मी स्तोत्रम् ॥

ध्यानम् –
सहस्रदलपद्मस्थकर्णिकावासिनीं पराम् ।
शरत्पार्वणकोटीन्दुप्रभामुष्टिकरां पराम् ॥० १॥
स्वतेजसा प्रज्वलन्तीं सुखदृश्यां मनोहराम् ।
प्रतप्तकाञ्चननिभशोभां मूर्तिमतीं सतीम् ॥ ०२॥

रत्नभूषणभूषाढ्यां शोभितां पीतवाससा ।
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् ।
सर्वसम्पत्प्रदात्रीं च महालक्ष्मीं भजे शुभाम् ॥ ०३॥
विष्णु प्रिये नमस्तुभयं नमस्तुभ्यं जगद्धात्री
आर्त हन्त्री नमस्तुभ्यं समृद्धं कुरू में सदा ।।०४।।

🍁इंद्र उवाच:-
नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते ,।।०५।।

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।०६।।

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि ।
सर्वदुःखहरे देवी महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।०७।।

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।०८।।

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।०९।।

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।१०।।

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेश्वरी जगन्मातमहालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।११।।

श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातमहालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।१२।।

महादेवी महालक्ष्मी नमस्ते त्वं विष्णु प्रिये ।
शक्तिदायी महालक्ष्मी नमस्ते दुःख भंजनि ।।१३।।

श्रैया प्राप्ति निमित्ताय महालक्ष्मी नमाम्यहम
पतितो द्धारीणि देवी नमाम्यहं पुनः पुनः ।।१४।।

वेदांस्त्वां संस्तुवन्ति ही शास्त्राणि च मुहपुः ।
देवास्त्वां प्रणमन्तिही लक्ष्मीदेवी नमोऽस्तुते ।।१५।।

नमस्ते महालक्ष्मी नमस्ते. भवभंजनी ।
भुक्तिमुक्ति न लभ्यते महादेवी त्ययि कृपा बिना ।।१६।।

सुख सौभग्यं न प्राप्नोति पत्र लक्ष्मी न विधते।
न तत्फलं समाप्नोति महालक्ष्मी नमाम्यहम।” ।।१७।।

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहिमे परमं सुखम् ।
नमस्ते आद्यशक्ति त्वं नमस्ते भीड़भंजनी ,।।१८।।

विधेहि देवी कल्याणं विधेहि परमां श्रियम
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मवन्तं जनं कुरु ,।।१९।।

अचिन्त्य रूप-चरिते- सर्वशत्रु विनाशीनी
नमस्तेतु महामाया सर्व सुख प्रदायिनी ।।२०।।

नमाम्यहं महालक्ष्मी नमाम्यहम सुरेश्वरी
नमाम्यहं जगद्धात्री नमाम्यहं परमेश्वरी,।।२१।।

महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि ।
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ।।२२।।

पद्मासने पद्मकरे सर्वलोकैकपूजिते ।
सान्निध्यं कुरु मे चित्ते विष्णुवक्षस्थलालये ।।२३।।

महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं पीतवस्त्रे नमोऽस्तु ते ।
पद्मालये! नमस्तुभ्यं नमः पद्मविलोचने ।।२४।।

सुवर्णाङ्गि नमस्तुभ्यं पद्महस्ते नमोऽस्तु ते ।
नमस्तुभ्यं गजारूढे विश्वमात्रे नमोऽस्तु ते ॥२५॥

प्रसन्नमुखपद्मायै पद्मकान्त्यै नमो नमः ।
नमो बिल्ववनस्थायै विष्णुपत्न्यै नमो नमः।।२६।।

जय पद्मपलाशाक्षि जय त्वं श्रीपतिप्रिये ।
जय मातर्महालक्ष्मि संसारार्णवतारिणि ॥२७।।

महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि ।
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥२८।।

पद्मालये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं च सर्वदे ।
सर्वभूतहितार्थाय वसुवृष्टिं सदा कुरु ॥२९।।

जगन्मातर्नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ।
दयावति नमस्तुभ्यं विश्वेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥३०।।

नमः क्षीरार्णवसुते नमस्त्रैलोक्यधारिणि ।
वसुवृष्टे नमस्तुभ्यं रक्ष मां शरणागतं ॥३१।।

रक्ष त्वं देवदेवेशि देवदेवस्य वल्लभे ।
दरिद्रात्त्राहि मां लक्ष्मि कृपां कुरु ममोपरि ॥३२।।

नमस्त्रैलोक्यजननि नमस्त्रैलोक्यपावनि ।
ब्रह्मादयो नमस्ते त्वां जगदानन्ददायिनि ॥३३।।

विष्णुप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं जगद्धिते ।
आर्तहन्त्रि नमस्तुभ्यं समृद्धिं कुरु मे सदा ॥३४।।

अब्जवासे नमस्तुभ्यं चपलायै नमो नमः ।
चंचलायै नमस्तुभ्यं ललितायै नमो नमः ॥३५।।

नमः कल्याणदे देवि नमोऽस्तु हरिवल्लभे ।
नमो भक्तप्रिये देवि लक्ष्मीदेवि नमोऽस्तु ते ॥३६।।

नमो मायागृहीताङ्गि नमोऽस्तु हरिवल्लभे ।
सर्वेश्वरि नमस्तुभ्यं लक्ष्मीदेवि नमोऽस्तु ते ॥ ३७।।

महामाये विष्णुधर्मपत्नीरूपे हरिप्रिये ।
वाञ्छादात्रि सुरेशानि लक्ष्मीदेवि नमोऽस्तुते ॥ ३८।।

उद्यद्भानुसहस्राभे नयनत्रयभूषिते ।
रत्नाधारे सुरेशानि लक्ष्मीदेवि नमोऽस्तुते ॥ ३९।।

।षट्कोणपद्ममध्यस्थे षडङ्गयुवतीमये ।
ब्रह्माण्यादिस्वरूपे च लक्ष्मीदेवि नमोऽस्तु ते ॥ ४०॥

देवि त्वं चन्द्रवदने सर्वसाम्राज्यदायिनि ।
सर्वानन्दकरे देवि लक्ष्मीदेवि नमोऽस्तु ते ॥४१॥

ॐ नमः कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नमः ।
कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नमः ॥ ४२॥

पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्थायै नमो नमः ।
पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नमः ॥ ४३॥

सर्वसम्पत्स्वरूपायै सर्वदात्र्यै नमो नमः ।
सुखदायै मोक्षदायै सिद्धिदायै नमो नमः ॥ ४४॥

हरिभक्तिप्रदात्र्यै च हर्षदात्र्यै नमो नमः ।
कृष्णवक्षःस्थितायै च कृष्णेशायै नमो नमः ॥ ४५॥

कृष्णशोभास्वरूपायै रत्नपद्मे च शोभने ।
सम्पत्यधिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नमः ॥ ४६॥

शन्याधिष्ठादेव्यै च शस्यायै च नमो नमः ।
नमो बुद्धिस्वरूपायै बुद्धिदायै नमो नमः ॥ ४७॥

अनाद्यनन्तरूपां त्वां जननीं सर्वदेहिनाम् ।
श्रीविष्णुरूपिणीं वन्दे महालक्ष्मीं परमेश्वरीम् ॥४८॥

नामजात्यादिरूपेण स्थितां त्वां परमेश्वरीम् ।
श्रीविष्णुरूपिणीं वन्दे महालक्ष्मीं परमेश्वरीम् ॥ ४९॥

व्यक्ताव्यक्तस्वरूपेण कृत्स्नं व्याप्य व्यवस्थिताम् ।
श्रीविष्णुरूपिणीं वन्दे महालक्ष्मीं परमेश्वरीम् ॥५०॥

भक्तानन्दप्रदां पूर्णां पूर्णकामकरीं पराम् ।
श्रीविष्णुरूपिणीं वन्दे महालक्ष्मीं परमेश्वरीम् ॥ ५२॥

अन्तर्याम्यात्मना विश्वमापूर्य हृदि संस्थिताम् ।
श्रीविष्णुरूपिणीं वन्दे महालक्ष्मीं परमेश्वरीम् ॥ ५२॥

सर्वर्दैत्यविनाशार्थं लक्ष्मीरूपां व्यवस्थिताम् ।
श्रीविष्णुरूपिणीं वन्दे महालक्ष्मीं परमेश्वरीम् ॥५३॥

भुक्तिं मुक्तिं च या दातुं संस्थितां करवीरके ।
श्रीविष्णुरूपिणीं वन्दे महालक्ष्मीं परमेश्वरीम् ॥ ५४॥

सर्वाभयप्रदां देवीं सर्वसंशयनाशिनीम् ।
श्रीविष्णुरूपिणीं वन्दे महालक्ष्मीं परमेश्वरीम् ॥ ५५॥

श्रीमहालक्ष्मी स्तोत्रम् का हिंदी में अर्थ (संक्षेप में):


लक्ष्मी महा स्तोत्र में मां लक्ष्मी की महिमा, स्वरूप और कृपा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र बताता है कि देवी लक्ष्मी समस्त सृष्टि की पालनकर्ता, धन, समृद्धि, सौभाग्य और आनंद की अधिष्ठात्री हैं। वे भगवान विष्णु की अर्द्धांगिनी हैं और जहां उनका वास होता है, वहां दुख, दरिद्रता और कलह का स्थान नहीं रहता। इस स्तोत्र का भाव है कि जो व्यक्ति श्रद्धा, भक्ति और पवित्र मन से मां लक्ष्मी का स्मरण करता है, उसे जीवन में वैभव, शांति और उन्नति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए, बल्कि आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा के लिए भी अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।

🌼 श्रीमहालक्ष्मी स्तोत्रम् पाठ के लाभ (Benefits of Reciting Mahalakshmi Stotram):

  1. घर में धन और वैभव की वृद्धि होती है।
  2. दरिद्रता और आर्थिक संकट समाप्त होते हैं।
  3. व्यवसाय और नौकरी में सफलता व उन्नति मिलती है।
  4. देवी लक्ष्मी की कृपा और शांति घर में बनी रहती है।
  5. यह स्तोत्र शुक्रवार या दीपावली के दिन विशेष रूप से शुभ फल देता है।

🪔 How to Chant Shri Mahalakshmi Stotram (पाठ विधि):

  1. प्रातः या संध्या के समय स्नान के बाद लक्ष्मीजी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  2. पीले वस्त्र पहनकर कुशासन या आसन पर बैठें।
  3. धूप-दीप अर्पित करें और पूरे श्रद्धा भाव से स्तोत्र का पाठ करें।
  4. अंत में “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” का 108 बार जप करें।

🌺 Conclusion (उपसंहार):

जो साधक नित्य श्रद्धा से श्रीमहालक्ष्मी स्तोत्रम् का पाठ करता है, उसके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
देवी लक्ष्मी की कृपा से उसके सभी संकट और दरिद्रता दूर होकर जीवन में सौभाग्य और धन की वर्षा होती है।

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