Maa Kali Chalisa

श्री काली चालीसा | Shri Kali Chalisa in Hindi

✨ श्री काली चालीसा का महत्व

माँ काली, कालिका और महाकाली के नाम से प्रसिद्ध हैं। वे शक्ति, संहार और भय का नाश करने वाली देवी हैं। श्री काली चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, संकटों का नाश होता है और भक्तों को सुरक्षा एवं समृद्धि मिलती है।
विशेष रूप से मंगलवार और नवरात्रि के दिन इसका पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।


🙏 श्री काली चालीसा के लाभ (Benefits of Shri Kali Chalisa)

  • जीवन में भय, कष्ट और शत्रु बाधाओं का नाश होता है।
  • भक्तों के सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
  • संकटों और दुःखों से मुक्ति मिलती है।
  • सुरक्षा, शक्ति और समृद्धि प्राप्त होती है।
  • भक्तों के घर-परिवार में सुख-शांति और सौभाग्य बढ़ता है।

📜 श्री काली चालीसा पाठ विधि (Path Vidhi)

  1. मंगलवार या नवरात्रि के दिन स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. माता काली की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, धूप, अक्षत और लाल फूल अर्पित करें।
  3. श्रद्धा और भक्ति भाव से श्री काली चालीसा का पाठ करें।
  4. पाठ के बाद “ॐ काली काली महाकालिका नमः” मंत्र का जाप करें।

श्री काली चालीसा (पूर्ण पाठ)

॥ दोहा ॥

जय काली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार॥

॥ चौपाई ॥

अरि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता ॥1॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । हाथ तीसरे सोहत भाला ॥2॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥3॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता । जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥4॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता । तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । कल्याणी पापी कुल घालक ॥5॥
शेष सुरेश न पावत पारा । गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥6॥
रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । भक्तजनों के संकट टारे ॥7॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी । भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । नारद शारद पार न पावैं ॥8॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी । तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । विश्वविदित भव संकट त्राता ॥9॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥10॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥11॥
त्रेता में रघुवर हित आई । दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥12॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे । कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥13॥
ये बालक लखि शंकर आए । राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥14।
बाढ्यो महिषासुर मद भारी । पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता । नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥16॥
मान मथनहारी खल दल के । सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं । उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥18॥
काली चालीसा जो पढ़हीं । स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥19॥
करहु मातु भक्तन रखवाली । जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥20॥

॥॥दोहा॥॥

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥

✅ निष्कर्ष

श्री काली चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में भय, संकट और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। विशेष रूप से मंगलवार और नवरात्रि में इसका पाठ करने से माता काली की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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