शरद पूर्णिमा कब है

शरद पूर्णिमा कब है 2025: पूजा विधि, महत्व और पौराणिक कथा की पूरी जानकारी

शरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा आदि नामों से भी जाना जाता है। “शरद” ऋतु को दर्शाता है और “पूर्णिमा” चंद्रमा की पूर्ण अवस्था को। इस दिन चाँद की किरणों को दिव्य शक्ति संपन्न माना जाता है।

इस लेख में हम चर्चा करेंगे:

  • शरद पूर्णिमा 2025 की तिथि एवं मुहूर्त
  • शरद पूर्णिमा का महत्त्व
  • पूजा विधि और नियम
  • पौराणिक कथाएँ
  • शरद पूर्णिमा से जुड़े विशेष आयोजन

शरद पूर्णिमा 2025: तिथि और समय

शरद पूर्णिमा 2025 6 अक्टूबर, सोमवार को है।

पूर्णिमा तिथि शुरू होती है 6 अक्टूबर दोपहर 12:23 बजे से और समाप्त होती है 7 अक्टूबर सुबह 9:16 बजे तक।

चंद्र उदय (moonrise) का समय इस दिन लगभग शाम 5:33 बजे होगा।

इस प्रकार, क्रियाएँ जो रात में चाँद के प्रकाश पर निर्भर हैं, उन्हें चंद्र उदय के बाद किया जाना चाहिए।

शरद पूर्णिमा का महत्व

1.चंद्र देव पूजा

इस दिन चंद्रमा की किरणों को दिव्य माना जाता है। कहा जाता है कि चंद्रमा अपनी १६ कलाओं के साथ पूर्ण रूप से प्रकाशित होता है और पृथ्वी पर “अमृत वर्षा” जैसा प्रभाव डालता है।

2. माहेश्वरीता और लक्ष्मी आराधना

इस दिन देवी लक्ष्मी भी विद्यमान होती हैं। कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी यह दिन प्रसिद्ध है क्योंकि कहा जाता है, देवी लक्ष्मी “को जागृति?” पूछती हैं कि कौन जाग रहा है, और उन घरों में पूजा करने वालों को आशीर्वाद देती हैं।

3. रास लीला / कृष्ण लीला

ब्रज क्षेत्र में इसे रास पूर्णिमा कहा जाता है। यह मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने इस रात को गोपियों (gopis) के साथ रासलीला की थी।

4. ऋतु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य लाभ

शरद पूर्णिमा मानसून के बाद की ऋतु—शरद ऋतु—का संकेत है। साथ ही यह माना जाता है कि इस रात की शीतल चाँदनी स्वास्थ्य और शारीरिक संतुलन को बढ़ाती है।

5. समृद्धि, पुण्य एवं इच्छापूर्ति

इस दिन की पूजा, व्रत, दान आदि को विशेष फलदायक माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि यदि यह दिन नियमपूर्वक मनाया जाए तो सुख, धन और समृद्धि प्राप्त होती है।

पूजा विधि और नियम (Puja Vidhi): Sharad Purnima 2025

नीचे एक सामान्य पूजा विधि दी है, जिसे विभिन्न पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है:

1. स्नान और शुद्धि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। घर और पूजा स्थल की सफाई करें।

2. व्रत (उपवास)
कई भक्त दिनभर निर्जला (बिना जल) व्रत रखते हैं, कुछ हल्का उपवास करते हैं जैसे फल और नारियल पानी।

3. पूजा सामग्री
पूजा के लिए चाँदी का लोटा, दीपक, चंदन, कपूर, रुई, खीरा, देशी घी, पुष्प, तुलसी पत्ते, अक्षत (चावल), मिश्री, घी आदि सामग्री तैयार रखें।

4.भगवान चंद्र एवं देवी लक्ष्मी की पूजा

  • चाँद की आरती करें, चाँद की ओर मुख करके प्रार्थना करें।
  • देवी लक्ष्मी की पूजा जैसे दीपक, पुष्प, फल एवं अक्षत अर्पित करें।
  • मंत्र एवं स्तोत्रों का पाठ करें (जैसे “ॐ क्लीं चन्द्राय नमः” आदि)।

5. खीर अर्पण (Kheer Aarpan)
इस पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा खीर है — चावल, दूध, सूखे मेवे आदि मिलाकर मीठी खीर बनाएं।
इसे रात भर moonlight (चाँदनी) में बाहर रखा जाता है ताकि चाँद की किरणें उस पर पड़े।

अगले दिन सुबह यह खीर प्रसाद रूप में ग्रहण की जाती है।

6. जागरण और भक्ति कार्यक्रम
रात भर जागरण करें, भजन-कीर्तन करें, मंत्र जप करें।
देवभक्ति तथा सामूहिक कार्यक्रमों में भाग लें।

7. दान और सेवा
गरीबों को भोजन, कपड़े, फल आदि दान करें। यह पुण्य के कार्यों में गिना जाता है।

नियम ध्यान दें: चन्द अवसरों और क्षेत्रों में पूजा की समय-सीमा, मुहूर्त, व्रत की पद्धति बदल सकती है। अपने स्थानीय पंडित या पंचांग की सलाह लेना सदैव उपयोगी रहेगा।

पौराणिक कथा और कहानियाँ

1. तीन बहनों की कथा (व्रत कथा)
एक प्रसिद्ध कथा कहती है कि एक गाँव में तीन बहनें होती थीं, जो पूर्णिमा व्रत करती थीं। सबसे छोटी बहन आंशिक रूप से व्रत करती थी। एक समय उसकी संतान की मृत्यु हो जाती है। बाद में पूरा व्रत करने वाली बहन की भक्ति से भगवान कृपा से वह जीवित हो जाता है। इस प्रकार यह सिखाया जाता है कि व्रत श्रद्धा और पूरी विधि से करना चाहिए।

2. लक्ष्मी का अवतरण
कहा जाता है कि इस रात देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और उन घरों में निवास करती हैं जिनमें जागरण किया गया हो। जो लोग जागते रहते हैं, उन्हें धन-सम्पत्ति की कृपा मिलती है।

3. कृष्ण रास लीला
ब्रज क्षेत्र में यह माना गया है कि इस पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण ने गोकुल या वृंदावन में गोपियों के साथ रासलीला की थी। इस रात का आध्यात्मिक सौंदर्य और लीलात्मक भाव इस घटना से जुड़ा हुआ माना जाता है।

कैसे बेहतर तरीके से मनाएँ: सुझाव

  • समय पाबंदी: चाँद निकलने के बाद खीर बाहर रखें।
  • शुद्धता: स्वच्छता, शुद्ध मन, सात्विक आचरण महत्वपूर्ण।
  • भक्ति: ध्यान, जप, कीर्तन करें।
  • समुदाय: आसपास लोगों को भी शामिल करें।
  • स्वास्थ्य केंद्रित ध्यान: चाँदनी में रखें जाने वाली खीर हल्की होनी चाहिए ताकि स्वस्थ्य को हानि न हो।

निष्कर्ष (“शरद पूर्णिमा कब है”)

“शरद पूर्णिमा कब है” — 2025 में यह 6 अक्टूबर को मनाई जाएगी। यह दिन चंद्र देव, देवी लक्ष्मी, भगवान कृष्ण की लीला, और ऋतु परिवर्तन से जुड़ा एक पवित्र त्योहार है।
पूजा-विधि, व्रत, दान, जागरण, खीर अर्पण आदि से यह दिन और भी विशेष बनता है।
अगर आप इस वर्ष शरद पूर्णिमा पर पूर्ण भक्ति और समझ के साथ पूजा करना चाहें, तो यह लेख आपके लिए एक अच्छा मार्गदर्शक बन सकता है।

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