🕉️ भूमिका (Introduction)
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को पालनकर्ता और जीवन के संतुलन का प्रतीक माना गया है।
उनकी आराधना के अनेक स्वरूप हैं, लेकिन शालग्राम शिला को स्वयं श्रीहरि विष्णु का जीवंत रूप माना गया है।
नेपाल के गंडकी नदी से प्राप्त यह दिव्य शिला हजारों वर्षों से घर-घर में पूजी जाती रही है।
शालग्राम की पूजा से सभी पापों का नाश होता है, धन-समृद्धि बढ़ती है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
“श्री शालग्रामस्तोत्रम्” एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है, जिसमें भगवान विष्णु की महिमा, शक्ति और कृपा का वर्णन है।
यह स्तोत्र न केवल वैभव प्रदान करता है बल्कि साधक को मोक्ष-मार्ग की ओर भी अग्रसर करता है।
जो व्यक्ति नित्य श्रद्धा से इसका पाठ करता है, वह जीवन में हर प्रकार की नकारात्मकता से मुक्त होकर दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करता है।
🔱 श्री गणेशाय नमः
ॐ शालग्रामाय सर्वेशाय सर्वभूताधिपाय च।
त्रिगुणात्माय चक्रस्थ ब्रह्मविद्यावतारिणे॥
पादजलेन शुद्धाय च सर्वकिल्बिषनाशिने।
मोक्षदाय सर्वलोकस्य जगदेकात्मरूपिणे॥
शालग्राम भगवान, जो समस्त प्राणियों के अधिपति हैं, त्रिगुणात्मक हैं, सुदर्शन चक्र में स्थित, सर्वोच्च ब्रह्मविद्या के स्वरूप हैं, उनके चरणों से सब पापकर्म शुद्ध होते हैं।
पंचभूताधाराय च चैतन्यस्वरूपिणे।
ज्ञानवर्धाय आत्माय शक्तिस्वरूपिणे॥
दिव्यलोकप्रदाय सूर्यचन्द्रविवर्णिने।
त्रिविक्रमस्वरूपाय योगेश्वरसमाहिते॥
वे मोक्षदाता, जगत के एकात्मस्वरूप, पंचभूतों के अधिकारी, चैतन्यस्वरूप, ज्ञानवर्द्धक, आत्मस्वरूप, और शक्ति के आधार हैं।
ध्यानदाय अमृतसिंचन प्राणदाय सदा प्रभो।
सर्वसंकटनाशाय सौभाग्यप्रद सर्वदा॥
धनसन्तानप्रदाय च अक्षरस्वरूपिणे।
निर्विकल्पाय अनंताय परमब्रह्मस्वरूपिणे॥
वे दिव्य लोकों को देने वाले, सूर्य-चन्द्र के जैसा तेज, त्रिविक्रम के रूप में प्रकट, योगेश्वर, समाधिस्वरूप, ध्यानदायक व अमृत देने वाले हैं।
त्रैलोक्यविनायकाय मोक्षदाय च सततं।
चैतन्यमयी शक्त्यात्मा सम्पूर्णशक्तिसंपदा॥
सर्वशक्तिमयी दिव्यगति जगतांत्रिक तत्त्वदा।
सार्वभौमाय सर्वव्यापि विश्वरूपाय महात्मने॥
संकटनाशक, सौभाग्यप्रद, धन व संतान देने वाले, अक्षर व निर्विकल्प स्वरूप, अनंत व परमब्रह्म, तीनों लोकों के विनायक, चैतन्यपूर्ण, सम्पूर्ण शक्तियों के स्वामी हैं।
अनाहतस्वरूपाय निर्विकाराय शाश्वते।
परमात्मनाय सततप्रकाश महाव्यापिने॥
भक्तानां सर्वसुखदाय रत्नसंपन्न संप्रदा।
कामसिद्धि, ज्ञानसिद्धि, मोक्षसिद्धिदातारं॥
दिव्य गति देने वाले, जगतः तांत्रिक तत्त्वस्वरूप, सार्वभौम, सर्वव्यापी, विश्वरूप, अनाहत व निर्विकारी, शाश्वत, परमात्मा हैं।
अनंतसत्वस्वरूपाय सर्वदेवतया प्रभो।
जगत्प्रवर्तक विश्वेश, शालग्रामाय नमो नमः॥
भक्तों को संपूर्ण सुख देने वाले, रत्नों से परिपूर्ण, काम, ज्ञान और मोक्ष सिद्धि देने वाले, समस्त देवताओं के स्वरूप, विश्व के प्रवर्तक श्री शालग्राम को नमस्कार है।
🌸 अथ श्री शालग्रामस्तोत्रम् – सम्पूर्ण श्लोक एवं अर्थ सहित
श्रीरामं सह लक्ष्मणं सकरुणं सीतान्वितं सात्त्विकं वैदेहीमुखपद्मलुब्धमधुपं पौलस्त्वसंहारिणम् ।
वन्दे वन्द्यपदांबुजं सुरवरं भक्तानुकंपाकरं शत्रुघेन हनूमता च भरतेनासेवितं राघवम् ॥
मैं उस राघव (श्रीराम) को वन्दन करता हूँ, जो लक्ष्मण के साथ हैं, स्नेहशील और सीता के साथ युक्त हैं, जो सात्त्विक हैं, वैदेही के कमल सदृश चरणों के भूखे मधु-पापों का संहार करने वाले हैं। वे देवों के प्रिय हैं, भक्तों के प्रति करुणामय हैं, शत्रुओं को हरने वाले हैं और हनुमान तथा भरत की सेवा से पूजित हैं।
जयति जनकपुत्री लोकभर्त्री नितान्तं जयति जयति रामः पुण्यपुञ्जस्वरूपः ।
जयति शुभगराशिर्लक्ष्मणो ज्ञानरूपो जयति किल मनोज्ञा ब्रह्मजाता ह्ययोध्या ॥
वह राम, जो जनक की पुत्री सीता के पति हैं और सम्पूर्ण लोक के पालनकर्ता हैं, उनका जय हो। जो पुण्य के संचय स्वरूप हैं। लक्ष्मण, जो शुभ और ज्ञान रूप हैं, उनका भी जय हो। हे सुन्दर और मनोहर, ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न और अयोध्या में स्थित, उनका जय हो।
(युधिष्ठिर उवाच)
श्रीदेवदेव देवेश देवतार्चनमुत्तमम् ।
तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि ब्रूहि मे पुरुषोत्तम ॥१
हे पुरुषोत्तम! मैं यह जानना चाहता हूँ कि देवों के देव, श्रेष्ठ देवतार्चना की विधि क्या है। कृपया मुझे इसका वर्णन करें।
गण्डक्यां चोत्तरे तीरे गिरिराजस्य दक्षिणे ।
दशयोजनविस्तीर्णा महाक्षेत्रवसुन्धरा ॥२
गिरिराज के दक्षिण में, गंडक नदी के उत्तरी तट पर, दस योजना विस्तृत इस विशाल भूमि (महाक्षेत्र) में शालग्राम स्थित है।
शालग्रामो भवेद्देवो देवी द्वारावती भवेत् ।
उभयोः सङ्गमो यत्र मुक्तिस्तत्र न संशयः ॥३
जहाँ शालग्राम और द्वारावती (देवी) एक साथ स्थित हैं, वहाँ मोक्ष निश्चित रूप से प्राप्त होता है।
शालग्रामशिला यत्र यत्र द्वारावती शिला ।
उभयोः सङ्गमो यत्र मुक्तिस्तत्र न संशयः ॥४
जहाँ-जहाँ शालग्राम और द्वारावती शिला एकसाथ हैं, वहाँ मोक्ष प्राप्ति में कोई संदेह नहीं है।
आजन्मकृतपापानां प्रायश्चित्तं य इच्छति ।
शालग्रामशिलावारि पापहारि नमोऽस्तु ते ॥५
जो व्यक्ति अपने आजन्म किए पापों का प्रायश्चित्त करना चाहता है, वह शालग्राम शिला की पूजा करके अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करता है।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।
विष्णोः पादोदकं पीत्वा शिरसा धारयाम्यहम् ॥६
शालग्राम के पादोदक (पादजल) को पीकर सिर पर धारण करने से अकाल मृत्यु और सभी प्रकार की व्याधियों का नाश होता है।
शङ्खमध्ये स्थितं तोयं भ्रामितं केशवोपरि ।
अङ्गलग्नं मनुष्याणां ब्रह्महत्यादिकं दहेत् ॥७
यदि कोई मनुष्य शंख मध्य में स्थित जल को केशव (भगवान विष्णु) पर लगाकर स्नान करता है, तो यह ब्रह्महत्या जैसे महान पापों को नष्ट करता है।
स्नानोदकं पिवेन्नित्यं चक्राङ्कितशिलोद्भवम् ।
प्रक्षाल्य शुद्धं तत्तोयं ब्रह्महत्यां व्यपोहति ॥८
जो व्यक्ति नित्य स्नानजल में चक्रांकित शिला को देख कर स्नान करता है और जल से शुद्ध होता है, उसके सभी पाप (ब्राह्महत्या आदि) नष्ट हो जाते हैं।
अग्निष्टोमसहस्राणि वाजपेयशतानि च ।
सम्यक् फलमवाप्नोति विष्णोर्नैवेद्यभक्षणात् ॥९
अग्निष्टोम और वाजपेय जैसे यज्ञ हजारों बार करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल व्यक्ति को शालग्राम के नैवेद्य से प्राप्त होता है।
नैवेद्ययुक्तां तुलसीं च मिश्रितां विशेषतः पादजलेन विष्णोः ।
योऽश्नाति नित्यं पुरतो मुरारेः प्राप्नोति यज्ञायुतकोटिपुण्यम् ॥१०
जो व्यक्ति तुलसी से मिश्रित शालग्राम का पादजल नियमित रूप से ग्रहण करता है, वह मुरारी (भगवान कृष्ण/विष्णु) के सामने हजारों यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त करता है।
खण्डिताः स्फुटिता भिन्ना वह्निदग्धास्तथैव च ।
शालग्रामशिला यत्र तत्र दोषो न विद्यते ॥११
भले ही शालग्राम की शिला खंडित या जली हुई हो, वहाँ किसी प्रकार का दोष नहीं होता।
न मन्त्रः पूजनं नैव न तीर्थं न च भावना ।
न स्तुतिर्नोपचारश्च शालग्रामशिलार्चने ॥१२
शालग्राम की पूजा में कोई विशेष मंत्र, तीर्थ या भाव की आवश्यकता नहीं है।
ब्रह्महत्यादिकं पापं मनोवाक्कायसम्भवम् ।
शीघ्रं नश्यति तत्सर्वं शालग्रामशिलार्चनात् ॥१३
ब्रह्महत्या जैसे बड़े पाप भी, जो मन, वाक् और शरीर से उत्पन्न हुए हों, शालग्राम शिला की पूजा से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
नानावर्णमयं चैव नानाभोगेन वेष्टितम् ।
तथा वरप्रसादेन लक्ष्मीकान्तं वदाम्यहम् ॥१४
शालग्राम विभिन्न रंगों और भोगों से परिपूर्ण होते हैं। इसके वरप्रसाद द्वारा लक्ष्मी-कान्ति (सौभाग्य) प्राप्त होती है।
नारायणोद्भवो देवश्चक्रमध्ये च कर्मणा ।
तथा वरप्रसादेन लक्ष्मीकान्तं वदाम्यहम् ॥१५
नारायण (भगवान विष्णु) के उत्पत्ति और कर्म चक्र मध्य में होने के कारण, शालग्राम की पूजा से लक्ष्मी-कान्ति (सौभाग्य) प्राप्त होती है।
कृष्णे शिलातले यत्र सूक्ष्मं चक्रं च दृश्यते ।
सौभाग्यं सन्ततिं धत्ते सर्व सौख्यं ददाति च ॥१६
शालग्राम की शिला के तल पर सूक्ष्म चक्र देखने को मिले, वहाँ का पूजन करने से संतान सुख, सौभाग्य और सम्पूर्ण सुख प्राप्त होता है।
वासुदेवस्य चिह्नानि दृष्ट्वा पापैः प्रमुच्यते ।
श्रीधरः सुकरे वामे हरिद्वर्णस्तु दृश्यते ॥१७
🔔 शालग्राम शिला का महत्व (महात्म्य)
🌿 शालग्राम शिला भगवान विष्णु का साक्षात स्वरूप मानी गई है।
🌿 इसकी पूजा से ब्रह्महत्या जैसे महान पाप नष्ट हो जाते हैं।
🌿 पादजल पीने से अकाल मृत्यु, रोग और कष्ट दूर होते हैं।
🌿 तुलसीदल मिश्रित पादजल से हजारों यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता है।
🌿 जो व्यक्ति श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
🌼 शालग्राम पूजन के लाभ
- धन, संतान और सौभाग्य की प्राप्ति
- मन की शांति और आत्मिक बल में वृद्धि
- पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति
- घर में सुख, शांति और वैभव का वास
🪔 अंतिम मंत्र एवं शुद्धि प्रार्थना
ॐ शालग्रामाय नमः शालग्रामाय नमः शालग्रामाय नमः
पादजलं पीत्वा शुद्धिं प्राप्नुयामि सर्वपापविनाशनं।
…(पूरा अंतिम भाग जस का तस रहेगा)…
🌿 निष्कर्ष (Conclusion)
शालग्राम भगवान विष्णु का सजीव स्वरूप है।
जो व्यक्ति इस “शालग्रामस्तोत्रम्” का नित्य पाठ करता है, उसके सभी कष्ट दूर होते हैं, पापों का नाश होता है और जीवन में शांति, समृद्धि तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।