📜 श्रीसूतरचित प्राणेश्वरी विद्या – सर्प विष शमन का उपाय
श्रीसूतजी बोले:
हे ऋषियो! अब मैं शिव द्वारा पक्षिराज गरुड को सुनाये गये प्राणेश्वर महामन्त्र का वर्णन करता हूँ, किंतु उसके पूर्व उन स्थानों का उल्लेख करूँगा, जहाँ सर्प के काटने से प्राणी जीवित नहीं रह सकता।
श्मशान, वल्मीक (बांबी), पर्वत, कुआँ और वृक्ष के कोटर — इन स्थानों में स्थित सर्प के काटने पर यदि उस दाँत लगे स्थान पर तीन प्रच्छन्न रेखाएँ बन जाती हैं तो वह प्राणी जीवित नहीं रहता।
षष्ठी तिथि में, कर्क और मेष राशियों में आनेवाले नक्षत्रों तथा मूल, अश्लेषा, मधा आदि क्रूर नक्षत्रों में सर्पदंश होने से प्राणी का जीवन समाप्त हो जाता है, तथा काँख, कटि, गला, सन्धि स्थान, मस्तक या कनपटी के अस्थिभाग और उदर आदि में काटने पर प्राणी जीवित नहीं रहता।
यदि सर्पदंश के समय दण्डी, शस्त्रधारी, भिक्षु अथवा नये प्राणी का दर्शन होता है तो उसे काल का दूत समझना चाहिये। हाथ, मुख, गर्दन और पीठ में सर्प के काटने से प्राणी जीवित नहीं बचता।
☀️ सर्पदंश का ज्योतिषीय काल (Vedic Time Influence)
दिन के प्रथम भाग के पूर्व अर्ध याम का भोग सूर्य करता है। उस दिवाकर भोग के पश्चात् क्रमशः अन्य ग्रह शेष यामों का भोग करते हैं।
रात्रिकाल में शेषनाग ‘सूर्य’, वासुकि ‘चन्द्र’, तक्षक ‘मंगल’, कर्कोटक ‘बुध’, पद्म ‘गुरु’, महापद्म ‘शुक्र’, शंख ‘शनि’, और कुलिक ‘राहु’ को माना गया है।
रात्रि या दिन में बृहस्पति का भोगकाल आने पर सर्प का दंश अत्यंत घातक होता है।
दिन में शनि के समय राहु की अशुभ दृष्टि रहने से सर्पदंश काल समान घातक हो जाता है।
🌕 चन्द्र स्थिति और सर्पदंश से बचाव
ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा प्रतिपदा से पूर्णिमा तक शरीर के विभिन्न अंगों में निवास करता है।
जिस अंग में चन्द्र की स्थिति होती है, उस अंग में सर्प के काटने पर प्राणी बच सकता है।
यदि मूर्छा हो जाए तो शरीर मर्दन (मालिश) से शान्त हो जाती है।
🕉️ ॐ हंसः बीज मंत्र का प्रयोग (Om Hamsah Mantra)
स्फटिक समान निर्मल ‘ॐ हंसः’ नामक बीजमन्त्र विषरूपी पाप को नष्ट करने में समर्थ है।
इसके चार प्रकार बताए गए हैं —
1️⃣ प्रथम मात्रा बीज बिन्दु सहित,
2️⃣ दूसरा पाँच स्व वाला,
3️⃣ तीसरा छः स्व वाला,
4️⃣ चौथा विसर्गयुक्त।
प्राचीन समय में पक्षिराज गरुड़ ने तीनों लोकों की रक्षा हेतु ‘ॐ कुरु कुले स्वाहा’ इस महामंत्र को आत्मसात किया था।
विष शमन हेतु इसे शरीर में इस प्रकार न्यास करें –
- मुख में ‘ॐ’
- कण्ठ में ‘कुरु’
- गुल्फों में ‘कुले’
- पैरों में ‘स्वाहा’
जिस घर में यह मंत्र लिखा रहता है, वहाँ सर्प प्रवेश नहीं करते।
जो इसे एक हजार बार जपकर अभिमंत्रित सूत्र कान पर धारण करता है, उसे सर्प भय नहीं रहता।
💧 विष निवारक अष्टदल पद्म विधि
एक अष्टदल पद्म बनाकर प्रत्येक दल पर ‘ॐ सुवर्णरखे कुक्कुटविग्रहरूपिणि स्वाहा’ मंत्र के दो-दो वर्ण लिखें।
फिर ‘ॐ पक्षि स्वाहा’ मंत्र से अभिमंत्रित जल से स्नान कराएँ — इससे विष शांत होता है।
‘ॐ पक्षि स्वाहा’ से करन्यास और अङ्गन्यास करने पर विषधर सर्प उस मनुष्य की छाया को भी नहीं लांघ सकते।
एक लाख जप से सिद्धि प्राप्त करने वाला साधक मात्र दृष्टि से विष का नाश कर देता है।
🔱 सर्पदंश पर विशेष मन्त्र प्रयोग
‘ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं भी रुण्डायै स्वाहा’ —
इस मंत्र का जप सर्पदंशित व्यक्ति के कान में करने से विष का प्रभाव क्षीण हो जाता है।
‘ॐ हंसः’ मंत्र का शरीर में न्यास करके भगवान नीलकण्ठ का ध्यान करने से यह मंत्र अपनी वायुशक्ति द्वारा विष का नाश करता है।
🌿 जड़ी-बूटी और औषध उपाय (Vedic Herbal Remedies)
1️⃣ प्रत्यंगिरा की जड़ को चावल के जल से पीसकर पीने से विष दूर होता है।
2️⃣ पुनर्नवा, प्रियंगु, ब्राह्मी, श्वेत, बृहती, कूष्माण्ड, अपराजिता, गेरू और कमलगट्टे को पीसकर घृत के साथ लेप करें।
3️⃣ सर्पदंश होने पर ‘शिरीष’ वृक्ष के पंचांग के साथ गाजर के बीज पीसकर शरीर पर लेप करें या पीएँ।
🔮 अन्य मन्त्र और तन्त्र प्रयोग (Garuda Purana Protection Mantras)
- ‘ॐ ह्रीं ह्रीं’ त्रिशूल पर लिखकर आकाश में घुमाने से दुष्ट सर्प, ग्रह, और राक्षस नष्ट होते हैं।
- ‘ॐ जूं सूं हूं फट्’ मंत्र से आठ लकड़ियाँ अभिमंत्रित कर आठों दिशाओं में गाड़ दें — विद्युत, वज्रपात और उपद्रव नहीं होंगे।
- ‘ॐ हां सदाशिवाय नमः’ मंत्र से अनार पुष्प समान पिण्ड बनाकर दिखाने मात्र से दुष्ट शक्तियाँ भाग जाती हैं।
- ‘ॐ ह्रीं गणेशाय नमः’, ‘ॐ ह्रीं स्तम्भनादिचक्राय नमः’, ‘ॐ ऐं ब्राह्ययै त्रैलोक्यडामराय नमः’ — ये भैरव पिण्ड मन्त्र भूत, विष और ग्रहदोष निवारण करते हैं।
- ‘ॐ नमः’ द्वारा इन्द्रवज्र का ध्यान करें — इससे विष, शत्रु और भूतगण नष्ट होते हैं।
- ‘ॐ क्ष्ण नमः’ से कालभैरव का ध्यान करें — पाप, भूत और विष निवारण में यह श्रेष्ठ है।
- ‘ॐ लसद्विजिह्वाक्ष स्वाहा’ से खेतों में उपद्रव करने वाले ग्रहों व पक्षियों का निवारण होता है।
- ‘ॐ श्व नमः’ मंत्र को नगाड़े पर रक्त स्याही से लिखने पर उसका शब्द सुनकर पापग्रह भयभीत हो जाते हैं।
🌺 निष्कर्ष (Conclusion)
यह गरुड़ पुराण में वर्णित प्राणेश्वरी विद्या विष, भूत, ग्रहदोष और दुष्ट शक्तियों के निवारण हेतु परम प्रभावशाली शास्त्रीय विद्या है।
इसका नियमित जप और ध्यान साधक को विष से रक्षा, मानसिक शांति, और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है।
यह विद्या केवल उपचार ही नहीं बल्कि सुरक्षा कवच (Protective Shield) का कार्य करती है।


