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संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत: महत्व, विधि और अंगारकी चतुर्थी का विशेष महत्व (Sankasti Ganesh Chaturthi Varat)

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत संकटमोचन भगवान गणेश को समर्पित है और जीवन से संकट, बाधाएं और कष्ट दूर करने के लिए किया जाता है। इस व्रत का पालन भक्तगण पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ करते हैं।


संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व

  • भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और संकटों का नाश करने वाला माना जाता है।
  • इस व्रत से जीवन की सभी भौतिक और आध्यात्मिक बाधाएं दूर होती हैं।
  • भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  • यह व्रत विशेष रूप से रोग, ऋण और शत्रु बाधा निवारण के लिए फलदायी होता है।

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि

1. स्नान और संकल्प

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
  • व्रत का संकल्प लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें।

2. पूजा विधि

  • पूजा स्थल को स्वच्छ करें और गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • चंदन, कुमकुम, हल्दी, अक्षत, फूल, धूप और दीप अर्पित करें।

3. भोग अर्पण

  • गणेश जी को मोदक, लड्डू और फल अर्पित करें।
  • मोदक गणेश जी का सबसे प्रिय भोग माना जाता है।

4. पाठ और मंत्र

  • संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
  • गणेश चालीसा और “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें।

5. फलाहार

  • पूरे दिन उपवास रखें या केवल फलाहार कर सकते हैं।
  • पानी, दूध और अन्य तरल पदार्थ का सेवन कर सकते हैं।

6. चंद्र दर्शन और व्रत खोलना

  • संध्या समय चंद्रमा के उदय के बाद उन्हें अर्घ्य अर्पित करें
  • इसके बाद ही व्रत खोलें और प्रसाद ग्रहण करें।

अंगारकी संकष्टी चतुर्थी का महत्व

जब संकष्टी गणेश चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है, तब उसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।

  • इसे सबसे पवित्र और प्रभावशाली चतुर्थी माना गया है।
  • इस दिन किया गया व्रत अत्यधिक पुण्यदायी होता है।
  • अंगारकी संकष्टी पर भगवान गणेश की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

निष्कर्ष

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत सिर्फ संकटों को दूर करने वाला ही नहीं बल्कि मनोकामना पूर्ति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने वाला व्रत है। यदि यह व्रत अंगारकी चतुर्थी पर किया जाए तो इसका फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है।

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