पुत्रदा एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार माता-पिता और संतान की भलाई के लिए अत्यंत शुभ व्रत माना जाता है। यह व्रत खासकर उन व्यक्तियों द्वारा किया जाता है जो अपने संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सफलता की कामना करते हैं।
पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व
पुत्रदा एकादशी का व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन व्रती निराहार या फलाहार करके भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान सुख, पारिवारिक समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी व्रत रखने की विधि
1. सूर्योदय से पूर्व स्नान
सूर्योदय से पहले उठकर शुद्ध जल से स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. संकल्प और पूजा की शुरुआत
- घर के मंदिर या पूजा स्थल को स्वच्छ करें।
- एक लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- धूप, दीप, फूल, माला और अक्षत अर्पित करें।
3. भगवान विष्णु को भोग अर्पित करना
- भगवान को पंचामृत, मिष्ठान, फल आदि का भोग लगाएं।
- भोग में तुलसी दल का उपयोग अनिवार्य है।
4. व्रत कथा का पाठ
विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
5. मंत्र जाप
- मंत्र जाप अवश्य करें।
- प्रमुख मंत्र:
- “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय”
- “ऊं वासुदेवाय नमः”
6. व्रत का पालन
- दिनभर निराहार या फलाहार करें।
- अन्न का सेवन न करें, खासकर चावल से परहेज करें।
- चाय, कॉफी, जूस, दूध, फल और पानी लिया जा सकता है।
7. शाम की पूजा
शाम को दोबारा भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें।
8. व्रत का पारण
- अगले दिन द्वादशी तिथि में सुबह स्नान और स्वच्छ वस्त्र पहनकर व्रत का पारण करें।
- पारण के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
- सत्य और संयम: दिनभर सत्य और संयम का पालन करें।
- बुरे विचार से बचें: नकारात्मक विचार और कार्य से दूर रहें।
- क्रोध और झूठ से बचें: किसी से भी कठोर शब्द न बोलें और झूठ न बोलें।
- दान-दक्षिणा: द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराकर और यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
निष्कर्ष
पुत्रदा एकादशी व्रत न केवल संतान सुख और परिवार की समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन में सत्य, संयम और भक्ति की भावना को भी मजबूत करता है। विधिवत पूजा और कथा का पाठ करने से व्रत का फल शीघ्र प्राप्त होता है।