Vishnu Mrityunjaya Stotra

मृत्युञ्जय महाविष्णु स्तोत्र | Markandeya Mrityunjaya Mahavishnu Stotra with Meaning

🌺 प्रस्तावना | Introduction

हे मृत्युञ्जय महाविष्णु! आपको नमन।
यह पवित्र स्तोत्र श्री नरसिंह पुराण के सप्तम अध्याय में वर्णित है। इसे स्वयं भगवान विष्णु ने महामति मार्कण्डेय ऋषि को उपदेश दिया था।
यह स्तोत्र “मृत्यु पर विजय दिलाने वाला”, “अमृत प्रदान करने वाला” और “जीवन रक्षक मंत्र” के रूप में प्रसिद्ध है।

जो साधक इस स्तोत्र का त्रिकाल पाठ करता है — प्रातः, मध्यान्ह और सायं — उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती और वह दीर्घायु प्राप्त करता है।


🕉️ मृत्युञ्जय महाविष्णु स्तोत्र (Mrityunjaya Mahavishnu Stotra)

ॐ नमो भगवते मृत्युंजय महाविष्णवे अमृतसंजीवनाय विराट् पुरुषाय सर्ववयापकाय ॐ।
ततो विष्ण्वर्पितमना मारकण्डेयो महामतिः
तुष्टाव प्रणतो भूत्वा देवदेव जनार्दनम्।
विष्णुनैवोपदिष्टं तु स्तोत्रं कर्णे महामनाः
सम्भावितेन मनसा तेन तुष्टाव माधवम्।।

नारायणं सहस्राक्षं पद्मनाभं पुरातनम्।
प्रणतोऽस्मि हृषीकेशं किं मे मृत्युः करिष्यति।।

गोविन्दं पुण्डरीकाक्षमनन्तमजमव्ययम्।
केशवं च प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति।।

वासुदेवं जगद्योनिं भानुवर्णमतीन्द्रियम्।
दामोदरं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति।।

शङ्खचक्रधरं देवं छन्नरूपिणमव्ययम्।
अधोक्षजं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति।।

पुरुषं पुष्करं पुण्यं क्षेमबीजं जगत्पतिम्।
लोकनाथं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति।।

वाराहं वामनं विष्णुं नरसिंहं जनार्दनम्।
माधवं च प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति।।

भूतात्मानं महात्मानं जगद्योनिमयोनिजम्।
विश्वरूपं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति।।

सहस्रशिरसं देवं व्यक्ताव्यक्तं सनातनम्।
महायोगं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति।।

इत्युदीरितमाकर्ण्य स्तोत्रं तस्य महात्मनः।
अपयातस्ततो मृत्युर्विष्णुदूतैश्च पीडितः।।

इति तेन जितो मृत्युर्मार्कण्डेयेन धीमता।
प्रसन्ने पुण्डरीकाक्षे नृसिंहे नास्ति दुर्लभम्।।

मृत्युञ्जयमिदं पुण्यं मृत्युप्रशमनं शुभम्।
मार्कण्डेयहितार्थाय स्वयं विष्णुरुवाच ह।।

य इदं पठते भक्त्या त्रिकालं नियतः शुचिः।
नाकाले तस्य मृत्युः स्यान्नरस्याच्युतचेतसः।।

हृत्पद्ममध्ये पुरुषं पुराणं नारायणं शाश्वतमादिदेवम्।
सञ्चिन्त्य सूर्यादपि राजमानं मृत्युं स योगी जितवांस्तदैव।।


📜 अर्थ और भावार्थ | Meaning and Essence

यह स्तोत्र भगवान विष्णु की मृत्युञ्जय शक्ति की स्तुति है।
ऋषि मार्कण्डेय, जिन्हें मृत्यु ने घेर लिया था, उन्होंने अपने मन को श्री हरि को समर्पित कर यह स्तोत्र पढ़ा।

भगवान नारायण ने स्वयं यह स्तोत्र उन्हें बताया था — जिससे उन्होंने मृत्यु पर विजय पाई।

मुख्य भाव:

  • हे नारायण, पद्मनाभ, हृषीकेश — मैं आपकी शरण में हूँ। मृत्यु मेरा क्या बिगाड़ सकती है?
  • हे गोविन्द, वासुदेव, दामोदर — आप ही जीवनदाता हैं, मृत्यु अब मेरे निकट नहीं आ सकती।
  • हे नरसिंह, वाराह, वामन, माधव — मैं आपके चरणों में समर्पित हूँ, मृत्यु अब व्यर्थ है।
  • हे सहस्रशिरा सनातन पुरुष, आपकी शरण में आने वाला योगी मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है।

🌿 फलश्रुति | Benefits of Chanting

🔹 जो व्यक्ति श्रद्धा से इस स्तोत्र का त्रिकाल पाठ करता है —
उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती।

🔹 यह स्तोत्र रोगों से मुक्ति, भय से सुरक्षा और दीर्घायु प्रदान करता है।

🔹 भगवान विष्णु स्वयं कहते हैं —

“जो भक्त शुद्ध मन से इस स्तोत्र का पाठ करेगा,
उसकी मृत्यु नियत समय से पहले नहीं होगी।”


🪔 मार्कण्डेय की अमरता कथा | The Story of Markandeya’s Victory Over Death

मार्कण्डेय ऋषि का जन्म अल्पायु में हुआ था। जब मृत्यु उन्हें लेने आई, तो वे भगवान महाविष्णु का स्मरण करने लगे।
उन्होंने यह स्तोत्र पढ़ा — तब विष्णु के दूत प्रकट हुए और मृत्यु को पराजित कर दिया।

इस प्रकार, मार्कण्डेय ने अमरत्व प्राप्त किया और वे सदा मृत्युंजय कहलाए।


✨ निष्कर्ष | Conclusion

मृत्युञ्जय महाविष्णु स्तोत्र” न केवल मृत्यु पर विजय का प्रतीक है, बल्कि यह अमरता, शांति और दिव्यता का स्रोत है।
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का स्मरण करता है, वह भय, रोग और मृत्यु से मुक्त होकर भगवान श्रीमन्नारायण की कृपा प्राप्त करता है।


🌸 समापन मंत्र

जय श्रीमन्नारायण महाप्रभु 🙏
जो भी भक्त इस स्तोत्र को पढ़ता या सुनता है, उसके जीवन में मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।

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