Maha Shivratri Puja Vidhi and Katha in Hindi

🌺 श्री महाशिवरात्रि व्रत ( Shri Mahashivratri Vrat) : प्रामाणिक पूजन विधि एवं सामग्री

शिवरात्रि से एक दिन पूर्व त्रयोदशी तिथि में शिवजी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके उपरांत चतुर्दशी तिथि को निराहार रहना चाहिए।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर ‘ॐ नमः शिवायः’ मंत्र से पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद रात्रि के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करनी चाहिए और अगले दिन प्रातःकाल ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।


🙏 व्रत का विवरण

  • व्रत का नाम: श्री महाशिवरात्रि
  • तिथि: चतुर्दशी (14)
  • दिन: मंगलवार या बुधवार
  • देवता: भगवान शिव
  • समय: प्रातःकाल से रात्रि के चार प्रहर तक
  • विधान: शुद्धि, संकल्प, पूजन, हवन, शिव अभिषेक, ब्रह्मचर्य, अक्रोध, श्रद्धा व भक्ति।

🪔 पूजा सामग्री

सुगंधित पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरा, भाँग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, दही, घी, शहद, गंगा जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, इत्र, मौली, जनेऊ, मिष्ठान्न, शिव-पार्वती श्रृंगार सामग्री, वस्त्राभूषण, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा बर्तन, कुशासन आदि।


🔱 व्रत एवं पूजा के मंत्र

मुख्य मंत्र:

ॐ नमः शिवाय

बिल्वपत्र अर्पण मंत्र:

नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च।
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुभ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥

दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌।
अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥

अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌।
कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥

गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर।
सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय॥


📖 महाशिवरात्रि व्रत की कथा

पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया।

संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की।

शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया।

जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा। बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची।

शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।’

शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।

कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं।

अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था।

इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था।

उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, ‘हे शिकारी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो। शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं।

मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे। उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया।

शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े।

मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया,

उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके।, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।

अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

🌕 कथा का संदेश

महाशिवरात्रि की कथा सिखाती है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा से नहीं, करुणा और परोपकार से होती है।
शिकारी ने दया, संयम और अहिंसा से भगवान शिव को प्रसन्न किया।
इससे यह सिद्ध होता है कि भोलेनाथ अनजाने में भी किए गए शुभ कर्मों का फल अवश्य देते हैं।
वास्तव में “शिव” का अर्थ ही कल्याण है — और जो दूसरों का कल्याण करता है, वही शिवतत्व को प्राप्त करता है।


🌌 शिवरात्रि का वास्तविक अर्थ

पुराणों में चार प्रकार की शिवरात्रि बताई गई है —

  1. मासिक शिवरात्रि
  2. प्रथम आदि शिवरात्रि
  3. महाशिवरात्रि
  4. नित्य शिवरात्रि

हर रात शिवरात्रि हो सकती है — यदि हम अपने भीतर के अंधकार को भक्ति, दया और सत्य से प्रकाशित करें।


निष्कर्ष

महाशिवरात्रि का व्रत केवल उपवास नहीं, बल्कि मन, कर्म और वचन से शिवत्व की अनुभूति है।
जो व्यक्ति श्रद्धा से व्रत रखता है, शिव नाम का जप करता है और दूसरों के प्रति दया भाव रखता है —
उसे भगवान शिव का आशीर्वाद, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त होता है।

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