हरतालिका तीज की महिमा अपरंपार मानी गई है। हिंदू धर्म में विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं (Married Women) के लिए इस पर्व का अत्यधिक महत्व है।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया, यानी 6 सितंबर को हरतालिका तीज मनाई जाएगी। भारत में हरियाली तीज और कजरी तीज के बाद यह प्रमुख त्योहार मनाया जाता है।
🌿 हरतालिका तीज की पूजन सामग्री (Hartalika Teej Puja Samagri)
हरतालिका व्रत से एक दिन पहले ही पूजन की सामग्री एकत्र कर लें —
गीली मिट्टी, बेल पत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल-फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनेऊ, वस्त्र, मौसमी फल-फूल, नारियल, कलश, अबीर, चंदन, घी, कपूर, कुमकुम, दीपक, दही, चीनी, दूध और शहद।
मां पार्वती की सुहाग सामग्री:
मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर और सुहाग पिटारी।
🙏 हरतालिका तीज पूजन विधि (Hartalika Teej Puja Vidhi)
हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है — यानी दिन-रात के मिलन के समय।
इस दिन सुहागिन महिलाएं नए वस्त्र पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं।
- स्नान कर साफ वस्त्र पहनें।
- गीली मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा बनाएं।
- दूध, दही, चीनी, शहद और घी से पंचामृत तैयार करें।
- सुहाग सामग्री माता पार्वती को और वस्त्र शिवजी को अर्पित करें।
- हरतालिका व्रत कथा सुनें।
- गणेश जी, शिवजी और पार्वती माता की आरती करें।
- भगवान की परिक्रमा और रात्रि जागरण करें।
- सुबह स्नान कर माता पार्वती का पूजन और सिंदूर अर्पण करें।
- ककड़ी और हल्वे का भोग लगाकर व्रत पारण करें।
- पूजन सामग्री किसी सुहागिन महिला को दान दें।
🌙 कैसे किया जाता है हरतालिका तीज व्रत (How to do Hartalika Teej Vrat)
हरतालिका तीज को सबसे बड़ी तीज माना गया है।
इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
यह व्रत निर्जला रखा जाता है — यानी व्रती जल तक ग्रहण नहीं करता।
सुबह स्नान के बाद यह मंत्र बोलकर व्रत का संकल्प लें —
“उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये।”
अगर सूतक लग जाए, तो व्रत रख सकते हैं और रात में पूजा कर सकते हैं।
महिलाएं 24 घंटे से अधिक निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन पूजा के बाद व्रत खोलती हैं।
यह व्रत सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं दोनों के लिए शुभ माना गया है।
💞 सौभाग्य प्राप्ति के लिए हरतालिका तीज का महत्व (Hartalika Teej Significance)
हरतालिका तीज व्रत पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है।
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है।
माना जाता है कि यह व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए किया था।
इस व्रत से महिलाओं को सौभाग्य, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
🌼 गौरी हब्बा (Gauri Habba Vrat)
दक्षिण भारत में इस व्रत को गौरी हब्बा कहा जाता है।
यह व्रत कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बड़े श्रद्धा से मनाया जाता है।
हरतालिका तीज करने से —
- सुहागिन महिलाओं के पति की आयु बढ़ती है।
- कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है।
- व्रत करने से अखंड सौभाग्य और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।
🌺 हरतालिका तीज व्रत कथा (पूर्ण रूप में) | Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi
एक बार भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी। श्री भोलेशंकर बोले—
“हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत की। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।
तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।
नारदजी ने कहा—
‘गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।’
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्गद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले—
‘श्रीमान्! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।’
तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।
तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया —
‘मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है।’
तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी। उसने कहा —
‘सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।’
तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।
इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।
तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा —
‘मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।’
तब मैं ‘तथास्तु’ कहकर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा।
उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।
तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा —
‘पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे।’
गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।
हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।”
🌸 हरतालिका तीज व्रत का संदेश
इस व्रत से महिलाओं में संकल्प, श्रद्धा, त्याग और भक्ति की भावना प्रबल होती है।
माता पार्वती का यह व्रत हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और संयम से असंभव भी संभव होता है।
जो महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत विधि-विधान से करती हैं, उन्हें जीवन में —
- सौभाग्य,
- वैवाहिक सुख,
- और शिव-पार्वती जैसा अटूट प्रेम प्राप्त होता है।
✨ निष्कर्ष:
हरतालिका तीज केवल एक व्रत नहीं बल्कि भक्ति, प्रेम और त्याग का पवित्र प्रतीक है।
यह व्रत मन, वचन और कर्म से शिव-पार्वती के समर्पण का संदेश देता है।