🐄 परिचय (Introduction)
गौ सूक्तम् अथर्ववेद और ऋग्वेद का एक अत्यंत पवित्र सूक्त है, जिसमें गौमाता को सृष्टि की आदिशक्ति और अमृत की नाभि कहा गया है।
यह सूक्त वेदों में गौमाता के दैवी स्वरूप, गोपालन, गोसेवा, और गोरक्षा का महत्त्व स्पष्ट करता है।
इसका पाठ गोदान, गोपाष्टमी, और यज्ञ-हवन के समय अत्यंत फलदायी माना गया है।
🌿 गौ सूक्तं (Go Suktam) – मूल संस्कृत श्लोक एवं हिन्दी अर्थ सहित
🌸 मन्त्र १
माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यनाममृतस्य नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुशे जनाय मा गमनागमादितिं वधिष्ट।।
अर्थ:
गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन और अमृत का भण्डार है।
विवेकशील जनों को मैंने यह समझाया है कि निरपराध गौ का वध न करें।
🌸 मन्त्र २
आ गावो अगमन्नुत् भद्रमक्रान्तसीदन्तु गोष्ठे रण्यन्त्वस्मे।
प्रजावतीः पुरूरूपा इह सुरिन्द्राय पूर्वीरूषसो दुहानाः।।
अर्थ:
गायें हमारे पास आ गई हैं — वे मंगलदायिनी हैं।
वे गोष्ठ में बैठकर हमें सुख दें, और उत्तम संतानों से युक्त होकर
भगवान के यज्ञ हेतु उषा काल में दूध प्रदान करें।
🌸 मन्त्र ३
इन्द्रो यज्वने घृणते च शिक्षत् उपेद् ददाति न स्वं मुषायति।
भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्ने खिल्ये नि दधाति देव्यम्।।
अर्थ:
ईश्वर यज्ञकर्ता और सत्पथ-शिक्षक को ज्ञान देता है।
वह धन प्रदान करता है और अपने को छिपाता नहीं।
इससे धन की वृद्धि होती है और वह देवत्व प्राप्त करता है।
🌸 मन्त्र ४
न ता नशांति न दभाति नक्षत्रो नासामामित्रो व्यथिरा दध्रष्टि।
देवांशश्च याभिर्यजते ददाति च योगिताभिः सचते गोपीः सह।।
अर्थ:
यज्ञ में गायों का नाश नहीं होता, कोई शत्रु उन्हें दबा नहीं सकता।
वे देवताओं के यज्ञ में उपयोगी हैं, दान देती हैं,
और गोपालक के साथ दीर्घकाल तक रहती हैं।
🌸 मन्त्र ५
न ता अर्वा रेवाकाकातोऽश्नुते न संस्कृतिमुप यन्ति ता अभि।
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यज्वनः।।
अर्थ:
गायों तक कोई हिंसक या शत्रु नहीं पहुँच सकता।
वे भयमुक्त होकर यज्ञ करने वाले के चारों ओर विचरती हैं।
🌸 मन्त्र ६
गावो भगो गाव इन्द्रो म इच्छाद्गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः।
इमा या गावः स जनस इन्द्र इच्छामि हृदय मनसा चिदिन्द्रम्।।
अर्थ:
गायें ही धन हैं, गायें ही इन्द्र का रूप हैं, गायें सोमरस की प्रथम भोग्य वस्तु हैं।
हे इन्द्र! इन गायों में मैं तुम्हारी उपासना करता हूँ — हृदय से तुम्हें चाहता हूँ।
🌸 मन्त्र ७
युयं गावो मेदयथा कृष्णं चिदश्रीं चित्कृणुथा सुप्रतीकम।
भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहदवो वै उच्यते सभासु।।
अर्थ:
हे गायो! तुम दुर्बल को पुष्ट करती हो, कुरूप को भी सुंदर बनाती हो,
घर को शुभ बनाती हो और मधुर वाणी प्रदान करती हो।
सभा में तुम्हारा नाम महान कहा जाता है।
🌸 मन्त्र ८
प्रजावतीः सुयवसे रूशन्तिः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तिः।
मा वा स्तेन ईषत् माघंसः परि वो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु।।
अर्थ:
हे गायो! तुम सन्तान-समृद्ध हो, हरित घास चरने वाली,
पवित्र जल पीने वाली और तेजस्विनी हो।
तुम पर कोई चोर या दुष्ट अधिकार न करे — रुद्र की कृपा से तुम सदैव सुरक्षित रहो।
🌼 गौ सूक्तं – अथर्ववेद के अंश
यह सूक्त अथर्ववेद का वह भाग है जिसमें ब्रह्माण्ड की रचना का वर्णन गौ के रूप में किया गया है।
गौ को सृष्टि का आधार, अमृत की नाभि और धर्म का प्रतीक बताया गया है।
इसका पाठ विशेष रूप से गोदान और पवित्र अवसरों पर शुभ माना गया है।
📖 सारांश
- गौमाता सृष्टि की आधारशक्ति हैं।
- गोवर्ग का कल्याण समस्त विश्व की समृद्धि का कारण है।
- गायों के प्रति दया, संरक्षण और सेवा — मनुष्य के कर्मफल को शुद्ध करती है।


