Harivallabha Lakshmi Stotram

श्री श्रीहरिवल्लभा लक्ष्मीस्तोत्रम् (हिन्दी अर्थ सहित) | Shri Shri Harivallabha Lakshmi Stotram (with Hindi Meaning)


🕉️ भूमिका (Introduction) श्रीहरिवल्लभा लक्ष्मीस्तोत्रम्

श्रीहरिवल्लभा लक्ष्मीस्तोत्रम्: माँ लक्ष्मी — धन, ऐश्वर्य, सौभाग्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं।
शास्त्रों में उन्हें “हरिवल्लभा” कहा गया है — अर्थात् भगवान विष्णु की परम प्रिय पत्नी।

“श्री श्रीहरिवल्लभा लक्ष्मीस्तोत्रम्” एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है जो माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों की संयुक्त आराधना का प्रतीक है।
यह स्तोत्र न केवल भौतिक सुख-संपदा देता है, बल्कि आध्यात्मिक प्रगति और मानसिक शांति भी प्रदान करता है।

स्तोत्र पाठ

(हिन्दीअर्थ सहित)

🍁ध्यानम्
शान्तां पद्मासनस्थां शशिधवलमुखीं चारुभाषिणीमम्बां
चञ्चच्चारूपदेशां सुरनुतचरणां चिन्मयीं चिन्तयामः।
मुक्ताहारालङ्कृतां च सकलविलसितामिन्द्रनीलप्रभाभां
विष्णुप्राणप्रिया श्रीं हरिवल्लभतया भावये सर्वकाम्याम्॥

भावार्थ:
हम उस श्री हरिवल्लभा देवी का ध्यान करते हैं —
जो पूर्ण शांति की मूर्ति हैं, कमलासन पर विराजमान हैं,
जिनका मुख चंद्रमा के समान उज्जवल है, और जिनकी वाणी मधुर है।जो सतत मधुर उपदेशों द्वारा संसार का कल्याण करती हैं,जिनके चरणों की स्तुति देवगण भी करते हैं,
जो पूर्ण चेतना से परिपूर्ण हैं और ध्यान में ध्येय रूप हैं।
जिन्होंने मुक्ताओं से जड़े दिव्य हार पहने हैं,
जिनके सारे अंग लीलाओं से शोभायमान हैं,
जिनकी कान्ति इन्द्रनीलमणि (नीलम) के समान दिव्य है।
वह विष्णु की प्राणप्रिया — हरिवल्लभा —
सर्व कामनाओं की पूर्ति करनेवाली लक्ष्मी हैं।
उनका मैं हृदय में स्मरण करता हूँ।

🍁१
जयतु जयतु लक्ष्मीः कमलाकरवासिनी।
हरिपदप्रिया शुद्धा भक्तार्तिनिवारिणी॥

भावार्थ:
कमल के अधिष्ठान में स्थित, श्रीहरि की परम प्रिय, शुद्धस्वरूपा और भक्तों की पीड़ा का निवारण करनेवाली लक्ष्मीजी की जय हो, जय हो!

🍁२
विष्णुपत्नि महादेवि, श्रीर्वैष्णवी परात्परा।
सदा सान्निध्यमार्गाय, त्वां वन्दे भक्तवत्सले॥

भावार्थ:
हे विष्णु की पत्नी, हे परात्परा महादेवी! हे वैष्णवी! आप सदा भक्तों के समीप विराजें—ऐसी प्रार्थना करता हूँ। आपको सादर नमस्कार।

🍁३
श्रीं ह्रीं क्लीं कमलालये, सर्वसंपत्प्रदायिनि।
दीनबन्धो नमस्तुभ्यं, जगन्मातः नमो नमः॥

भावार्थ:
हे श्रीं ह्रीं क्लीं स्वरूपा, कमलालय! आप सब प्रकार की संपत्ति देनेवाली हैं। दीनों की बन्धु, जगन्माता को बारम्बार नमस्कार है।

🍁४
भक्तिप्रिये भक्तलक्ष्मी, भक्तानामभयप्रदे।
त्वं भक्तिनाथस्य नाथा, नमस्ते कमलेश्वरी॥

भावार्थ:
हे भक्तों की प्रिय, हे भक्तलक्ष्मी! आप भक्तों को अभय देती हैं। आप भक्तनायक विष्णु की भी नायिका हैं। हे कमलेश्वरी! आपको नमस्कार।

🍁५
शुभप्रदायिनी देवि, दयार्द्रदृष्टिवेक्षिणि।
हरिप्रिये हरेः शक्ते, भवदया ममास्तु नः॥

भावार्थ:
हे शुभदायिनी देवी, हे दयामयी दृष्टि से देखनेवाली! हे हरिप्रिये! हे श्रीहरि की शक्ति! आप कृपा करें, हम पर अपनी दया बरसाएँ।

🍁६
मङ्गलं मङ्गलानां त्वं, देवी सर्वार्थसिद्धिदा।
द्वैता-द्वैतविहीना त्वं, परब्रह्मस्वरूपिणी॥

भावार्थ:
आप समस्त मङ्गलमयों में श्रेष्ठ मङ्गल हैं। आप सभी प्रकार की सिद्धियों की दात्री हैं। आप द्वैत-अद्वैत से परे परब्रह्मस्वरूपिणी हैं।

🍁७
मातस्त्वं जननी लक्ष्मीः, सृष्टिस्थितिलयेश्वरी।
त्रिविधदुःखहारिण्यै, नमस्ते ज्ञानरूपिणि॥

भावार्थ:
हे माता लक्ष्मी! आप सम्पूर्ण सृष्टि, स्थिति और संहार की अधीश्वरी हैं। आप त्रिविध दुःखों की नाशकारिणी और ज्ञानस्वरूपा हैं। आपको नमस्कार।

🍁८
श्वेतपद्मासना श्रीमन्, चन्द्रवदना सुभ्रुवा।
नवनीतस्मितं देवं, विलोक्य प्रीणयत्यहो॥

भावार्थ:
श्वेतकमल पर विराजमान, चन्द्रमुखी, सुंदर भृकुटिवाली देवी लक्ष्मी अपने नवनीत मुस्कान से श्रीहरि को भी हर्षित करती हैं—यह परम अद्भुत है।

🍁९
या देवी सर्वदेवानां, चेतसा च विवर्जिता।
सर्वेषां भावसंवेद्या, सा लक्ष्मीः पातु माम् सदा॥

भावार्थ:
जो देवी देवताओं के भी चित्त से परे हैं, किन्तु सबके भावों से सुलभ होती हैं—वही लक्ष्मी देवी मुझे सदा रक्षा प्रदान करें।

🍁१०
श्रीहरिवल्लभे त्वं हि, करुणामयि सर्वदा।
सर्वसिद्धिप्रदा देवि, त्वां नमाम्यच्युतप्रियाम्॥

भावार्थ:
हे श्रीहरिवल्लभे! आप करुणामयी हैं, सभी सिद्धियाँ देनेवाली देवी हैं। हे अच्युतप्रिये! आपको बारंबार नमस्कार है।

🍁११
आनन्दरूपिणी त्वं हि, नित्यशुद्धा सनातनी।
सर्वविद्या समुत्पन्ना, श्रीविद्या त्वं परात्परा॥

भावार्थ:
आप आनन्दस्वरूपा, नित्यशुद्धा और सनातनी हैं। समस्त विद्याओं से आप उद्भासित हैं। आप ही परात्परा श्रीविद्या हैं।

🍁१२
महामाया जगद्धात्री, विष्णुवक्षःस्थलालये।
प्रपन्नानां भयं हन्त्री, लक्ष्मि त्वं नः सुबुद्धिदा॥

भावार्थ:
आप ही महामाया हैं, जो समस्त जगत को धारण करती हैं। आप विष्णु के हृदय में निवास करती हैं। आप शरणागतों के भय को हरनेवाली और उत्तम बुद्धि प्रदान करनेवाली लक्ष्मी हैं।

🍁१३
चिन्मात्रा चितिसंवित्ता, विश्वोत्पत्तिप्रदायिनी।
योगिनां ध्येयमध्यस्था, योगमाया नमोऽस्तु ते॥

भावार्थ:
आप चैतन्यमात्रा, चेतना की संवित हैं, और विश्व की उत्पत्ति की कारण हैं। योगियों के ध्यान में जो विराजती हैं, उन योगमाया देवी को प्रणाम।

🍁१४
कान्तारूपा कलावत्यै, कल्याणी कुलवल्लभा।
सत्यस्वरूपिणी लक्ष्मीः, सर्वलोकैकमातृका॥

भावार्थ:
आप सौंदर्यमयी, कलाओं से युक्त, कल्याणदायिनी, श्रेष्ठ कुलों की अधिष्ठात्री हैं। आप ही सत्यस्वरूपा लक्ष्मी और समस्त लोकों की माता हैं।

🍁१५
शुद्धसत्त्वमयी देवी, निर्मलज्ञानरूपिणी।
हर्षिणी हर्षदा नित्यं, त्वमेव शरणं मम॥

भावार्थ:
आप शुद्ध सत्त्व से युक्त, निर्मल ज्ञान की मूर्ति हैं। आप आनंदस्वरूपा हैं और आनंद देनेवाली हैं। आप ही मेरी एकमात्र शरण हैं।

🍁१६
नित्यं निर्विकलां शुभ्रां, निर्विकारां निरंजनाम्।
नमो जगद्धात्र्यै त्वं हि, निष्कलायै नमो नमः॥

भावार्थ:
आप नित्य, विकार-रहित, शुभ्र, निर्विकार, निरंजन और निष्कल (अद्वैत) स्वरूपा हैं। आप ही समस्त जगत की धारिका हैं — आपको नमस्कार।

🍁१७
वेदमाता वराराध्या, वाच्यवाचकवर्जिता।
हरिप्रिये हरेः शक्ते, विद्ये त्वं मोक्षदायिनी॥

भावार्थ:
आप वेदों की जननी हैं, श्रेष्ठ आराध्या हैं, वाणी और अर्थ दोनों से परे हैं। आप हरिप्रिया हैं, हरि की शक्ति हैं, और परमविद्या के रूप में मोक्षदायिनी हैं।

🍁१९
कामधुक्कलशारूपा, कल्पवृक्षनिवासिनी।
दर्शनेनैव संपूर्णा, लक्ष्मीः सर्वार्थसाधिनी॥

भावार्थ:
आप कामधेनु के समान इच्छापूर्ति करनेवाली, कल्पवृक्ष की अधिष्ठात्री, और केवल दर्शन से पूर्णता देनेवाली लक्ष्मी हैं, जो सब इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।

🍁१९
चतुर्भुजा चन्द्रवदना, शङ्खचक्रगदाधरा।
श्रीवत्सवक्षसि रम्या, सर्वदु:खनिवारिणी॥

भावार्थ:
आप चतुर्भुजा हैं, चन्द्र के समान मुखवाली हैं, शंख-चक्र-गदा धारण करती हैं, और श्रीवत्सयुक्त वक्षस्थल पर रमणीयता से शोभती हैं। आप समस्त दुःखों की नाशकारिणी हैं।

🍁२०
श्रीहरिवल्लभे पूर्णे, नारायणप्रिये शुभे।
भवबन्धविनाशाय, त्वां नमाम्यच्युतप्रियाम्॥

भावार्थ:
हे श्रीहरिवल्लभे! आप पूर्णता की देवी, नारायण की प्रिय, और परम कल्याणमयी हैं। आप संसार-बन्धन को काटनेवाली हैं — आपको अच्युतप्रियामाता को मैं नमस्कार करता हूँ।

🍁२१
रत्नमञ्जीरकान्तिपादां, स्वर्णकुम्भस्तनीं तरुणीं।
अमृतवाणीविलासिनीं तां, वरलक्ष्मीं वन्दे हरिप्रियाम्॥

भावार्थ:
जिनके चरण रत्नमय पायल से दीप्त हैं, जिनकी वक्षःस्थल स्वर्ण कलशों के समान शोभते हैं, जो नवयुवती हैं, जिनकी वाणी अमृतमयी है—ऐसी वरलक्ष्मी, हरिप्रिया को मैं नमस्कार करता हूँ।

-🍁२२
कनकसिंहासनारूढां, कोटिसूर्यप्रभां शुभाम्।
हंसवाहिनीं सरस्वतीं च, लक्ष्मीं च वन्दे शुभप्रदाम्॥

भावार्थ:
जो स्वर्णसिंहासन पर आरूढ़ हैं, करोड़ों सूर्यों की प्रभा से दीप्त हैं, जो सरस्वती के रूप में हंसवाहिनी हैं—ऐसी शुभदायिनी लक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ।

🍁२३
वेदमातृमयीं कलारूपिणीं, मन्त्रगर्भां हृदि संस्थिताम्।
मायारूपां विश्वजननीं, नमामि तां श्रीमहेश्वरीम्॥

भावार्थ:
जो वेदों की माता हैं, कला की स्वरूपा हैं, मन्त्रों की जन्मस्थली हैं, हृदय में निवास करती हैं, मायारूपा हैं और समस्त जगत की जननी हैं—उन श्रीमहेश्वरी को मैं प्रणाम करता हूँ।

🍁२४
कमलदललोचनां रम्यां, कर्पूरगौरवपुष्टनीम्।
नवनीतस्निग्धगात्राङ्गीं, हरिप्रियां हृदि चिन्तयेत्॥

भावार्थ:
जिनकी आँखें कमलदल जैसी हैं, जो कर्पूर के समान उज्ज्वल वर्ण की हैं, नवनीत जैसे स्निग्ध अंगों वाली हैं—ऐसी हरिप्रिया लक्ष्मी का ध्यान हृदय में करना चाहिए।

🍁२५
मुक्ताहारलसद्कण्ठीं, मणिरत्नकवचान्विताम्।
वज्रकुण्डलसंशोभां, कमलां चिन्तये सदा॥

भावार्थ:
जिनके कण्ठ में मुक्तामाला सुशोभित है, जो मणियों से बने कवच से युक्त हैं, जिनके कानों में वज्र-कुण्डल हैं—ऐसी कमला देवी का सदा ध्यान करें।

🍁२६
दिव्याङ्गनासंनिधिसेवितां, दिव्यगन्धानुलेपनां शुभाम्।
दिव्यकान्तिविलासिनीं शुभां, दिव्यालंकारभूषिताम्॥

भावार्थ:
जो दिव्य देवियों से सेविता हैं, दिव्य गन्धों से अभ्यक्त हैं, दिव्य कांति से प्रकाशित हैं, और दिव्य आभूषणों से विभूषिता हैं—उन शुभमयी लक्ष्मी का ध्यान करें।

🍁२७
शान्त्यै कामाय मोक्षाय, त्वां नमामि जनार्दनीम्।
दुःखदारिद्र्यनाशाय, श्रीं ह्रीं क्लीं नमो नमः॥

भावार्थ:
हे जनार्दनी! शान्ति, कामना और मोक्ष की प्राप्ति हेतु मैं आपको नमस्कार करता हूँ। दुःख और दरिद्रता के नाश हेतु श्रीं ह्रीं क्लीं—इन बीजों सहित बारम्बार नमस्कार।

🍁२८
श्रीपतेः प्रियकामिनीं, श्रीहरिवल्लभां शिवाम्।
विष्णुपदस्नुषां वन्दे, पद्मिनीं पद्मभवस्तुताम्॥

भावार्थ:
श्रीहरि की प्रिय कामिनी, शिवस्वरूपा हरिवल्लभा, भगवान विष्णु की पटरानी, पद्मिनी, और ब्रह्मा द्वारा स्तुत देवी को मैं वन्दन करता हूँ।

🍁२९
श्रीयुक्तमणिदीपिकां, सुधाशीतलचन्दिकाम्।
अनन्तसौन्दर्यमयीं, चिन्तयामि हरिप्रियाम्॥

भावार्थ:
जो श्रीयुक्त दीपमालिका हैं, अमृत-शीतलता से युक्त हैं, और अनन्त सौन्दर्य की साक्षात मूर्ति हैं—ऐसी हरिप्रिया देवी का मैं ध्यान करता हूँ।

🍁३०
श्रीहरेः करुणारूपां, भक्तानां कल्पवल्लरीम्।
महादेव्याः शक्तिरूपां, श्रीं ह्रीं क्लीं नमोऽस्तु ते॥

भावार्थ:
जो श्रीहरि की करुणा की मूर्ति हैं, भक्तों के लिए कल्पवृक्ष रूपा हैं, और महादेवी की शक्ति हैं—ऐसी देवी को श्रीं ह्रीं क्लीं मन्त्र सहित नमस्कार।

-🍁३१
गौरवर्णां च सौम्यां, दयार्द्रदृष्टिपातिनीम्।
शरणागतवत्सलां नित्यं, नमामि शुभदां शिवाम्॥

भावार्थ:
गौरवर्ण, सौम्यभाववाली, दया से भरी दृष्टि रखनेवाली, शरणागतों पर कृपा करनेवाली, नित्य शुभदायिनी देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।

🍁३२
हरिप्रेमभरितां देवीं, हरिनामपरायणाम्।
नारायणप्रणयिनीं शुभां, नारायणीं नमाम्यहम्॥

भावार्थ:
जो हरि-प्रेम से परिपूर्ण हैं, हरिनाम का जप करती हैं, नारायण की प्रियतमा हैं—ऐसी शुभ नारायणी देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।

🍁३३
भुक्तिमुक्तिप्रदायिनीं, त्रैलोक्यजननीं शुभाम्।
सकलशक्तिस्वरूपिणीं, लक्ष्मीं च वन्दे हरिप्रियाम्॥

भावार्थ:
जो भुक्ति (सांसारिक सुख) और मुक्ति दोनों देनेवाली हैं, तीनों लोकों की जननी हैं, सम्पूर्ण शक्तियों की स्वरूपा हैं—ऐसी हरिप्रिया लक्ष्मी को वन्दन करता हूँ।

🍁🍁
विनायकप्रियामनघां, विष्णुपत्नीं महेश्वरीम्।
त्रिगुणात्मिकां च वरदां, नमोस्तु नित्यं नमो नमः॥

भावार्थ:
जो विनायक को प्रिय हैं, पापरहित हैं, विष्णुपत्नी, महेश्वरी, त्रिगुणात्मिका और वरदायिनी हैं—उन्हें बारम्बार नमस्कार।

🍁३५
भवभयहरां जगदम्बिकां, वरशुभदां हरिवल्लभाम्।
शरणागतपालिनीं शिवां, श्रीमहालक्ष्मीं नमोऽस्तु ते॥

भावार्थ:
जो भवभय का हरण करती हैं, जगत की माता हैं, वर और शुभफल देनेवाली हैं, हरिप्रिया हैं, शरणागतों की रक्षक हैं—ऐसी श्रीमहालक्ष्मी को नमस्कार।

🍁३७
हरिपदकमलसेवां, कामरूपां दयानिधिम्।
वन्दे तां श्रीहरिवल्लभां, सिद्धिदात्रीं महेश्वरीम्॥

भावार्थ:
जो हरि के चरणों की सेवा में तत्पर हैं, कामनाओं को रूप देनेवाली हैं, दया की खान हैं—उन सिद्धिदात्री महेश्वरी श्रीहरिवल्लभा को मैं वन्दन करता हूँ।

🍁३८
रत्नगर्भा महीमाता, समुद्रतनया शुभा।
कनकधारा वृष्टिः सा, सुवर्णस्रवणाकरा॥

भावार्थ:
आप रत्नों को उत्पन्न करनेवाली पृथ्वीमाता हैं, समुद्र की पुत्री और शुभरूपा हैं। आपकी कृपा से कनकधारा की वर्षा होती है और सोने की धाराएँ बहती हैं।

-🍁३९
अन्नपूर्णा शिवा साक्षात्, विश्ववन्द्या विशालया।
दक्षिणा यज्ञदेवी च, वैदिकी धर्मसंस्थितिः॥

भावार्थ:
आप स्वयं अन्नपूर्णा देवी हैं, कल्याणकारी शिवा, सम्पूर्ण विश द्वारा पूजित और विशाल स्वरूपा हैं। यज्ञ की देवी दक्षिणा रूप में आप वैदिक धर्म की आधार हैं।

🍁४०
तारा भाग्यवती लक्ष्मीः, कीर्तिकान्ता सुमंगला।
नित्यशुभा सदा पूज्या, सर्वसिद्धिप्रदायिनी॥

भावार्थ:
आप तारकिणी (रक्षक) हैं, भाग्य प्रदान करनेवाली लक्ष्मी हैं, कीर्ति की कान्ता, परम मंगलमयी, सदा शुभ और पूज्य हैं, जो सब सिद्धियाँ प्रदान करती हैं।

🍁४१
धनधान्यप्रदा देवी, पुष्टिदा पोषणेश्वरी।
सर्वैश्वर्यप्रदा नित्यं, हरिप्राणाधिदेवता॥

भावार्थ:
आप धन-धान्य देनेवाली देवी हैं, पुष्टि प्रदान करनेवाली और पालनकर्त्री हैं। आप नित्य ही समस्त ऐश्वर्य प्रदान करती हैं और श्रीहरि की प्राणस्वरूपा देवी हैं।

🍁४२
दुर्गालक्ष्मीः क्षमामाता, शुभदा शरणागता।
दीनवत्सला करुणा, दु:खद्राविण्यनुत्तमा॥

भावार्थ:
आप दुर्गा लक्ष्मी हैं, क्षमा की माता हैं, शुभ देनेवाली हैं, शरणागतों की रक्षा करती हैं। आप दीनों पर स्नेह रखनेवाली, करुणामयी और दु:ख हरने में अतुल्य हैं।

🍁४३
सिंहमुखी महासंस्था, चण्डिका चामुणेश्वरी।
वाराही महाशक्तिः, महाविद्याप्रकाशिनी॥

भावार्थ:
आप सिंहमुखी देवी हैं, महान प्रतिष्ठा की धारी हैं, चण्डिका और चामुणा की अधिष्ठात्री हैं। आप वाराही और महाशक्ति हैं, तथा महाविद्याओं की प्रकटीकरण करनेवाली हैं।

🍁४४
श्रीविद्या श्रीनिवासा च, कामकला स्वरूपिणी।
कुबेरपत्नी धनदा, सौंदर्या लावण्यशालिनी॥

भावार्थ:
आप श्रीविद्या हैं, श्रीनिवास की शक्ति हैं, कामकला की स्वरूपिणी हैं। आप कुबेर की पत्नी धनदा हैं, सौंदर्य और लावण्य से परिपूर्ण हैं।

🍁४५
मंगलायै नमस्तुभ्यं, कल्याणायै नमो नमः।
विभूत्यै परमेशान्यै, श्रीलक्ष्म्यै ते नमो नमः॥

भावार्थ:
आपको बारम्बार नमस्कार है—जो मंगलस्वरूपा हैं, कल्याणकारिणी हैं, दिव्य विभूतियों से युक्त परमेश्वरी हैं, और महालक्ष्मी रूप में पूज्य हैं।

🍁४६
नित्यक्लिष्टहरा देवी, नित्यानन्दा परात्परा।
भवबन्धविनाशायै, नमः श्रीपद्मवासिन्यै॥

भावार्थ:
आप नित्य ही क्लेशों को हरनेवाली, आनन्दस्वरूपा और परम तत्त्व हैं। भवबंधन के नाश हेतु जो पद्म पर विराजमान हैं, उन्हें नमन है।

🍁४७
पद्मगर्भा पद्महस्ता, पद्माक्षी पद्ममालिनी।
पद्मनाभस्य कल्याणी, श्रीहरिप्रेमलालसा॥

भावार्थ:
आप कमल के गर्भ से उत्पन्न, कमल हाथों में धारण करनेवाली, कमल के समान नेत्रोंवाली, कमलों की माला धारण करनेवाली हैं। आप पद्मनाभ श्रीहरि की प्रियतम हैं।

🍁४८
सर्वाभीष्टप्रदा लक्ष्मीः, सौभाग्याद्यै नमो नमः।
मायामयी च विश्वेशी, भवसन्तारकारिणी॥

मैं उन महालक्ष्मी को बारम्बार प्रणाम करता हूँ —
जो सभी प्रकार की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं,
और भवसागर (संसार के जन्म-मरण रूपी चक्र) से हमें पार लगाने वाली परमकारुण्या देवी हैं।

🍁४९
विजयार्चिता वैजयन्तिलता, त्रिदशेश्वरसेव्यपदांबिका।
नवकोटिमयूखमालिनीं, प्रणमामि लक्ष्मीं हरिप्रिया॥

भावार्थ:
मैं उन लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ जो विजय की अधिष्ठात्री हैं, वैजयन्ति लता स्वरूपा हैं, देवताओं द्वारा पूजित हैं, नवकोटि किरणों की माला से सुशोभित हैं, और श्रीहरि को अत्यंत प्रिय हैं।

🍁५०
गगनारविन्दनिवासिनीं, कमलासनां शुभकान्तिमयीम्।
सकलार्तिनिवारिणीं शिवां, प्रणमामि मां लोकजननीम्॥

भावार्थ:
जो आकाश में कमलों पर निवास करती हैं, शुभता और सौंदर्य से युक्त हैं, समस्त दुःखों का निवारण करनेवाली हैं, कल्याणमयी हैं—ऐसी लोकमाता लक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ।

🍁५१
चरणामृतपूर्णकल्पलतां, वसुधाधिपसंवरणप्रदाम्।
मणिपद्मकिरण्महामणिं, त्रिजगत्सु भक्त्याऽवभासिनीम्॥

भावार्थ:
जिनके चरणामृत से कल्पवृक्ष फलते हैं, जो समस्त भूमि के स्वामित्व का वर देती हैं, जो मणियों से निर्मित कमल सदृश उज्ज्वल हैं, और तीनों लोकों में भक्ति से प्रकाशित होती हैं—उन देवी को वंदन है।

🍁५२
हरिणीं हरदृश्यमानकृपां, कमनीयवाणीविलासिनीम्।
रुचिराङ्गवलिप्रसन्नतां, हृदि भावयामि महेश्वरीम्॥

भावार्थ:
जो हरिणी-सी चपल हैं, जिनकी कृपा हरि भी आकांक्षित करते हैं, जिनकी वाणी मनोहारी है, जिनके अंग सौंदर्य से दीप्त हैं—ऐसी महेश्वरी लक्ष्मी को मैं हृदय में धारण करता हूँ।

🍁५३
अमलार्चना सुवर्णाङ्गदां, रसनामृतपानलासिनीम्।
नवमङ्गलमाल्यभूषितां, रमणीं रमां रञ्जनीं भजे॥

भावार्थ:
जो निर्मल पूजा से संतुष्ट होती हैं, जिनकी कलाईयों में सुवर्ण कंगन हैं, अमृत रसपान में तृप्त होती हैं, नवीन मंगलमयी मालाओं से विभूषित हैं—ऐसी रमणी रमालक्ष्मी को मैं भजता हूँ।

🍁५४
वरदानकरां सुभगां शिवां, भवबन्धविमोचनकारिणीम्।
सकलार्थदायिनीं महतीं, जय लक्ष्मि भूयो नमोऽस्तु ते॥

भावार्थ:
जो वरदान प्रदान करनेवाली हैं, परम सुंदर और कल्याणमयी हैं, संसार बंधन से मुक्ति देनेवाली हैं, सभी अर्थों (कामनाओं) की पूर्तिकारिणी हैं—ऐसी महालक्ष्मी को फिर-फिर नमस्कार है।

🍁५५
मृदुहास्यमुखां त्रिनेत्रगतेः, परमानन्दरूपसुधामयीम्।
नवरत्नखचित्सुशोभना, परिपूर्णकामां नमाम्यहम्॥

भावार्थ:
जिनके मुख पर मधुर मुस्कान है, जो त्रिनेत्रधारी शिव में विलीन होती हैं, परमानंदमयी अमृतस्वरूपा हैं, नवरत्नों से शोभायमान हैं, और समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं—उन पार्वती रूपी लक्ष्मी को नमस्कार।

🍁५६
त्रिकालज्ञां त्रिदेवमनोहरां, भवभयविनाशनकारिणीम्।
सकलज्ञानविज्ञानरूपिणीं, चतुराननवन्दितपादुकाम्॥

भावार्थ:
जो भूत-भविष्य-वर्तमान को जाननेवाली हैं, त्रिदेवों को भी मोहित करनेवाली हैं, संसार के भय को नष्ट करती हैं, समस्त ज्ञान-विज्ञान की स्वरूपा हैं, और ब्रह्मा जी जिनकी पादुका वंदित करते हैं—उन लक्ष्मी को वंदन।

-🍁५७
जननीं जगतां समस्तगुणां, गुणवृन्दवन्द्यपदां सतीम्।
महतीं मम दैवतां सदा, प्रणमाम्यहमेकनिष्ठया॥

भावार्थ:
जो सम्पूर्ण गुणों की स्वामिनी हैं, जिनके गुणगान से देवगण भी वंदित होते हैं, जो सती स्वरूपा हैं—उनको मैं अखंड निष्ठा से नमन करता हूँ।

🍁५८
नवसिद्धिसमृद्धिकल्पतरुं, कमलायतलोचनसंधृतीम्।
मणिरत्ननिभां मनोहरिणीं, भवभञ्जनीं भक्तवत्सलाम्॥

भावार्थ:
जो नवसिद्धियों और समृद्धियों की कल्पवृक्ष हैं, जिनकी दृष्टि कमल के समान विशाल है, जो मणिरत्न की भांति दीप्त हैं, मोहिनी हैं, और भक्तों के सभी दुःख हरनेवाली हैं—उन लक्ष्मी को प्रणाम।

🍁५९
शरणागतवत्सलां शिवदां, हरिपादसेवाविलासिनीम्।
मणिदीपसुधोज्ज्वलां शुभदां, चरणार्चितचन्द्रचूडाम्बिकाम्॥

भावार्थ:
जो शरणागतों पर स्नेह करती हैं, शुभता प्रदान करती हैं, हरि के चरणों की सेवा से प्रसन्न होती हैं, मणियों के दीप की भांति उज्ज्वल हैं, और चन्द्रशेखर शिव द्वारा अर्चित हैं—ऐसी अम्बिका को प्रणाम।

🍁६०
कमलार्चितां करुणारसिकां, भुवनेश्वरीं भवभीतिहराम्।
नवसङ्कल्पदात्रीं शिवां, जनसौभाग्यवर्धिनीं वन्दे॥

भावार्थ:
जो कमलों से पूजित हैं, करुणा की रसिक हैं, भुवनों की अधिष्ठात्री हैं, संसार भय का नाश करती हैं, नवीन संकल्पों को पूर्ण करती हैं, और सौभाग्यवृद्धि की दात्री हैं—उन्हें मैं वंदन करता हूँ।

🍁६१
कनकाङ्गनहारभूषितां, रविकोटिसमानवर्चसीम्।
धरणीधरकान्तिसंचितां, नतमानससेवितपादुकाम्॥

भावार्थ:
जो सुवर्ण के आभूषणों से सुशोभित हैं, करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, पर्वतों की कान्ति से मंडित हैं, और नम्र हृदय से पूजित चरणोंवाली हैं—ऐसी लक्ष्मी को नमन।

🍁६२
गुणगानपरायणां परां, सकलामृतवर्षिणीं शुभदाम्।
नवयोगिन्यन्वितां विभुं, सहसा भवदायिनीं नमः॥

भावार्थ:
जो गुणगान में अनुरक्त हैं, परात्पर शक्ति हैं, अमृतमयी कृपा की वर्षा करनेवाली हैं, नवयोगिनियों के संग रहती हैं, और सहज ही भव-सुख प्रदान करती हैं—उन्हें नमस्कार।

🍁६३
भुवनत्रयचिन्त्यमञ्जुलां, ललनात्मिकां ललिताङ्गिनीम्।
निखिलेश्वरपूज्यपादुकां, वरदां वरलक्षणां नमः॥

भावार्थ:
जो तीनों लोकों द्वारा अविचिन्त्य रूप में हैं, कोमलता की मूर्तिमत्ता हैं, सौंदर्य से युक्त हैं, सभी देवताओं द्वारा पूजित चरणोंवाली हैं, वर देनेवाली हैं और श्रेष्ठ लक्ष्मी स्वरूपा हैं—उनको नमस्कार।

🍁६४
मणिकुण्डलमण्डितश्रवणां, नवमणिविचित्रवस्त्रवतीम्।
हरिचन्द्रनिकेतनाम्बिकां, वरदां च सतां प्रियां नमः॥

भावार्थ:
जो मणियों के कुंडल से श्रवण विभूषित करती हैं, नवमणियों से सुसज्ज वस्त्र धारण करती हैं, हरि-चन्द्र (विष्णु और चंद्रमा) के हृदय में निवास करती हैं, वर देनेवाली हैं और संतों को प्रिय हैं—उन अम्बिका को प्रणाम।

🍁६५
सुरमुनिविनम्रपादुकां, सकलागमवन्द्यसुन्दरीम्।
द्रविणेश्वरसेव्यमण्डलीं, कमलाक्षनुतां नमाम्यहम्॥

भावार्थ:
जिनकी चरणवंदना देवता और ऋषि करते हैं, जो समस्त शास्त्रों में वंदित सौंदर्यस्वरूपा हैं, द्रव्याधिपतियों (धनाध्यक्षों) द्वारा सेविता हैं, और कमलनयन भगवान विष्णु द्वारा पूजित हैं—उन लक्ष्मी को मैं नमन करता हूँ।

-🍁६६
विपुलायुधवल्लभां वरदां, शुभलक्षणसङ्गताङ्गिनीम्।
सकलार्थसिद्धिदायिनीं, मम जीवितमातृकामाश्रये॥

भावार्थ:
जो बल-शक्ति से संपन्न विष्णु की वल्लभा हैं, वरदायिनी हैं, शुभ लक्षणों से संयुक्त हैं, सभी कामनाओं को सिद्ध करती हैं—ऐसी जीवन-माता लक्ष्मी मेरी आश्रया हों।

-🍁६७_
नवनीतसमानहास्यवतीं, सुधसारस्वभावभाषिणीम्।
द्विजराजपूज्यपादुकां, कल्यदां सततं नमाम्यहम्॥

भावार्थ:
जिनका हास्य नवनीत के समान स्निग्ध है, जिनकी वाणी अमृत समान मधुर है, जो ब्राह्मणश्रेष्ठों द्वारा पूजित चरणवाली हैं, और जो सदा कल्याण प्रदान करती हैं—उन देवी को प्रणाम।

-🍁६८
जय लक्ष्मि जयमहेश्वरी, जगतां जननीं सदा नमाम्यहम्।
सकलार्थसिद्धिदात्रीं शुभां, त्रिभुवनपतिपादसेविताम्॥

भावार्थ:
हे जयवती लक्ष्मी! आप महेश्वरी भी हैं, तीनों लोकों की माता हैं, सभी कामनाओं को पूर्ण करनेवाली शुभदात्री हैं, त्रिभुवनपति (विष्णु) के चरणों की सेवा में लीन हैं—आपको नमन है।

🍁६९
प्रणवस्वररूपिणीं पराम्, नववर्णमयीं सरस्वतीम्।
मधुरास्वरकान्तिदायिनीं, गुणगानपरायणां नमः॥

भावार्थ:
जो प्रणव (ॐ) की स्वरूपा हैं, नववर्णमयी हैं, सरस्वतीरूपा हैं, मधुर स्वर से सौंदर्य प्रदान करती हैं, और गुणगान में तल्लीन रहती हैं—ऐसी लक्ष्मी को नमस्कार।

🍁७०
महिषासुरसंघविनाशिनीं, सुरवृन्दनुता सदा शुभाम्।
अखिलेश्वरसेव्यमण्डलीं, वरलक्ष्मि विभावरीं नमः॥

भावार्थ:
जो महिषासुर के संघ का विनाश करती हैं, सुरों द्वारा सदा पूजिता हैं, समस्त देवों द्वारा सेविता हैं, वरदायिनी लक्ष्मी हैं, और प्रभा स्वरूपा हैं—उन्हें वंदन।

-🍁७१
शरदाम्बुप्रभां सुमङ्गलां, नवयौवनरूपविभूतिमाम्।
धरणीतलसंप्रसिद्धिकां, शरणं भज लक्ष्मि! त्वामहम्॥

भावार्थ:
जो शरद ऋतु के अम्बु (जल) जैसी उज्ज्वल हैं, शुभता की मूर्ति हैं, नवयौवनवती दिव्य विभूति हैं, पृथ्वी पर प्रसिद्ध महाशक्ति हैं—ऐसी लक्ष्मी! मैं आपको शरण में लेता हूँ।

-🍁७२
सकलशास्त्रवेदविद्यदां, मुनिवृन्दहृदम्बुजनिवासिनीम्।
वरभद्रकपालवन्दितां, नवमातृरूपधारिणीम्॥

भावार्थ:
जो समस्त शास्त्रों और वेदों की ज्ञानदात्री हैं, मुनियों के हृदय-कमल में निवास करती हैं, भैरव, भद्र और कपालिनों द्वारा पूजिता हैं, और नवमातृरूपधारिणी हैं—उन देवी को नमस्कार।

🍁७३
प्रणतार्तिनिवारिणीं शिवदां, कमलाप्रियचारुविग्रहाम्।
नववर्णमयीं सुरेश्वरीं, वरदां मम पालय सदा॥

भावार्थ:
जो शरणागतों के दुःखों का निवारण करती हैं, कल्याणदात्री हैं, कमलप्रिय हैं, सुंदर विग्रहवाली हैं, नववर्णमयी हैं, देवेश्वरी हैं, वरदात्री हैं—हे माँ! सदैव मेरी रक्षा करो।

🍁७४
हरिचित्तनिवासिनीं हरिणीं, भुवनैकसुन्दरीं शिवाम्।
विविधावतिभूषणोज्ज्वलां, मम मानसमण्डले वस॥

भावार्थ:
जो श्रीहरि के हृदय में वास करती हैं, हरिणी समान कोमल हैं, तीनों लोकों की सबसे सुंदर दिव्या हैं, विविध अलंकारों से उज्ज्वल हैं—वे मेरे हृदय-मण्डल में सदा निवास करें।

🍁७५
श्रीहरिपादपङ्कजप्रियां, परमेश्वरवामभागस्थिताम्।
लक्ष्मीं ललितां कलावतीं, सततं प्रणमाम्यहं मुदम्॥

भावार्थ:
जो श्रीहरि के चरणकमलों की प्रिया हैं, जो परमेश्वर के वामभाग में स्थित हैं, लक्ष्मी रूपा, ललिता और कला में निपुण हैं—उन्हें मैं सदा आनंदपूर्वक नमस्कार करता हूँ।

🍁७६
शङ्खचक्रगदाहतेश्वरीं, भुवनैकमङ्गलप्रदाम्।
निखिलेषु च सौभग्यवर्धिनीं, जननीं जगतां नमाम्यहम्॥

भावार्थ:
जो शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान की अधिष्ठात्री हैं, समस्त लोकों के लिए मङ्गलप्रद हैं, सभी में सौभाग्य बढ़ानेवाली हैं—ऐसी जगजननी को मैं प्रणाम करता हूँ।

🍁७७
सत्यनारायणशक्तिरूपिणीं, जगतां जननीं जनार्दनीम्।
शुभदां शुभरूपधारिणीं, वरदां हरिवल्लभां भजे॥

भावार्थ:
जो भगवान सत्यनारायण की शक्ति स्वरूपा हैं, समस्त लोकों की माता एवं जनार्दन की शक्ति हैं, शुभ देनेवाली हैं, शुभरूपा हैं और वर देनेवाली हरिवल्लभा हैं—उन्हें मैं भजता हूँ।

🍁७८
हरिमोहविलासिनीं शुभां, मधुसूदनमानसमोदिनीम्।
शरणागतवत्सलां सदा, वरलक्ष्मिमुपास्महे मुदा॥

भावार्थ:
जो भगवान हरि की मोहिनी लीलाओं में विलासिनी हैं, मधुसूदन के मन को आनंदित करनेवाली हैं, शरणागतों पर सदा कृपालु हैं—ऐसी वरदायिनी लक्ष्मी की हम भक्ति करते हैं।

🍁७९
हरिवामकपोलसम्भवां, हरिवदनचन्द्रचुम्बिनीम्।
विलसन्त्यनवद्यमङ्गलां, मम लोचनपद्मयोरधिताम्॥

भावार्थ:
जो श्रीहरि के वाम कपोल से प्रकट हुई हैं, हरिवदन चन्द्रमा का चुम्बन करनेवाली हैं, अनवद्य मंगलस्वरूपा हैं—वे मेरे नेत्र-कमलों में सदैव स्थित रहें।

🍁८०
नरनारायणार्चितां सदा, त्रिविधेश्वरनन्दकारिणीम्।
मुनिमानसगम्यरूपिणीं, कमलालयमध्यगां नमः॥

भावार्थ:
जो नर-नारायण मुनियों द्वारा सदा पूजिता हैं, तीनों लोकों के अधिपतियों को आनंद देनेवाली हैं, जिनका स्वरूप मुनियों के ध्यान में ही आता है—ऐसी कमलालय देवी को नमन।

🍁८१
हरिचित्तसुधाकलाधरीं, परमात्मविलासिनीं शिवाम्।
कमलासनपुज्यपादुकां, मम मानसमन्दिरे स्थिताम्॥

भावार्थ:
जो श्रीहरि के हृदय की अमृतमयी कला हैं, परमात्मा की विलासिनी शक्ति हैं, ब्रह्मा द्वारा पूजित चरणोंवाली हैं—ऐसी शिवस्वरूपा देवी मेरे मन-मन्दिर में वास करें।

🍁८२
हरिविग्रहशोभिनीं शुभां, शरणागतपालिनीं शिवाम्।
मधुसूदनवाक्यसिद्धिदां, त्रिभुवन्यपि मोदिनीं नमः॥

भावार्थ:
जो श्रीहरि के स्वरूप को शोभित करती हैं, शरणागतों की रक्षिका हैं, मधुसूदन के वचन की सिद्धिदात्री हैं और तीनों लोकों को आनंदित करती हैं—उनको नमस्कार।

🍁८३
श्रीहरिस्मितलोचनावलोकिता, सकलार्थसमृद्धिदायिनी।
वरदामृतवर्षिणीं शुभां, सततं प्रणमाम्यहं भुवि॥

भावार्थ:
जिनकी दृष्टि श्रीहरि की मुस्कान से संयुक्त है, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करती हैं, वर देनेवाली हैं, अमृत बरसानेवाली हैं—ऐसी शुभमयी देवी को मैं बारंबार प्रणाम करता हूँ।

🍁८४
हरिलीलापराङ्मुखात्मनां, गुणहीनजनार्तिनाशिनीम्।
हरिनामपरायणप्रियां, मम जीवितशक्तिरूपिणीम्॥

भावार्थ:
जो हरि की लीलाओं से विमुख आत्माओं का कल्याण करती हैं, गुणहीनों के भी पापों का नाश करती हैं, हरिनाम जपनेवालों की प्रिया हैं—वे मेरे जीवन की शक्ति स्वरूपा हैं।

🍁८५
हरिगद्यमहोदधौ स्थितां, गरुडासनराजलालिताम्।
शरणागतसिद्धिकामिनीं, परमेश्वरि लक्ष्मि! नमोऽस्तु ते॥

भावार्थ:
जो श्रीहरि के गद्य (वचन) रूपी महासागर में स्थित हैं, गरुड़ासनधारी श्रीहरि द्वारा लालित हैं, शरणागतों को सिद्धि देनेवाली हैं—ऐसी परमेश्वरी लक्ष्मी को नमस्कार।

🍁८६
हरिचरितमञ्जरीस्मृतिं, मनसः सरसीरुहे स्थिताम्।
कृतिनां परिकल्प्यदायिनीं, जननीं जनवल्लभां भजे॥

भावार्थ:
जो हरिचरित्र की स्मृति के रूप में मन रूपी कमल में निवास करती हैं, पुण्यात्माओं को वर देनेवाली हैं, समस्त जनों की प्यारी जननी हैं—उन्हें मैं भजता हूँ।

🍁८७
जय लक्ष्मि! हरिवल्लभे सदा, वरदे मम मानसे वस।
करुणारसपात्रमेकतमा, जगदम्बिके! रक्ष मां सदा॥

भावार्थ:
हे लक्ष्मी! हे हरिवल्लभे! सदा जय हो, वर देनेवाली देवी! मेरे मन में सदा वास करें। आप करुणा के अमृतपात्र हैं, हे जगदम्बिके! सदा मेरी रक्षा कीजिए।

🍁८८
यं पठेत्समवेतचित्तया, हरिवल्लभया सह श्रद्धया।
स लभेच्च सदैव सुन्दरं, श्रियमनपगां हृदि स्थिराम्॥

भावार्थ:
जो साधक इस स्तोत्र का एकाग्र मन और श्रद्धा से पाठ करता है, वह श्रीहरिवल्लभा की कृपा से स्थिर और अविचल लक्ष्मी को सदा अपने हृदय में प्राप्त करता है।

🍁८९
विनिवर्त्य दारिद्रदुःखसम्भवं, सकलापदं हरिपाददर्शिनीम्।
लभते च विहाय संसारतां, सुखदां पदवीं परां परात्पराम्॥

भावार्थ:
यह स्तोत्र दरिद्रता, दुख और समस्त संकटों को हर लेता है। जो हरिपद की स्मृति में इसे पढ़ता है, उसे सांसारिक बंधनों से मुक्ति और परम सुख की प्राप्ति होती है।

💫 स्तोत्र के लाभ (Benefits of Harivallabha Lakshmi Stotram)

  1. 🌼 माँ लक्ष्मी की कृपा से धन, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
  2. 🪔 घर-परिवार में शांति, प्रेम और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
  3. 🌺 व्यापार या नौकरी में नए अवसर प्राप्त होते हैं।
  4. 🙏 मानसिक तनाव, भय और नकारात्मकता दूर होती है।
  5. 📿 नियमित पाठ से भगवान विष्णु और लक्ष्मी दोनों का आशीर्वाद मिलता है।

🌸 पाठ विधि (How to Recite This Stotram)

  • सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूर्व दिशा की ओर मुख करके माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाएँ।
  • “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” का 11 बार जप करें।
  • तत्पश्चात श्रद्धा भाव से यह स्तोत्र पढ़ें।
  • शुक्रवार, पूर्णिमा या दीपावली के दिन इसका विशेष फल मिलता है।

📜 निष्कर्ष (Conclusion)

“श्री श्रीहरिवल्लभा लक्ष्मीस्तोत्रम्” केवल एक स्तुति नहीं,
बल्कि माँ लक्ष्मी की करुणा, कृपा और शक्ति का अद्भुत अनुभव है।
जो व्यक्ति श्रद्धा से इसका पाठ करता है,
उसके जीवन में धन, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति के द्वार खुल जाते हैं।

🙏
जय माँ हरिवल्लभा लक्ष्मी। जय श्रीहरि विष्णु।

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