भीष्म पंचक व्रत का विशेष महत्त्व | Importance of Bhishma Panchak Vrat
पुराणों तथा हिंदू धर्म ग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक व्रत’ का विशेष महत्त्व बताया गया है।
यह व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से आरंभ होकर पूर्णिमा तक चलता है।
इसे “पंच भीखू व्रत” के नाम से भी जाना जाता है।
धर्म ग्रंथों में कार्तिक स्नान को अत्यंत पुण्यकारी कहा गया है, इसलिए कार्तिक स्नान करने वाले भक्त इस व्रत का पालन अवश्य करते हैं।
कहते हैं कि भीष्म पितामह ने स्वयं यह व्रत किया था, इसलिए यह व्रत उनके नाम से प्रसिद्ध हुआ — भीष्म पंचक व्रत।
🕉️ भीष्म पंचक की पौराणिक कथा | Bhishma Panchak Vrat Katha
ममहाभारत युद्ध के बाद जब पांण्डवों की जीत हो गयी तब श्री कृष्ण भगवान पांण्डवों को भीष्म पितामह के पास ले गये और उनसे अनुरोध किया कि आप पांण्डवों को अमृत स्वरूप ज्ञान प्रदान करें. भीष्म भी उन दिनों शर सैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे थे.
कृष्ण के अनुरोध पर परम वीर और परम ज्ञानी भीष्म ने कृष्ण सहित पाण्डवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया. भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पांच दिनों तक चलता रहा.
भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया तब श्री कृष्ण ने कहा कि आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गया है. इन पांच दिनों को भविष्य में भीष्म पंचक व्रत के नाम से जाना जाएगा. यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी होगा।
आपने कार्तिक महीने की एकादशी के दिन जल की याचना की है और अर्जुन ने पृथ्वी को बाण से वेधकर आपकी तृप्ति के लिए गंगाजल प्रस्तुत किया है। जिससे आपके तन, मन तथा प्राण सन्तुष्ट हो गये।
अत: आज से लेकर पूर्णिमा तक सब लोग आपको अर्घ्यदान से तृप्त करें तथा मुझको प्रसन्न करने वाले प्रतिवर्ष इस भीष्म पंचक व्रत का पालन करें। अत: प्रतिवर्ष भीष्म तर्पण करना चाहिए. यह सभी वर्णों के लिए श्रेयस्कर है।
भीष्मजी को अर्ध्य देने से पुत्रहीन को पुत्र प्राप्त होता है। जिसको स्वप्नदोष या ब्रह्मचर्य सम्बन्धी गन्दी आदतें या तकलीफें हैं, वह इन पांच दिनों में भीष्मजी को अर्ध्य देने से ब्रह्मचर्य में सुदृढ़ बनता है। हम सभी साधकों को इन पांच दिनों में भीष्मजी को अर्ध्य जरुर देना चाहिए और ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
💧 भीष्म तर्पण का विधान | Bhishma Tarpan Ritual
भीष्मजी ने एकादशी के दिन गंगाजल की याचना की थी, जिसे अर्जुन ने पृथ्वी को बाण से वेधकर प्राप्त कराया।
इसलिए इन पाँच दिनों में भीष्म तर्पण का विशेष महत्व है।
भीष्मजी को अर्घ्य देने से पुत्रहीन को पुत्र, ब्रह्मचर्य में दृढ़ता, और सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
हर साधक को इन पाँच दिनों में भीष्मजी को अर्घ्य देना चाहिए।
📖 पंच भीखू कथा | Panch Bhikshu Katha
पंच भीखू व्रत में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है। इस कथा के अनुसार एक नगर में एक साहूकार था। इस साहूकार की पुत्रवधु बहुत ही संस्कारी थी। वह कार्तिक माह में बहुत पूजा-पाठ किया करती थी।
कार्तिक माह में वह ब्रह्म मुहुर्त में ही गंगा में स्नान के लिए जाती थी। जिस नगर में वह रहती थी, उस नगर के राजा का बेटा भी गंगा स्नान के लिए जाता था। उसके अंदर बहुत अहंकार भरा था। वह कहता कि कोई भी व्यक्ति उससे पहले गंगा स्नान नहीं कर सकता है।
जब कार्तिक स्नान के पांच दिन रहते हैं, तब साहूकार की पुत्रवधु स्नान के लिए जाती है। वह जल्दबाजी में हार भूल जाती है और वह हार राजा के लड़के को मिलता है। हार देखकर वह उस स्त्री को पाना चाहता है।
इसके विषय में यह कहा गया है कि वह एक तोता रख लेता है ताकि वह उसे बता सके कि साहूकार की पुत्रवधु आई है, लेकिन साहूकार की पुत्रवधु भगवान से अपने पतिव्रता धर्म की रक्षा करने की प्रार्थना करती है।
भगवान उसकी रक्षा करते हैं। उनकी माया से रोज रात में साहूकार के बेटे को नींद आ जाती। वह सुबह सो कर उठता और तोते से पूछता है, तब वह कहता है कि वह स्नान करने आई थी। पांच दिन स्नान करने के बाद साहूकार की पुत्रवधु तोते से कहती है कि मैं पांच दिन तक स्नान कर चुकी हूं,
तुम अपने स्वामी से मेरा हार लौटाने को कह देना। राजा के पुत्र को समझ आ गया कि वह स्त्री कितनी श्रद्धालु है। कुछ समय बाद ही राजा के पुत्र को कोढ़ हो जाता है। राजा को जब कोढ़ होने का कारण पता चलता है, तब वह इसके निवारण का उपाय ब्राह्मणों से पूछता है।
ब्राह्मण कहते हैं कि यह साहूकार की पुत्रवधु को अपनी बहन बनाए और उसके नहाए हुए पानी से स्नान करे, तब यह ठीक हो सकता है। राजा की प्रार्थना को साहूकार की पुत्रवधु स्वीकार कर लेती है और राजा का पुत्र ठीक हो जाता है।
भीष्म पंचक व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु पश्चात उत्तम गति प्राप्त होती है। यह व्रत पूर्व संचित पाप कर्मों से मुक्ति प्रदान करने वाला और कल्याणकारी है। जो भी यह व्रत रखता है, उसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
🔱 भीष्म पंचक व्रत नियम और विधि | Bhishma Panchak Vrat Rules & Vidhi
पद्म पुराण में इस व्रत की विस्तृत विधि बताई गई है —
- चार द्वार वाला मंडप बनाएं और उसे गाय के गोबर से लीपें।
- मंडप के मध्य में वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें।
- वेदी पर तिल रखें और भगवान वासुदेव की पूजा करें।
- एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक घी का दीपक जलाएं।
- प्रतिदिन “ॐ नमो वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
- संध्या के समय संध्यावंदन और 108 मंत्र जाप करें।
- भूमि पर शयन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
🍃 भीष्म पंचक उपवास विधि | Bhishma Panchak Fasting Process
| तिथि | नियम / आहार |
|---|---|
| एकादशी | भगवान विष्णु की पूजा कर उपवास रखें |
| द्वादशी | गोमूत्र का सेवन (शुद्धिकरण हेतु) |
| त्रयोदशी | केवल दूध ग्रहण करें |
| चतुर्दशी | दही का सेवन करें |
| पूर्णिमा | स्नान, पूजा, ब्राह्मण भोजन और दान |
व्रत के दौरान केवल शाकाहारी भोजन या मुनियों से प्राप्त अन्न ही ग्रहण करें।
विधवा स्त्रियाँ इसे मोक्ष की कामना से कर सकती हैं।
🌺 तर्पण और अर्घ्य मंत्र | Bhishma Tarpan & Arghya Mantra
तर्पण मंत्र:
सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।
भीष्मायेतद् ददाम्यर्घ्यमाजन्म ब्रह्मचारिणे।।
अर्थ:
आजन्म ब्रह्मचारी, पवित्र गंगानन्दन महात्मा भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ।
अर्घ्य मंत्र:
वैयाघ्रपद गोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे।।
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च।
अर्घ्यं ददानि भीष्माय आजन्म ब्रह्मचारिणे।।
अर्थ:
वसुओं के अवतार, शांतनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ।
जो व्यक्ति यह व्रत करता है, उसे पुत्र प्राप्ति और महापातकों से मुक्ति मिलती है।
🌼 व्रत का समापन और दान | Bhishma Panchak Vrat Samapan
पूर्णिमा के दिन —
- ब्राह्मणों को भोजन कराएँ
- गाय और बछड़े सहित दान करें
- भगवान श्रीहरि की अखण्ड पूजा करें
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का 108 बार जाप करें
इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।


