Chhath Puja Ki Kahani

छठ पूजा (Chhath Puja): सूर्यदेव को अर्घ्य और छठी मैया की कृपा का महापर्व

छठ पूजा (Chhath Puja) भारत के सबसे प्राचीन और आस्था से परिपूर्ण लोक त्योहारों में से एक है। यह केवल एक पूजा नहीं, बल्कि शुद्धता, समर्पण और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का चार दिवसीय महापर्व है। यह पर्व सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया (देवी षष्ठी) को समर्पित है, जिन्हें संतान की रक्षा और दीर्घायु का आशीर्वाद देने वाली देवी माना जाता है।

इस लेख में, हम छठ पूजा के चार दिवसीय अनुष्ठानों, इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व,以及 छठी मैया के देवता स्वरूप की गहराई से जानकारी देंगे।

छठ पूजा क्या है? (Chhath Puja Introduction)

छठ पूजा मुख्य रूप से भगवान सूर्य और देवी षष्ठी (छठी मैया) की उपासना का पर्व है। यह हिंदू कैलेंडर के कार्तिक माह (और चैत्र माह में चैती छठ के रूप में) में मनाया जाता है। यह त्योहार दीपावली के ठीक छह दिन बाद शुरू होता है और चार दिनों तक चलता है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में इसे बेहद श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

छठ पूजा के 4 दिवसीय अनुष्ठान (Chhath Puja 4 Days Rituals)

यह पर्व अपनी कठोर और नियमबद्ध विधियों के लिए जाना जाता है। इसकी प्रक्रिया चार दिनों में पूरी होती है:

  1. नहाय-खाय (पहला दिन): इस दिन व्रती स्नान करके शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं। घर की सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है और कद्दू-दाल (लौकी की सब्जी) का सेवन किया जाता है।
  2. खरना (दूसरा दिन): यह दिन बेहद कठोर उपवास का होता है। व्रती दिन भर निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद पूरे घर में बांटा जाता है।
  3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): यह छठ पूजा का मुख्य दिन होता है। पूरा दिन प्रसाद तैयार करने और पूजा की तैयारियों में बीतता है। शाम के समय, व्रती और उनके परिवार के सदस्य नदी या तालाब के किनारे एकत्रित होते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। ‘छठी मैया’ की पूजा की जाती है और प्रसाद चढ़ाया जाता है।
  4. सुबह का अर्घ्य (चौथा दिन): अंतिम दिन, सुबह के समय व्रती फिर से घाट पर पहुंचते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रत का पारण (उपवास तोड़ना) किया जाता है और प्रसाद सभी में वितरित किया जाता है।

🕉️ आध्यात्मिक अर्थ — सूर्योपासना और प्रकृति के प्रति आभार

छठ पूजा का सबसे गहरा संदेश है —
“सूर्य बिना जीवन असंभव है”
इसलिए व्रती सूर्यदेव को नमन करते हुए, जीवन, ऊर्जा और परिवार के सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। यह पर्व प्रकृति, जल, वायु और प्रकाश के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम भी है।

छठी मैया की कहानी: संतान की रक्षा की दिव्य गाथा (The Story of Chhathi Maiya)

छठी मैया, जिन्हें देवी षष्ठी के नाम से जाना जाता है, उनकी उत्पत्ति और महिमा से जुड़ी कई पौराणिक एवं लोक कथाएँ प्रचलित हैं। यहाँ उनकी मुख्य कहानियाँ बताई जा रही हैं:

कहानी 1: भगवान सूर्य की बहन और प्रिय पूज्य

सबसे प्रसिद्ध लोक कथा के अनुसार, छठी मैया भगवान सूर्य की बहन हैं। कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में जब भगवान सूर्य ने अपने तेज से स्वयं को प्रकट किया, तब उन्हीं के तेज का एक अंश ‘छठी’ के रूप में प्रकट हुआ, जो स्नेह और पालन की शक्ति का प्रतीक बनीं।

कथा: एक बार सूर्य देव ने मानव रूप धारण करके पृथ्वी पर भ्रमण किया। उन्होंने देखा कि एक महिला अत्यंत दुखी है। उसके सभी नवजात शिशु की मृत्यु हो जा रही थी। सूर्य देव ने उसे अपनी बहन ‘छठी’ की पूजा करने का आदेश दिया। महिला ने विधि-विधान से छठी मैया की पूजा की और व्रत रखा। छठी मैया प्रसन्न हुईं और उसे एक स्वस्थ संतान का आशीर्वाद दिया, साथ ही यह वरदान दिया कि जो भी माता उनकी पूजा श्रद्धा से करेगी, उसके संतान की रक्षा होगी और घर में सुख-समृद्धि आएगी। इसके बाद से ही छठ पूजा का प्रचलन हुआ।

कहानी 2: भगवान कार्तिकेय की पालनहार (The Story of Lord Kartikeya)

एक प्रमुख पौराणिक कथा देवी षष्ठी का संबंध भगवान कार्तिकेय से जोड़ती है।

कथा: जब भगवान कार्तिकेय (जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है) का जन्म हुआ, तो उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी छह कृत्तिकाओं (आकाश की छह तारामंडल देवियों) को दी गई। ये छहों कृत्तिकाएँ देवी पार्वती की ही शक्तियों के स्वरूप थीं। इन्होंने मिलकर स्कंद का लालन-पालन किया। इसीलिए, इन छह कृत्तिकाओं के सम्मिलित रूप को ही ‘षष्ठी देवी’ या ‘छठी मैया’ कहा जाने लगा। वे बच्चों की पालनहार और रक्षिका देवी के रूप में पूजी जाने लगीं।

कहानी 3: द्रौपदी और पांडवों की कथा (The Story of Draupadi and Pandavas)

महाभारत काल में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है।

कथा: ऐसी मान्यता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने संकट से उबारने के लिए छठी मैया का व्रत रखा था। द्रौपदी ने सूर्य देव और छठी मैया की आराधना की थी, जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उनकी मनोकामना पूरी की और पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलवाने में मदद की। इससे छठ पूजा का महत्व और बढ़ गया।

कहानी 4: राजा प्रियंवद और रानी मालिनी की कथा (The Story of King Priyavrat and Queen Malini)

यह कथा सबसे अधिक प्रचलित और मान्य कथाओं में से एक है।

कथा: राजा प्रियंवद और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ से प्रसन्न होकर देवी षष्ठी प्रकट हुईं और उन्हें एक पुत्र का आशीर्वाद दिया। समय आने पर रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह शिशु मृत पैदा हुआ। इससे राजा-रानी अत्यंत दुखी हुए।

राजा प्रियंवद ने दुख में आत्महत्या का विचार किया और अपने रथ पर सवार होकर चले गए। रास्ते में उनकी भेंट देवी षष्ठी से हुई, जो एक सुंदर बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं। देवी ने उनसे कहा, “हे राजन! मैं षष्ठी देवी हूँ, जो समस्त संसार के बच्चों की रक्षा करती हूँ। तुम मेरी पूजा करो और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करो। मैं तुम्हारे मृत पुत्र को जीवनदान दूंगी।”

राजा ने विधि-विधान से देवी षष्ठी की पूजा की। छठी मैया के प्रसाद से उनके मृत पुत्र में जीवन का संचार हुआ। राजा ने खुशी-खुशी अपने राज्य में छठ पूजा का आयोजन करवाया और इस तरह से यह पर्व और प्रसिद्ध हुआ।

छठ पूजा का महत्व और प्रसार (Significance and Spread of Chhath Puja)

  • संतान की मंगल कामना: यह पर्व मुख्यतः संतान की सुख-समृद्धि और लंबी उम्र की कामना से जुड़ा है।
  • प्रकृति का पूजन: इसमें जल (नदी/तालाब) और सूर्य दोनों को अर्घ्य देकर प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है।
  • सामाजिक समरसता: यह पर्व जाति-धर्म के भेदभाव से परे है और इसे पुरुष व महिलाएं दोनों समान रूप से मनाते हैं।
  • वैश्विक पहचान: आज के समय में, बिहार, यूपी, झारखंड और नेपाल के अलावा, दुनिया के कोने-कोने में बसे प्रवासी भारतीय भी इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।

निष्कर्ष :

छठ पूजा (Chhath Puja in Indiaआस्था, सादगी और प्रकृति प्रेम का अनूठा संगम है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि निष्ठा और समर्पण के साथ किया गया हर कार्य ईश्वरीय कृपा प्राप्त करता है। छठी मैया का ममतामय स्वरूप और सूर्य देव का जीवनदायी तेज, दोनों ही इस पर्व के माध्यम से भक्तों को अनंत ऊर्जा और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

इन सभी कथाओं का सार एक ही है – देवी षष्ठी यानी छठी मैया, संतान की परम रक्षिका, पोषण करने वाली और मंगलकारी शक्ति हैं। चाहे वह सूर्य देव की बहन के रूप में हों, कार्तिकेय की पालनहार के रूप में हों, या फिर एक सामान्य माँ की मनोकामना पूरी करने वाली देवी के रूप में हों – उनका मूल स्वरूप ममता, प्रेम और सुरक्षा का है। यही कारण है कि आज भी करोड़ों लोग अटूट श्रद्धा के साथ इस महापर्व को मनाते हैं और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

सभी को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं! जय छठी मैया!

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