द्वादश ज्योतिर्लिंग

  द्वादश ज्योतिर्लिंग: स्थान, महत्व और कथाएँ | 12 Jyotirlinga in India

द्वादश ज्योतिर्लिंग: भोले बाबा के 12 दिव्य प्रकाश स्तंभ

द्वादश ज्योतिर्लिंग इतिहास और महत्व: हिंदू धर्म में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने ‘द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र‘ की रचना कर इनकी महिमा का वर्णन किया है।

आइए, जानते हैं इन बारह ज्योतिर्लिंगों के बारे में विस्तार से, उनकी पौराणिक कथाएँ, वर्तमान स्थान और शंकराचार्य जी द्वारा रचित श्लोक।

1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: प्रभास पाटन, सौराष्ट्र (गुजरात)
  • श्लोक:
    • “सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
      भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥”
  • अर्थ: जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिए अत्यंत रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश में दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं और चंद्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है, उन ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूं।
  •  पूर्ण कथा: प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया। चंद्रमा रोहिणी नामक पत्नी को विशेष प्रिय मानते थे, जबकि अन्य छब्बीस कन्याओं की उपेक्षा करते थे। अन्य कन्याओं ने जब यह बात अपने पिता दक्ष को बताई, तो क्रोधित दक्ष ने चंद्रमा को “क्षय रोग” से ग्रस्त होने का शाप दे दिया।
  • धीरे-धीरे चंद्रमा क्षीण होने लगे। इससे संपूर्ण सृष्टि में हाहाकार मच गया। सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रभास क्षेत्र में जाकर भगवान शिव की आराधना करने का सुझाव दिया। चंद्रमा ने प्रभास क्षेत्र में पहुँचकर शिवलिंग की स्थापना की और छह महीने तक कठोर तपस्या की।
  • भगवान शंकर प्रसन्न हुए और चंद्रमा को वरदान दिया कि “कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी और शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन बढ़ेगी।” चंद्रमा ने प्रार्थना की कि हे प्रभु! आप गिरिजा सहित इस स्थान पर सदैव निवास करें। इस प्रकार भगवान शिव सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में इस स्थान पर स्थापित हुए।

2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: श्रीशैल पर्वत, कृष्णा जिला (आंध्र प्रदेश)
  • श्लोक:
    • “श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
      तमर्जुनं मल्लिक पूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥”
  • अर्थ: जो ऊंचाई के आदर्श भूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊंचे श्रीशैल के शिखर पर, जहां देवताओं का अत्यंत समागम होता है, प्रसन्नता पूर्वक निवास करते हैं और जो संसार सागर से पार कराने के लिए पुल के समान हैं, उन प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूं।
  • पूर्ण कथा: एक बार पार्वती पुत्र कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा करके कैलाश लौटे। नारद जी ने उन्हें बताया कि उनके अनुपस्थिति में भगवान गणेश का विवाह हो चुका है। यह सुनकर कार्तिकेय क्रोधित होकर क्रौंच पर्वत पर चले गए।
  • भगवान शिव और माता पार्वती पुत्र स्नेह में व्याकुल होकर कार्तिकेय से मिलने गए, परंतु वहाँ उन्हें न पाकर वे अत्यंत दुखी हुए। पुत्र वियोग में व्यथित शिव-पार्वती ने वहाँ अपनी ज्योति स्थापित कर दी। तभी से शिवजी अमावस्या को और पार्वती जी पूर्णिमा को उनसे मिलने जाती हैं। इस प्रकार यह ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: उज्जैन (मध्य प्रदेश)
  • श्लोक:
    • “अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
      अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥”
  • अर्थ: संतजनों को मोक्ष देने के लिए जिन्होंने अवंतिका पुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है, उन महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं अकाल मृत्यु से बचने के लिए नमस्कार करता हूं।
  • पूर्ण कथा:
  • अवन्तिका नगरी में एक वेदपाठी ब्राह्मण रहता था, जिसके चार पुत्र थे – देवप्रिय, प्रियमेधा, सुकृत और सुव्रत। उस समय रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक महाबली राक्षस राज करता था, जो वैदिक धर्म का विरोधी था।
  • दैत्यों ने अवन्तिका नगरी को घेर लिया। ब्राह्मणों ने कोई उपाय न देखकर शिवजी की शरण ली और पार्थिव लिंग बनाकर पूजन प्रारम्भ किया। दूषण ससैन्य उन पर टूट पड़ा, किंतु ब्राह्मण शिव ध्यान में मग्न थे। ज्योंही दूषण ने उन्हें मारने का प्रयास किया, त्योंही उस पार्थिव मूर्ति के स्थान से भगवान महाकाल प्रकट हुए और अपने हुँकार मात्र से दूषण और उसकी सेना को भस्म कर दिया।

4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: मान्धाता पर्वत, नर्मदा नदी तट (मध्य प्रदेश)
  • श्लोक:
    • “कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
      सदैव मान्धातृपुरे वसन्त- मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥”
  • अर्थ: जो सत्पुरुषों को संसार सागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान ओंकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूं।
  • पूर्ण कथा:
  • देवर्षि नारद ने गोकर्ण तीर्थ और विन्ध्याचल पर्वत पर शिव आराधना की। इससे विन्ध्य पर्वत को अहंकार हो गया कि उसमें सब कुछ है। नारद जी ने उसे बताया कि सुमेरु पर्वत उससे ऊँचा है।
  • यह सुनकर दुःखी विन्ध्य ने ॐकार नामक शिवलिंग की स्थापना कर कठोर तपस्या की। शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हुए। ऋषियों और देवताओं ने प्रार्थना की कि वे यहीं निवास करें। इस प्रकार भगवान शिव ओंकारेश्वर के रूप में यहाँ स्थापित हुए।

5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: केदारनाथ, हिमालय (उत्तराखंड)
  • पूर्ण कथा:
  • धर्मपुत्र नर-नारायण बदरिकाश्रम में जाकर पार्थिव पूजन करने लगे। एक दिन शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वर माँगने को कहा। नर-नारायण ने लोककल्याण हेतु प्रार्थना की कि वे अपने रूप में पूजा के निमित्त सदैव यहाँ स्थित रहें।
  • उनके ऐसा कहने पर हिमाच्छादित केदार नामक स्थान में महेश्वर ज्योतिस्वरूप होकर स्थित हुए। इस प्रकार वे केदारेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।

6. भीमशंकर ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: सह्याद्रि पर्वत, भीमा नदी तट (महाराष्ट्र)
  • श्लोक:
    • “यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
      सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥”
  • अर्थ: जो डाकिनी और शाकिनी वृंद में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्त हितकारी भगवान भीमशंकर को मैं प्रणाम करता हूं।
  • पूर्ण कथा:
  • भीम नामक राक्षस कुम्भकर्ण और कर्कटी राक्षसी से उत्पन्न हुआ था। वह विष्णु भगवान का विरोधी था क्योंकि श्रीराम ने उसके पिता कुम्भकर्ण का वध किया था। उसने ब्रह्मा जी से वर पाकर समस्त पृथ्वी को अपने अधीन कर लिया।
  • देवता शिवजी की शरण में गए। इसी बीच भीम ने कामरूप देश के राजा सुदक्षिण पर आक्रमण किया। राजा सुदक्षिण ने शिव की शरण ली और पार्थिव लिंग बनाकर पूजन प्रारम्भ किया। जैसे ही भीम ने प्रहार करना चाहा, उसी पार्थिव लिंग से साक्षात शिव प्रकट हुए और हुँकार मात्र से भीम और उसकी सेना का संहार कर दिया।

7. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
  • श्लोक:
    • “सानन्दमानन्दवने वसन्त- मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
      वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥”
  • अर्थ: जो स्वयं आनंद कंद हैं और आनंद पूर्वक आनंद वन (काशी क्षेत्र) में वास करते हैं, जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूं।
  • पूर्ण कथा:
  • भगवान शिव ने अपनी प्रेरणा से समस्त तेजों के सारस्वरूप पाँच कोश का एक सुन्दर नगर निर्माण किया। भगवान विष्णु ने सृष्टि रचना की इच्छा से शिवजी का ध्यान किया, किंतु शून्य छोड़ कुछ भान न हुआ।
  • विष्णु ने अपने शरीर को हिलाया तो उनके कर्ण से एक मणि गिरी, जिससे उस स्थान का नाम ‘मणिकर्णिका’ तीर्थ पड़ा। शिवजी ने इस पञ्चक्रोशी को ब्रह्माण्ड मण्डल से पृथक रखकर अपने त्रिशूल पर धारण किया और यहाँ अपने मुक्तिदायक विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया।

8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: ब्रह्मगिरि के निकट, नासिक (महाराष्ट्र)
  • श्लोक:
    • “सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
      यद्दर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥”
  • अर्थ: जो गोदावरी तट के पवित्र देश में सह्याद्रि पर्वत के विमल शिखर पर वास करते हैं, जिनके दर्शन से तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है, उन श्री त्र्यंबकेश्वर का मैं स्तवन करता हूं।
  • पूर्ण कथा:
  • गौतम ऋषि के शिष्य जल लेने गए तो ऋषि पत्नियों ने उन्हें जल लेने से रोक दिया। ऋषि पत्नी ने स्वयं जाकर जल लाकर दिया। अन्य ऋषि पत्नियों ने झूठा किस्सा बनाकर अपने पतियों से कहा कि गौतम ऋषि ने अशोभनीय व्यवहार किया है।
  • ऋषियों ने गणेश पूजन कर गौतम ऋषि को आश्रम से बहिष्कृत करने का वर माँगा। गणेशजी ने केदार तीर्थ पर एक दुर्बल गाय का रूप धारण किया। गौतम जी ने तृण के स्तम्भ से उस गाय को हटाया, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुई। गोहत्या के आरोप में गौतम मुनि को वहाँ से बहिष्कृत किया गया।
  • अन्य ऋषियों ने गङ्गा जी को लाकर स्नान करने और पार्थिव लिंग बनाकर शिवार्चन करने की सलाह दी। शिवजी प्रकट हुए और गौतम के आग्रह पर गङ्गा जी के साथ वहाँ स्थित हुए। गङ्गा ‘गौतमी’ और शिव ‘त्र्यम्बक’ नाम से विख्यात हुए।

9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: देवघर (झारखंड)
  • श्लोक:
    • “पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधान सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
      सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥”
  • अर्थ: जो पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि (वैद्यनाथ धाम) के भीतर सदा ही गिरिजा के साथ वास करते हैं, देवता और असुर जिनके चरण कमलों की आराधना करते हैं, उन श्री वैद्यनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
  • पूर्ण कथा:
  • रावण ने कैलास पर्वत पर जाकर शिवजी की आराधना की। उसने शीतकाल में आकण्ठ जल में और ग्रीष्मकाल में पञ्चाग्नि के बीच कठोर तप किया। रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए अपने नौ सिर काट डाले।
  • जब एक सिर बचा रहा, तब शिवजी प्रसन्न हो गए। रावण ने प्रार्थना की कि शिवजी उसकी नगरी लंका में चलें। शिवजी ने कहा कि वे लिंग रूप में उसके साथ चलेंगे, पर यदि बीच में इसे पृथ्वी पर रखा तो यह वहीं स्थिर हो जाएगा।
  • रावण ज्योतिर्लिंग को लेकर चला, पर मार्ग में लघुशंका के वेग से पीड़ित होने लगा। एक गोप बालक को लिंग देकर वह लघुशंका करने गया। बालक ने भार न सह सकने के कारण लिंग को पृथ्वी पर रख दिया और वह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गया।
  • यह एक प्रमुख शक्तिपीठ भी है।

10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: दारुकावन (गुजरात के द्वारका के निकट)
  • पूर्ण कथा:
  • पश्चिम समुद्र तट पर स्थित वन में दारुक नामक राक्षस अपनी पत्नी दारुका और अन्य राक्षसों के साथ रहता था। एक बार मनुष्यों से भरी नावें उधर आईं। राक्षसों ने उन सबको पकड़कर कारागार में डाल दिया।
  • उनमें सुप्रिय नामक एक वैश्य था, जो शिव का परम भक्त था। दारुक के सेवक ने वैश्य के आगे शिवजी का सुन्दर रूप देखा। दारुक ने वैश्य से पूछताछ की और मारने का प्रयास किया। वैश्य शिवजी का स्मरण करने लगा।
  • सदाशिव पाशुपत अस्त्र से स्वयं प्रकट हुए और राक्षसों का संहार किया। दारुका राक्षसी ने भवानी की वन्दना की। पार्वती जी के आग्रह पर शिवजी ने राक्षसों के वंश की रक्षा का वर दिया और स्वयं नागेश्वर के रूप में वहाँ स्थित हो गए।

11. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: रामनाड जिला (तमिलनाडु)
  • श्लोक:
    • “सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
      श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥”
  • अर्थ: जो भगवान श्री रामचंद्र जी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किए गए हैं, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूं।
  • पूर्ण कथा:
  • त्रेतायुग में भगवान श्रीरामचन्द्र जी सीता हरण के पश्चात् लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व समुद्र के किनारे पहुँचे। उन्हें प्यास लगी तो लक्ष्मण ने वानरों से जल मँगवाया।
  • श्रीराम ने जल पीने से पहले स्मरण किया कि उन्होंने शिवार्चन नहीं किया है। उन्होंने पार्थिव लिंग बनाकर षोडशोपचार विधि से शिव पूजन किया। शिवजी प्रसन्न हुए और वर माँगने को कहा।
  • श्रीराम ने लोककल्याणार्थ शिवजी से इस स्थान पर निवास करने की प्रार्थना की। तब शिवजी ‘रामेश्वर’ नाम से विख्यात हुए।

12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

  • स्थान: एलोरा के निकट, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
  • श्लोक:
    • “इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
      वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥”
  • अर्थ: जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में मैं जाता हूं।
  • पूर्ण कथा:
  • देवगिरि पर्वत पर सुधर्मा नामक ब्राह्मण सपत्नीक निवास करते थे। उनकी प्रथम पत्नी सुदेहा से कोई पुत्र न हुआ। दूसरी पत्नी घुश्मा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
  • सुदेहा दुःखित रहने लगी और उसने पुत्र हत्या का पैशाचिक कर्म किया। शिवभक्ता घुश्मा ने शोक के बावजूद नित्य पार्थिव पूजन नहीं त्यागा। पूजन के पश्चात् जब वह पार्थिव लिंग का विसर्जन करने तालाब पर गई तो शिव कृपा से उसका पुत्र जीवित मिला।
  • भगवान शिव ने घुश्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर वर माँगने को कहा। घुश्मा ने कहा- “हे देवेश! सुदेहा मेरी बहन है, अतः आप उसकी रक्षा करें। आप यहाँ लोककल्याणार्थ सर्वदा निवास करें।” इस प्रकार शिवजी ‘घुश्मेश्वर’ के नाम से प्रख्यात हुए।

निष्कर्ष : द्वादश ज्योतिर्लिंग इतिहास और महत्व

ये बारह ज्योतिर्लिंग भारत के विभिन्न भागों में स्थित हैं और प्रत्येक की अपनी अनूठी पौराणिक कथा है। इन सभी कथाओं का सार है कि भगवान शिव सच्चे भक्त की पुकार पर सदैव प्रकट होते हैं और उसकी रक्षा करते हैं। इनके दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये बारह ज्योतिर्लिंग भारतवर्ष के विभिन्न कोनों में स्थित हैं और भक्तों के लिए अत्यंत पावन तीर्थ स्थल हैं। इनके दर्शन, पूजन और स्मरण मात्र से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति होती है। हर शिव भक्त का जीवन में एक बार इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन अवश्य करने का संकल्प होना चाहिए।

हर हर महादेव!

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