🪔 परिचय (Introduction)
“लक्ष्मी गणपति स्तोत्रम्” एक पवित्र स्तोत्र है जो माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश दोनों की संयुक्त उपासना का श्रेष्ठ माध्यम है।
यह पाठ धन, समृद्धि, बुद्धि, विद्या और सभी प्रकार के शुभ फल प्रदान करने वाला माना गया है।
जो व्यक्ति श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसके जीवन से विघ्न, दरिद्रता और अशुभता दूर होकर सुख-शांति का वास होता है।
🙏 लक्ष्मीगणपति स्तोत्रम् (संस्कृत पाठ सहित अर्थ)
🍁 श्लोक १
पीताम्बरधरं देवं कमलद्वयधारिणम् ।
मोदकं पाशपाणिं च धनकल्पफलप्रदम् ॥
अर्थ:
मैं उन लक्ष्मीगणपति का ध्यान करता हूँ जो पीले वस्त्र धारण किए हुए हैं,
जिनके दोनों ऊपरी हाथों में कमल हैं,
अन्य हाथों में मोदक, पाश और धनकलश शोभित हैं।
वे भक्तों को धन और इच्छित फल प्रदान करते हैं।
🍁 श्लोक २
अभयवरदं देवं अंकुशं करपद्मजम् ।
ऋद्धिसिद्धिसमायुक्तं श्वेतोल्लूकसमाश्रितम् ॥
अर्थ:
वे भक्तों को अभय (निर्भयता) और वरदान देने वाले हैं,
अंकुश धारण करते हैं, ऋद्धि और सिद्धि सहित हैं,
और सफेद उल्लू (लक्ष्मी वाहन) पर विराजमान हैं।
🍁 श्लोक ३
लक्ष्मीविशेषसंयुक्तं गजाननं महेश्वरम् ।
सिद्धिबुद्धिपतिं नित्यं सर्वलोकनमस्कृतम् ॥
पाशाङ्कुशधरं देवं मोदकप्रियदायकम् ।
वरदाभयहस्तं च भक्तानुग्रहकारकम् ॥
अर्थ:
जो लक्ष्मी के विशेष गुणों से संयुक्त हैं,
गजानन (हाथीमुख) महेश्वर हैं,
सिद्धि-बुद्धि के अधिपति हैं, और सभी लोकों द्वारा वंदित हैं।
जो पाश और अंकुश धारण करते हैं, मोदक प्रिय हैं,
और वरदान व अभय देने वाले होकर भक्तों पर सदैव कृपा करते हैं।
🍁 श्लोक ४
स्वर्णकलशहस्तं च कीर्त्यैश्वर्यप्रदायकम् ।
सुखसमृद्धिदं नित्यं लक्ष्मीगणपतिं भजे ॥
श्वेतोल्लूकविनिर्माणं सर्वधन्यफलप्रदम् ।
नानाविभवसंपन्नं भक्तानां सुखवर्धनम् ॥
अर्थ:
जिनके हाथ में स्वर्ण कलश है,
जो कीर्ति और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं,
जो स्थिर सुख और समृद्धि के दाता हैं।
जो श्वेत उल्लू पर आरूढ़ हैं,
धन, धान्य और फल प्रदान करते हैं,
भक्तों के सुख को बढ़ाने वाले हैं।
🍁 श्लोक ५
ऋद्धिसिद्धिसमायुक्तं विद्याविद्याप्रदायकम् ।
धनधान्यकरं नित्यं लक्ष्मीगणपतिं भजे ॥
सिन्दूरारुणदेहं च सुवर्णाभरणोज्ज्वलम् ।
शरणं भव भक्तानां लक्ष्मीगणपतिं विभुम् ॥
अर्थ:
जो ऋद्धि और सिद्धि से युक्त हैं,
विद्या और विवेक प्रदान करते हैं,
धन और धान्य देने वाले हैं।
जिनका शरीर सिन्दूर के समान लाल है,
जो स्वर्णाभूषणों से शोभित हैं,
और जो भक्तों को शरण प्रदान करते हैं।
🍁 श्लोक ६
विघ्नराजं प्रणम्याहं सर्वकार्यफलप्रदम् ।
शुभं करोतु मे नित्यं लक्ष्मीगणपतिः प्रभुः ॥
अभयं वरदं देवं स्मरेन्नित्यं स भक्तिमान् ।
तस्य वित्तं च वैभवं स्थायि भवति निश्चितम् ॥
अर्थ:
मैं विघ्नराज लक्ष्मीगणपति को प्रणाम करता हूँ,
जो सभी कार्यों में सफलता देने वाले हैं।
वे सदा मेरे जीवन में शुभता भरें।
जो भक्त नित्य उनका स्मरण करता है,
वह भय से मुक्त रहता है,
और उसका धन-वैभव स्थिर रहता है।
🍁 श्लोक ७
पद्मयुग्मधरं देवं सर्वकामफलप्रदम् ।
भजाम्यहमहर्निशं लक्ष्मीगणपतिं विभुम् ॥
मोदकप्रियहस्तं च भक्तानन्दवर्धनम् ।
ऋद्धिसिद्धिपतिं देवं लक्ष्मीगणपतिं भजे ॥
अर्थ:
जो दोनों हाथों में कमल धारण किए हुए हैं,
सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं,
उन लक्ष्मीगणपति को मैं दिन-रात भजता हूँ।
जो मोदक प्रिय हैं, भक्तों के आनंद को बढ़ाते हैं,
और ऋद्धि-सिद्धि के अधिपति हैं।
🍁 श्लोक ८
पाशाङ्कुशधरं देवं चित्तनिग्रहकारकम् ।
धनधान्यसमृद्धिं च साधकाय प्रदायकम् ॥
धनकलशकरं देवं स्थैर्यलक्ष्म्यप्रदायकम् ।
नित्यं सुखप्रदं शान्तं लक्ष्मीगणपतिं भजे ॥
अर्थ:
जो पाश और अंकुश धारण करते हैं,
मन को नियंत्रित करने वाले हैं,
जो साधक को धन और धान्य की समृद्धि देते हैं।
जो हाथ में धनकलश धारण करते हैं,
स्थिर लक्ष्मी और शांति प्रदान करते हैं।
🍁 श्लोक ९
वरदं विघ्नहर्तारं दीनानाथसमाश्रयम् ।
सर्वजनप्रियं नित्यं लक्ष्मीगणपतिं भजे ॥
सर्वैश्वर्यसमायुक्तं सर्वलाभप्रदायकम् ।
भक्तानां कल्याणं नित्यं लक्ष्मीगणपतिं भजे ॥
अर्थ:
जो वर देने वाले और विघ्नों का नाश करने वाले हैं,
जो दीन-दुखियों के नाथ हैं,
जो सबके प्रिय हैं।
जो सभी ऐश्वर्य और लाभ प्रदान करते हैं,
भक्तों के कल्याण हेतु सदैव तत्पर रहते हैं।
🍁 श्लोक १०
भवसागरपारं च साधकान् नयतीश्वरः ।
मंगलप्रदकं नित्यं लक्ष्मीगणपतिं भजे ॥
विद्यां बुद्धिं च मे देहि लक्ष्मीगणपतिप्रभो ।
भोगमोक्षप्रदं नित्यं त्वामहं शरणं गतः ॥
अर्थ:
जो साधकों को भवसागर से पार ले जाते हैं,
जो सदा मंगल करने वाले हैं।
हे लक्ष्मीगणपति प्रभु! मुझे विद्या और बुद्धि प्रदान करें,
जो भोग और मोक्ष दोनों देने वाले हैं,
मैं आपकी शरण में आया हूँ।
🍁 श्लोक ११
यः पठेत्स्तवमेतं च भक्त्या श्रद्धासमन्वितः ।
तस्य वित्तं च सौख्यं च नित्यं तिष्ठति मन्दिरे ॥
कुबेरोऽपि ददात्यस्य भक्तेर्भाण्डागारसम्पदः ।
लक्ष्मीगणपति: प्रीत्या रक्षां करोति नित्यशः ॥
अर्थ:
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का श्रद्धा और भक्ति सहित पाठ करता है,
उसके घर में धन, सुख और सौभाग्य सदा निवास करते हैं।
भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर कुबेर भी उसे खजाने की सम्पदा देते हैं,
और लक्ष्मीगणपति सदा उसकी रक्षा करते हैं।
🍁 श्लोक १२
मन्त्रराजप्रदं देवं सर्वसिद्धिप्रदायकम् ।
लक्ष्मीगणपतिं नित्यं भक्तः शुद्धेन भावयेत् ॥
ऋद्धिसिद्धिसमायुक्तं लक्ष्मीसम्पत्प्रदायकम् ।
सर्वलोकरिपुघ्नं च लक्ष्मीगणपतिं भजे ॥
अर्थ:
जो मन्त्रराज (सर्वश्रेष्ठ मंत्र) प्रदान करने वाले हैं,
जो सभी सिद्धियाँ देने वाले हैं,
भक्त उन्हें शुद्ध भाव से नित्य ध्यान करें।
जो ऋद्धि और सिद्धि सहित हैं,
लक्ष्मी और सम्पत्ति प्रदान करने वाले हैं,
भक्तों के सभी शत्रुओं का नाश करने वाले हैं।
🍁 श्लोक १३
गजाननं महादेवं शरणं भव भक्तितः ।
भवभीतिनिवृत्तिं च साधकाय प्रयच्छ मे ॥
सुखसमृद्धिप्रदं नित्यं भक्तानां विघ्ननाशकम् ।
लक्ष्मीगणपतिं नित्यं सर्वे सन्तु नमस्कृताः ॥
अर्थ:
मैं गजानन महादेव की भक्ति से शरण लेता हूँ।
वे साधक के भय और बंधन का निवारण करते हैं।
जो सदा सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं,
विघ्नों का नाश करते हैं — ऐसे लक्ष्मीगणपति को सब नमस्कार करें।
🍁 अंतिम श्लोक
शरणागतदीनानां रक्षकं विघ्ननाशकम् ।
लक्ष्मीगणपतिं नित्यं प्रणमामि पुनः पुनः ॥
अर्थ:
जो शरणागत और दीनों के रक्षक हैं,
जो विघ्नों का नाश करने वाले हैं,
मैं उन लक्ष्मीगणपति को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
🌺 फलश्रुति (Phalashruti) 🌺: लक्ष्मी गणपति स्तोत्रम्
इदं स्तोत्रं पठेन्नित्यं लक्ष्मीगणपतिप्रियम् ।
धनधान्यसमृद्धिः स्यात्, कुटुम्बे नास्ति दुःखता ॥
विद्यावित्तं यशो लक्ष्मीं पुत्रपौत्रसमृद्धिकाम् ।
सर्वमाप्नोति भक्तानां स्तोत्रेणानेन निश्चितम् ॥
अर्थ:
जो इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है,
उसके जीवन में धन, धान्य और समृद्धि आती है।
उसके परिवार में कभी दुःख का स्थान नहीं होता।
वह भक्त इस स्तोत्र से विद्या, धन, यश, लक्ष्मी,
और संतान-पौत्र की समृद्धि सब कुछ प्राप्त करता है — यह निश्चित है।
निष्कर्ष (Conclusion): लक्ष्मी गणपति स्तोत्रम्
“लक्ष्मी गणपति स्तोत्रम्” केवल धन-समृद्धि का ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि और मानसिक शांति का भी स्रोत है।
जो साधक इसे नित्य श्रद्धा से पढ़ता या सुनता है,
उसे माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद और विघ्नहर्ता गणेश जी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
यह स्तोत्र न सिर्फ़ पूजा के समय, बल्कि हर नए कार्य के आरंभ से पहले भी पाठ करने योग्य है।


