🕉️ परिचय
माता तुलसी हिन्दू धर्म में पूजनीय देवी हैं, जिन्हें भगवान विष्णु की अति प्रिय पत्नी माना जाता है। तुलसी का पौधा केवल एक वनस्पति नहीं, बल्कि भक्ति, शुद्धता और सतीत्व का प्रतीक है।
श्रीमद देवी भागवत पुराण में माता तुलसी के जन्म और उनके पतिव्रता धर्म से जुड़ी कथा अत्यंत भावनात्मक और प्रेरणादायक है।
👶 जालंधर का जन्म – भगवान शिव के तेज से उत्पत्ति
कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने तेज (ऊर्जा) को समुद्र में फेंक दिया। उस तेज से एक दिव्य बालक का जन्म हुआ — जिसका नाम जालंधर रखा गया।
जालंधर बड़ा होकर पराक्रमी और तेजस्वी दैत्यराज बना। उसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।
💍 जालंधर और वृंदा का विवाह
जालंधर का विवाह दैत्यराज कालनेमी की पुत्री वृंदा से हुआ।
वृंदा एक अत्यंत पवित्र और पतिव्रता स्त्री थीं। उनके सतीत्व के प्रभाव से जालंधर युद्ध में अजेय बन गया था।
देवता और दानव सभी उसकी शक्ति से भयभीत रहते थे।
⚔️ जालंधर का अहंकार और देवताओं से युद्ध
सत्ता के मद में चूर जालंधर ने पहले माता लक्ष्मी को पाने की इच्छा की।
परंतु माता लक्ष्मी ने उसे समुद्र से उत्पन्न होने के कारण भाई के समान स्वीकार कर लिया।
वहां से पराजित होकर उसने माता पार्वती को पाने की कामना की और कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान किया।
भगवान शिव का रूप धरकर वह माता पार्वती के समीप पहुँचा।
मां पार्वती ने अपने योगबल से उसे पहचान लिया और क्रोधित होकर भगवान विष्णु से सहायता मांगी।
🙏 वृंदा का पतिव्रत धर्म और विष्णु का मायाजाल
जालंधर की पत्नी वृंदा के पातिव्रत्य बल के कारण जालंधर न तो मारा जा सकता था और न ही पराजित।
इसलिए भगवान विष्णु ने एक ऋषि रूप धारण किया और वन में वृंदा के पास पहुँचे।
भगवान ने अपनी माया से दो राक्षसों को प्रकट किया और फिर पलभर में उन्हें भस्म कर दिया।
वृंदा उनके तेज से प्रभावित हुईं और अपने पति की स्थिति पूछी।
तब भगवान ने माया से दो वानर उत्पन्न किए — एक के हाथ में जालंधर का सिर और दूसरे के हाथ में धड़ था।
यह देखकर वृंदा मूर्छित हो गईं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि से अपने पति को जीवित करने की प्रार्थना की।
भगवान ने जालंधर का सिर और धड़ जोड़ दिया और स्वयं उस शरीर में प्रवेश कर गए।
वृंदा को इस छल का ज्ञान नहीं हुआ और उन्होंने “जालंधर बने विष्णु” की सेवा की, जिससे उनका सतीत्व भंग हो गया।
🔥 वृंदा का श्राप और भगवान विष्णु का शालिग्राम रूप
जैसे ही वृंदा का सतीत्व टूटा, जालंधर युद्ध में मारा गया।
जब वृंदा को इस छल का पता चला, उन्होंने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को “शिला होने का श्राप” दिया और सती हो गईं।
जहाँ वृंदा ने देह त्यागी, वहीं तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।
भगवान विष्णु ने कहा —
“हे वृंदा! तुम्हारा सतीत्व और भक्ति मुझे लक्ष्मी से भी प्रिय है। तुम अब तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी।”
इसी कारण तुलसी विवाह की परंपरा आरंभ हुई — जहाँ शालिग्राम रूपी विष्णु का विवाह तुलसी से होता है।
🌿 तुलसी पूजन का महत्व
- जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहाँ नकारात्मक शक्तियाँ प्रवेश नहीं करतीं।
- तुलसी पूजन और गंगा स्नान का फल समान माना गया है।
- मृत्यु के समय यदि किसी व्यक्ति के मुख में तुलसी मंजरी और गंगा जल रखा जाए, तो वह वैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।
- पितृ श्राद्ध यदि तुलसी और आँवले की छाया में किया जाए, तो पितर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
🛕 वृंदा देवी का मंदिर और आस्था
कथा के अनुसार, दैत्यराज जालंधर की भूमि आज का जालंधर नगर कहलाता है।
वहाँ स्थित सती वृंदा मंदिर (मोहल्ला कोट किशनचंद) अत्यंत प्रसिद्ध है।
कहा जाता है कि इस मंदिर में एक गुफा है जो हरिद्वार तक जाती थी।
भक्त मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति 40 दिन तक सच्चे मन से माता वृंदा की पूजा करे, तो उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
🌸 निष्कर्ष
माता तुलसी की कथा यह सिखाती है कि भक्ति, सतीत्व और सत्य की शक्ति सबसे महान है।
वृंदा का पतिव्रत धर्म इतना शक्तिशाली था कि देवताओं तक को झुकना पड़ा।
उनका बलिदान, श्राप और आशीर्वाद — तीनों मिलकर हमें यह संदेश देते हैं कि भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती।