करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख व्रत है, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं करती हैं। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पति की लंबी उम्र और सुख-शांति के लिए होता है।
करवा चौथ का व्रत शरद पूर्णिमा के बाद आने वाले चौथे दिन रखा जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह से उपवास रखती हैं और रात को चाँद को देखकर व्रत तोड़ती हैं।
करवा चौथ का महत्व केवल पति की लंबी आयु तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक और सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ाता है।
करवा चौथ व्रत की पूजा विधि
1. तैयारी
- व्रत के दिन सुबह से उपवास शुरू होता है।
- सुपारी, फल, मेवे और करवा चौथ का थाली सजाना अनिवार्य है।
- महिलाएं साफ-सुथरे कपड़े पहनती हैं, अक्सर साड़ी या लहंगा।
- मेहंदी लगाना इस दिन की शोभा बढ़ाता है।
2. पूजा थाली की सजावट
- करवा चौथ की पूजा थाली में निम्न चीज़ें रखी जाती हैं:
- करवा (मिट्टी का या चांदी का बर्तन)
- दीपक
- चावल, रोली, हल्दी
- सुपारी, मेवे और फल
- छलनी (चाँनी)
3. संकल्प और उपवास
- उपवास की शुरुआत संकल्प से होती है: “आज मैं करवा चौथ का व्रत रखती/रखता हूँ, अपने पति की लंबी आयु और परिवार की शांति के लिए।”
- दिन भर खाना और पानी नहीं लिया जाता (कुछ परिवार में पानी की अनुमति होती है)।
4. शाम की पूजा विधि
- शाम को महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं और पूजा करती हैं।
- पूजा के मुख्य चरण:
- करवे को पानी और फलों से साफ करना
- दीपक जलाना
- रोली और हल्दी लगाकर करवे को अर्घ्य देना
- छलनी से चाँद को देखकर पति का हाथ पकड़ना
- फल और पानी से व्रत तोड़ना

करवा चौथ व्रत कथा ( Karwa Chauth Vrat Katha )
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने उत्तर दिया- भाई! अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्य देकर भोजन करूंगी। बहिन की बात सुनकर भाइयों ने क्या काम किया कि नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए। हुए उन्होंने बहन से कहा- बहन ! चांद निकल आया है अर्घ देकर भोजन कर लो। यह सुन उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चन्द्रमा को अर्घ दे लो, परन्तु वे इस काण्ड को जानती थीं उन्होंने कहा बहन जी। अभी चांद तो नहीं निकला, मेरे भाई तेरे से घोक्षा करते हुए अग्नि का वकालती से भोजन कर लिया।
इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया। जब उसको अपने किए हुए दोषों को पता लगा तो उसने पश्चाताप किया। गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया।
इस प्रकार उसके श्रद्धा-भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान देकर उसे आरोग्य करने के पश्चात् धन-संपत्ति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे वे सब प्रकार से सुखी होते हुए क्लेशों से मुक्त हो जाएगा।
यह कथा बताती है कि भक्ति और श्रद्धा से किया गया व्रत केवल पति की लंबी आयु के लिए नहीं बल्कि परिवार और सामाजिक समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण है।
Karwa Mata Aarti: करवा चौथ आरती
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया.
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया.. ओम जय करवा मैया.
सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी.
यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी..
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती.
दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती..
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया.
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया..
होए सुहागिन नारी, सुख संपत्ति पावे.
गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे..
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया.
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया..
करवा मैया की आरती, व्रत कर जो गावे.
व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे..
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया.
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया..
करवा चौथ व्रत तोड़ने की विधि
- व्रत तोड़ने से पहले चाँद को देखकर प्रार्थना करना अनिवार्य है।
- महिलाएं छलनी के माध्यम से चाँद को देखती हैं, फिर पति का हाथ पकड़कर फल और पानी से व्रत तोड़ती हैं।
- इसके बाद करवे से फल और पानी का सेवन किया जाता है।
निष्कर्ष
करवा चौथ केवल पति के लिए व्रत नहीं है, बल्कि यह संस्कार, भक्ति और पारिवारिक समृद्धि का प्रतीक है। यदि आप भी अपनी जीवनसाथी के प्रति श्रद्धा और प्रेम दिखाना चाहते हैं, तो करवा चौथ व्रत और पूजा विधि का पालन अवश्य करें।