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सुरभि स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ सहित (Surabhi Stotram with Meaning) | सुरभि/आदि गौमाता स्तोत्र

surabhi-stotram

(श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराण के प्रकृतिखण्ड में महेन्द्रकृत स्तोत्र)

🌸 सुरभि स्तोत्रम् का परिचय

श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराण के प्रकृतिखण्ड में यह पवित्र स्तोत्र देवराज इन्द्र द्वारा रचित माना गया है।
इस स्तोत्र का पाठ करने से धन, लक्ष्मी, वैभव एवं षडैश्वर्य की प्राप्ति होती है।
जो व्यक्ति गौ-सेवा या गौ-पूजन करता है, उसके लिए यह स्तोत्र अत्यंत शुभ फलदायी है।


🙏 सुरभि स्तोत्रम् (मूल संस्कृत पाठ सहित हिन्दी अर्थ)

महेन्द्र उवाच

नमो देव्यै महादेव्यै सुरभ्यै च नमो नमः।
गवां बीजस्वरूपायै नमस्ते जगदम्बिके ॥१॥

नमो राधाप्रियायै च पद्मांशायै नमो नमः।
नमः कृष्णप्रियायै च गवां मात्रे नमो नमः ॥२॥

अर्थ:
महेन्द्र बोले — देवी एवं महादेवी सुरभी को बार-बार नमस्कार है।
हे जगदम्बिके! आप गौओं की बीजस्वरूपा हैं, आपको नमस्कार है।
आप राधा की प्रिय हैं, लक्ष्मी की अंशभूता हैं, श्रीकृष्णप्रिया और गौओं की माता हैं — आपको बार-बार प्रणाम है।


कल्पवृक्षस्वरूपायै सर्वेषां सततं परम्।
श्रीदायै धनदायै च बुद्धिदायै नमो नमः ॥३॥

शुभदायै प्रसन्नायै गोप्रदायै नमो नमः।
यशोदायै सौख्यदायै धर्मज्ञायै नमो नमः ॥४॥

अर्थ:
जो सबके लिए कल्पवृक्ष के समान हैं, जो श्री (समृद्धि), धन और बुद्धि प्रदान करती हैं — उन भगवती सुरभि को बार-बार नमस्कार है।
जो शुभ और प्रसन्न करने वाली, गोप्रदायिनी, यश और सौख्य देने वाली धर्मज्ञा देवी हैं — उन्हें बार-बार नमस्कार।


स्तोत्रस्मरणमात्रेण तुष्टा हृष्टा जगत्प्रसूः।
आविर्बभूव तत्रैव ब्रह्मलोके सनातनी ॥५॥

महेन्द्राय वरं दत्त्वा वाञ्छितं सर्वदुर्लभम्।
जगाम सा च गोलोकं ययुर्देवादयो गृहम् ॥६॥

अर्थ:
स्तुति सुनते ही सनातनी जगज्जननी सुरभि प्रसन्न होकर ब्रह्मलोक में प्रकट हुईं।
उन्होंने देवराज इन्द्र को दुर्लभ वरदान दिया और फिर गोलोक लौट गईं; देवगण भी अपने-अपने स्थानों को चले गए।


बभूव विश्वं सहसा दुग्धपूर्णं च नारद।
दुग्धाद्धृतं ततो यज्ञस्ततःप्रीतिः सुरस्य च ॥७॥

अर्थ:
हे नारद! तब सम्पूर्ण विश्व दूध से परिपूर्ण हो गया। दूध से घृत बना, और घृत से यज्ञ सम्पन्न हुए — जिससे देवता अत्यंत प्रसन्न हुए।


इदं स्तोत्रं महापुण्यं भक्तियुक्तश्च यः पठेत्।
स गोमान् धनवांश्चैव कीर्तिवान् पुण्यवान् भवेत् ॥८॥

सुस्नातः सर्वतीर्थेषु सर्वयज्ञेषु दीक्षितः।
इह लोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते कृष्णमन्दिरम् ॥९॥

अर्थ:
जो इस महापुण्य स्तोत्र का भक्ति सहित पाठ करता है, वह धनवान, गौवान, कीर्तिवान और पुण्यवान बनता है।
उसे सभी तीर्थों के स्नान और सभी यज्ञों का फल प्राप्त होता है।
वह इस लोक में सुख भोगकर अंत में श्रीकृष्ण के धाम को प्राप्त करता है।


सुचिरं निवसेत्तत्र कुरुते कृष्णसेवनम्।
न पुनर्भवनं तस्य ब्रह्मपुत्र भवे भवेत् ॥१०॥

अर्थ:
वह दीर्घकाल तक कृष्ण धाम में निवास कर भगवान की सेवा करता है।
हे नारद! वह पुनः संसार में जन्म नहीं लेता।


🔱 उपसंहार

॥ इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराण के प्रकृतिखण्ड में महेन्द्रकृत सुरभि स्तोत्र समाप्त हुआ ॥


🌼 सुरभि स्तोत्र पाठ का फल (फलश्रुति)


🕉️ मन्त्र-सारांश

“गावः सर्वदेवमया मातरः सर्वलोकानाम्।”
— वेदों में कहा गया है कि गौमाता समस्त देवताओं का स्वरूप हैं।

अतः सुरभि स्तोत्र का नियमित पाठ, गौमाता के प्रति भक्ति, तथा श्रीकृष्ण स्मरण जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष प्रदान करता है।

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