Lakshmi Ashtottara Shatanam Stotram

🪔 श्रीलक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् – मां लक्ष्मी के 108 दिव्य नामों का महास्तोत्र

🕉 परिचय: माँ महालक्ष्मी के 108 पवित्र नामों का महिमा वर्णन

“श्रीलक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् (Lakshmi Ashtottara Shatanam Stotram) ” एक अत्यंत दिव्य और फलदायी स्तोत्र है, जो स्वयं भगवान शिव और देवी पार्वती के संवाद में प्रकट हुआ है।
इसमें माँ लक्ष्मी के 108 नामों का वर्णन है जो जीवन से दरिद्रता, दुःख, और नकारात्मकता को नष्ट कर देते हैं।
जो भक्त श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसे धन, सौभाग्य, भक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है।


🪙 स्तोत्र की उत्पत्ति और महत्व

भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा था कि यह स्तोत्र सर्वसंपत्ति प्रदायक है और इसके श्रवण या पाठ मात्र से ही सभी प्रकार के दुःखों का नाश होता है।
यह “अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र” सभी देवी स्तोत्रों में सर्वोत्तम माना गया है — क्योंकि इसमें माँ लक्ष्मी की समस्त शक्तियों और स्वरूपों का स्मरण है।

श्रीलक्ष्मीअष्टोत्तर_शतनाम स्तोत्रम् ।।

देव्युवाच-
देवदेव! महादेव! त्रिकालज्ञ! महेश्वर!
करुणाकर देवेश! भक्तानुग्रहकारक! ॥
अष्टोत्तर शतं लक्ष्म्याः श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः ॥

ईश्वर उवाच-
देवि! साधु महाभागे महाभाग्य प्रदायकम् ।
सर्वैश्वर्यकरं पुण्यं सर्वपाप प्रणाशनम् ॥
सर्वदारिद्र्य शमनं श्रवणाद्भुक्ति मुक्तिदम् ।
राजवश्यकरं दिव्यं गुह्याद्-गुह्यतरं परम् ॥
दुर्लभं सर्वदेवानां चतुष्षष्टि कलास्पदम् ।
पद्मादीनां वरान्तानां निधीनां नित्यदायकम् ॥
समस्त देव संसेव्यं अणिमाद्यष्ट सिद्धिदम् ।
किमत्र बहुनोक्तेन देवी प्रत्यक्षदायकम् ॥
तव प्रीत्याद्य वक्ष्यामि समाहितमनाश्शृणु ।
अष्टोत्तर शतस्यास्य महालक्ष्मिस्तु देवता ॥
क्लीं बीज पदमित्युक्तं शक्तिस्तु भुवनेश्वरी ।
अङ्गन्यासः करन्यासः स इत्यादि प्रकीर्तितः ॥

ध्यानं
वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां
हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैः नानाविधैः भूषिताम् ।
भक्ताभीष्ट फलप्रदां हरिहर ब्रह्माधिभिस्सेवितां
पार्श्वे पङ्कज शङ्खपद्म निधिभिः युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

सरसिज नयने सरोजहस्ते धवल तरांशुक गन्धमाल्य शोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीदमह्यम् ॥

ॐ प्रकृतिं विकृतिं विद्यां सर्वभूत-हितप्रदाम् ।
श्रद्धां विभूतिं सुरभिं नमामि परमात्मिकाम् ॥ 1 ॥

वाचं पद्मालयां पद्मां शुचिं स्वाहां स्वधां सुधाम् ।
धन्यां हिरण्ययीं लक्ष्मीं नित्यपुष्टां विभावरीम् ॥ 2 ॥

अदितिं च दितिं दीप्तां वसुधां वसुधारिणीम् ।
नमामि कमलां कान्तां कामाक्षीं क्रोधसम्भवाम् क्षीरोदसम्भवाम् ॥ 3 ॥

अनुग्रहप्रदां बुद्धि-मनघां हरिवल्लभाम् ।
अशोका-ममृतां दीप्तां लोकशोकविनाशिनीम् ॥ 4 ॥

नमामि धर्मनिलयां करुणां लोकमातरम् ।
पद्मप्रियां पद्महस्तां पद्माक्षीं पद्मसुन्दरीम् ॥ 5 ॥

पद्मोद्भवां पद्ममुखीं पद्मनाभप्रियां रमाम् ।
पद्ममालाधरां देवीं पद्मिनीं पद्मगन्धिनीम् ॥ 6 ॥

पुण्यगन्धां सुप्रसन्नां प्रसादाभिमुखीं प्रभाम् ।
नमामि चन्द्रवदनां चन्द्रां चन्द्रसहोदरीम् ॥ 7 ॥

चतुर्भुजां चन्द्ररूपा-मिन्दिरा-मिन्दुशीतलाम् ।
आह्लाद जननीं पुष्टिं शिवां शिवकरीं सतीम् ॥ 8 ॥

विमलां विश्वजननीं तुष्टिं दारिद्र्यनाशिनीम् ।
प्रीतिपुष्करिणीं शान्तां शुक्लमाल्याम्बरां श्रियम् ॥ 9 ॥

भास्करीं बिल्वनिलयां वरारोहां यशस्विनीम् ।
वसुन्धरा मुदाराङ्गां हरिणीं हेममालिनीम् ॥ 10 ॥

धनधान्यकरीं सिद्धिं स्त्रैणसौम्यां [सदासौम्यां] शुभप्रदाम् ।
नृपवेश्मगतां नन्दां वरलक्ष्मीं वसुप्रदाम् ॥ 11 ॥

शुभां हिरण्यप्राकारां समुद्रतनयां जयाम् ।
नमामि मङ्गलां देवीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम् ॥ 12 ॥

विष्णुपत्नीं, प्रसन्नाक्षीं नारायणसमाश्रिताम् ।
दारिद्र्यध्वंसिनीं देवीं सर्वोपद्रववारिणीम् ॥ 13 ॥

नवदुर्गां महाकालीं ब्रह्मविष्णुशिवात्मिकाम् ।
त्रिकालज्ञानसम्पन्नां नमामि भुवनेश्वरीम् ॥ 14 ॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराज तनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूत समस्तदेव वनितां लोकैक दीपाङ्कुराम् ॥
श्रीमन्मन्द कटाक्ष लब्ध विभवद्-ब्रह्मेन्द्र गङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥ 15 ॥

मातर्नमामि! कमले! कमलायताक्षि!
श्री विष्णु हृत्-कमलवासिनि! विश्वमातः!
क्षीरोदजे कमल कोमल गर्भगौरि!
लक्ष्मी! प्रसीद सततं समतां शरण्ये ॥ 16 ॥

त्रिकालं यो जपेत् विद्वान् षण्मासं विजितेन्द्रियः ।
दारिद्र्य ध्वंसनं कृत्वा सर्वमाप्नोत्-ययत्नतः ।
देवीनाम सहस्रेषु पुण्यमष्टोत्तरं शतम् ।
येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः ॥ 17 ॥

भृगुवारे शतं धीमान् पठेत् वत्सरमात्रकम् ।
अष्टैश्वर्य मवाप्नोति कुबेर इव भूतले ॥
दारिद्र्य मोचनं नाम स्तोत्रमम्बापरं शतम् ।
येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः ॥ 18 ॥

भुक्त्वातु विपुलान् भोगान् अन्ते सायुज्यमाप्नुयात् ।
प्रातःकाले पठेन्नित्यं सर्व दुःखोप शान्तये ।
पठन्तु चिन्तयेद्देवीं सर्वाभरण भूषिताम् ॥ 19 ॥

इति श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णं

🌼 पाठ का शुभ समय और विधि

  • शुभ दिन: शुक्रवार या भृगुवार
  • शुभ समय: प्रातःकाल या संध्या समय
  • आवश्यक सामग्री: कमल पुष्प, धूप, दीपक, गाय का घी, पीला वस्त्र
  • व्रत व नियम: स्वच्छ मन, सात्विक आहार, और शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ करें।

🔱 पाठ का फल (फलश्रुति)

“जो भक्त इस स्तोत्र का प्रतिदिन तीनों समय जप करता है, वह शीघ्र ही दरिद्रता से मुक्त होकर सर्वसंपन्न होता है।”

यह स्तोत्र भक्ति, भोग और मोक्ष तीनों प्रदान करता है।
भक्त को विष्णुपत्नी श्री लक्ष्मी की कृपा सदा प्राप्त रहती है।


🌸 माँ लक्ष्मी से जुड़ी अन्य आराधनाएँ

  • श्री सूक्तम्
  • महालक्ष्मी अष्टकम्
  • कनकधारा स्तोत्रम्
  • श्री लक्ष्मी चालीसा

इन सबका पाठ “श्रीलक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र” के साथ करने से अतुल्य पुण्य फल प्राप्त होता है।


🪔 निष्कर्ष:

“श्रीलक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्” माँ लक्ष्मी की आराधना का सर्वोत्तम साधन है।
यह न केवल धन और ऐश्वर्य देता है, बल्कि मन की शांति, सौभाग्य और आध्यात्मिक उत्थान भी प्रदान करता है।
इस स्तोत्र का नियमित जप करने से माँ लक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

Also Read:

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *