🕉️ परिचय (Introduction)
कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी पर्व है।
इस दिन भगवान श्रीलक्ष्मी–नारायण का विशेष पूजन और दीपदान किया जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा स्वयं श्रीहरि विष्णु के स्वरूप में प्रकट होती है।
जो भक्त इस दिन श्रद्धा से स्नान, दीपदान और हरिनाम संकीर्तन करता है,
वह अक्षय पुण्य प्राप्त करता है और जीवन में धन, सौभाग्य, और शांति प्राप्त करता है।
🌸 श्रीलक्ष्मी–नारायण कार्तिक पूर्णिमा उत्सव आख्यान
हरि ॐ तत्सत्
श्रीगुरू देवाय नमः।
श्री गणेशाय नमः।
श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री उमा-महेश्वराय नमः।
ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नमः।
👉🍁 ध्यानम् 🍁
नीलमेघसमप्रख्यं चतुर्भुजमुदारकम् ।
शङ्खचक्रगदापद्मैः शोभिताङ्घ्रियुगं हरिम् ॥ १॥
गरुडासनमारूढं लक्ष्म्या साकं सनातनम् ।
भक्तानुग्रहदातारं वरदाभयदायिनम् ॥ २॥
कार्तिके पूर्णिमायां तं पृथ्व्यां प्रकटमव्ययम् ।
कृपामृतप्रवाहेन सीञ्चन्तं विश्वमात्मना ॥ ३॥
तेजसा लोकमाखण्डं दीपयन्तं जगत्पतिम् ।
सदा पालय मां भक्तं लक्ष्मीनारायणं भजे ॥ ४॥
ध्यान हिन्दी अर्थ:–
हम उन भगवान श्रीनारायण का ध्यान करते हैं —
जो नील मेघ के समान श्यामवर्ण हैं, चार भुजाओं से युक्त हैं,
जिनके करों में शंख, चक्र, गदा और पद्म शोभित हैं।
जो गरुड़ वाहन पर माता लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं,
जो भक्तों को अभय और वरदान प्रदान करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिवस पर वे पृथ्वी पर प्रकट हुए,
जिनके नेत्रों से करुणा-अमृत की वर्षा हो रही है,
जिनका दिव्य तेज संपूर्ण जगत को प्रकाशित कर रहा है।
ऐसे श्री लक्ष्मी–नारायण हमारे सदा रक्षक बनें।
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ॐ श्रीगणेशाय नमस्तुभ्यं सिद्धिदाय नमोऽस्तु ते।
विघ्नानां नाशकं नित्यं भक्तानां फलदं शुभम्॥१
अर्थ:
हे विघ्नविनाशक श्रीगणेश! आपको नमस्कार। आप भक्तों को शुभ फल देने वाले और सभी विघ्नों को नाश करने वाले हैं।
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नारायणं नमस्कृत्य नराञ्चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्॥२
अर्थ:
श्री नारायण, नार, सरस्वती देवी और व्यास मुनि को प्रणाम करके ही इस स्तोत्र का शुभारम्भ करना चाहिए।
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श्रीलक्ष्मीं च वरदां देवीं नमामि भक्तवत्सलाम्।
नारायणं च शान्तात्मानं सर्वलोकनमस्कृतम्॥३
अर्थ:
मैं वरदायिनी, भक्तवत्सला श्रीलक्ष्मी और शांतस्वरूप, सर्वलोकपूज्य भगवान नारायण को प्रणाम करता हूँ।
-🍁
गङ्गायै नमः पुण्यायै तुलस्यै नित्यशोभिने।
दीपज्योतिः प्रभायै च नमः कार्तिकपूर्णिमे॥४
अर्थ:
पवित्र गंगा, मंगलदायिनी तुलसी, और दीपज्योति की प्रभा को प्रणाम! हे कार्तिकपूर्णिमा! तुझे नमन।
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कार्तिके पूर्णिमा शुभ्रा दिव्यदीपप्रकाशिनी।
गङ्गातटे हरिः श्रीमान् आविर्भूतः सहैव हि॥५
अर्थ:
कार्तिक की उज्ज्वल पूर्णिमा, जब दीपों की दिव्यता छा जाती है — उस दिन गंगातट पर स्वयं श्रीहरि लक्ष्मी सहित प्रकट होते हैं।
-🍁
विष्णुलोके स्थितौ देवौ क्रीडन्तौ कमलालयौ।
लोकार्थं गङ्गामागत्य ददृशाते जनार्दनौ॥६
अर्थ:
विष्णुलोक में कमलासन पर क्रीड़ा करते हुए लक्ष्मी–नारायण, लोककल्याण हेतु गंगा तट पर अवतरित हुए।
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तदा दिक् सर्वतो भाति दीपमालासमाकुला।
भक्ताः सस्मितवदना गङ्गास्नाने समुज्ज्वलाः॥७
अर्थ:
उस समय दिशाएँ दीपमालाओं से जगमगा उठीं। भक्त हर्षित मुख से गंगास्नान करते हुए दिव्य आभा में स्नान कर रहे थे।
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तुलसीवृन्दवनं यत्र दीपैः शोभायते समम्।
तत्र लक्ष्मीर्निवसति नारायणः सहानुगः॥८
अर्थ:
जहाँ तुलसी का वृन्दावन दीपों से सुसज्जित होता है, वहीं श्रीलक्ष्मी और नारायण निवास करते हैं।
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घृतदीपप्रज्वलितं हरिमन्दिरमण्डितम्।
शङ्खचक्रगदापद्मधारी विष्णुः प्रसीदतु॥९
अर्थ:
जहाँ घृतदीप प्रज्वलित होते हैं और मंदिर शोभित होता है, वहाँ शंख–चक्र–गदा–पद्मधारी विष्णु कृपा करते हैं।
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कर्पूरगौरवपुः श्रीमान् पीताम्बरविभूषितः।
लक्ष्म्या सह समायातो भक्तानुग्रहकाङ्क्षया॥१०
अर्थ:
कर्पूरवत् गौरवर्ण श्रीहरि पीताम्बर धारण कर, लक्ष्मी सहित भक्तों को वर देने की इच्छा से अवतरित हुए।
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शङ्खनादोऽभवत् तत्र, गङ्गाजलध्वनिसङ्गतः।
तुरङ्गनादवद्भूशा दिशः सर्वाः प्रहृष्टवत्॥११
अर्थ:
जब शंखनाद गंगा की ध्वनि से मिल गया, तब दिशाएँ घोड़े के नाद समान गूँज उठीं और सब प्रसन्न हो गए।
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देवा ऋषयश्चागत्य दिव्यपुष्पैरभिषिच्य तौ।
लक्ष्मी-नारायणौ वन्द्यौ स्तुत्वा नत्वा ततो ययुः॥१२
अर्थ:
देवता और ऋषिगण वहाँ आए, पुष्पों से उनका अभिषेक किया और स्तुति कर प्रणाम करके लौट गए।
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तत्र ब्रह्मा हरिश्चैव रुद्रश्च सह पार्वती।
त्रिदेवैः सहितो विष्णुं पूजयामास भक्तितः॥१३
अर्थ:
ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र तीनों देवों ने भक्तिभाव से श्रीविष्णु का पूजन किया।
–🍁
लक्ष्मीः पद्मासनस्था सा हरिपार्श्वे विराजते।
कङ्कणाभरणैः पूर्णा शुभ्रवर्णा मनोहरा॥१४
अर्थ:
श्रीलक्ष्मी कमलासन पर, हरि के बगल में, आभूषणों से शोभायमान, शुभ्रवर्ण और मनोहर रूप में विराजती हैं।
-🍁
तस्याः करकमले जातं कमलं सुविभासितम्।
यत्र गङ्गा समुत्पन्ना पावयन्ती जगत्त्रयम्॥१५
अर्थ:
देवी के करकमल से कमल उत्पन्न हुआ, उसी से गंगा प्रवाहित हुई जो तीनों लोकों को पवित्र करती है।
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तदा दिव्याः सुराः सर्वे पुष्पवृष्टिं प्रचक्रिरे।
दिव्यमन्दानिलः स्पृष्टो हरिलक्ष्मीमवन्दत॥१६
अर्थ:
तब देवताओं ने पुष्पवृष्टि की, और मंद पवन ने भी हरिलक्ष्मी की आराधना की।
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भक्ताः सर्वे नमस्कृत्य दीपदानं प्रचक्रिरे।
कृष्णप्रेमपराः सर्वे गायन्ति हरिनामकम्॥१७
अर्थ:
सभी भक्तों ने नमस्कार कर दीपदान किया और हरिनाम संकीर्तन में मग्न हो गए।
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गङ्गातटं तदा सर्वं दीपमालाविभूषितम्।
दिशः सर्वा हरिप्रेम्णा कम्पन्ति इव भावतः॥१८
अर्थ:
गंगा का तट दीपमालाओं से जगमगा उठा; दिशाएँ हरिप्रेम से स्पंदित प्रतीत हो रही थीं।
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गृहे गृहे हरिपूजा दीपदानं च शुभ्रकम्।
तुलसीदलेन संयुक्तं सर्वं पुण्यप्रदं हि तत्॥१९
अर्थ:
हर घर में हरिपूजन और दीपदान हुआ, तुलसीदल से युक्त यह सब कार्य महान पुण्य देने वाला बना।
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लक्ष्मीनारायणौ तत्र सन्तुष्टौ भक्तिवर्धनौ।
प्रददतुर्मह्यं भक्तेभ्यः सौभाग्यं धनमेव च॥२०
अर्थ:
वहाँ लक्ष्मी–नारायण प्रसन्न होकर भक्तों को सौभाग्य और धन का वरदान देते हैं।
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गङ्गाजलेन स्नानं तु यः करोति समाहितः।
तस्य पापानि नश्यन्ति दीपज्योतिप्रभावतः॥२१
अर्थ:
जो गंगा स्नान इस दिन श्रद्धा से करता है, दीपज्योति की दिव्यता से उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
-🍁
तुलसीदलसमायुक्तं हरिपूजनमुत्तमम्।
सर्वसिद्धिप्रदं नित्यं कार्तिके पूर्णिमादिने॥२२
अर्थ:
कार्तिक पूर्णिमा को तुलसीदल से हरि का पूजन करने वाला भक्त सभी सिद्धियाँ प्राप्त करता है।
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गङ्गातीरे दीपदानं यः करोति स भक्तिमान्।
स तु विष्णुपदं याति न पुनर्मर्त्यजन्मनि॥२३
अर्थ:
जो भक्त गंगातट पर दीपदान करता है, वह विष्णुपद (मोक्ष) प्राप्त करता है और पुनर्जन्म नहीं लेता।
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लक्ष्मीपतेः पदाम्भोजे मनः स्थाप्य निरन्तरम्।
ध्यायेत् नारायणं नित्यं ज्योतिर्मण्डलमध्यगम्॥२४
अर्थ:
भक्त को चाहिए कि लक्ष्मीपति नारायण के कमल चरणों में मन स्थिर रखे और दीपज्योति के मध्य स्थित हरि का ध्यान करे।
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तुलसीवनसंयुक्तं दीपशोभायुतं गृहम्।
यत्र हरिः स्मृतः साक्षात् तत्र लक्ष्मीर्न विर्भवेत्॥२५
अर्थ:
जहाँ तुलसी और दीपशोभा से युक्त घर में हरि का स्मरण होता है, वहाँ लक्ष्मी स्थिर रूप से निवास करती हैं।
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कर्पूरदीपसुगन्धेन पूजितो यः जनार्दनः।
तस्य जन्मान्तरं नास्ति विष्णुलोके स विन्दति॥२६
अर्थ:
जो भक्त कर्पूरदीप की सुगंध से जनार्दन का पूजन करता है, वह पुनर्जन्म से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त होता है।
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गङ्गातटेऽथवा गेहे दीपदानं विशुद्धचित्तः।
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुप्रीतिं लभेत सः॥२७
अर्थ:
जो गंगातट या अपने घर में निर्मल चित्त से दीपदान करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु की कृपा पाता है।
–🍁
हरिपदाम्बुजसक्तं मनो यस्य सदाऽस्ति हि।
तस्य गृहे शुभं नित्यं, स एव श्रीपतेः प्रियः॥२८
अर्थ:
जिसका मन हरि के चरणों में सदा लगा रहता है, उसके घर में नित्य मंगल होता है — वह श्रीपति का प्रिय बन जाता है।
-🍁
यत्र दीपशतं भाति तुलसीमूलमण्डले।
तत्र हर्षं लभन्तेऽपि पितरः स्वर्गवासिनः॥२९
अर्थ:
जहाँ तुलसी के मूल में दीप जलते हैं, वहाँ स्वर्गस्थ पितृगण भी हर्षित हो जाते हैं।
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इत्येवं पूजनेनैव कार्तिके पूर्णिमादिने।
लक्ष्मी-नारायणौ देव्यौ गृहे गृहे वसेत्सदा॥३०
अर्थ:
इस प्रकार कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो इस पूजन का अनुष्ठान करता है, उसके घर में सदा लक्ष्मी–नारायण निवास करते हैं।
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ध्यानं समारभे नित्यं लक्ष्मीनारायणं हरिम् ।
चतुर्भुजं पद्मगदाचक्रशङ्खधारिणम् ॥३१
अर्थ:
मैं सदा श्रीलक्ष्मी–नारायण का ध्यान करता हूँ, जो चार भुजाओं वाले हैं,
हाथों में पद्म, गदा, चक्र और शंख धारण किए हुए हैं।
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नीलमेघसमाकाशं सुवर्णाभां च शोभनम् ।
स्मेराननं चतुर्वेदीं सर्वलोकनमस्कृतम् ॥३२
अर्थ:
वे नील मेघ समान श्यामवर्ण के, स्वर्ण प्रभा से दैदीप्यमान,
मंदहासयुक्त मुख वाले, और चार वेदों से पूजित हैं।
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लक्ष्म्याः सहायतां युक्तं करकमलयुग्मस्थलम् ।
यत्र श्रीश्च हरिश्चैक्यं तं वन्दे परमं हरिम् ॥३३
अर्थ:
जिनके करकमलों में स्वयं लक्ष्मी का स्पर्श रहता है,
जहाँ लक्ष्मी और हरि का ऐक्य है — उन परम हरि को नमस्कार है।
🍁
दीपज्योतिषि यं पश्येत् तुलसीमूले नवं हरिम् ।
स प्राप्नोति महालक्ष्मीं भोगमोक्षप्रदायिनीम् ॥३४
अर्थ:
जो तुलसी के मूल में दीपज्योति के साथ श्रीहरि का दर्शन करता है,
वह भोग और मोक्ष देने वाली महालक्ष्मी को प्राप्त करता है।
-🍁
पद्मासनस्थितां देवीं पद्मपत्रनिभेक्षणाम् ।
नमामि भक्तनिलयां सर्वसिद्धिप्रदां विष्णु प्रियाम् ॥३५
अर्थ:
मैं उस देवी को नमस्कार करता हूँ जो कमलासन पर विराजमान हैं,
कमल के समान नेत्रोंवाली, भक्तों के हृदय में निवास करनेवाली और सर्वसिद्धिदायिनी हैं।
🍁
नारायणं नमस्कृत्य लक्ष्म्याः सह करं मम ।
प्रसीद देवदेवेश जगन्नाथ नमोऽस्तु ते ॥३६
अर्थ:
हे देवदेवेश, हे जगन्नाथ नारायण! लक्ष्मी सहित आप पर नमस्कार है —
मेरे प्रति कृपालु बनें।
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गजेन्द्रमोक्षणं कृत्वा भक्तानां दुःखनाशनम् ।
तस्मै हरये नमो नित्यं श्रीलक्ष्म्या सह वासिने ॥३७
अर्थ:
जिस भगवान ने गजेन्द्र को बन्धन से मुक्त किया,
भक्तों के दुःखों को हर लिया — उस लक्ष्मी–सहित हरि को नमस्कार।
🍁
तुलसीदलमात्रेण पूजितो यो जनार्दनः ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते ॥३८
अर्थ:
जो जन तुलसीदल से भगवान जनार्दन की पूजा करता है,
वह समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।
🍁
अन्नदानं फलत्येव धनदानं तु क्षीयते ।
हरिभक्तिर्हि नित्यैव सर्वफलप्रदायिनी ॥३९
अर्थ:
अन्नदान अवश्य फल देता है, धनदान नश्वर है,
परंतु हरि की भक्ति शाश्वत है और सब फल देनेवाली है।
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लक्ष्मीनारायणं देवं सर्वलोकनमस्कृतम् ।
स्मरामि भक्त्यया नित्यं मम जन्मसफल्यकम् ॥४०
अर्थ:
सभी लोकों द्वारा पूजित लक्ष्मी–नारायण का मैं नित्य स्मरण करता हूँ;
यही मेरे जीवन की सफलता है।
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नमः कमलपत्राय नमः कमलमालिने ।
नमः श्रीविष्णुपत्नीभ्यां नमो नारायणाय च ॥४१
अर्थ:
कमलपत्र और कमलमाला धारण करनेवाली देवी को नमस्कार,
श्रीविष्णुपत्नी लक्ष्मी और स्वयं नारायण को नमस्कार।
🍁
भक्तानामभयं दत्वा दीनानुग्रहकारिणीम् ।
नमामि सर्वमङ्गल्यां लक्ष्मीं नारायणप्रियाम् ॥४२
अर्थ:
जो भक्तों को अभय देती हैं और दीनों पर कृपा करती हैं —
उस मङ्गलमयी, नारायणप्रिय लक्ष्मी को नमस्कार।
🍁
शङ्खचक्रगदापद्मधारिणं गरुडध्वजम् ।
स्मरेद् यः कार्तिके मासि तस्य सिद्धिः न संशयः ॥४३
अर्थ:
जो कार्तिक मास में शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण करनेवाले गरुड़ध्वज विष्णु का स्मरण करता है —
उसे निश्चय ही सिद्धि प्राप्त होती है।
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हरिर्भक्तिप्रदो नित्यं लक्ष्मीः सौख्यप्रदायिनी ।
द्वाभ्यां रहितमात्मानं न पश्यामि कदाचन ॥४४
अर्थ:
हरि सदा भक्ति देनेवाले हैं और लक्ष्मी सदा सुख देनेवाली —
मैं इन दोनों के बिना स्वयं को कभी नहीं देख सकता।
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सर्वतीर्थमयं तोयं लक्ष्मीनारायणालये ।
स्नातो भवति यो भक्तः स मुक्तः सर्वसंशयात् ॥४५
अर्थ:
लक्ष्मी–नारायण के मंदिर का जल सभी तीर्थों के समान है;
जो भक्त उसमें स्नान करता है, वह सभी संशयों से मुक्त हो जाता है।
🍁
दीपज्योतिःसमायुक्तो लक्ष्मीनारायणार्चकः ।
भवत्येव महीपालो यावदिन्द्रः सदीर्घजीवः ॥४६
अर्थ:
जो दीपज्योति के संग लक्ष्मी–नारायण की पूजा करता है,
वह दीर्घजीवी और समृद्ध राजा समान बन जाता है।
🍁
श्रीकेशव नारायणो देवः श्रीदेवीप्राणवल्लभः ।
भक्तानां हृदि वासं च करोति स परात्मवान् ॥४७
अर्थ:
श्रीकेशव नारायण, जो श्रीदेवी के प्राणप्रिय हैं,
भक्तों के हृदय में स्वयं निवास करते हैं।
🍁
प्रसीद मम नाथाय श्रीदेव्याः पतये हरिम् ।
भवसागरसम्भिन्नं मां रक्षस्व कृपया प्रभो ॥४८
अर्थ:
हे लक्ष्मीपति हरि! कृपया मुझ जैसे भवसागर में डूबे जीव को बचाइए —
आप ही मेरे नाथ हैं।
🍁
अहं तव दासो देव त्वमेव शरणं मम ।
लक्ष्म्याः सहायतां दत्वा त्राहि मां कमलापते ॥४९
अर्थ:
मैं आपका दास हूँ, आप ही मेरे शरण हैं —
हे कमलापति, लक्ष्मी सहित मुझे शरण दीजिए और रक्षा कीजिए।
🍁
नमोऽस्तु नारायणायैकाय लक्ष्म्यै च जनमङ्गले ।
दम्पत्योः प्रसादेन मे सदा स्यान्मोक्षसिद्धयः ॥५०
अर्थ:
श्रीलक्ष्मी और नारायण, इस जगत् के मंगलरूप दम्पति को नमस्कार —
आप दोनों की कृपा से मुझे सदा मोक्षसिद्धि प्राप्त हो।
-🍁
सदा तुलसीमूले यं पूजयेद् भक्तिसंयुतः ।
तस्य गृहे सदा तिष्ठेन्महालक्ष्म्यनपायिनी ॥५१
अर्थ:
जो भक्त तुलसीमूल में श्रीहरि का पूजन करता है,
उसके घर में महालक्ष्मी सदा स्थिर रहती हैं।
🍁
विष्णोर्नामस्मृतिं कृत्वा दीनोऽपि धनवान्भवेत् ।
सुखं श्रियं च लभते कार्तिके पूजितो हरिः ॥५२
अर्थ:
जो कार्तिक में हरि की पूजा कर विष्णु का नामस्मरण करता है,
वह निर्धन भी धनवान बन जाता है और सुख-सौभाग्य पाता है।
🍁
हरिर्दाता हरिः पाता हरिः सर्वस्य कारणम् ।
तस्मान्नारायणं देवं स्मरामि सततं हृदि ॥५३
अर्थ:
हरि ही दाता हैं, हरि ही पालक हैं, हरि ही सबका कारण हैं —
इसलिए मैं नारायण का हृदय से नित्य स्मरण करता हूँ।
🍁
यत्र लक्ष्मीः पतिव्रता तत्र हरिः सदा स्थितः ।
यत्र हरिः सदा तिष्ठेत् तत्र लक्ष्मीः प्रतिष्ठिता ॥५४
अर्थ:
जहाँ लक्ष्मी पतिव्रता रूप में हैं, वहाँ हरि सदा रहते हैं;
और जहाँ हरि हैं, वहाँ लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं।
🍁
गङ्गातटवने रम्ये यः पूजयति माधवम् ।
सः प्राप्नोति फलान्येव यज्ञकोटिसमुद्धतान् ॥५५
अर्थ:
जो गंगातट पर या पवित्र वन में माधव की पूजा करता है,
वह करोड़ यज्ञों के समान फल प्राप्त करता है।
🍁
श्रीहरिः सर्वमूर्तीनां मूर्तिर्देवो जनार्दनः ।
यः तं ध्यायति भक्त्येन स सर्वं प्राप्नुयात् फलम् ॥५६
अर्थ:
श्रीहरि सभी मूर्तियों के मूल देवता हैं;
जो उन्हें भक्ति से ध्यान करता है, वह सब सिद्धि प्राप्त करता है।
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नारायणो जगन्नाथो लक्ष्मीपतिरच्युतः ।
नमस्तस्मै महायोगिने सर्वेशाय नमो नमः ॥५७
अर्थ:
जगन्नाथ नारायण, लक्ष्मीपति अच्युत, महायोगी —
आपको बारंबार नमस्कार।
–🍁
विष्णोः कृपाकटाक्षेण भक्तः पापात्प्रमुच्यते ।
लक्ष्म्या सह हृषीकेशं नमामि करुणाकरम् ॥५८
अर्थ:
विष्णु की कृपादृष्टि से भक्त पापों से मुक्त हो जाता है;
मैं लक्ष्मी सहित हृषीकेश करुणामय को नमस्कार करता हूँ।
🍁
जय लक्ष्मीपते विष्णो जय श्रीनाथ सुव्रत ।
जय सर्वजगत्साक्षिन् जय भक्तप्रपालक ॥५९
अर्थ:
हे लक्ष्मीपति विष्णो! हे श्रीनाथ! हे सर्वजगत् के साक्षी!
आपको विजय हो — आप भक्तों के रक्षक हैं।
-🍁
सर्वदेवमयं रूपं सर्वतीर्थमयं हरिम् ।
भजामि भक्त्या नित्यं तं नारायणमच्युतम् ॥६०
अर्थ:
जो हरि सभी देवताओं और तीर्थों के साररूप हैं,
मैं उस अच्युत नारायण की नित्य भक्ति करता हूँ।
🍁
त्वं माता कमले देवि, विष्णोः प्रियतमाऽनघे।
मम भावं शृणु भक्तस्य, कृपां कुरु जनार्दने॥६१
अर्थ:
हे कमलासन देवी! हे विष्णुप्रिया!
मेरे भक्तिभाव को सुनो और जनार्दन के संग मुझ पर कृपा करो।
🍁
शङ्खचक्रगदापद्मैः, भूषितो हरिरच्युतः।
लक्ष्म्या सह स्थितो नित्यं, मम हृदि प्रकाशताम्॥६२
अर्थ:
शंख, चक्र, गदा और पद्म से सुशोभित अच्युत हरि,
लक्ष्मी सहित मेरे हृदय में सदा प्रकाशित हों।
🍁
मुक्ताहारपरिक्लिन्ना, सुवर्णाभा च पद्मिनी।
हरिणा सह संयुक्ता, मम दुःखं विनाशय॥६३
अर्थ:
मुक्ताहारधारिणी, स्वर्णाभा देवी पद्मिनी!
श्रीहरि के संग मिलकर मेरे सभी दुःखों को नष्ट करो।
🍁
प्रसीद देवदेवेश, लक्ष्मीपत जनार्दन।
त्वं त्राता सर्वलोकानां, मां त्राहि शरणं गतम्॥६४
अर्थ:
हे देवेश, हे लक्ष्मीपति जनार्दन!
जगत के रक्षक, अब मेरी भी रक्षा करो — मैं तुम्हारी शरण आया हूँ।
🍁
त्वमेव शरणं नाथ, त्वमेव परमं पदम्।
त्वमेव प्राणिनां बन्धु:, त्वमेव भक्तवत्सलः॥६५
अर्थ:
हे नाथ! तुम ही शरण हो, तुम ही परम पद हो,
तुम ही सबके बन्धु हो और भक्तों से प्रेम करने वाले हो।
-🍁
लक्ष्म्याः करकमलस्पर्शात्, भवद्भिर्मे दृशं कुरु।
अन्धकारं विनाश्याशु, ज्ञानदीपं प्रबोधय॥६६
अर्थ:
हे हरि! लक्ष्मी के करकमल-स्पर्श से मेरी दृष्टि निर्मल करो,
अज्ञान का अंधकार मिटाकर ज्ञानदीप प्रज्वलित करो।
-🍁
दीनानाथ दयासिन्धो, करुणामृतसागर।
मां पालय परमेशान, सर्वदुःखविनाशक॥६७
अर्थ:
हे दीननाथ, करुणामय सागर!
मुझे संरक्षण दो, हे परमेश्वर — जो सब दुःखों का नाश करते हो।
-🍁
नमो नमस्ते लक्ष्म्यै च, नमो नमो जनार्दन।
भक्तानां सर्वसौख्याय, ददथः करसन्निधिम्॥६८
अर्थ:
लक्ष्मी और जनार्दन दोनों को बारम्बार नमस्कार!
आप दोनों अपने करों से भक्तों को सर्वसौख्य प्रदान करते हैं।
🍁
दीपज्योतिषि तिष्ठन्तौ, यत्र यत्र च पूज्यकौ।
तत्र तत्र हरिलक्ष्मी, युगपत् पूज्यते मया॥६९
अर्थ:
जहाँ दीपज्योति में आप दोनों पूजित होते हैं,
वहाँ हरि–लक्ष्मी की संयुक्त आराधना मैं करता हूँ।
-🍁
नमोऽस्तु ते पद्मपते, नमोऽस्तु कमले शुभे।
भक्त्यैव धारये नित्यं, युगलस्वरूपमुत्तमम्॥७०
अर्थ:
हे पद्मपति विष्णु! हे कमले शुभे!
मैं नित्य भक्ति से आपके इस युगल स्वरूप को हृदय में धारण करता हूँ।
-🍁
शरणागतदीनानां, दत्तं करसुधामृतम्।
तत्पिबाम्यहमेकाग्रः, तेन मे शान्तिरस्तु वै॥७१
अर्थ:
आपका करकमल शरणागतों को अमृत प्रदान करता है;
मैं उसी अमृत को ध्यानपूर्वक ग्रहण कर शांति पाता हूँ।
🍁
हरिर्नारायणो देवः, लक्ष्मीश्चैव सनातनी।
यौ ममान्तःस्थितौ नित्यं, ते मे सन्तु प्रशान्तिदौ॥७२
अर्थ:
सनातन हरि–लक्ष्मी जो मेरे अंतःकरण में स्थित हैं,
वे सदैव मुझे शांति और प्रसन्नता दें।
🍁
गङ्गातटे तु दीपानां, ज्वालामालां विलोकयन्।
स्मरामि तत्र तौ देवीं, हरिं चातुलतेजसम्॥७३
अर्थ:
गंगातट पर दीपमालाओं को देखते हुए
मैं उसी क्षण हरि–लक्ष्मी के उस असीम तेजस्वी रूप को स्मरण करता हूँ।
-🍁
त्वं श्रीः पद्मा च पद्मस्था, त्वं विष्णोः हृदयानगा।
त्वया विहीना जगतः, शान्तिर्नास्ति कदाचन॥७४
अर्थ:
हे देवी! तुम पद्मिनी रूप में विष्णु के हृदय में स्थित हो;
तुम्हारे बिना इस जगत में कहीं भी शांति नहीं रहती।
🍁
त्वया सह हरिः शान्तः, त्वया लोकः प्रकाश्यते।
त्वया जीवाः प्रसन्नाश्च, त्वया दुःखं विनश्यति॥७५
अर्थ:
हे लक्ष्मी! तुम्हारे साथ ही हरि शांत और पूर्ण होते हैं;
तुमसे ही लोक प्रकाशित होता है, जीव आनन्दित होते हैं, और दुःख मिटता है।
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नमस्ते सर्वलोकानां, कारणायै नमो नमः।
लक्ष्म्यै नमस्ते नित्यायै, हरयेऽनन्तरूपिणे॥७६
अर्थ:
सभी लोकों के कारणरूप देवी लक्ष्मी को नमन!
और अनन्तरूप भगवान हरि को भी शत-शत प्रणाम!
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युग्मं लक्ष्मीनारायणं, ध्यानं मे स्थिरमस्तु वै।
मम चित्ते सदा तिष्ठन्, मोक्षमार्गं प्रयच्छताम्॥७७
अर्थ:
लक्ष्मी–नारायण के इस युगल रूप का ध्यान मेरे चित्त में स्थिर रहे,
और वे मुझे मोक्षमार्ग प्रदान करें।
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यत्र गङ्गा च तुलसी दीपज्योतिर्विलोक्यते ।
तत्रैव हरिरेवास्य साक्षाद्दर्शनदायकः ॥७८
अर्थ:
जहाँ गंगा, तुलसी और दीपज्योति एक साथ पूजित हों,
वहाँ स्वयं हरि साक्षात् दर्शन देते हैं।
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नारायणः सह लक्ष्म्या सर्वकामप्रदायकः ।
अनन्तसुखसौभाग्यं ददाति भक्तवत्सलः ॥७९
अर्थ:
लक्ष्मी सहित नारायण भक्तों के सभी मनोवांछित कार्य पूरे करते हैं
और उन्हें अनन्त सुख-सौभाग्य देते हैं।
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दीपज्योतिः प्रभा यत्र हरिपूजासमन्विता।
तत्र लक्ष्मीर्निवसति शान्तिः सर्वत्र वर्धते॥८०
अर्थ:
जहाँ हरिपूजा के संग दीपज्योति की प्रभा होती है, वहाँ लक्ष्मी का निवास और शांति की वृद्धि होती है।
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गङ्गास्नानेन शुद्धात्मा दीपदानं समाचरेत्।
येन सन्तोष्यते विष्णुः सौभाग्यं परमं ददात्॥८१
अर्थ:
गंगा-स्नान के बाद जो भक्त दीपदान करता है, वह विष्णु को प्रसन्न कर परम सौभाग्य प्राप्त करता है।
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तुलसीमूलमासाद्य दीपं दत्वा नमस्कृतः।
हरिः प्रसन्नो भवति ददाति कमलालयाम्॥८२
अर्थ:
जो तुलसी के मूल में दीप देकर प्रणाम करता है, उस पर श्रीहरि प्रसन्न होकर उसे श्रीलक्ष्मी की कृपा देते हैं।
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नारायणस्य पूजायां दीपो यः सन्निधीयते।
स वै मोक्षप्रदो ज्ञेयो ब्रह्मतेजः स्वयं स्मृतः॥८३
अर्थ:
जो दीप नारायण की पूजा में अर्पित होता है, वह मोक्षदायक माना गया है — वह स्वयं ब्रह्मतेज के समान है।
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सुगन्धद्रव्ययुक्तेन दीपेन हरिपूजनम्।
अखण्डलक्ष्मिदं नित्यं सर्वक्लेशविनाशनम्॥८४
अर्थ:
सुगंधित दीपक से हरिपूजन करने पर अखण्ड लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और सारे क्लेश दूर हो जाते हैं।
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विष्णोः कृते यत्क्रियते दीपदानं विशेषतः।
तत्सर्वयज्ञसदृशं फलदं परमं स्मृतम्॥८५
अर्थ:
भगवान विष्णु के निमित्त किया गया दीपदान सभी यज्ञों के समान महान फलदायक कहा गया है।
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नारायणो हि दीपेन हृदयं पूरयत्यसौ।
प्रकाशयति चेतांसि पापान्धकारनाशनः॥८६
अर्थ:
श्रीहरि स्वयं दीपज्योति के माध्यम से भक्त के हृदय को प्रकाशित करते हैं और उसके पापरूप अंधकार को मिटा देते हैं।
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यत्र दीपप्रभा ध्याता तत्र विष्णुः स्वयं स्थितः।
भक्तानां सुमनःपुष्पैः पूजितो जगतां पतिः॥८७
अर्थ:
जहाँ दीप की प्रभा में हरि का ध्यान होता है, वहाँ स्वयं विष्णु स्थित होकर भक्तों की पूजा स्वीकार करते हैं।
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लक्ष्मीः पद्मालयाऽभूत्वा दीपज्योतिषि तिष्ठति।
यः पश्यति स भक्तोऽपि पुण्यलोकं स गच्छति॥८८
अर्थ:
श्रीलक्ष्मी दीपज्योति में निवास करती हैं; जो भक्त श्रद्धा से उस ज्योति का दर्शन करता है, वह पुण्यलोक को प्राप्त होता है।
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तुलसीपत्रसंयुक्तं दीपदानं विशेषतः।
हरिप्रीतिप्रदं नित्यं सौभाग्यस्यानुकारणम्॥८९
अर्थ:
तुलसीपत्र के साथ किया गया दीपदान विशेषतः हरि की प्रीति का कारण और सौभाग्यदायक होता है।
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गङ्गाजलस्य स्पर्शेन दीपोऽयं परमं शुभः।
पवित्रयति लोकान् वै विष्णुलोकं प्रयच्छति॥९०
अर्थ:
गंगाजल से स्पर्शित दीप परम पवित्र होता है — वह लोकों को शुद्ध करता और विष्णुलोक की प्राप्ति कराता है।
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यत्र गङ्गा, यत्र तुलसी, यत्र दीपः प्रजायते।
तत्र लक्ष्मीः स्थिरा नित्यं, तत्र विष्णुः स्वयं हरिः॥९१
अर्थ:
जहाँ गंगा, तुलसी और दीप तीनों उपस्थित हों, वहाँ लक्ष्मी स्थिर रहती हैं और हरि स्वयं निवास करते हैं।
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यः कृत्वा दीपदानं तु हरिं ध्यायति च स्मरन्।
तस्य नश्यन्ति दुःखानि जन्मनः कर्मणः फलम्॥९२
अर्थ:
जो दीपदान करते हुए हरि का ध्यान करता है, उसके जन्मजन्मांतर के दुःख और कर्मफलों का नाश हो जाता है।
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दीपज्योतिः समालोक्य हरिलक्ष्म्यौ हृदि स्मरन्।
सर्वसिद्धिं लभेन्नित्यं, न पुनर्जन्ममाप्नुयात्॥९३
अर्थ:
दीपज्योति में लक्ष्मी–हरि का स्मरण करने वाला साधक सभी सिद्धियाँ प्राप्त करता है और पुनर्जन्म से मुक्त होता है।
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दीपदानं तुलसीमूले, गङ्गायां वा समाचरेत्।
सर्वसङ्कटनिर्मुक्तो लभते परमं सुखम्॥९४
अर्थ:
तुलसी के मूल या गंगा में दीपदान करने वाला भक्त सभी संकटों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है।
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नारायणः प्रसन्नोऽभूत् लक्ष्म्या सह पुरा सुतः।
दीपमालावलोक्यैव भक्तानुग्रहकाङ्क्षया॥९५
अर्थ:
दीपमालाओं को देखकर नारायण लक्ष्मी सहित अत्यंत प्रसन्न हुए और भक्तों पर अनुग्रह करने लगे।
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तदा दिव्या गिरा देवौ उचतुर्वैष्णवं वचः।
“दीपदानं मम प्रियं सर्वदानप्रदानकम्॥”९६
अर्थ:
तब भगवान ने दिव्य वाणी से कहा — “सभी दानों में मुझे सर्वाधिक प्रिय है दीपदान।”
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“यः कर्ता दीपदानस्य श्रद्धया कार्तिके व्रते।
तस्य कुले न दारिद्र्यं न च दुःखं भवेद्ध्रुवम्॥”९७
अर्थ:
जो कार्तिक मास में श्रद्धा से दीपदान करता है, उसके कुल में कभी दरिद्रता या दुःख नहीं रहता।
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अन्नं धान्यं धनं चैव वाजिनं वाहनं तथा ।
सुतान् सौख्यं च लभते कार्तिके पूज्य नारयणे ९८
अर्थ:
जो कार्तिक मास में श्रीनारायण की पूजा करता है,
वह अन्न, धन, धान्य, वाहन, संतान और सुख-समृद्धि प्राप्त करता है।
इदं हरिलक्ष्मीस्तोत्रं, यः पठेत् श्रद्धयान्वितः।
स जीवन्मुक्तभावेन, विष्णुलोके महीयते॥९९
अर्थ:
जो श्रद्धा से इस हरि–लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है,
वह इसी जीवन में मुक्तभाव प्राप्त कर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।
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यः पठेदिदमत्यद्भुतं स्तोत्रं श्रद्धासमन्वितः ।
तस्य गृहे सदा लक्ष्मीर्नारायणः स्वयं वसेत् ॥१००
अर्थ:
जो इस अद्भुत स्तोत्र को श्रद्धा से पढ़ता है,
उसके घर में सदा लक्ष्मी और स्वयं नारायण निवास करते हैं।
🌺 इति श्री शुभम् 🌺
पौराणिक कथा (Mythological Significance)
पुराणों के अनुसार, देव–असुर संग्राम के पश्चात जब त्रैलोक्य में असंतुलन उत्पन्न हुआ,
तब भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी के साथ कार्तिक पूर्णिमा के दिन
क्षीरसागर में अवतार लेकर सृष्टि में संतुलन और शांति स्थापित की।
इसी दिन देव दीपावली का उत्सव भी मनाया जाता है —
जब स्वयं देवता गंगा तट पर दीप प्रज्वलित कर श्रीहरि का स्वागत करते हैं।
कहा गया है —
“गङ्गातटे दीपदानं यः करोति स भक्तिमान्,
स विष्णुपदं याति न पुनर्मर्त्यजन्मनि॥”
अर्थ:
जो व्यक्ति कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में गंगा तट पर दीपदान करता है,
वह विष्णु के धाम को प्राप्त करता है और पुनः जन्म नहीं लेता।
🌿 इस दिन के विशेष पूजन (Rituals & Puja Vidhi)
- प्रातःकाल गंगा स्नान या तुलसी स्नान करें।
यदि गंगा तट न जा सकें, तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करें। - श्रीलक्ष्मी–नारायण का पूजन करें।
पीले वस्त्र, पुष्प, चंदन और तुलसीदल अर्पित करें। - दीपदान करें।
11, 21, या 108 दीपक जलाकर मंदिर, घर और तुलसी के पास रखें। - हरिनाम संकीर्तन करें।
“ॐ नमो नारायणाय” या “हरे कृष्ण हरे राम” का जाप करें। - दान–पुण्य करें।
इस दिन अन्न, वस्त्र या दीप दान का विशेष फल मिलता है।
🌞 कार्तिक पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्त्व (Spiritual Benefits)
- मन, वचन और कर्म की शुद्धि होती है।
- जीवन से आर्थिक और मानसिक संकट दूर होते हैं।
- लक्ष्मीजी की कृपा से घर में समृद्धि और स्थिरता आती है।
- पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भगवान नारायण के साथ दिव्य संबंध स्थापित होता है।
🌼 निष्कर्ष (Conclusion)
श्रीलक्ष्मी–नारायण कार्तिक पूर्णिमा उत्सव केवल एक पर्व नहीं,
बल्कि वह दिव्य रात्रि है जब अंधकार में भी प्रकाश जन्म लेता है।
यह दिन हमें सिखाता है कि श्रद्धा, सेवा और दीपदान के माध्यम से
हम अपने भीतर के अंधकार को भी आलोकित कर सकते हैं।
🪔
जय श्रीलक्ष्मी–नारायण!
हरि ॐ तत्सत्।