क्या कभी आपने अनुभव किया है कि कुछ शब्द, कुछ ध्वनियाँ आपके भीतर ऊर्जा जगा देती हैं?
यही है मंत्र की शक्ति (Mantra Power): वह रहस्यमय कंपन जो मन, शरीर और आत्मा को एक कर देता है।
भारत की ऋषि परंपरा में मंत्र केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि ध्वनि तरंगों के रूप में ब्रह्मांड की चेतना का प्रतीक हैं।
वेदों से लेकर उपनिषदों तक, हर युग में मंत्र साधना को आत्मशुद्धि, ध्यान और ईश्वरीय एकत्व का सर्वोच्च मार्ग बताया गया है।
मंत्रों के माध्यम से मनुष्य अपनी सुप्त शक्तियों को जागृत करता है।
कहा भी गया है —
“मंत्रोऽस्ति परमो बलम्” अर्थात् मंत्र ही सर्वोच्च शक्ति है।
आइए जानते हैं —
मंत्र क्या है? कैसे काम करता है?
और क्यों आज भी विज्ञान भी इसकी (Mantra Power) शक्ति को समझने का प्रयास कर रहा है।
✨ मंत्र क्या है?
मंत्र क्या है? क्या होती है मंत्र शक्ति (Mantra Power)?
भगवान श्रीराम ने भी शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देते समय कहा था —
“मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा।”
मंत्र शब्दों का वह संचय है जिससे इष्ट देव की कृपा प्राप्त की जा सकती है और अनिष्ट बाधाओं का नाश किया जा सकता है।
“मंत्र” शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है, जबकि ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है।
🕉️ मंत्र का गूढ़ अर्थ
मंत्र का उच्च स्तर वह अवस्था है जहाँ मनन रुक जाता है, मन लय हो जाता है, और मंत्र भी शांत हो जाता है।
यह वह स्थिति है जहाँ व्यक्ति जन्म–मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
🌿 मंत्रजप के लाभ
मंत्रजप से अनेक लाभ मिलते हैं, जैसे —
- आध्यात्मिक प्रगति
- शत्रु का विनाश
- अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति
- पापों का नाश
- वाणी की शुद्धि
मंत्रजप और ईश्वर नामजप में अंतर है
मंत्रजप में नियम आवश्यक हैं, जबकि नामजप किसी भी समय और स्थान पर किया जा सकता है।
मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है । मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती । उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है; परंतु ईश्वर का नामजप कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है ।
मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका विनियोग अच्छे अथवा बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है । यह धन कमाने समान है; धन का उपयोग किस प्रकार से करना है, यह धन कमाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है ।
मंत्र का मूल भाव होता है- मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।
🔱 मंत्रजप के नियम और विधियाँ
यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं- – मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।
किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।
1. सही आसन
पद्मासन मंत्रजप के लिए सर्वोत्तम है। इसके बाद वीरासन, सिद्धासन या वज्रासन प्रभावी माने जाते हैं।
2. सही समय
- ब्रह्ममुहूर्त (4–5 बजे सुबह) सर्वोत्तम माना गया है।
- प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) भी अत्यंत शुभ है।
- यदि यह संभव न हो, तो सोने से पहले का समय भी उपयुक्त है।
3. नियमितता और स्थान
- मंत्रजप नियत समय और स्थान पर करें।
- बार-बार स्थान न बदलें।
- जप के लिए तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला श्रेष्ठ मानी गई है।
4. विशेष मालाएँ
- मूंगे की माला — धन प्राप्ति के लिए
- पुत्रजीव माला — संतान प्राप्ति हेतु
- स्फटिक माला — सर्व कामना पूर्ति हेतु
5. दिशा और वातावरण
- दिन में — पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके
- रात्रि में — उत्तर दिशा की ओर मुख करके
- एकांत और शांत स्थान जैसे घर का देवालय या मंदिर चुनें।
6. माला जप के नियम
- माला को दूसरों को न दिखाएँ।
- अंगूठे और मध्यमा उंगली से माला घुमाएँ।
- सुमेरु (माला का सिरा) पार न करें, उसी से पुनः आरंभ करें।
📿 मंत्र का शास्त्रीय अर्थ
‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो। ‘बीज मंत्र’ किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है, जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है। यहां हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों के प्राण हैं या उनकी चाबी हैं
जैसे एक मंत्र-‘श्रीं’ मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है। इस तरह से हम जान पाते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है।
बीज मंत्र किसी भी मंत्र की मूल आत्मा होते हैं।
वे देवता की शक्ति को जागृत करते हैं — जैसे:
- श्रीं — लक्ष्मी का प्रतीक
- रं — धन और संपन्नता
- ईं — शक्ति
- बिंदु (ं) — दुख हरण का प्रतीक
इस प्रकार प्रत्येक बीज मंत्र दिव्य ऊर्जा का स्रोत है।
🌸 बीज मंत्रों की महिमा
सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। हम यह कह सकते हैं कि बीज मंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं मंत्र शब्द मन +त्र के संयोग से बना है !मन का अर्थ है सोच ,विचार ,मनन ,या चिंतन करना ! और “त्र ” का अर्थ है बचाने वाला , सब प्रकार के अनर्थ, भय से !लिंग भेद से मंत्रो का विभाजन पुरुष ,स्त्री ,तथा नपुंसक के रूप में है !
उदाहरण:
- श्रीं — लक्ष्मी बीज
- ऐं — सरस्वती बीज
- ह्रीं — शक्ति बीज
- क्लीं — कृष्ण प्रेम बीज
- रं — अग्नि बीज
- वं — जल तत्व बीज
पुरुष मंत्र — “हूं फट” पर समाप्त
स्त्री मंत्र — “स्वाहा” पर समाप्त
नपुंसक मंत्र — “नमः” पर समाप्त
🔮 मंत्र (Mantra Power) और ज्योतिष का संबंध
मंत्रों की शक्ति (Mantra Power) तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है। मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते।
ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है, उसका स्वभाव नहीं बदलता।
इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी कुंडली में बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।
वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी कुंडली में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है।
- मंत्रों की शक्ति रत्नों और उपायों से भी अधिक मानी गई है।
- जहाँ रत्न केवल ग्रह की ताकत बढ़ाते हैं, मंत्र उसके स्वभाव को भी सुधार सकते हैं।
- इसलिए मंत्र का प्रयोग अशुभ ग्रहों के निवारण में भी किया जा सकता है।
🪔 नवग्रह मंत्रजप का महत्व
साधारण हालात में नवग्रहों के मूल मंत्र तथा विशेष हालात में एवम विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए नवग्रहों के बीज मंत्रों तथा वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।
मंत्र जाप- मंत्र जाप के द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्ति के लिए मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए। वेद मंत्रों का जाप केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो पूर्ण शुद्धता एवम स्वच्छता का पालन कर सकते हैं।
किसी भी मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। सबसे पहले आप को यह जान लेना चाहिए कि आपकी कुंडली के अनुसार आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए।
- नवग्रहों के मूल मंत्र सामान्य स्थिति में
- और बीज मंत्र विशेष परिस्थितियों में जपे जाने चाहिए।
🌞 बीज मंत्र और स्वास्थ्य लाभ
बीज मंत्र- एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति (Mantra Power) उसके बीज में होती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है । प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं।
उदाहरण के लिए – ॐ, ऐं,क्रीं, क्लीम् उनको बोलते हैं बीज मंत्र। उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं। सब बीज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है। जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं।
ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है। ये बं बं…. अर्थ को जो तुम बं बं…..जो शिवजी की पूजा में करते हैं। इस बं के उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है। गठिया ठीक हो जाता है। शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो तो इष्ट सिद्धि भी मिलती है। बं… शब्द उच्चारण से गैस ट्रबल कैसी भी हो भाग जाती है।
खं शब्द👉 खं…. हार्ट-टैक कभी नही होता है। हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है। १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का अशुभ प्रभाव चला जाता है।
ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है। ब्रह्म वाचक। तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं। ॐ, खं और कं।
ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है – रीं रामाय नम:।। कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है क्लीं कृष्णाय नम:।। जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ शून्य लगा दो तो १० गुना हो गया। ऐसे ही आरोग्य में भी ॐ हुं विष्णवे नम:। तो हुं बिज मंत्र है। ॐ बिज मंत्र है। विष्णवे विष्णु भगवान का सुमिरन है।
| बीज मंत्र | लाभ / रोग निवारण |
|---|---|
| कं | मृत्यु भय, त्वचा रोग, रक्त विकार |
| ह्रीं | मधुमेह, हृदय धड़कन नियंत्रण |
| घं | स्वप्नदोष, प्रदर रोग |
| भं | ज्वर (बुखार) में लाभदायक |
| क्लीं | मानसिक विकार, पागलपन |
| सं | बवासीर नाशक |
| वं | भूख-प्यास नियंत्रण |
| लं | थकान दूर करने वाला |
💫 निष्कर्ष: Mantra Power
मंत्र केवल शब्द नहीं — ध्वनि, ऊर्जा और चेतना का संगम हैं।
सच्चे मन, एकाग्रता और आस्था से किया गया मंत्रजप
मनुष्य को अदृश्य शक्तियों से जोड़कर, उसे आत्मबोध की दिशा में अग्रसर करता है।