GoshtaSuktam

गोष्ठसूक्तम् हिन्दी अर्थ सहित (Goshta Suktam with Meaning) | गोमाता की समृद्धि हेतु वैदिक स्तुति (अथर्ववेद 3.14)

🌼 गोष्ठसूक्तम् का परिचय

गोष्ठसूक्तम् (अथर्ववेद 3.14) — यह पवित्र सूक्त गायों (गो) और गोष्ठ की समृद्धि के लिए प्रार्थना स्वरूप है।
इसमें ऋषि ब्रह्मा, देवता गावः (गोष्ठ), और छन्द — अनुष्टुप् एवं अंतिम मन्त्र आर्षी त्रिष्टुप् हैं।

यह सूक्त गोरक्षा, गोपालन, तथा गो-संपदा की वृद्धि के लिए अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना गया है।
इसका पाठ गोमाता, गोपालक, और समस्त जीवों के कल्याण का आह्वान करता है।


🕉️ गोष्ठसूक्तम् हिन्दी अर्थ सहित 🌷🌷🌷

🍁 मन्त्र १

सं वो गोष्ठेन सुषदा सं रय्या सं सुभूत्या।
अहर्जातस्य यन्नाम तेना वः सं सृजामसि॥

अर्थ:
हे गोमाताओं! तुम्हारा गोष्ठ सुखपूर्वक, संपन्नता और शुभता से युक्त हो।
जो दिन-प्रतिदिन उत्पन्न होता हुआ शुभ नाम है, उसी नाम के प्रभाव से मैं तुम्हें उस मंगलमय एकता में बाँधता हूँ।
👉 भावार्थ: गोवर्ग में परस्पर एकता, सुख, समृद्धि और कल्याण बना रहे — यही प्रार्थना है।


🍁 मन्त्र २

सं वः सृजत्वर्यमा सं पूषा सं बृहस्पतिः।
समिन्द्रो यो धनञ्जयो मयि पुष्यत यद्वसु॥

अर्थ:
आर्यमा, पूषा, बृहस्पति और धनवर्धक इन्द्र — ये सभी देवता तुम्हें मिलकर समृद्ध करें,
और जो भी ऐश्वर्य है वह मेरे भीतर पुष्ट होकर प्रकट हो।
👉 भावार्थ: गोरक्षा और गोपालक के माध्यम से देवता संपन्नता, धन, और सुख का विस्तार करें।


🍁 मन्त्र ३

संजग्माना अबिभ्युषीरस्मिन्गोष्ठे करीषिणीः।
बिभ्रतीः सोम्यं मध्वनमीवा उपेतन॥

अर्थ:
हे दूध देने वाली गायो! तुम सब एकत्र होकर इस गोष्ठ में निवास करो।
सोमरस के समान मधुर रस धारण करो और रोगरहित रहो।
👉 भावार्थ: गायें स्वस्थ, रससम्पन्न, और गोष्ठ में एकसाथ प्रसन्न रहें — यही मंगलकामना है।


🍁 मन्त्र ४

इहैव गाव एतनेहो शकेव पुष्यत।
इहैवोत प्र जायध्वं मयि संज्ञानमस्तु वः॥

अर्थ:
हे गायो! यहीं इस गोष्ठ में ही रहो, यहाँ पुष्पित और समृद्ध होओ,
यहीं संतान उत्पन्न करो, और मेरे साथ तुम्हारा स्नेहपूर्ण संबंध सदा बना रहे।
👉 भावार्थ: गोमाता का पालन-स्थान शुभ रहे, वे वहीं पर प्रसन्नतापूर्वक वृद्धि करें।


🍁 मन्त्र ५

शिवो वो गोष्ठो भवतु शारिशाकेव पुष्यत।
इहैवोत प्र जायध्वं मया वः सं सृजामसि॥

अर्थ:
तुम्हारा गोष्ठ कल्याणमय हो, जैसे सरस खेत में अंकुर फूटते हैं वैसे ही समृद्धि प्राप्त करो।
यहीं पर तुम बढ़ो और फलो-फूलो — मैं तुम्हें इस मंगल भाव से जोड़ता हूँ।
👉 भावार्थ: गोवर्ग का निवासस्थान सुख, शांति और वृद्धि से परिपूर्ण रहे।


🍁 मन्त्र ६

मया गावो गोपतिना सचध्वमयं वो गोष्ठ इह पोषयिष्णुः।
रायस्पोषेण बहुला भवन्तीर्जीवा जीवन्तीरुप वः सदेम॥

अर्थ:
हे गायो! मेरे साथ, तुम्हारे गोपाल (पालक) के साथ मिलकर रहो;
यह गोष्ठ तुम्हारा पालन-पोषण करने वाला हो।
धन और पोषण से समृद्ध होकर तुम अनेक संख्याओं में बढ़ो,
दीर्घायु और स्वस्थ रहो, और हम तुम्हारे साथ सुखपूर्वक निवास करें।
👉 भावार्थ: गोपालक और गोवर्ग परस्पर सहयोगी बनें; गायें दीर्घजीवी, फलप्रद, और धन-समृद्धि देने वाली हों।


🌺 गोष्ठसूक्तम् का महात्म्य

  • अथर्ववेद का यह सूक्त वैदिक कृषि, गोरक्षा और ग्राम्य जीवन की समृद्धि का प्रतीक है।
  • इसका नियमित पाठ गौ-धन, सुख, और स्वास्थ्य की प्राप्ति कराता है।
  • जहाँ यह सूक्त श्रद्धा से पढ़ा जाता है, वहाँ गोवर्ग में वृद्धि और अन्न-धान्य की सम्पन्नता बनी रहती है।
  • यह सूक्त गोपालन, गोशाला स्थापना, या गोवर्धन पूजा के अवसर पर विशेष रूप से शुभ माना गया है।

📖 वेदिक सन्देश

“गावो विश्वस्य मातरः।” — ऋग्वेद
अर्थात — गायें सम्पूर्ण विश्व की माताएँ हैं।

गोष्ठसूक्तम् इस वैदिक भावना का प्रतीक है —
जहाँ गायों को केवल पशु नहीं, बल्कि धन, धर्म और जीवन का आधार माना गया है।

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