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गोसमूह सूक्तम् हिन्दी अर्थ सहित | Gosasooktam with Meaning in Hindi

gosasooktam

🕉️ परिचय

गोसमूह सूक्तम् वेदों में गोमाता और गोवर्ग की महिमा का अत्यंत पवित्र स्तवन है।
यह सूक्त ऋग्वेद (8.101.15) और अथर्ववेद (4.21) में प्रकट होता है।
इसका ऋषि – ब्रह्मा, देवता – गोसमूह (गायों का समूह) तथा छन्द – त्रिष्टुप् एवं जगती है।

यह सूक्त गोमाता के दैवी स्वरूप, उनकी रक्षा, पोषण, और उनसे प्राप्त सुख-शांति का उपदेश देता है।
यह सूक्त गोसमूह की दिव्यता को प्रकट करता है।
गाय को यहाँ — देवताओं की भगिनी, वसुओं की कन्या, अदिति की प्रतिमा, और अमृत की नाभि कहा गया है।
वह यज्ञ की मूल शक्ति, धन की उत्पत्ति और जीवन की पालक है। उसके गोष्ठ में सुख, शांति, समृद्धि और आरोग्य निहित है।


🌸 गोसमूह सूक्त के मंत्र एवं हिन्दी अर्थ

🍁 मन्त्र १

आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त् सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे ।
प्रजावतिः पुरुरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः ॥

अर्थ:
गायें हमारे बीच आ गई हैं, वे शुभ फल देने वाली हैं।
वे गोष्ठ में बैठें और हमारे लिए मधुर नाद करें।
वे अनेक रूपों में, संतान-संपन्न होकर,
प्रातःकाल इन्द्र के लिए अमृतरूप दूध दुहें।

👉 भावार्थ:
गायें घर में मंगल लेकर आती हैं। उनका गोष्ठ सुख-समृद्धि से भरे,
और वे देवताओं (विशेषतः इन्द्र) के लिए दुग्ध दान करें।


🍁 मन्त्र २

इन्द्रो यज्वने गृणते च शिक्षत उपेद्ददाति न स्वं मुषायति ।
भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्नेखिल्ये निदधाति देवयुम् ॥

अर्थ:
इन्द्र देवता उस यजमान की सहायता करते हैं जो स्तुति करता है और यज्ञ करता है।
वह अपने धन को छिपाता नहीं, अपितु सबके हित में देता है।
इन्द्र बार-बार उसके धन और समृद्धि को बढ़ाता है,
और देवताओं की कृपा को स्थिर रखता है।

👉 भावार्थ:
जो मनुष्य यज्ञ, दान और गोसेवा करता है — इन्द्र उसके धन, कीर्ति और समृद्धि की वृद्धि करते हैं।


🍁 मन्त्र ३

न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति ।
देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह ॥

अर्थ:
इन गायों का नाश कोई नहीं कर सकता, न कोई चोर उन्हें चुरा सकता है,
न शत्रु उन्हें पीड़ा पहुँचा सकता है।
जिनसे देवताओं की पूजा होती है और जो सबको दान देती हैं,
उन गायों के साथ गोपालक सदा-सर्वदा जुड़ा रहता है।

👉 भावार्थ:
गायें सर्वदा सुरक्षित रहती हैं — वे स्वयं रक्षा का रूप हैं।
गोपालक भी उनके माध्यम से देवकृपा प्राप्त करता है।


🍁 मन्त्र ४

न ता अर्वा रेणुककाटोऽश्नुते न संस्कृतत्रमुप यन्ति ता अभि ।
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य विचरन्ति यज्वनः ॥

अर्थ:
गायों तक न कोई तीव्र रथ पहुँच सकता है, न कोई शत्रु या हिंसक उन्हें छू सकता है।
वे विस्तीर्ण मार्गों में भयमुक्त होकर विचरती हैं,
और यज्ञ करने वाले मनुष्य के चारों ओर कल्याण रूप से घूमती रहती हैं।

👉 भावार्थ:
गोसमूह भय रहित और दिव्य है; वे जिस यजमान के पास रहती हैं,
उसके चारों ओर दिव्य आभा और रक्षा-वृत्त निर्मित होता है।


🍁 मन्त्र ५

गावो भगो गाव इन्द्रो म इच्छाद्गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः ।
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामि हृदा मनसा चिदिन्द्रम् ॥

अर्थ:
गायें ही भाग्य हैं, गायें ही इन्द्र का रूप हैं,
गायें ही सोमरस की प्रथम उपभोग्य वस्तु हैं।
हे इन्द्र! ये जो गायें हैं, इन्हीं के रूप में मैं तुम्हारी उपासना करता हूँ,
मन और हृदय से तुम्हें ही चाहता हूँ।

👉 भावार्थ:
गोमाता स्वयं इन्द्र (बल और ऐश्वर्य) तथा भाग्य की अधिष्ठात्री हैं।
उनकी सेवा से देवोपासना पूर्ण होती है।


🍁 मन्त्र ६

यूयं गावो मेदयथ कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।
भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ॥

अर्थ:
हे गायो! तुम दुर्बल को भी पुष्ट करती हो, कुरूप को भी सुंदर बनाती हो,
तुम घर को शुभ बनाती हो और मधुर वाणी प्रदान करती हो।
सभा में तुम्हारा नाम महान् कहा जाता है।

👉 भावार्थ:
गाय का स्पर्श, दूध, और उपस्थिति जीवन में आरोग्य, सौंदर्य और मंगल लाती है।
वह गृह को स्वर्ग तुल्य बनाती है।


🍁 मन्त्र ७

प्रजावतीः सूयवसे रुशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः ।
मा व स्तेने ईशत माघशंसः परि वो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु ॥

अर्थ:
हे गायो! तुम सन्तान-समृद्ध, हरित घास में विचरण करने वाली,
पवित्र जल पीने वाली और तेजस्विनी हो।
तुम्हें न कोई चोर सताए, न दुष्ट व्यक्ति,
रुद्र की शांति तुम्हारी रक्षा करे और तुम पर कोई विपत्ति न आये।

👉 भावार्थ:
गायें जीवनदायिनी हैं — वे शुद्धता, सम्पन्नता और रक्षा का प्रतीक हैं।
रुद्र की कृपा से उनका कोई अनिष्ट न हो — यही प्रार्थना है।


🌼 गोसमूह सूक्त का संदेश

यह सूक्त हमें सिखाता है कि गोमाता केवल पशु नहीं, बल्कि दिव्य शक्ति का साक्षात रूप हैं।
उनके संरक्षण में जीवन, धन, आरोग्य और धर्म की जड़ें सुरक्षित रहती हैं।
जो समाज गायों की सेवा और रक्षा करता है, वही सच्चे अर्थों में समृद्ध और धर्मपरायण बनता है।


🪔 निष्कर्ष

गोसमूह सूक्तम् वेदों का वह रत्न है जो हमें गायों की दैवी महिमा का बोध कराता है।
यह केवल स्तुति नहीं — यह संस्कृति, श्रद्धा, और जीवन-सुरक्षा का प्रतीक है।
गायों का आदर, सेवा और संरक्षण — यही वास्तविक वेद पालन है।

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