Meta Title: गणितज्ञ लीलावती: भारत की पहली महिला गणितज्ञ और भास्कराचार्य की प्रतिभाशाली पुत्री
Meta Description: जानिए गणितज्ञ लीलावती जी की अद्भुत कहानी — भास्कराचार्य की पुत्री, जिन्होंने ‘लीलावती’ ग्रंथ से गणित को कविता और आनंद के रूप में सिखाया। आज भी ‘लीलावती पुरस्कार’ उनके नाम पर दिया जाता है।
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🌺 प्रस्तावना: एक भूली हुई गणितज्ञ, जिसने गणित को कविता बना दिया
गणितज्ञ “लीलावती” का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना होगा। कहा जाता है कि वे पेड़ के पत्ते तक गिन सकती थीं।
शायद ही कोई जानता हो कि आज यूरोप सहित विश्व के सैकड़ों देशों में जिस गणित की पुस्तक से गणित पढ़ाया जाता है, उसकी रचयिता भारत की महान गणितज्ञ महर्षि भास्कराचार्य की पुत्री लीलावती हैं।
आज भी गणित के प्रचार-प्रसार के लिए दिए जाने वाले “लीलावती पुरस्कार” का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
📖 लीलावती जी का जन्म और परिवार
दसवीं सदी की बात है। दक्षिण भारत में भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के महान पंडित रहते थे।
उनकी एकमात्र संतान लीलावती थी — अत्यंत बुद्धिमान, सुशील और विदुषी कन्या।
🔭 ज्योतिषीय भविष्यवाणी और विवाह का अद्भुत प्रसंग
भास्कराचार्य ने ज्योतिषीय गणना से यह जान लिया कि उनकी पुत्री विवाह के थोड़े ही समय बाद विधवा हो जाएगी।
उन्होंने एक ऐसा शुभ लग्न खोजा जिसमें यह दुर्भाग्य टल सके। विवाह की तिथि निश्चित की गई और समय देखने के लिए उस युग की “जलघड़ी” का उपयोग किया गया।
परंतु विधाता को कुछ और ही मंज़ूर था —
शुभ लग्न से ठीक पहले, लीलावती के आभूषण का एक मोती कटोरे में गिर पड़ा, जिससे जलघड़ी का छेद बंद हो गया। शुभ लग्न बीत गया, और किसी को पता नहीं चला।
विवाह दूसरे लग्न में हुआ, लेकिन भविष्यवाणी सच साबित हुई — लीलावती विधवा हो गईं।
💔 पिता का दर्द और बेटी की शिक्षा की शुरुआत
पुत्री के वैधव्य-दुःख से भास्कराचार्य का हृदय टूट गया। उन्होंने उस पीड़ा को ज्ञान में बदलने का निश्चय किया।
उन्होंने लीलावती को गणित पढ़ाना शुरू किया — और वह शीघ्र ही गणित की महान ज्ञाता बन गईं।
📚 ‘सिद्धांत शिरोमणि’ और ‘लीलावती’ ग्रंथ की रचना
भास्कराचार्य ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सिद्धांत शिरोमणि’ लिखा, जिसमें चार भाग हैं –
- लीलावती (अंकगणित)
- बीजगणित
- ग्रह गणिताध्याय
- गोलाध्याय (खगोल विज्ञान)
इसमें से ‘लीलावती’ नामक भाग को उन्होंने अपनी पुत्री की स्मृति और प्रतिभा को अमर करने के लिए रखा।
‘लीलावती’ ग्रंथ में गणित के सूत्रों को कविता और संवाद शैली में लिखा गया है।
🎶 जब गणित कविता बन गया
भास्कराचार्य अपनी बेटी को पढ़ाते हुए कहते —
“हिरन जैसे नयनों वाली प्यारी बिटिया लीलावती…”
वे गणित के सूत्रों को दोहों और छंदों में गढ़ते ताकि उन्हें आनंद के साथ याद किया जा सके।
लीलावती के ग्रंथ का हर सूत्र एक कहानी, एक संवाद और एक प्रश्न के रूप में लिखा गया था।
🌸 लीलावती का प्रसिद्ध प्रश्न उदाहरण
“निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा षष्ठमांश से क्रमशः शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा की,
चतुर्थांश से पार्वती की और शेष छः कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई।
लीलावती, शीघ्र बता कि उस कमल समूह में कुल कितने फूल थे?”
उत्तर: 120 कमल के फूल 🌸
इस तरह गणित भी मनोरंजन, जिज्ञासा और भक्ति का सुंदर संगम बन गया।
🔢 वर्ग, घन और मूल की सुंदर व्याख्या
भास्कराचार्य वर्ग और घन समझाते हुए कहते हैं —
“लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है।
दो समान संख्याओं का गुणन वर्ग कहलाता है, तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन है।”
“मूल” शब्द का अर्थ भी उन्होंने बड़े सुंदर ढंग से बताया —
वर्गमूल का अर्थ है वर्ग का कारण, यानी उसकी भुजा।
घनमूल का अर्थ है घन का कारण — उसकी एक भुजा।
🌏 ‘लीलावती’ ग्रंथ का विश्व में प्रसार
‘लीलावती’ ग्रंथ की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि विदेशी विद्वानों ने भी इसका अनुवाद किया —
- सन् 1587 में अकबर के दरबारी विद्वान फैज़ी ने इसका फ़ारसी में अनुवाद किया।
- सन् 1716 में जे. वेलर ने इसका अंग्रेज़ी अनुवाद किया।
आज भी कई शिक्षक भारत में गणित के दोहों से पढ़ाने की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
🎓 लीलावती पुरस्कार और उनकी अमर विरासत
आज भारत में गणित के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाने वाला “लीलावती पुरस्कार”
उनकी स्मृति को जीवित रखता है।
लीलावती ने सिद्ध कर दिया कि
“मनुष्य के मरने के बाद उसकी कीर्ति ही जीवित रहती है।”
हमारे पास अत्यंत कीमती गणितीय इतिहास है —
लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम उसे भूलते जा रहे हैं।
समय है कि हम अपने गौरवपूर्ण अतीत से प्रेरणा लें और लीलावती जैसी विदुषी नारी को पुनः स्मरण करें।
🌺 निष्कर्ष
गणितज्ञ लीलावती न केवल भास्कराचार्य की पुत्री थीं,
बल्कि भारत की पहली महिला गणितज्ञ, एक शिक्षिका, और गणित को सरलता से जन-जन तक पहुँचाने वाली प्रेरणा हैं।
उनका नाम सदियों बाद भी “लीलावती पुरस्कार” के रूप में अमर है —
जो हर उस व्यक्ति को सम्मानित करता है जो ज्ञान और गणित के प्रकाश को फैलाता है।