🚩 परिचय
भगवान कुबेर (Yaksharaj Dhanadhipati Kubera) हिंदू धर्म में धन, वैभव, समृद्धि और भौतिक सुखों के देवता माने जाते हैं। इन्हें “धनपति”, “वैश्रवण”, “यक्षराज” और “उत्तर दिशा के दिक्पाल” के रूप में पूजा जाता है। भगवान कुबेर भगवान शिव के परम भक्त और मित्र हैं, तथा अलकापुरी के स्वामी हैं जो कैलाश पर्वत के समीप स्थित है।
‼️यक्षराज धनाशिष कुबेर‼️
🧬 भगवान कुबेर की उत्पत्ति और परिवार
ब्रह्मा मानस पुत्र महर्षि पुलस्त्य पौत्र व विश्रवा ऋषि पुत्र कुबेर एक हिन्दू पौराणिक पात्र हैं जो धन के स्वामी (धनेश) व धनवानता के देवता माने जाते हैं। वे यक्षों के राजा यक्षराज, उत्तर दिशा के दिक्पाल व समस्त तीनों लोक के लोकपाल (संसार के रक्षक) भी हैं। कुबेर महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा के पुत्र थे।
महर्षि पुलस्त्य ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक हैं; जो ब्रह्मा जी के कानों से उत्पन्न हुए थे जो जल प्रलय पश्चात सृष्टि पुनर्निमाण काल के प्रथम स्वयंभू मन्वन्तर के सात सप्तर्षियों में से एक थे। विष्णुपुराण के अनुसार महर्षि पुलस्त्य के माध्यम से ही कुछ पुराण आदि मानवजाति को प्राप्त हुए। इसके अनुसार इन्होंने भगवान ब्रह्मा से विष्णु पुराण सुना था और फिर उसे पराशर ऋषि को सुनाया, और इस तरह ये पुराण मानव जाति को प्राप्त हुआ। वस्तुतः आदिपुराणों का मनुष्यों में प्रचार करने का श्रेय भी इन्हें ही देता है।
वैवस्वत मन्वंतर में पुलस्त्य ऋषि के पुत्र हुए विश्रवा, कालान्तर में जिनके वंश में कुबेर एवं रावण आदि ने जन्म लिया तथा राक्षस जाति को आगे बढ़ाया। पुत्रों में कुबेर सबसे बड़े थे। पुलस्त्य ऋषि का विवाह कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं में से एक से हुआ जिनका नाम हविर्भू था। उनसे ऋषि के दो पुत्र उत्पन्न हुए — महर्षि अगस्त्य एवं विश्रवा।
महर्षि अगस्त्य सातवें वर्तमान में चल रहे वैवस्वत मन्वंतर के सप्तर्षियों में एक हैं। ऋषि विश्रवा की दो पत्नियाँ थीं – एक थी राक्षस सुमाली व पत्नी राक्षसी ताड़का की पुत्री कैकसी, जिससे रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण व पुत्री शूर्पनखा उत्पन्न हुए, तथा दूसरी थी इलाविडा- जिसके कुबेर उत्पन्न हुए। इस प्रकार कुबेर रावण का भाई था। देवी भद्रा कुबेर की पत्नी थी।
विश्रवस् में कुबेर की माता इलाविडा को इडविडा या मंदाकिनी बताया गया है। इसलिए विश्रवा तथा इडविडा के पुत्र कुबेर को वैश्रवण तथा ऐडविड नामों से भी अंगित किया गया है। कुबेर की माँ इलाविडा चक्रवर्ती सम्राट तृणबिन्दु की अलामबुशा नामक अप्सरा से उत्पन्न पुत्री थी।
सम्राट तृणबिन्दु वैवस्वत मनु श्राद्धदेव के वंशावली की कड़ी थे। इन्होंने अपने एक यज्ञ में केवल स्वर्ण पात्रों का ही उपयोग किया था एवं ब्रह्मा को इतना दान दिया कि वे उसे ले जा भी न पाये और काफ़ी कुछ वहीं छोड़ गये। उसी बचे हुए स्वर्ण से, जो कालान्तर में युधिष्ठिर को मिला, उन्होंने भी यज्ञ किया। तृणबिन्दु मारुत की वंशावली में आते थे।
🌄 कुबेर का निवास — अलकापुरी और यक्षलोक
कालांतर भगवान ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। ये तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल हुए। ये उत्तराधिपती हैं व उत्तर दिशा स्थित यक्षलोक में रहते हैं। कैलाश पर्वत के समीप इनकी अलकापुरी है। ये अलकाधिप भी कहलाते हैं। कैलाश पर्वत पे इनका निवास राक्षस गणों व अप्सराओं के साथ है। कैलाश के दक्षिण में वैद्युत नामक पर्वत है। जिसकी तराई में मानसरोवर है और वहीं पे सरयु नदी का उद्गम स्थल भी है।
सरयु नदी के उद्गम स्थल पे वैभाज्र नामक दिव्य वन है जिसमें कुबेर का सेवक प्रहेतुपुत्र ब्रह्मधान नामक राक्षस रहता है। कुबेर उस प्रदेश में रहने वाले यक्ष, राक्षस, पौलस्त्य (पितामह महर्षि पुलस्त्य के अनुयायियों), अगस्ति (भ्राता अगस्त्य ऋषि के अनुयायियों) के राजा व अलकाधिप हैं, जो हमेशा सूर्य के उत्तर दिशा की ओर रहते हैं।
गंधमादन पर्वत स्थित संपत्ति का चतुर्थांश भी इनके अधिकार में है।जिसके शिखर पे कुबेर अपने राक्षस गणों के साथ ही निवास करते हैं और इसी गंधमादन पर्वत की संपत्ति का षोडसांश (सोलहवां भाग) इन्होंने पृथ्वीलोक के मानवों को दिया है। मेरु पर्वत के उत्तर स्थित विभावरी में भी इनका वास स्थान है। सौगंधिक नामक वन इनका है।
श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्टदन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेर अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा “कुबेर सभा” में विराजते हैं। वृद्धि तथा ऋद्धि इनकी शक्तियां हैं। इनके अनुचर सेवक यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं। यक्ष एक प्रकार से देवताओं की ही देवयोनि जो कुबेर के सेवक और उसकी निधियों के रक्षक माने जाते हैं। मणिभद्र, पूर्णभद्र, मणिमत्, मणिकंधर, मणिभूष, मणिस्त्रग्विन, मणिकार्मुकधारक यक्ष आदि इनके सेनापति हैं।
अपने सौतेले भाई रावण से युद्ध में पराजित होकर कुबेर ने नर्मदा-कावेरी संगम पे तप किया था, तब भगवान शिव कृपा से इनकी इच्छा पूरी हुई थी और आज भी कुबेर की वो तपोभूमि कावेरी- नर्मदा नदी संगम पे “कौवेरतीर्थ” के नाम से जाना जाता है।
“यक्ष प्रबल बाढ़े भुवमंडल तिन मान्यो निज भ्रात।
जिनके काज अंस हरि प्रगटि ध्रूव जगत विख्यात।”
पुराणानुसार यक्ष लोग प्रचेता की संतान माने जाते हैं । कहते हैं, इनकी आकृति विकराल होती है, पेट फूला हुआ और कंधे बहुत भारी होते हैं तथा हाथ पैर धीर काले रंग के होते हैं । प्राचीन ग्रीक विद्वानों ने भी प्लूटो नाम से धनाधीश कुबेर को ही मानते थे। पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेर ही हैं। इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू गर्भ स्थित निधि प्राप्त होती है।
निधि-विद्या में निधि सजीव मानी गयी है, जो स्वत: स्थानान्तरित होती है। पुण्यात्मा योग्य शासक के समय में मणि-रत्नादि स्वत: प्रकट होते हैं। आज तो अधिकांश मणि, रत्न लुप्त हो गये। कोई स्वत: प्रकाश रत्न विश्व में नहीं, आज का मानव उनको उपभोग्य जो मानता है। यज्ञ-दान के अवशेष का उपभोग हो, यह वृत्ति लुप्त हो गयी है। कुबेर मनुष्य के अधिकार के अनुरूप कोष का प्रादुर्भाव या तिरोभाव कर देते हैं। प्रत्येक यज्ञ के अन्त में वैश्रवण राजाधिराज कुबेर को पुष्पांजलि दी जाती है।
ब्रह्माजी के मुंह से हुई थी भगवान कुबेर की उत्पत्ति
श्रीवराहपुराण में दी गई एक कथा के अनुसार, भगवान कुबेर पहले सिर्फ वायु के ही रूप में थे। उन्होंने अपना शरीर भगवान ब्रह्मा के कहने पर धारण किया। एक समय की बात है भगवान ब्रह्मा सृष्टि की रचना करना चाहते थे। तभी अचानक उनके मुंह से वायु निकली। वायु बड़ी तेजी से यहां से वहां बहने लगी। वायु के तेज से सभी जगह धूल ही धूल फैलने लगी।
इस स्थिति को रोकने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उस वायु को शांत होकर, शरीर धारण करने को कहा। भगवान ब्रह्मा के कहने पर वायु ने कुबेर का रूप धारण किया और सशरीर एक जठर योग अवस्था में भगवान ब्रह्मा के सामने आए। कुबेर की ये तपस्या वर्षों चली, और कुबेर की इस तपस्या पर प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने उसे बैशाख अक्षयतृतिया के दिन धन का देवता बनाया और धनपति के नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान भी दिया।
तपस्या के फलस्वरूप ब्रह्मा जी ने कुबेर को राक्षस गणों सहित लंका, पुष्पक विमान, यक्षों का आधिपत्य, राजराजस्व, धनेत्व, अमरत्व, लोकपालकत्व, शिव रुद्रों से मित्रता, नलकूबर नामक पुत्र आदि दिऐ। इसी स्थान पर कुबेर की मूल नगरी अलकावती है।
एकादशी को ऐसे व्रत करने पर प्रसन्न हो सकते हैं कुबेर भगवान ब्रह्मा ने धन के देवता कुबेर को धनपति के नाम से प्रसिद्ध होने के वरदान के साथ-साथ एकादशी का अधिकारी भी बनाया। श्रीवराहपुराण के अनुसार, जो भी व्यक्ति एकादशी को अग्नि में पका भोजन न करते हुए केवल फल आदि का सेवन करके पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान कुबेर का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य ऐसा करता है, उस पर भगवान कुबेर हमेशा प्रसन्न रहते हैं और उनकी हर इच्छा पूरी कर सकते हैं।
🕉️ कुबेर मंत्र और साधना
🪙 १. कुबेर धन मंत्र:
धन धान्य और समृद्धि के स्वामी श्री कुबेर जी का यह ३५ अक्षरी मंत्र है। इस मंत्र के ऋषि; कुबेर कि पिता ऋषि विश्रवा हैं, छंद बृहती है तथा भगवान शिव के मित्र कुबेर इस मंत्र के देवता हैं। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। इस मंत्र को उनका अमोघ मंत्र कहा जाता है।
माना जाता है कि तीन महीने तक इस मंत्र का १०८ बार जाप करने से घर में किसी भी प्रकार धन धान्य की कमी नहीं होती। यह मंत्र सब प्रकार की सिद्धियां देने पाने के लिये कारगर है। इस मंत्र में देवता कुबेर के अलग-अलग नामों एवं उनकी विशेषताओं का जिक्र करते हुए उनसे धन-धान्य एवं समृद्धि देने की प्रार्थना की गई है। यदि बेल के वृक्ष के नीचे बैठ कर इस मन्त्र का एक लाख बार जप किया जाये तो धन-धान्य रुप समृद्धि प्राप्त होती है।
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
🌟 २.धन प्राप्ति मंत्र:
धन प्राप्ति की कामना करने वाले साधकों को कुबेर जी का यह उपरोक्त मंत्र जाप करना चाहिये। इसके नियमित जप से साधक को अचानक धन की प्राप्ति होती है।
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥”
🌾 ३. कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र:
कुबेर और मां लक्ष्मी का यह उपरोक्त “कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र” जीवन की सभी श्रेष्ठता को देने वाला है, ऐश्वर्य, लक्षमी, दिव्यता, पद प्राप्ति, सुख सौभाग्य, व्यवसाय वृद्धि, अष्ट सिद्धि, नव निधि, आर्थिक विकास, सन्तान सुख उत्तम स्वास्थ्य, आयु वृद्धि, और समस्त भौतिक और परासुख देने में समर्थ है। शुक्ल पक्ष के किसी भी शुक्रवार को रात्रि में इस मंत्र की साधना शुरू करनी चाहिये।
इन तीनों में से किसी भी एक मंत्र का जप दस हजार होने पर दशांश हवन करें या एक हजार मंत्र अधिक जपें।
“ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥”
👉 नियमित रूप से शुक्रवार या अक्षय तृतीया के दिन इन मंत्रों का जाप करने से
धन, ऐश्वर्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
भगवान शंकर ने भी कुबेर को अपना नित्य सखा स्वीकार किया है
कुबेर के संबंध में प्रचलित है कि उनके तीन पैर और आठ दांत हैं। अपनी कुरूपता के लिए वे अति प्रसिद्ध हैं। उनकी जो मूर्तियां पाई जाती हैं, वे भी अधिकतर स्थूल और बेडौल हैं ‘शतपथ ब्राह्मण’ में तो इन्हें राक्षस ही कहा गया है। इन सभी बातों से स्पष्ट है कि धनपति होने पर भी कुबेर का व्यक्तित्व और चरित्र आकर्षक नहीं था।
कुबेर को राक्षस के अतिरिक्त यक्ष भी कहा गया है। यक्ष धन का रक्षक ही होता है, मगर उसे भोगता नहीं है। कुबेर का जो दिक्पाल रूप है, वह भी उनके रक्षक और प्रहरी रूप को ही स्पष्ट करता है। पुराने मंदिरों के वाह्य भागों में कुबेर की मूर्तियां पाए जाने का रहस्य भी यही है कि वे मंदिरों के धन के रक्षक के रूप में कल्पित और स्वीकृत हैं।
कौटिल्य ने भी खजानों में रक्षक के रूप में कुबेर की मूर्तियां रखने के बारे में लिखा है। शुरू के अनार्य देवता कुबेर, बाद में आर्य देव भी मान लिए गए। बाद में पुजारी और ब्राह्मण भी कुबेर के प्रभाव में आ गए और आर्य देवों की भांति उनकी पूजा का विधान प्रचलित हो गया। तब विवाहादि मांगलिक अनुष्ठानों में कुबेर के आह्वान का विधान हुआ लेकिन यह सब होने पर भी वे द्वितीय कोटि के देवता ही माने जाते रहे। धन को सुचिता के साथ जोड़कर देखने की जो आर्यपरंपरा रही, संभवतः उसमें कुबेर का अनगढ़ व्यक्तित्व नहीं खपा होगा।
बाद में शास्त्रकारों पर कुबेर का यह प्रभाव बिल्कुल नहीं रहा इसलिए वे देवताओं के धनपति होकर भी दूसरे स्थान पर ही रहे, लक्ष्मी के समकक्ष न ठहर सके। और लक्ष्मी पूजन की परंपरा ही कायम रही। लक्ष्मी के धन के साथ मंगल का भाव भी जुड़ा हुआ है। कुबेर के धन के साथ लोकमंगल का भाव प्रत्यक्ष नहीं है।
लक्ष्मी का धन स्थायी नहीं, गतिशील है। इसलिए उसका चंचला नाम लोकविश्रुत है जबकि कुबेर का धन खजाने के रूप में जड़ या स्थिरमति है। जिन्हें देवताओं के धन का खजांची कहा जाता है। जिनकी पत्नी स्वयं धन की देवी लक्ष्मी है उन भगवान विष्णु को भी एक बार कुबेर से कर्ज लेना पड़ा था। इस कर्ज को चुकाने के लिए तिरूपति बालाजी को सोने, चांदी, हीरे मोतियों के गहने चढ़ाए जाते हैं। इस धनवान भगवान की कथा है कि यह भगवान बनने से पहले एक चोर हुआ करते थे।
स्कंद पुराण की कथा के अनुसार कुबेर
स्कंद पुराण की कथा के अनुसार कुबेर कापिल्य नगरी में अग्निहोत्री यज्ञदत्त नामक ब्राह्मण के पुत्र थे जिनका नाम गुणनिधि था। अपने नाम के विपरीत गुणनिधि में सारे अवगुण भरे थे। बुरी संगत में पड़कर वह चोरी करने लगा। नाराज होकर पिता ने इन्हें घर से निकाल दिया। इसके बाद गुणनिधि और भी गलत काम करने लगा। गुणनिधि को राजा ने अपने देश से निकाल दिया। भूख प्यास से व्याकुल गुणनिधि किसी अन्य नगर में जा रहा था तभी उसकी नजर एक मंदिर पर गई। गुणनिधि ने भूख मिटाने के लिए मंदिर से प्रसाद चुराने का विचार किया और मौका मिलते ही मंदिर में जा पहुंचा।
मंदिर में जलते दीपक के सामने इन्होंने अपना अंगोछा लटका दिया ताकि पास में सो रहे पुजारी की इन पर नजर न जाए। इसके बाद प्रसाद चुराकर जैसे ही भागने लगा कुछ लोगों की इन पर नजर पड़ गई और गुणनिधि को पकड़ लिया गया। भागम भाग और भूख से गुणनिधि की मृत्यु हो गई। यमदूत और शिव के दूत दोनों ही गुणनिधि को अपने साथ ले जाने आ पहुंचे।
शिव के दूतों को देखकर यमदूत पीछे हट गए और गुणनिधि भगवान शिव के पास लाए गए। भगवान शिव ने कहा कि तुमने बहुत पाप किए हैं लेकिन धन त्रयोदशी के दिन तुमने अपने अंगोछे के ओट से मेरे मंदिर में जल रहे दीपक को बुझने से बचाया है इस पुण्य के प्रभाव से तुम मेरे पार्षद हो गए हो और तुम जो धन के लालच में चोरी किया करते थे इसलिए मैं तुम्हें पूरी दुनिया के धन का अधिपति बनाता हूं आज से तुम कुबेर कहलाओगे। इस तरह चोरी करके भी गुणनिधि कुबेर भगवान बन गए।
पौराणिक जनश्रुति के अनुसार वे एक गुणनिधि नाम के ब्राह्मण
अन्य पौराणिक जनश्रुति के अनुसार वे एक गुणनिधि नाम के ब्राह्मण थे , पिता से धर्म का ज्ञान लेकर भी वे एक जुआरी बन गये। उनके पिता को जब इस बात का पता चला तब उन्होंने अपने पुत्र को घर से निकाल दिया। बेघर होने के बाद गुणनिधि की हालत अति दयनीय हो गयी। वे भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत करने लगे। एक बार ऐसे ही दर दर भटकते भटकते वे जंगल में निकल गये। उसी रास्ते से कुछ भोजन सामग्री लेकर एक ब्राह्मण समूह वहा से गुजर रहा था। भूख प्यास से व्याकुल गुणनिधि भोजन की आस में उनके पीछे हो गये।
कुछ क्षण बाद वह ब्राह्मण समूह एक शिवालय में रुक गये और भगवान शिव को भोजन का भोग लगाकर उनका कीर्तन करने लगे। रात्रि में जब वे सभी सो गये तब गुणनिधि ने भगवान शिव को अर्पित भोग चुराया लिया पर उनमे से एक ब्राह्मण ने उन्हें यह चोरी करते देख लिया। वह चोर चोर चिल्लाने लगा। सभी ब्राह्मण गुणनिधि के पीछे पड़ गये। गुणनिधि अपनी जान बचाकर भागा परंतु नगर के रक्षकों द्वारा मारा गया।
यह दिन कोई आम दिन नही था बल्कि महाशिवरात्रि का दिन था। इस दिन से अनजान गुणनिधि से भगवान शिव का व्रत हो गया और वे भूखे ही शिव लीला से मर गये पर शिवजी का व्रत खाली कैसे जा सकता है। गुणनिधि ने नया जन्म लिया। नए जीवन में वे कलिंग के राजा बने और महान शिव भक्त हुए। अपनी अटूट शिव भक्ति से उन्हें भगवान शिव ने यक्षों का स्वामी तथा देवताओं का कोषाध्यक्ष बना दिया। इस तरह एक गरीब ब्राह्मण को भोलेनाथ ने धन का देवता नियुक्त कर दिया।
कुबेर के संबंध में लोकमानस में एक और जनश्रुति प्रचलित है।
कहा जाता है कि पूर्वजन्म में कुबेर चोर थे। चोर भी ऐसे कि देव मंदिरों में चोरी करने से भी बाज न आते थे। एक बार चोरी करने के लिए एक शिव मंदिर में घुसे। तब मंदिरों में बहुत माल-खजाना रहता था। उसे ढूंढने-पाने के लिए कुबेर ने दीपक जलाया लेकिन हवा के झोंके से दीपक बुझ गया। कुबेर ने फिर दीपक जलाया, फिर वह बुझ गया। जब यह क्रम कई बार चला, तो भोले-भाले और औघड़दानी शंकर ने इसे अपनी दीप आराधना समझ लिया और प्रसन्न होकर अगले जन्म में कुबेर को धनपति होने का आशीष दे डाला।
रामायण वृतांत में जब एक बार धनपति यक्षराज कुबेर ने अपने भाई रावण के अनेक अत्याचारों के विषय में जाना तो एक संदेश लेकर अपने एक दूत को रावण के पास भेजा दिया। जब कुबेर के दूत ने रावण को कुबेर का संदेश पढकर सुनाया कि “भ्राता रावण, कृपया अब आप अपनें अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़ दे। आपके द्वारा नंदनवन उजाड़ने के कारण अब सब देवता मेरे (कुबेर) के भी शत्रु बन गये हैं।
” कुबेर के भेजे इस संदेश को सुनते ही रावण ने क्रुद्ध होकर कुबेर के उस दूत को अपनी खड्ग से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। इधर ये जानकर कुबेर को भी बहुत बुरा लगा और फिर कुबेर की यक्ष सेना और सौतेले भाई रावण की राक्षस सेना के बीच घनघोर युद्ध हुआ। यक्ष बल से लड़ते थे और राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। मायावी रावण ने अनेक रूप धारण किये तथा कुबेर के सिर पर प्रहार करके उसे घायल कर दिया और बलात कुबेर का पुष्पक विमान कुबेर से छिन लिया।
कालांतर रावण ने अपनी मां ताड़का से प्रेरणा पाकर कुबेर की स्वर्ण नगरी लंका पुरी सहित समस्त संपत्ति छीन ली। तो ये देख कुबेर अपने पितामह महर्षि पुलस्त्य के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। उनकी प्रेरणा से कुबेर ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर्वत पर तप करना प्रारंभ किया।
तप के दौरान ही जब कुबेर को भगवान शिव तथा माता पार्वती अपने पास दिखायी दिऐ; तो झट तपस्या से ध्यान तोड़ने के क्रम में कुबेर अत्यंत सात्त्विक भाव से माता पार्वती की ओर अपने बायें नेत्र से ही देख पाया ही था; कि माता पार्वती के दिव्य तेज से कुबेर की बाँया नेत्र भस्म होकर नष्ट हो गया और दाहिना नेत्र पीला पड़ गया। दोनों आँखों में तेज दर्द होने के कारण कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चला गया और पुनः वह घोर तप में लीन हो गया।
कहा जाता है ऐसा घोर तप या तो स्वयं भगवान शिव ने किया था या फिर यक्षराज कुबेर ने ही किया, अन्य कोई भी देवता वैसी तपस्या को कभी पूर्ण रूप से संपन्न नहीं कर पाया था। इस बार कुबेर की जठर तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कुबेर से कहा- ‘तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र जो देवी पार्वती के तेज से नष्ट हो गया है|
अत: तुम सदा ‘एकाक्षपिंगलिन्’ कहलाओंगे और पुरे जगत के ‘धनपाल’ की पदवी पुनः प्रदान की। गौतमी नदी के तट का वह स्थल “धनदतीर्थ” नाम से आज भी विख्यात है। भगवान शिव के आशीर्वाद से कुबेर को एक और मणिग्रीव नामक पुत्र की प्राप्ति हुई।
द्वापर युग इनके दोनों पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव भगवान श्री कृष्णचन्द्र द्वारा नारद जी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप ही स्थित रहते हैं। महाभारत काल में पांडव वनवास के समय हिमालय पर्वत ऋंख्ला के इन्द्रकील शिखर पे हुए भगवान शिव-अर्जुन युद्ध के पश्चात, भगवान शिव व वरुण देव के समान यक्षराज कुबेर ने भी अपने आग्नेयास्त्रों को धनुर्धर अर्जुन को भेंट की थी।
पुन: एक बार द्रौपदी के आग्रह पे बाहुबली भीम ने कुबेर के उपवन के सरोवर में खिले कमल के फूलों के लिए कुबेर के यक्ष सेनापति मणिमान का वध किया था, तो क्रोधाकुल कुबेर भीम का पीछा करते पांडवों तक आ पहुँचे थे। वहाँ धनुर्धारी अर्जुन को देख थोड़े शांत भी हुए।
वहाँ इछ्वाकु कुल के सूर्यवंशी राजा मुचकुंद ने कुबेर को ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का पाठ पढाया और कहा कि इससे राज्य सुख में वृद्धि होती है। ऐसा सुनते ही कुबेर को अपने पूर्वजन्म में कापिल्य नगरी के अग्निहोत्री ब्राह्मण कुल में जन्म लेने की बात याद आ गयी, और अर्जुन को इन्द्र का संदेश भी दिया कि इन्द्र लोक में स्वयं इन्द्र आपकी प्रतिक्षा कर रहे हैं।
सतयुग में स्वयंभुव मनु के पौत्र व राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव का युद्ध जब लंबे दिनों तक यक्षों से चला था तब युद्ध के अंत में कुबेर ने ध्रुव को तत्व ज्ञान का उपदेश भी दिया था।
धन के देवता व शिवभक्त कुबेर को भगवान शिव का द्वारपाल भी बताया जाता है।
कुबेर सुख-समृद्धि और धन देने वाले देवता हैं। उन्हें देवताओं का कोषाध्यक्ष माना गया है। मान्यता है कि कुबेर देवता की मूर्ति घर में लाने से सदैव परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है। कुबेर देवता का निवास उत्तर दिशा की ओर माना गया है। इनकी मूर्ति को उत्तर दिशा की ओर ही रखना चाहिए। कुबेर का एक नाम सोम होने के कारण उत्तर दिशा को सौम्या भी कहा जाने लगा।
कुबेराष्टोत्तरशतनामावलिः
ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः ।
ॐ यक्षराजाय विद्महे अलकाधीशाय धीमहि ।
तन्नः कुबेरः प्रचोदयात् ।
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय
धनधान्याधिपतये धनधान्यादि
समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।
श्रीसुवर्णवृष्टिं कुरु मे गृहे श्रीकुबेर ।
महालक्ष्मी हरिप्रिया पद्मायै नमः ।
राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
समेकामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ।
कुबेराज वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।
ध्यानम्
मनुजबाह्यविमानवरस्तुतं
गरुडरत्ननिभं निधिनायकम् ।
शिवसखं मुकुटादिविभूषितं
वररुचिं तमहमुपास्महे सदा ॥
अगस्त्य देवदेवेश मर्त्यलोकहितेच्छया ।
पूजयामि विधानेन प्रसन्नसुमुखो भव ॥
अथ कुबेराष्टोत्तरशतनामावलिः ॥
ॐ कुबेराय नमः ।
ॐ धनदाय नमः ।
ॐ श्रीमते नमः ।
ॐ यक्षेशाय नमः ।
ॐ गुह्यकेश्वराय नमः ।
ॐ निधीशाय नमः ।
ॐ शङ्करसखाय नमः ।
ॐ महालक्ष्मीनिवासभुवे नमः ।
ॐ महापद्मनिधीशाय नमः ।
ॐ पूर्णाय नमः । १०
ॐ पद्मनिधीश्वराय नमः ।
ॐ शङ्खाख्यनिधिनाथाय नमः ।
ॐ मकराख्यनिधिप्रियाय नमः ।
ॐ सुकच्छपाख्यनिधीशाय नमः ।
ॐ मुकुन्दनिधिनायकाय नमः ।
ॐ कुन्दाख्यनिधिनाथाय नमः ।
ॐ नीलनित्याधिपाय नमः ।
ॐ महते नमः ।
ॐ वरनिधिदीपाय नमः ।
ॐ पूज्याय नमः । २०
ॐ लक्ष्मीसाम्राज्यदायकाय नमः ।
ॐ इलपिलापत्याय नमः ।
ॐ कोशाधीशाय नमः ।
ॐ कुलोचिताय नमः ।
ॐ अश्वारूढाय नमः ।
ॐ विश्ववन्द्याय नमः ।
ॐ विशेषज्ञाय नमः ।
ॐ विशारदाय नमः ।
ॐ नलकूबरनाथाय नमः ।
ॐ मणिग्रीवपित्रे नमः । ३०
ॐ गूढमन्त्राय नमः ।
ॐ वैश्रवणाय नमः ।
ॐ चित्रलेखामनःप्रियाय नमः ।
ॐ एकपिनाकाय नमः ।
ॐ अलकाधीशाय नमः ।
ॐ पौलस्त्याय नमः ।
ॐ नरवाहनाय नमः ।
ॐ कैलासशैलनिलयाय नमः ।
ॐ राज्यदाय नमः ।
ॐ रावणाग्रजाय नमः । ४०
ॐ चित्रचैत्ररथाय नमः ।
ॐ उद्यानविहाराय नमः ।
ॐ विहारसुकुतूहलाय नमः ।
ॐ महोत्सहाय नमः ।
ॐ महाप्राज्ञाय नमः ।
ॐ सदापुष्पकवाहनाय नमः ।
ॐ सार्वभौमाय नमः ।
ॐ अङ्गनाथाय नमः ।
ॐ सोमाय नमः ।
ॐ सौम्यादिकेश्वराय नमः । ५०
ॐ पुण्यात्मने नमः ।
ॐ पुरुहुतश्रियै नमः ।
ॐ सर्वपुण्यजनेश्वराय नमः ।
ॐ नित्यकीर्तये नमः ।
ॐ निधिवेत्रे नमः ।
ॐ लङ्काप्राक्तननायकाय नमः ।
ॐ यक्षिणीवृताय नमः ।
ॐ यक्षाय नमः ।
ॐ परमशान्तात्मने नमः ।
ॐ यक्षराजे नमः । ६०
ॐ यक्षिणीहृदयाय नमः ।
ॐ किन्नरेश्वराय नमः ।
ॐ किम्पुरुषनाथाय नमः ।
ॐ खड्गायुधाय नमः ।
ॐ वशिने नमः ।
ॐ ईशानदक्षपार्श्वस्थाय नमः ।
ॐ वायुवामसमाश्रयाय नमः ।
ॐ धर्ममार्गनिरताय नमः ।
ॐ धर्मसम्मुखसंस्थिताय नमः ।
ॐ नित्येश्वराय नमः । ७०
ॐ धनाध्यक्षाय नमः ।
ॐ अष्टलक्ष्म्याश्रितालयाय नमः ।
ॐ मनुष्यधर्मिणे नमः ।
ॐ सुकृतिने नमः ।
ॐ कोषलक्ष्मीसमाश्रिताय नमः ।
ॐ धनलक्ष्मीनित्यवासाय नमः ।
ॐ धान्यलक्ष्मीनिवासभुवे नमः ।
ॐ अष्टलक्ष्मीसदावासाय नमः ।
ॐ गजलक्ष्मीस्थिरालयाय नमः ।
ॐ राज्यलक्ष्मीजन्मगेहाय नमः । ८०
ॐ धैर्यलक्ष्मीकृपाश्रयाय नमः ।
ॐ अखण्डैश्वर्यसंयुक्ताय नमः ।
ॐ नित्यानन्दाय नमः ।
ॐ सुखाश्रयाय नमः ।
ॐ नित्यतृप्ताय नमः ।
ॐ निराशाय नमः ।
ॐ निरुपद्रवाय नमः ।
ॐ नित्यकामाय नमः ।
ॐ निराकाङ्क्षाय नमः ।
ॐ निरूपाधिकवासभुवे नमः । ९०
ॐ शान्ताय नमः ।
ॐ सर्वगुणोपेताय नमः ।
ॐ सर्वज्ञाय नमः ।
ॐ सर्वसम्मताय नमः ।
ॐ सर्वाणिकरुणापात्राय नमः ।
ॐ सदानन्दकृपालयाय नमः ।
ॐ गन्धर्वकुलसंसेव्याय नमः ।
ॐ सौगन्धिककुसुमप्रियाय नमः ।
ॐ स्वर्णनगरीवासाय नमः ।
ॐ निधिपीठसमाश्रयाय नमः । १००
ॐ महामेरूत्तरस्थाय नमः ।
ॐ महर्षिगणसंस्तुताय नमः ।
ॐ तुष्टाय नमः ।
ॐ शूर्पणखाज्येष्ठाय नमः ।
ॐ शिवपूजारताय नमः ।
ॐ अनघाय नमः ।
ॐ राजयोगसमायुक्ताय नमः ।
ॐ राजशेखरपूज्याय नमः ।
ॐ राजराजाय नमः ।
🚩✊जय हिंदुत्व✊🚩
☀!! श्री हरि: शरणम् !! ☀
🍃🎋🍃🎋🕉️🎋🍃🎋🍃
🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾
🪔 भगवान कुबेर धन के देवता पूजन विधि (घर या व्यापार स्थल के लिए)
- उत्तर दिशा में कुबेर की मूर्ति या फोटो स्थापित करें।
- कुबेर देवता को चांदी के सिक्के, गुड़हल या कमल का फूल अर्पित करें।
- “ॐ यक्षाय कुबेराय…” मंत्र का 108 बार जाप करें।
- शुक्रवार या पूर्णिमा के दिन विशेष पूजा करें।
📿 ऐसा करने से धन की वृद्धि, निधियों का प्रकट होना और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
💫 कुबेर जी और भगवान शिव का संबंध
कुबेर भगवान शिव के नित्य सखा और द्वारपाल हैं। शिवजी ने उन्हें धनपाल पद देकर धन के स्वामी और देवताओं के कोषाध्यक्ष बनाया। इस कारण, दीपावली और धनतेरस पर कुबेर लक्ष्मी पूजन एक साथ किया जाता है।
🌺 कुबेर जी से जुड़ी मान्यताएं
- कुबेर जी की मूर्ति उत्तर दिशा में रखनी चाहिए।
- पूजा के समय तिजोरी का मुख उत्तर दिशा की ओर होना शुभ माना जाता है।
- शुक्रवार या धनतेरस को कुबेर पूजा से स्थायी धन प्राप्त होता है।
🌞 निष्कर्ष: भगवान कुबेर धन के देवता
भगवान कुबेर न केवल धन के देवता हैं, बल्कि वे न्याय, संयम और संतुलन के प्रतीक हैं। जो व्यक्ति ईमानदारी, भक्ति और संयम के साथ उनकी आराधना करता है, उसे न केवल भौतिक समृद्धि, बल्कि आध्यात्मिक सम्पन्नता भी प्राप्त होती है।