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अर्धनारीश्वर भगवान शिव (Ardhnarishwar Bhagwan Shiv) : शिव‑शक्ति के एकत्व का परम रहस्य

Ardhnarishwar Bhagwan Shiv

अर्धनारीश्वर रूप की स्तुति

अर्धनारीश्वर भगवान शिव का रहस्य ( सृष्टि के समय परम पुरुष अपने ही अर्द्धाङ्ग से प्रकृति को निकालकर उसमें समस्त सृष्टि की उत्पत्ति )

अर्धनारीश्वर भगवान् शिव
सकलभुवनभूतभावनाभ्यां
जननविनाशविहीनविग्रहाभ्याम् ।
नरवरयुवतीवपुर्धराभ्यां
सततमहं प्रणतोऽस्मि शङ्कराभ्याम् ॥

अर्थात् — जो समस्त भुवनों के प्राणियों को उत्पन्न करनेवाले हैं, जिनका विग्रह जन्म और मृत्यु से रहित है तथा जो श्रेष्ठ नर और सुन्दर नारी (अर्धनारीश्वर) रूप में एक ही शरीर धारण करके स्थित हैं, उन कल्याणकारी भगवान शिव और शिवा को मैं प्रणाम करता हूँ।


अर्धनारीश्वर रूप का दार्शनिक अर्थ

भगवान शिव का अर्धनारीश्वर‑रूप परम परात्पर जगत्पिता और दयामयी जगन्माता के आदि सम्बन्ध‑भाव का द्योतक है। सृष्टि के समय परम पुरुष अपने ही अर्द्धाङ्ग से प्रकृति को निकालकर उसमें समस्त सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं —

द्विधा कृतात्मनो देहमर्द्धेन पुरुषोऽभवत् ।
अर्द्धन नारी तस्यां स विराजमसृजत्प्रभुः ॥

ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप है। ईश्वर का सत्स्वरूप उनका मातृस्वरूप है और चित्स्वरूप पितृस्वरूप है। उनका तीसरा आनन्दरूप वह स्वरूप है, जिसमें मातृभाव और पितृभाव दोनों का पूर्णरूपेण सामंजस्य हो जाता है — वही शिव और शक्ति का संयुक्त रूप अर्धनारीश्वर‑रूप है।

सत्‑चित् दो रूपों के साथ‑साथ तीसरे आनन्दरूप के दर्शन अर्धनारीश्वर रूप में ही होते हैं, जो शिव का सम्भवत: सर्वोत्तम रूप कहा जा सकता है।


सत्‑चित्‑आनन्द और मानव में उसकी अभिव्यक्ति

सत्‑चित् और आनन्द — ईश्वर के इन तीन रूपों में आनन्दरूप अर्थात् साम्यावस्था या अक्षुब्धभाव भगवान शिव का है। मनुष्य भी ईश्वर से उत्पन्न उसी का अंश है, अतः उसके अंदर भी ये तीनों रूप विद्यमान हैं।

इसमें से स्थूल शरीर उसका सदंश है तथा बाह्य चेतना चिदंश है।
जब ये दोनों मिलकर परमात्मा के स्वरूप की पूर्ण उपलब्धि कराते हैं, तब उसके आनन्दांश की अभिव्यक्ति होती है। इस प्रकार मनुष्य में भी सत्‑चित् की प्रतिष्ठा से आनन्द की उत्पत्ति होती है।


स्त्री और पुरुष – ईश्वर की प्रतिकृति

स्त्री और पुरुष दोनों ईश्वर की प्रतिकृति हैं।
स्त्री उनका सद्रूप है और पुरुष चिद्रूप।
परंतु आनन्द के दर्शन तब होते हैं, जब ये दोनों मिलकर पूर्ण रूप से एक हो जाते हैं।

शिव गृहस्थों के ईश्वर हैं, विवाहित दम्पती के उपास्य देव हैं।
शिव स्त्री और पुरुष की पूर्ण एकता की अभिव्यक्ति हैं; इसी से विवाहित स्त्रियाँ शिव की पूजा करती हैं।


भगवान शिव के अर्धनारीश्वर अवतार की कथा

पुराणों के अनुसार:
लोकपितामह ब्रह्माजी ने पहले मानसिक सृष्टि उत्पन्न की थी। उन्होंने सनक‑सनन्दनादि अपने मानसपुत्रों का सृजन इस इच्छासे किया था कि ये मानसी सृष्टि को ही बढ़ाएँ, परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली।

उनके मानसपुत्रों में प्रजा की वृद्धि की ओर प्रवृत्ति ही नहीं होती थी। अपनी मानसी सृष्टि की वृद्धि न होते देखकर ब्रह्माजी भगवान त्र्यम्बक सदाशिव और उनकी परमा शक्ति का हृदय में चिन्तन करते हुए महान तपस्या में संलग्न हो गए।

उनकी इस तीव्र तपस्या से भगवान महादेव शीघ्र ही प्रसन्न हो गए और अपने अनिर्वचनीय अंश से अर्धनारीश्वर मूर्ति धारण कर वे ब्रह्माजी के पास गए —

तया परमया शक्त्या भगवन्तं त्रियम्बकम् ।
सञ्चिन्त्य हृदये ब्रह्मा तताप परमं तपः ॥
तीव्रेण तपसा तस्य युक्तस्य परमेष्ठिनः ।
अचिरेणैव कालेन पिता सम्प्रतुतोष ह ॥
ततः केन चिदंशेन मूर्तिमाविश्य कामपि ।
अर्धनारीश्वरो भूत्वा ययौ देवस्स्वयं हरः ॥

(शिवपुराण, वायवीय संहिता, पूर्वार्द्ध १५ । ७–९)

ब्रह्माजी ने भगवान सदाशिव को अर्धनारीश्वर रूप में देखकर विनीत भाव से उन्हें साष्टांग प्रणाम किया और उनकी स्तुति की।
इस पर भगवान महादेव ने प्रसन्न होकर कहा —
“हे ब्रह्मन्! आपने प्रजाजनों की वृद्धि के लिये तप किया है, आपकी इस तपस्या से मैं संतुष्ट हूँ और आपको अभीष्ट वर देता हूँ।”

यह कहकर उन देवाधिदेव ने अपने वामभाग से अपनी शक्ति भगवती रुद्राणी को प्रकट किया।
उन्हें अपने समक्ष प्रकट देखकर ब्रह्माजी ने उनकी स्तुति की और कहा —
“हे सर्वजगन्मयि देवि! मेरी मानसिक सृष्टि से उत्पन्न देवता आदि सभी प्राणी बारंबार सृष्टि करने पर भी बढ़ नहीं रहे हैं। मैथुनी सृष्टि हेतु नारीकुल की सृष्टि करने की मुझमें शक्ति नहीं है, अतः हे देवि! अपने एक अंश से इस चराचर जगत की वृद्धि हेतु आप मेरे पुत्र दक्ष की कन्या बन जाएँ।”

ब्रह्माजी द्वारा इस प्रकार याचना किये जाने पर देवी रुद्राणी ने अपनी भौंहों के मध्य भाग से अपने ही समान एक कान्तिमती शक्ति उत्पन्न की। वही शक्ति भगवान शिव की आज्ञा से दक्ष की पुत्री हो गई और देवी रुद्राणी पुनः महादेव जी के शरीर में ही प्रविष्ट हो गईं।


सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मांड में अर्धनारीश्वर की उपस्थिति

इस प्रकार भगवान सदाशिव के अर्धनारीश्वर रूप से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई। उनका यह रूप यह संदेश देता है कि समस्त पुरुष भगवान सदाशिव के अंश और समस्त नारियाँ भगवती शिवा की अंशभूता हैं।

उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत व्याप्त है —

पुंल्लिङ्गं सर्वमीशानं स्त्रीलिङ्गं विद्धि चाप्युमाम् ।
द्वाभ्यां तनुभ्यां व्याप्तं हि चराचरमिदं जगत् ॥

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