🕉️ ध्यानम्
श्रीयुक्ता पीतः हरितवसनाभा रजतसिंहनीस्था।
पद्मे संस्था कनकविकचेषु स्वर्णमालाविभूषा॥
दशभुजा च सुभुजविलसच्चक्रशङ्खादिधारिणी।
धान्यैश्वर्यप्रदायिनि नमस्ते भक्तकल्पलते॥१॥
🪷 हिंदी अर्थ
हे देवी! आप पीत-हरित वस्त्रों से सुशोभित हैं, चाँदी जैसे सिंहासन पर कमलासीन हैं, आपके नीचे स्वर्णकमल शोभायमान हैं।
आप स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत हैं, दस भुजाओं में चक्र, शंख, गेहूं की बालियाँ, गन्ना, मंगल कलश, हल, मूसल, कमल, अभयमुद्रा, और पके भोजन से भरा पात्र सुशोभित हैं।
हे भक्तों की कामना पूर्ण करनेवाली अन्नदा लक्ष्मी! आपको प्रणाम है।
🍁 अन्नदा धान्य लक्ष्मी कवचम् 🍁
यह कवच स्त्री-पुरुष, किसान, गृहस्थ, व्यापारी, अन्नदाता, सेवा करनेवाले, रसोइया, तथा अन्न से जीवन चलानेवाले सभी को रक्षा, धान्य समृद्धि और दैवी कृपा प्रदान करता है।
🕉️ विनियोगः
ॐ अस्य श्रीअन्नदा लक्ष्मी कवचस्य
अगस्त्य ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, अन्नदा लक्ष्मी देवी देवता।
धान्यवृद्धि प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।
ॐ अन्नदा मे शिरः पातु, धान्यरूपा शिखोपरि।
लक्ष्मीः पातु दृशौ दिव्ये, कर्णौ पुष्टिधराः सदा॥१॥
अर्थ:
अन्न प्रदान करनेवाली देवी मेरे मस्तक की रक्षा करें, धान्यरूपिणी मेरे शिखा की। लक्ष्मी जी मेरी आँखों की रक्षा करें, और दोनों कानों को सदा पुष्टिदात्री देवी सुरक्षित रखें।
घ्राणं गन्धप्रदा पातु, वदनं रसदा सदा।
जिव्हां च मधुमाधुरीं देवी, कण्ठं शुभवाक्दायिनी॥२॥
अर्थ:
मेरी नाक की रक्षा गन्धप्रदा देवी करें, मुख की रक्षा स्वाद देनेवाली अन्नदा करें, जीभ की रक्षा मधुर रस देनेवाली देवी करें, और कंठ की रक्षा शुभवाणी देनेवाली देवी करें।
हृदयं महालक्ष्मीः पातु, उदरं पूर्णपात्रिणी।
नाभिं पुष्करिणी रक्षेत्, कटिं शुभधान्यदा॥३॥
अर्थ:
हृदय की रक्षा महालक्ष्मी करें, पेट की रक्षा भोजनपूर्ण पात्र धारण करनेवाली देवी करें, नाभि की रक्षा कमलनाभिनी देवी करें और कटि प्रदेश की रक्षा शुभ धान्य प्रदान करनेवाली देवी करें।
बाहू चक्रगदा पातु, हस्तौ शङ्खार्घ्यधारिणी।
अंगुलीः गेहूर्धान्या, गदा हलधारिणी॥४॥
अर्थ:
बाहुओं की रक्षा चक्रधारी देवी करें, हाथों की रक्षा शंख-अर्घ्य लिए हुए देवी करें। अँगुलियों की रक्षा गेहूं धारण करनेवाली करें और गदा व हल धारण करनेवाली देवी रक्षा करें।
जंघे इक्षुधरा रक्षेत्, जानु मूषलधारिणी।
पादौ कमलपुष्पहस्ता, सर्वाङ्गं भोजनप्रदा॥५॥
अर्थ:
जंघाओं की रक्षा गन्ना धारण करनेवाली करें, घुटनों की रक्षा मूसलधारी देवी करें। चरणों की रक्षा कमलपुष्पहस्ता देवी करें और सम्पूर्ण शरीर की रक्षा भोजन देनेवाली अन्नदा देवी करें।
रात्रौ रक्षतु रात्रेशी, दिनं धान्यप्रदायिनी।
गृहे च गोष्ठे च सदा, अन्नपूर्णा समाश्रिता॥६॥
अर्थ:
रात्रि में रात्रिनियामक देवी रक्षा करें, दिन में धान्य प्रदायिनी रक्षा करें। घर और गौशाला में सदा अन्नपूर्णा स्वरूपिणी देवी मेरी रक्षा करें।
य इदं कवचं पुण्यं धान्यलक्ष्म्याः पठेन्नरः।
सर्वान्नं लभते नित्यं, तस्य काले न दुर्भिक्षम्॥७॥
अर्थ:
जो मनुष्य इस पुण्यदायी धान्य लक्ष्मी कवच का पाठ करता है, वह सभी प्रकार के अन्न को सदा प्राप्त करता है। उसके क्षेत्र में कभी दुर्भिक्ष (अकाल) नहीं होता।
समापन प्रार्थना:
हे अन्नदा धान्यलक्ष्मी देवी! आप सबका जीवन अन्न, धन, और सौभाग्य से भर दें।
आपकी कृपा से कभी किसी के घर में अन्न की कमी न हो।
Also Read


