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🌿धात्री देवी (आंवला) का दिव्य आख्यान: हिंदी अर्थ सहित पूजा, महिमा और आयुर्वेदिक लाभ | Akshay Navami Vrat Katha in Hindi

Amalaki Lakshmi Katha

श्री आमलकी लक्ष्मी धात्री देवी आख्यान (Akshay Navami Vrat Katha) का अत्यंत सुंदर, संपूर्ण और दुर्लभ संकलन साझा किया है — इसमें वैदिक, पौराणिक, आयुर्वेदिक और भक्ति सभी दृष्टियों से धात्री (आँवला) देवी का महात्म्य अत्यंत भावपूर्ण रूप में प्रस्तुत है।

यह आख्यान न केवल अक्षय नवमी या आमलकी एकादशी के व्रत में पाठ के लिए उपयोगी है, बल्कि विष्णु–लक्ष्मी उपासना के साधकों के लिए भी अत्यंत पवित्र ग्रंथ रूप में पूज्यनीय है।

श्रीआमलकी लक्ष्मी धात्री देवी आख्यान 🌷🌷 (हिन्दी अर्थ सहित )

ॐ श्रीगणेशाय नमः।
श्रीनारायणाय नमः। श्रीधात्रीलक्ष्म्यै नमः॥

🍁 ध्यान
ध्यायामि धात्रीं विष्णोः प्रियां पद्महस्ताम्‌।
पीताम्बरां सौम्यतनोर्भासमानाम्‌॥
या लक्ष्म्या तुलस्याऽपि संयुक्ता सदा
श्रीनारायणेन सह विराजते॥

हिन्दी भावार्थ
मैं धात्री (आँवला) देवी का ध्यान करता हूँ —
जो भगवान विष्णु की प्रिय हैं,
हाथ में कमल धारण किए हुए, पीतवर्ण वस्त्र धारण कर
सौम्य और तेजस्विनी स्वरूपा हैं।
जो सदा लक्ष्मी और तुलसी के साथ
श्री नारायण के समीप विराजमान रहती हैं।

ॐ श्रीं धात्र्यै लक्ष्म्यै आमलकरूपिण्यै नमः॥

नमामि भक्त्याऽमलकिं हरिप्रिया शुभप्रदाम्।
यस्या स्पर्शेण पापानि पतन्त्येव यथा हिमाः॥१

भावार्थ:
हे धात्री देवी! हे हरि प्रिय आमलकी! आपके स्पर्श से जैसे सूर्य की किरणों से हिम पिघलता है, वैसे ही सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

हिरण्यवर्णां सुव्रतां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्।
धारिणीं लोकमातॄं तां नमामि आमलकीं विष्णुप्रियाम्॥२

भावार्थ:
स्वर्णवर्णा, सुंदर नेत्रोंवाली, समस्त जगत् की धारिणी मातृरूपा आमलकी देवी को नमस्कार।

श्रीलक्ष्म्याः स्वरूपं धात्र्याः पृथिव्यां सन्निवेशितम्।
तस्मादस्याः फलान्येव धनधान्यसमन्वितम्॥३

भावार्थ:
धात्री स्वयं लक्ष्मी का पृथ्वीस्थ स्वरूप हैं; अतः उनके फलों में धन-धान्य और ऐश्वर्य का वास है।

विष्णोरंशेन संभूता धात्री विष्णोः प्रिया सदा।
तस्मात् विष्णुप्रसादाय पूज्या लोकेषु सर्वदा॥४

भावार्थ:
धात्री देवी विष्णु के अंश से उत्पन्न होकर सदैव विष्णुप्रिया हैं, अतः जो उनकी पूजा करता है उसे विष्णुप्रसाद मिलता है।

श्रीवृक्षराजो देवेषु पवित्रः सर्वरोगहाः।
यस्य छायां निराश्रित्य पापं नश्यति तत्क्षणात्॥५

भावार्थ:
वृक्षों में आमलकी राजा समान है — पवित्र और सर्वरोगहारी। इसकी छाया में बैठने से पाप नष्ट होते हैं।

🍁 सृष्टि रचना काल में आंवला वृक्ष की उत्पत्ति कथा

सृष्ट्यादिकाले ब्रह्माणो वक्त्रान्निष्क्रान्तवेदधिः।
नारायणं समासाद्य बभूव तेजसां निधिः॥६

अर्थ:
सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा के मुख से वेदमंत्र प्रकट हुए, जो भगवान सच्चिदानंद नारायण तक पहुँचकर दिव्य तेज के भंडार बन गए।

तस्मिन्नेत्रेभ्य आसीद् जलं स्वर्णप्रभं महत्।
भूम्यां पतित्वा सञ्जातं आमलकीं विमलप्रभाम्॥७

भावार्थ:
उस समय भगवान नारायण के नेत्रों से दिव्य स्वर्णप्रभा जल बूँदें गिरीं, जिनसे पृथ्वी पर आमलकी वृक्ष उत्पन्न हुआ।

सर्ववृक्षेषु जातेषु प्रथमं आमलकी स्मृता।
धारयत्येष लोकत्रयं विष्णुभक्त्या सनातनी॥८

भावार्थ:
सृष्टि में जो भी वृक्ष उत्पन्न हुए, उनमें आमलकी प्रथम थी, जो तीनों लोकों को विष्णुभक्ति से धारण करती है।

साक्षान्नारायणस्तत्र वृक्षरूपेण तिष्ठति।
धात्र्याख्या लोकमातैषा सर्वपापप्रणाशिनी॥९

भावार्थ:
भगवान नारायण स्वयं आमलकी वृक्षरूप में स्थित हैं; यह धात्री देवी समस्त पापों का नाश करती हैं।

फाल्गुने शुक्लपक्षे तु एकादश्यां शुभे दिने।
धात्र्युत्पत्त्युत्सवं प्रोक्तं ब्रह्मर्षिभिः सनातनैः॥१०

भावार्थ:
फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन धात्री देवी का जन्मोत्सव मनाने का विधान है।

तस्मिन्नहनि यः स्नात्वा धात्रीं पूजयते नरः।
स जातकर्मसम्पूर्णं फलं प्राप्नोति निश्चितम्॥११

भावार्थ:
जो इस दिन स्नान करके धात्री की पूजा करता है, उसे यज्ञ एवं जन्मसंस्कारों के समान पुण्य प्राप्त होता है।

धात्रीं स्पृशेत् प्रयत्नेन यः भक्त्याऽर्चेत् फलैः शुभैः।
न स पापं लभतेऽस्मिन्जन्मनि जन्मनि चापरम्॥१२

भावार्थ:
जो श्रद्धा से आंवला वृक्ष को स्पर्श या पूजन करता है, उसके वर्तमान और आगामी जन्मों के पाप मिट जाते हैं।

देवाः सर्वेऽभिषिञ्चन्ति धात्र्याः पत्रैः हरिं शुभम्।
तदभ्यङ्गं यः करोति विष्णुलोकं स गच्छति॥१३

भावार्थ:
देवता भी आंवला पत्रों से भगवान विष्णु का अभिषेक करते हैं; जो मनुष्य ऐसा करता है, वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है।

🍁 पृथ्वी पर वृंदा सती प्रसंग में आंवला वृक्ष की अधिष्ठात्री धात्रीदेवी उत्पत्ति की पौराणिक।कथा

जालन्धरस्य निधनं दृष्ट्वा वृन्दा सती स्वपत्निका।
योगाग्निना तनुं दग्ध्वा दिव्यं लोकं गताभवत्॥१४

भावार्थ:
जालंधर वध के बाद उसकी पतिव्रता वृंदा योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर दिव्य लोक चली गईं।

तस्या भस्मनि देवीनां त्रयाणां तेजसः प्रभुः।
सरस्वत्याः कलेनैका धात्री देवी प्रजायते॥१५

भावार्थ:
वृंदा की भस्म में त्रिदेवियों का तेज मिला — सरस्वती के अंश से धात्री देवी प्रकट हुईं।

लक्ष्म्या मालत्या भू देवी, गिरिजायास्तु तुलसी।
त्रयोऽपि वृक्षरूपेण भूधर्यामभिजायिरे॥१६

भावार्थ:
लक्ष्मी से मालती, पार्वती से तुलसी, और सरस्वती से धात्री उत्पन्न हुईं — तीनों वृक्षदेवियाँ पृथ्वी पर प्रकट हुईं।

ततः शंकर उवाच ताः सर्वाः पतिव्रता व्रतम्।
“हरिं भजध्वं देवेशं, विष्णुं पतिं सनातनम्॥”१७

भावार्थ:
भगवान शिव ने उन तीनों देवियों से कहा — “हे पतिव्रते देवियाँ! तुम सब भगवान विष्णु को ही पति रूप में वरण करो।”


तथा स्त्रीव्रतधर्मेण तुलसी धात्री च तिष्ठतः।
हरिं वरयितुं प्रीत्या तस्मात् तौ विष्णुप्रिया अभवताम्॥१८

भावार्थ:
धात्री और तुलसी ने शिव की आज्ञा मानकर विष्णु को पति रूप में वरण किया, और विष्णुप्रिया कहलाईं।

मालत्या तु न मानेति शिवस्य वचनं शुभे।
तस्मात् पूजायां मालत्याः निषेधो विहितो हरैः॥१९

भावार्थ:
मालती ने शिव की आज्ञा नहीं मानी, अतः शिवपूजन में मालती पुष्प निषिद्ध हुआ।


वृक्षदेवीस्त्रयो जाताः वृंदाभस्मसमुद्भवाः।
धात्री भूः सौभाग्यदायिनी तुलसी मोक्षकारिणी॥२०

भावार्थ:
वृंदा की भस्म से उत्पन्न तीनों वृक्षदेवियाँ थीं — धात्री (सौभाग्यदायिनी), तुलसी (मोक्षदायिनी) और मालती (सुगंधप्रदा)।


धात्र्याः स्पर्शेन सर्वत्र जीवोऽपि विष्णुभावनः।
तस्मात् सर्वजनैः नित्यं पूजनीया हरिप्रिया॥२१

भावार्थ:
धात्री के स्पर्श से ही जीव विष्णुभक्ति में स्थित हो जाता है, इसलिए वह सर्वजन के लिए पूजनीय है।

तत्र विष्णुश्च तां प्राह — “त्वं मम प्राणवल्लभा।
लोकत्रये पूजनीयाः वृक्षरूपेण संस्थिता॥”२२

भावार्थ:
भगवान विष्णु ने धात्री से कहा — “तुम मेरी प्राणवल्लभा हो, तीनों लोकों में पूजनीय हो, वृक्षरूप में सदा निवास करो।”

तस्माद्देव्या हरेः साक्षात् विवाहोऽभूदनुत्तमः।
कार्तिके शुक्लनवम्यां तदुत्सवो महोत्सवः॥२३

भावार्थ:
इस प्रकार कार्तिक शुक्ल नवमी को भगवान विष्णु और धात्री देवी का दिव्य विवाह सम्पन्न हुआ।

अक्षयां तां ततो नित्यं नवमीं प्रोच्यते बुधैः।
यत्र विष्णुर्विवाहं तु धात्र्या सह समाचरन्॥२४

भावार्थ:
जिस दिन भगवान विष्णु ने धात्री से विवाह किया, वही दिन ‘अक्षय नवमी’ कहलाया — उस दिन किया गया पुण्य अक्षय होता है।

धात्र्याः पल्लवमादाय विष्णुपूजा विशेषतः।
यः करोति स भाग्यवान् मोक्षमार्गं स विन्दति॥२५

भावार्थ:
जो भक्त धात्री के पल्लव लेकर विष्णुपूजन करता है, वह सौभाग्यवान होता है और मोक्ष प्राप्त करता है।

वृक्षदेवीषु नारीणां पतिव्रत्यं प्रतिष्ठितम्।
तस्मात् स्त्रीणां विशेषेण धात्रीपूजा विधीयते॥२६

भावार्थ:
वृक्षदेवियों में पतिव्रत धर्म प्रतिष्ठित है; इसीलिए विशेषतः स्त्रियों के लिए धात्रीपूजन अनिवार्य माना गया।


सपत्नीकः पुमान् धात्र्याः छायायां यः समर्चयेत्।
स पुत्रवान् भवेन्नित्यं कुलं तस्य न शोचति॥२७

भावार्थ:
जो पति-पत्नी धात्री छाया में पूजा करते हैं, वे सन्तानवान होते हैं और उनका कुल दुःख से रहित रहता है।

एवं धात्रीसमुत्पत्तिः कथिता वैदिकी शुभा।
पौराणिकी च विस्तीर्णा, पावनी हि सदा भवेत्॥२८

भावार्थ:
इस प्रकार धात्री देवी की वैदिक एवं पौराणिक उत्पत्ति कथा कही गई — जो पवित्र करने वाली और कल्याणदायिनी है।

🍁विष्णु–धात्री विवाह प्रसंग

विष्णोः करकमले धात्रीं दृष्ट्वा लक्ष्मीः प्रसन्नया ।
उवाच – “एषा मम रूपं शुभं तव प्रियकारकम्” ॥२९॥

भावार्थ:
भगवान विष्णु के करकमल में जब धात्री देवी विराजमान हुईं,
तब लक्ष्मी जी ने कहा — “यह मेरा ही रूप है, जो तुम्हें सर्वप्रिय बनेगा।”

–तदा विष्णुर्मुदा धात्रीं मङ्गलैः सूत्रयामसत् ।
देवास्तत्राजगन्मोदं दत्वा वर्यं शुभाशिषः ॥३०॥

भावार्थ:
भगवान विष्णु ने मंगल विधि से धात्री देवी से विवाह किया।
देवताओं ने वहाँ आकर आनंदपूर्वक उन्हें आशीर्वाद दिया।

–गन्धर्वाः किंकिनीघोषं ननृतुः पुष्पवृष्टिभिः ।
देवदुन्दुभयो नेदुस्तद्विवाहे महामुने ॥३१॥

भावार्थ:
गन्धर्वों ने गान किया, अप्सराओं ने पुष्पवृष्टि की,
और देवदुंदुभियाँ बज उठीं — वह विवाह दिव्य और अद्भुत था।

सर्ववृक्षास्तदा नत्वा धात्रीं पूजां प्रकल्पयन् ।
फलदायिन्यसा जाता सर्ववृक्षप्रसूः शुभा ॥३२॥

भावार्थ:
तब सभी वृक्षों ने धात्री देवी को प्रणाम किया,
और वह सभी वृक्षों की माता — फलदायिनी देवी बन गईं।

तस्याः स्पर्शे फले वापि दोषदुःखं न जायते ।
यः सेवते फलं धात्र्याः स आयुष्मान् सुखी भवेत् ॥३३॥

भावार्थ:
आंवले के स्पर्श से कोई दोष या दुःख नहीं रहता।
जो व्यक्ति इसके फल का सेवन करता है, वह दीर्घायु और सुखी होता है।

रसः स्वादुः कटुकश्च कषायो लघुरुच्यते ।
शीतला त्रिदोषघ्ना च धात्री वैद्यैः प्रशस्यते ॥३४॥

भावार्थ:
आंवला मधुर, कषाय, हल्का, शीतल और त्रिदोषनाशक होता है।
वैद्य इसे औषधियों में सर्वोत्तम मानते हैं।

नेत्रप्रीणनकारिण्याः केशवृद्धिकरः फलम् ।
रक्तपित्तप्रशमनी जठराग्निविवर्धिनी ॥३५॥

भावार्थ:
यह फल नेत्रों को शीतलता देता है, केशों को पोषण करता है,
रक्त और पित्त के विकार मिटाता है, तथा पाचन अग्नि को बढ़ाता है।

कण्ठस्वरप्रसादिन्याः स्मृतिवृद्धिकरं परम् ।
आयुःप्रदा बलकरी धात्री देव्या प्रसादतः ।।३६॥

भावार्थ:
आंवला स्वर को मधुर बनाता है, स्मृति को प्रखर करता है,
और आयुष्य, बल एवं तेज प्रदान करता है — धात्री देवी की कृपा से।

तस्मादायुःप्रदां धात्र्यां स्नानं स्पर्शं च शस्यते ।
मृत्युभयविनाशाय रोगनाशाय सर्वदा ॥३७॥

भावार्थ:
इसलिए धात्री वृक्ष के समीप स्नान, स्पर्श या पूजा
मृत्यु-भय और रोगों के नाश के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।

🍁अक्षय नवमी व्रत (Akshay Navami Vrat Katha) का पौराणिक आधार

कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी या आमलकी नवमी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना आँवले के वृक्ष के नीचे की जाती है। व्रत करने वाले को अक्षय फल, सुख-संपत्ति और संतान सौभाग्य प्राप्त होता है।

कार्तिके शुक्लनवम्यां धात्र्यां स्नानं विशिष्यते ।
सर्वपापविनाशाय अक्षयं फलमाप्नुयात् ॥३८॥

भावार्थ:
कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन धात्री वृक्ष के नीचे स्नान या पूजन करने से
सभी पाप मिट जाते हैं और अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

तत्र स्त्री वा नरः भक्त्या परिक्राम्य त्रिवारकम् ।
धात्र्याश्छायां समाश्रित्य धनधान्यसमृद्धिमान् ॥३९॥

भावार्थ:
जो भक्त स्त्री या पुरुष उस दिन आंवले की परिक्रमा करते हैं,
वे धन, अन्न और सौभाग्य से संपन्न होते हैं।

तत्रैव विष्णुपूजा च धात्र्याः पत्रैः प्रकल्प्यते ।
सहस्रगुणितं पुण्यं लभते नारायणप्रिये ॥४०॥

भावार्थ:
उस दिन यदि विष्णु की पूजा आंवले की पत्तियों से की जाए,
तो वह सहस्रगुणा पुण्यफल प्रदान करती है।

धात्रीवृक्षे प्रतिष्ठायै विष्णुलक्ष्म्यौ विराजितौ ।
तस्मादेतत्स्थले दत्तं कोटिगुण्यं फलप्रदम् ॥४१॥

भावार्थ:
क्योंकि धात्री वृक्ष में स्वयं विष्णु और लक्ष्मी का वास है,
इसलिए वहाँ दान या पूजन का फल करोड़ों गुना बढ़ जाता है।

🍁अक्षयत्व, पवित्रता और देवी धात्री का महत्व

आँवला, जिसे धात्री या आमलकी देवी कहा गया है, केवल एक औषधीय वृक्ष नहीं, बल्कि लक्ष्मी और विष्णु का संयुक्त स्वरूप है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार —

“धात्र्याश्रिता लक्ष्मीः विष्णुस्तथा तिष्ठति सदा।”

आँवला वृक्ष की पूजा करने से शरीर, मन और आत्मा तीनों को शुद्धि प्राप्त होती है। इस वृक्ष में स्वयं श्रीहरि विष्णु और लक्ष्मी का वास बताया गया है।

धात्री वृक्षस्य मूले च स्थिता लक्ष्मीर्नित्यमेव हि ।
तस्माद्यत्र वने धात्री तत्र लक्ष्म्याः निवासः सदा ॥४२॥

भावार्थ:
धात्री वृक्ष के मूल में सदा लक्ष्मी निवास करती हैं,
इसलिए जहाँ यह वृक्ष होता है, वहाँ दरिद्रता नहीं टिकती।

अक्षय्यं यस्य फलं तस्य पूजायां न क्षयो भवेत् ।
धात्रीपूजाफलं नित्यं सर्वयज्ञफलं भवेत् ॥४३॥

भावार्थ:
जिस वृक्ष का फल स्वयं अक्षय है, उसकी पूजा भी अक्षय फल देती है —
धात्री पूजन का फल सभी यज्ञों के बराबर होता है।

सर्वरोगप्रशमनं सर्वदुःखविनाशनम् ।
धात्रीदर्शनमात्रेण पापराशिः प्रणश्यति ॥४४॥

भावार्थ:
धात्री देवी के दर्शन मात्र से सभी रोग और दुःख मिट जाते हैं,
और पापों का पर्वत क्षण में नष्ट हो जाता है।

🍁धात्री देवी का स्वरूप वर्णन

धात्री त्रिगुणसंयुक्ता सत्त्वस्थैर्यप्रदायिनी ।
ब्रह्मशक्तिरुपा देवी ध्यानमात्रेण मोक्षदा ॥४५॥

भावार्थ:
धात्री देवी सत्त्व, रज, तम — तीनों गुणों की संतुलक हैं।
वे ब्रह्मशक्ति स्वरूपा हैं और ध्यान करने मात्र से मोक्ष देती हैं।


सूर्यतेजोमयी धात्री सोमरूपा सुधाप्रदा ।
अग्न्यंशसंभवा देवी तापत्रयविनाशिनी ॥४६॥

भावार्थ:
वे सूर्य के तेज से युक्त, चंद्रमा की शीतलता देने वाली,
और अग्नि के अंश से उत्पन्न होकर त्रिविध तापों को नष्ट करती हैं।


धारणीधात्री च तनुं धारयन्ती सदा शुभा ।
सर्वलोकहितार्थाय धात्र्याख्या प्रसिद्धिका ॥४७॥

भावार्थ:
जो सम्पूर्ण सृष्टि का पोषण करती हैं, उसी कारण उनका नाम “धात्री” पड़ा —
वे धरती के समान स्थिर, पालनकारी और शुभदायिनी हैं।

🍁धात्री आराधना : Akshay Navami Vrat

नित्यं धात्र्याश्रयं कृत्वा विष्णुलक्ष्म्यौ प्रपूजयेत् ।
भुक्तिमुक्तीश्च स लभेत् सायुज्यं श्रीहरौ लभेत् ॥४८॥

भावार्थ:
जो भक्त प्रतिदिन आंवले की छाया में विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करता है,
वह भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता है तथा हरि के सायुज्य को पाता है।

अमलकीं त्रिवारं यः परिक्राम्य प्रपूजयेत् ।
स कलत्रसुतैः सार्धं धनधान्यसमन्वितः ॥४९॥

भावार्थ:
जो व्यक्ति तीन बार परिक्रमा करके आंवला वृक्ष की पूजा करता है,
वह परिवार सहित सुख, संतान और समृद्धि प्राप्त करता है।

धात्र्यां दानं तु यो दद्यात् ब्राह्मणे वा द्विजोत्तमे ।
स गच्छत्यक्षयं लोकं विष्णुलोकमनुत्तमम् ॥५०॥

भावार्थ:
जो भक्त धात्री वृक्ष के निकट ब्राह्मण को दान करता है,
वह मृत्यु के बाद विष्णुलोक को प्राप्त करता है।

धात्रीपूजाविहीनो यः कार्तिके तु नराधमः ।
स दुःखमभिजायेत दुःखसंपातसंयुतः ॥५१॥

भावार्थ:
जो मनुष्य कार्तिक नवमी पर धात्री पूजा नहीं करता,
वह जीवनभर दुःख और दरिद्रता से ग्रस्त रहता है।

🍁 आंवला फल काआयुर्वेदिक महत्त्व

त्रिदोषनाशिनि धात्रि त्वं, रसयानां वरिष्ठका।
सत्त्ववृद्धिकरी नित्यं, रोगशोकविनाशिनी॥५२

अर्थ:
हे धात्रीदेवी! आप त्रिदोष — वात, पित्त और कफ — को नष्ट करनेवाली हैं। आप उत्तम रसायन हैं, सत्त्वगुण बढ़ानेवाली और सभी रोग–शोकों को मिटानेवाली हैं।

त्वत्तो जातं फलं दिव्यं, सर्वामृतमयो रसः।
ये पिबन्ति नरा भक्त्या, दीर्घायुर्यान्ति निश्चितम्॥५३

अर्थ:
आपसे उत्पन्न फल दिव्य अमृतमय रस से परिपूर्ण है। जो मनुष्य उसे श्रद्धा से ग्रहण करता है, वह दीर्घायु और स्वस्थ जीवन प्राप्त करता है।

नेत्रप्रीतिदा, शीतला, रक्तपित्तहरप्रिया।
विषवातज्वरच्छेत्ता, हृद्रोगापहमङ्गले॥५४

अर्थ:
आपकी कृपा से नेत्रों में शीतलता आती है, आप रक्तपित्त और विषज्वर को हरनेवाली हैं, तथा हृदय के रोगों का नाश करनेवाली मंगलमयी देवी हैं।

त्वमेव मूर्ध्नि धार्या च, पुष्करे वारिवल्लभा।
कफप्रमेहकुष्ठादीन्, नाशयत्येषि धात्रिके॥५५

अर्थ:
हे धात्री! जब आपके फल का रस या तेल सिर पर लगाया जाता है, तो वह पुष्करिणी जल के समान कल्याणकारी होता है और कफ, प्रमेह, कुष्ठ आदि रोगों को दूर करता है।

अङ्गं हित्वा तनुं धात्रि, तव पत्रं विलोक्य हि।
शान्तिं प्राप्नोति पापानि, दशकोट्यो विनश्यति॥५६

अर्थ:
हे धात्री! जो व्यक्ति आपके वृक्ष के नीचे बैठकर आपका पत्ता देखता है, वह भी शान्ति प्राप्त करता है और उसके दस करोड़ पाप नष्ट हो जाते हैं।


सप्तधातुश्च शुद्ध्यन्ति, तव सेवाफले नृणाम्।
मज्जास्थिरक्तमांसानि, नवं रूपं लभन्ति च॥५७

अर्थ:
आपकी सेवा से मनुष्य के शरीर की सातों धातुएँ शुद्ध हो जाती हैं — रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र — और शरीर नवीन तेज से युक्त हो जाता है।

त्वं भूमेर्धरणीशक्तिः, त्वं विष्णोः हृदयेश्वरी।
अमृतं यत्प्रवहति, तत्सर्वं ते फलं शुभे॥५८

अर्थ:
आप पृथ्वी की धारणाशक्ति हैं और विष्णु के हृदय में निवास करनेवाली देवी हैं। आपके फल में जो अमृत प्रवाहित होता है, वह समस्त रोगनाशक और मंगलदायक है।

🍁 आंवला वृक्ष माहात्म्य और श्री आमलकी लक्ष्मी धात्री देवी कथा

प्राचीन काल में चम्पावती नगरी में नृग नामक राजा राज्य करते थे।
एक बार उन्होंने अपने राज्य में घोषणा की कि अक्षय नवमी के दिन प्रत्येक व्यक्ति आमलकी वृक्ष के नीचे बैठकर लक्ष्मी-नारायण की पूजा करे।

राजा स्वयं भी अपनी रानी के साथ आँवले के वृक्ष के नीचे धात्री लक्ष्मी पूजन करने गए।
उन्होंने ब्राह्मणों को दान दिया, दीप जलाया और भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए कहा —

“धात्री देवी, लक्ष्मी देवी एवं विष्णु भगवान – आप तीनों मेरे जीवन के सारथी हैं, कृपा करें।”

रात्रि में जब उन्होंने वृक्ष के नीचे दीपक रखा, तो स्वयं श्री विष्णु और लक्ष्मी देवी प्रकट हुए।
वे बोले —

“हे राजन्, जो व्यक्ति इस दिन आमलकी वृक्ष का पूजन करता है, वह हमारे लोक में स्थान प्राप्त करता है। उसे कभी दरिद्रता, रोग या अकाल मृत्यु नहीं होती।”

राजा और रानी ने यह व्रत सदा के लिए अपने वंश में स्थायी कर दिया।
यही कथा कालांतर में श्री आमलकी लक्ष्मी धात्री देवी कथा के रूप में प्रसिद्ध हुई।

यत्र त्वं संस्थिता नित्यं, तत्र लक्ष्मीः सदाऽवसत्।
धनधान्यसमृद्धिः स्यात्, पुत्रपौत्रैः सह स्थिरा॥५९

अर्थ:
जहाँ आमलकी का वृक्ष स्थापित रहता है, वहाँ स्वयं लक्ष्मी सदा निवास करती हैं, और वह घर धन, अन्न, और संतानों से सदा समृद्ध रहता है।

त्वद्वृक्षच्छायायां नित्यं, यो नरो विश्राम्यति।
तस्य देहे न जायन्ते, रोगदुःखानि दुर्लभाः॥६०

अर्थ:
जो मनुष्य आमलकी के वृक्ष की छाया में विश्राम करता है, उसके शरीर में कभी कोई रोग या कष्ट उत्पन्न नहीं होते।

तव मूलं स्पृशेद्यस्तु, श्रद्धया पुण्यचेतसा।
सर्वतीर्थसमं तस्य, स्नानं भवति धात्रिके॥६१

अर्थ:
जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक आमलकी के वृक्ष की जड़ को स्पर्श करता है, उसे ऐसा पुण्य मिलता है मानो उसने सभी तीर्थों में स्नान किया हो।

तव पत्रं यदा धृत्वा, मस्तके भक्तमानसः।
विष्णुध्यानं करोत्येव, मोक्षमार्गे प्रवर्तते॥६२

अर्थ:
जो व्यक्ति आपके पत्ते को सिर पर रखकर विष्णु का ध्यान करता है, वह मोक्षमार्ग में प्रवृत्त होता है।

शीतला त्वं सदाभद्रे, तपदाहविनाशिनि।
तव नामस्मृतिः पुण्या, पावयत्वखिलं जगत्॥६३

अर्थ:
हे भद्रेश्वरि धात्री! आप शीतलता की अधिष्ठात्री हैं, ताप और दाह का नाश करती हैं। आपका नामस्मरण ही समस्त जगत को पवित्र कर देता है।

त्वं वैद्या सर्वलोकानां, विष्णुलक्ष्म्यैकदेहिनी।
अमृतत्वप्रदा नित्यं, धात्र्यै नमोऽस्तु सर्वदा॥६४

अर्थ:
आप समस्त लोकों की वैद्य हैं, आप विष्णु–लक्ष्मी का संयुक्त स्वरूप हैं। आप अमृतत्व प्रदान करनेवाली हैं — आपको सदा नमन।

आयुः प्रजा बलं मेधा, त्वत्प्रसादात् प्रवर्धते।
सद्गतिः शान्तिरारोग्यं, ददासि त्वं महामते॥६५

अर्थ:
आपकी कृपा से आयु, संतान, बल और बुद्धि की वृद्धि होती है। आप साधक को शान्ति, आरोग्य और सद्गति देती हैं।

धात्रि त्वं ब्रह्मरूपा च, सर्ववेदाङ्गवन्दिता।
त्वमेव ज्ञानमूलं हि, मुक्तिदायिनि सुन्दरि॥६६

अर्थ:
हे धात्री! आप ब्रह्मरूपा हैं, वेदों द्वारा वन्दित हैं। आप ज्ञान की जड़ हैं और मुक्तिदायिनी सुंदर देवी हैं।

भक्त्या यस्त्वां समर्चयेत्, आमलकीव्रते दिने।
सर्वकर्मफलं तस्य, विष्णुलोके प्रतिष्ठितम्॥६७

अर्थ:
जो व्यक्ति आमलकी व्रत के दिन भक्ति से आपकी पूजा करता है, उसके सब कर्मफल विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होते हैं।

धात्र्यै नमोऽस्तु नित्यं च, विष्णुप्रिया नमोऽस्तु ते।
सद्वृक्षरूपिणि मातः, रक्ष मां सर्वतः शुभे॥६८

अर्थ:
हे विष्णुप्रिया धात्री! आपको बारंबार नमस्कार। हे सद्वृक्षरूपिणी मातः, मुझे सभी दिशाओं से रक्षा प्रदान करें।

त्वद्भक्तो न जहात्येव, देहान्तेऽपि जनार्दनम्।
त्वं च विष्णुश्च सर्वत्र, द्वयं नान्यद् विलोच्यते॥६९

अर्थ:
आपका भक्त मृत्यु के समय भी भगवान विष्णु का स्मरण नहीं छोड़ता, क्योंकि आप और विष्णु दोनों एक ही स्वरूप हैं — कोई भेद नहीं।

त्वं हि विष्णोः प्रिया देवि साक्षाल्लक्ष्मीस्वरूपिणी।
अविकारा च शान्ता च सर्वदेवोपचारिणी॥७०

अर्थ:
हे देवी! आप भगवान विष्णु की परम प्रिया और साक्षात् लक्ष्मीस्वरूपा हैं। आप नित्य शान्त, अविकारिणी और सभी देवताओं की सेवा करने वाली हैं।

वृन्दया सह सम्युक्ता विष्णोः पादाभिषेचने।
धात्री तुलसी मालत्यश्च त्रिदेवीसंस्थिताः सदा॥७१

अर्थ:
आप तुलसी और मालती के साथ भगवान विष्णु के चरणों में निवास करती हैं — ये तीनों देवियाँ सदा उनके पूजन की अधिष्ठात्री हैं।


त्वद्भस्मना स्पृष्टभूमिः पुण्या भवति सर्वथा।
यत्र त्वद्वृक्षसंयोगः तत्र देवालयो महान्॥७२

अर्थ:
जहाँ धात्री वृक्ष की छाया या स्पर्श होता है, वह भूमि तीर्थ बन जाती है और वहाँ देवताओं का निवास माना जाता है।

त्वं पुष्टिदा बलप्रदा दीर्घायुष्यप्रदायिनी।
रसायनानां श्रेष्ठा त्वं भेषजेषु परा स्थितिः॥७३

अर्थ:
आप पुष्टि, बल और दीर्घायु प्रदान करने वाली हैं; आप सभी औषधियों में सर्वोच्च और जीवनदायिनी रसायन हैं।

त्वद्रसोत्थं हि यो लेहो रोगसङ्घविनाशनः।
देहबलप्रदः श्रेष्ठो धात्र्याः प्राशोऽमृतोपमः॥७४

अर्थ:
हे धात्री देवी! आपके रस से निर्मित अवलेह (च्यवनप्राश आदि) समस्त रोगों का नाश करने वाला, शरीर को बल प्रदान करने वाला और अमृत के समान श्रेष्ठ है।

त्वया स्पृष्टं फलं दिव्यं सर्वदोषविनाशनम्।
दृष्टमात्रं च पापानां नाशनं भवति ध्रुवम्॥७५

अर्थ:
आपका फल (आंवला) सभी दोषों का नाश करने वाला है; केवल उसे देखने से भी पाप मिट जाते हैं।


कृष्णानां प्रियदेवत्वं यथा तुलस्याः प्रकीर्तितम्।
तथा धात्री त्वमप्येव लक्ष्मीरूपा सनातनी॥७६

अर्थ:
जैसे तुलसी भगवान कृष्ण को प्रिय हैं, वैसे ही आप भी सनातन लक्ष्मीस्वरूपा होकर नारायण को अतिप्रिय हैं।

धन्यं यं तव दर्शनं स्नानं वा स्पर्शनं शुभम्।
तत्र लक्ष्मीः स्थिता नित्यं गृहं तस्यैव वैभवम्॥७७

अर्थ:
जो आपके दर्शन, स्नान या स्पर्श से युक्त होता है, उसके घर में नित्य लक्ष्मी का निवास और वैभव रहता है।

शीतला त्वं च सौम्या च विषहरिण्यपरा सदा।
तव पत्रं रसः स्निग्धः शीतलः सर्वरोगनुत्॥७७

अर्थ:
आप शीतल और सौम्य स्वभाव वाली हैं; आपके पत्ते और रस सभी रोगों, विशेषतः ज्वर और विष से रक्षा करते हैं।

सप्तधातुप्रसूर्वाहि देहे धर्मप्रवर्धिनी।
अग्निबलप्रदा नित्यं मेधादेवी सनातनी॥७८

अर्थ:
आप शरीर की सप्तधातुओं को पुष्ट करती हैं, धर्म और अग्निबल बढ़ाती हैं, तथा सनातन मेधादेवी के रूप में विद्यमान हैं।

यः स्नायादामलकीतले प्रातः श्रद्धासमन्वितः।
पापं नाशयते सर्वं तत्क्षणादेव मानवः॥७९

अर्थ:
जो व्यक्ति प्रातःकाल श्रद्धा से आंवले के वृक्ष तले स्नान या पूजा करता है, उसके पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं।

आयुर्वृद्धिकरं पुण्यं तेजोबलविवर्धनम्।
आमलकीस्मरणं नित्यं सर्वदुःखनिवारणम्॥८०

अर्थ:
आंवला का स्मरण ही आयु, तेज और बलवृद्धि करने वाला है; यह सभी प्रकार के दुखों का नाश करता है।

धात्रीदेवी नमस्तुभ्यं भक्तानां वरदायिनी।
त्वमेव मोक्षमार्गस्था विष्णुपादाब्जसंस्थिते॥८१

अर्थ:
हे धात्री देवी! आपको नमन, आप भक्तों को वर देने वाली हैं, मोक्ष का मार्ग दिखाने वाली और विष्णु के चरणों में सदा स्थित हैं।

काष्ठमूलफलाकीर्णा त्वं सदा पुण्यदायिनी।
त्वदीयपत्रलेशेन स्नातो धर्मार्थलाभवान्॥८२

अर्थ:
आपके वृक्ष का प्रत्येक अंग पवित्र है; आपके पत्तों से स्पर्शित व्यक्ति धर्म, अर्थ और सुख प्राप्त करता है।

लक्ष्मीनारायणेनाथ त्वया सह विवाहकृत्।
अमृतानन्दसंयुक्तं तद् दृश्यं पावनं भवेत्॥८३

अर्थ:
भगवान लक्ष्मीनारायण ने आपसे विवाह किया; उस दिव्य दृश्य का स्मरण मात्र ही जीवन को पावन कर देता है।

त्वं गोविन्दस्य हृदये नित्यं श्रीस्वरूपिणी।
सर्वदेवानुपूज्या च सर्वेषां मातृरूपिणी॥८४

अर्थ:
आप सदा गोविन्द के हृदय में लक्ष्मीस्वरूपा हैं; सभी देवता आपकी आराधना करते हैं और आपको मातृरूप में मानते हैं।

ज्योतिर्मयी त्वं त्रिभुवनप्रदीपा,
तारिणि दुःखार्णवनाशकारिणि।
शरण्य रूपे त्वममृतप्रदा,
प्रसीद मातः आमलकेश्वरि॥८५

अर्थ:
हे त्रिभुवन को आलोकित करने वाली ज्योतिर्मयी देवी! आप ही भवसागर से तारने वाली, अमृत देने वाली, और सबकी शरण हैं। हे आमलकी लक्ष्मी! हम पर कृपा कीजिए।


आमलकिफलमालाभिर्भक्त्या यो विष्णुमर्चयेत्।
धनं सौख्यं सुतं सौभ्यं धात्री तस्मै प्रयच्छसि॥८६

अर्थ:
जो भक्त प्रेमपूर्वक आमलकी फलों की माला से भगवान विष्णु की पूजा करता है, उस भक्त को हे धात्री देवी! आप धन, सुख, सौभाग्य और उत्तम संतान प्रदान करती हैं।

वृक्षेषु देवि दिव्यत्वं, यदामाल्येषु शोभसे।
तस्मात्त्वां लोकमाता ते, “फलमाता” इति स्मृताः॥८७

अर्थ:
हे देवी! जब आप वृक्षों और आमलकी के फलों में दिव्य रूप से विराजती हैं, तब आप ही समस्त लोकों की “फलमाता” कहलाती हैं।

स्नाने दाने जपे होमे, त्वं प्रीतिर्भवसीश्वरी।
आमलकीस्मृतिं कुर्वन्, स सर्वार्थं लभेत्ध्रुवम्॥८८

अर्थ:
स्नान, दान, जप और होम — इन सब में यदि आमलकी देवी का स्मरण किया जाए तो वह सब कार्यों में सिद्धि और सफलता प्राप्त करता है।


मुक्तिदायिनि मातस्त्वं, कर्मबन्धविमोचनी।
पुण्यदायिनि सर्वेषां, आमलकेश्वरि नमः॥८९

अर्थ:
हे माँ! आप ही मुक्ति प्रदान करने वाली और पाप-बन्धनों से छुड़ाने वाली हैं। सबको पुण्य देने वाली माँ आमलकी, आपको नमस्कार है।

अन्नपूर्णे त्वमेवेशि, वृक्षरूपिणि शोभने।
सर्वसंपत्प्रदायिन्यै, आमलकेश्वरि नमः॥९०

अर्थ:
हे अन्नपूर्णा रूपिणी! आप ही वृक्षरूप में शोभित होकर सबको संपत्ति और ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हैं — आपको नमन।

नवदुर्गा दशमायाः त्वं, लघु रूपं प्रपञ्चितम्।
फलदेहि शुभे देवी, सर्वकामार्थसिद्धये॥९१

अर्थ:
हे शुभे देवी! आप ही नवदुर्गा के दशम स्वरूप के रूप में फलों की देवी बनी हैं — सब कामनाओं की सिद्धि हेतु कृपा करें।

सर्वतीर्थमयी देवि, सर्वमन्त्रस्वरूपिणि।
पितृभ्यः प्रीयते त्वत्प्रसादात् फलदानतः॥९२

अर्थ:
हे देवी! आप सब तीर्थों की मूर्ति हैं, सब मन्त्रों की अधिष्ठात्री हैं। आपकी पूजा से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

सप्तपर्णनिवासस्था, नित्यपुष्पफलप्रदा।
त्वं च नानारसाम्भोजा, आमलकेश्वरि नमः॥९३

अर्थ:
हे देवी! आप सप्तपर्ण और आमलकी वृक्षों में निवास करने वाली हैं, सदा पुष्प और फल देने वाली हैं, और अनेक रसों से परिपूर्ण हैं — आपको नमन।

आयुर्वृद्धिकरी देवि, रोगनाशनकारिणि।
शरीरबलसंपन्ना, आमलकेश्वरि नमः॥९४

अर्थ:
हे देवी! आप आयु बढ़ाने वाली, रोगों का नाश करने वाली और शरीर को बल से सम्पन्न करने वाली हैं।

रजःसत्त्वतमोमूला, त्रिगुणात्मा सनातनी।
आमलकी त्वमेवेशि, त्रिगुणात्मक लक्ष्म्यहम्॥९५

अर्थ:
आप ही त्रिगुणात्मक सनातनी देवी हैं — रज, सत्त्व और तम — तीनों गुणों की आधारस्वरूपा लक्ष्मीस्वरूप आमलकी देवी।

कनकवर्णे कमले, हेममालिनि शोभने।
प्रसन्नवदने नित्ये, आमलकेश्वरि नमः॥९६

अर्थ:
हे स्वर्णवर्णा कमलनिवासिनी! हे सुनहरे हार से सुशोभित और सदैव प्रसन्न मुख वाली देवी! आपको नमन है।

पवित्रयासि देहं त्वं, मनो बुद्धिं च शुद्धये।
ज्ञानविज्ञानदात्री त्वं, आमलकेश्वरि नमः॥९७

अर्थ:
आप शरीर, मन और बुद्धि — तीनों को पवित्र करने वाली हैं और ज्ञान-विज्ञान प्रदान करने वाली हैं।


सिद्धिनाथैः पूज्यमाना, योगिन्याः परमेश्वरि।
तव नामस्मृतिः पुण्या, आमलकेश्वरि नमः॥९८

अर्थ:
हे परमेश्वरी! योगिनी और सिद्धजन भी आपकी पूजा करते हैं। आपका नाम स्मरण मात्र ही अत्यंत पुण्यदायक है।


गङ्गायमुनयोर्नीते, स्नानं त्वन्नामकिर्तने।
पापानां शतसङ्घानां, क्षयः सम्पद्यते ध्रुवम्॥९९

अर्थ:
हे देवी! आपके नाम का कीर्तन ही गंगा-यमुना में स्नान करने के समान पुण्य देता है और शताधिक पापों का क्षय करता है।


तव नामस्मृतिं कृत्वा, हृदये यः पिबत्यहो।
स विष्णुलोके मोदेत, न पुनर्जन्म लभ्यते॥१००

अर्थ:
जो आपके नाम का अमृत हृदय से पीता है, वह विष्णुलोक में आनंद प्राप्त करता है और पुनर्जन्म से मुक्त होता है।

अभयं सर्वभूतेभ्यो, यः त्वां ध्यायति सततम्।
तस्य पापं क्षयं याति, पुण्यं चानन्तमायते॥१०१

अर्थ:
जो व्यक्ति सदा आपका ध्यान करता है, उसे सब प्राणियों से भय नहीं रहता; उसके पाप नष्ट होकर पुण्य अनन्त हो जाता है।

कैलासेऽपि त्वमेवेशि, वैकुण्ठेऽपि त्वमेकधा।
गोलोकेऽपि त्वमेवेशि, सर्वलोके प्रपञ्चिता॥१०२

अर्थ:
हे देवी! आप कैलास, वैकुण्ठ और गोलोक — सभी लोकों में एक ही रूप से व्याप्त हैं, सर्वत्र आपकी ही शक्ति प्रकट है।

प्रणमामि सदा देवीं, विश्वरूपां सनातनीम्।
भक्तानुकम्पिनीं नित्यां, आमलकेश्वरि नमः॥१०३

अर्थ:
मैं सदा उस सनातनी विश्वरूपिणी आमलकी देवी को प्रणाम करता हूँ जो सदैव भक्तों पर दया करती हैं।

आमलकीव्रतं कृत्वा, यो नरः श्रद्धयान्वितः।
स प्राप्नोति महालक्ष्मीं, दीर्घायुः पुत्रपौत्रवान्॥१०४

अर्थ:
जो व्यक्ति श्रद्धा से आमलकी व्रत करता है, वह दीर्घायु, समृद्ध और महालक्ष्मी की कृपा से सम्पन्न होता है।

शत्रुहानि करोत्येव, दुःखनाशं च सर्वथा।
यः स्मरेत् त्वां सतां मध्ये, स भवेत् सर्वसिद्धिमान्॥१०५

अर्थ:
जो भक्त सत्संग में आपका स्मरण करता है, उसके शत्रु नष्ट होते हैं और सब प्रकार के दुःख मिट जाते हैं।

जय जय आमलकीदेवि विष्णुप्रीतिप्रदायिनि।
भक्तानां सर्वकामेशि संसारार्णवनौकिनि॥१०६

अर्थ:
जय हो, हे आमलकी देवी! जो विष्णु को प्रिय बनाती हैं, भक्तों के सभी कार्य सिद्ध करती हैं और उन्हें संसार-सागर से पार लगाती हैं।

भूमौ यत्र त्वदीयोऽयं वृक्षो नित्यं प्रतिष्ठितः।
तत्र नित्यं वसेद् लक्ष्मीः शङ्खपद्मधराभवः॥१०७

अर्थ:
जहाँ धात्री वृक्ष प्रतिष्ठित होता है, वहाँ लक्ष्मी सदा शंख और पद्म धारण कर निवास करती हैं।

इदं स्तोत्रं महापुण्यं आमलकीलक्ष्मीसम्भवम्।
यः पठेत्स श्रद्धया नित्यं स याति परमं पदम्॥१०८

अर्थ:
यह आमलकी लक्ष्मी स्तोत्र अत्यंत पुण्यदायी है; जो इसे श्रद्धापूर्वक नित्य पाठ करता है, वह अंततः परम पद (मोक्ष) को प्राप्त करता है।

पुत्रपौत्रसमृद्धिश्च गृहसौख्यं च विन्दति।
रोगरहिततां लभ्येत् दीर्घायुः शुभलक्षणम्॥१०९

अर्थ:
उसके घर में पुत्र-पौत्रों की वृद्धि, सुख, स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।
—॥ इति श्रीआमलकीलक्ष्मी धात्रीदेवी आख्यान सम्पूर्णम् ॥


🌿 Akshay Navami Vrat पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान कर संकल्प लें —
    “आज मैं धात्री लक्ष्मी एवं श्रीविष्णु की आराधना करूँगा।”
  2. आँवला वृक्ष के नीचे चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. हल्दी, चावल, पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य अर्पित करें।
  4. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करें।
  5. कथा श्रवण या पाठ के बाद ब्राह्मणों को भोजन व दान दें।
  6. अंत में वृक्ष की प्रदक्षिणा करें और प्रणाम करें।

🌼 Akshay Navami Vrat के लाभ


📜 उद्धरण (धात्री स्तुति)

“नमाम्यहममालां त्वां विष्णुलक्ष्मीस्वरूपिणीम्।
फलं त्वं सर्वदेवानां पवित्रं पापनाशनम्॥”


🌸 निष्कर्ष : Akshay Navami Vrat

श्री आमलकी लक्ष्मी धात्री देवी की आराधना केवल एक व्रत नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव है। आँवला वृक्ष में आरोग्य का अमृत, लक्ष्मी की कृपा और विष्णु का संरक्षण एक साथ विद्यमान हैं। जो भक्त अक्षय नवमी के दिन श्रद्धा, भक्ति और नियमपूर्वक धात्री देवी की पूजा करता है, वह जीवन में कभी अभाव, रोग या भय का अनुभव नहीं करता। यह कथा हमें यह संदेश देती है कि प्रकृति में ही ईश्वर का निवास है और आँवला वृक्ष उस दैवी ऊर्जा का जीवंत प्रतीक है।

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