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🔱 त्रिपुरासुर वध कथा: भगवान शिव का त्रिपुरांतक अवतार और पौराणिक रहस्य

श्री रुद्राष्टकम् तुलसीदास कृत

परिचय

त्रिपुरासुर वध हिन्दू धर्म की एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रेरणादायक पौराणिक कथा है। यह कथा भगवान शिव के त्रिपुरांतक रूप से जुड़ी है — जब उन्होंने तीन असुर भाइयों के आतंक से ब्रह्मांड को मुक्त कराया।
महाभारत के कर्णपर्व और शिव पुराण में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। यह कथा न केवल शिव की शक्ति का प्रतीक है, बल्कि भक्ति, संयम और दैवी बल के समन्वय का भी संदेश देती है।


🧿 त्रिपुरासुर कौन था?

तारकासुर के वध के बाद उसके तीन पुत्र — तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली — ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का प्रण किया।
तीनों ने गहन तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान माँगा। ब्रह्माजी ने अमरता देने से मना किया और कहा कि कोई कठिन शर्त रखें, जो पूरी होने पर ही मृत्यु संभव हो।

तीनों ने कहा —

“हे प्रभु! जब हमारी तीन पुरियाँ (नगरियाँ) अभिजित नक्षत्र में एक सीध में आएँ, और कोई शांतचित्त व्यक्ति असंभव रथ पर सवार होकर असंभव बाण से हमें मारे — तभी हमारी मृत्यु हो।”

ब्रह्माजी ने “तथास्तु” कहा और तीनों भाइयों के लिए तीन अद्भुत नगरियाँ बनवाईं —

इन तीनों नगरों के कारण ही उन्हें त्रिपुरासुर कहा गया।


👹 त्रिपुरासुर का आतंक

तीनों असुर भाइयों ने वरदान के प्रभाव से इतना बल प्राप्त किया कि उन्होंने देवताओं, ऋषियों और मनुष्यों तक को सताना शुरू कर दिया।
देवता युद्ध में असफल रहे और अंततः सब भगवान शिव की शरण में पहुँचे।

भगवान शंकर ने कहा —

“यदि तुम सब मिलकर प्रयास करो तो मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।”

देवताओं ने शिव को अपना बल समर्पित किया, लेकिन उनके आधे बल को भी धारण नहीं कर सके। तब शिव ने स्वयं युद्ध का संकल्प लिया और असंभव रथ बनाने की आज्ञा दी।


🚩 भगवान शिव का दिव्य रथ और बाण

इस रथ की रचना अपने आप में अद्भुत थी —

तत्वप्रतीक
पृथ्वीरथ का आधार
सूर्य और चंद्रमारथ के पहिए
ब्रह्मा जीसारथी
मेरु पर्वतधनुष
वासुकी नागधनुष की डोर
विष्णु भगवानबाण
वायु, अग्नि और यमबाण में निहित शक्तियाँ

यह वही “असंभव रथ” था जिसका उल्लेख त्रिपुरासुर के वरदान में हुआ था।


💥 त्रिपुरासुर का वध

जब अभिजित नक्षत्र में तीनों पुरियाँ (स्वर्ण, रजत और लौह) एक सीध में आईं, तब भगवान शंकर ने पाशुपत अस्त्र का संधान किया और अपने दिव्य बाण से उन तीनों नगरों को एक ही वार में भस्म कर दिया।
इस प्रकार भगवान शिव त्रिपुरांतक कहलाए — अर्थात “त्रिपुर (तीन पुरियों) का अंत करने वाले।”

इस विनाश के बाद शिव के करुण हृदय से आँसू गिरे, और जहाँ-जहाँ वे आँसू गिरे वहाँ रुद्राक्ष वृक्ष उत्पन्न हुए।
“रुद्र” अर्थात शिव और “अक्ष” अर्थात आँख — इसीलिए रुद्राक्ष शिव के आँसुओं का प्रतीक माने जाते हैं।


🕉️ गणेशजी और त्रिपुरासुर वध का रहस्य

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव जब पहली बार त्रिपुरासुर का वध करने गए, तो उन्हें सफलता नहीं मिली।
कई प्रयासों के बाद उन्होंने जाना कि उन्होंने श्री गणेश की पूजा किए बिना ही युद्ध प्रारंभ कर दिया था।

इसके बाद शिव ने गणेशजी का पूजन किया, लड्डुओं का भोग लगाया और पुनः युद्ध किया।
इस बार वे लक्ष्य भेदने में सफल हुए और त्रिपुरासुर का वध कर त्रिपुरांतक बने।
इसलिए कहा जाता है —

“हर शुभ कार्य से पहले गणेश की आराधना आवश्यक है।”


🌕 त्रिपुरासुर वध और कार्तिक पूर्णिमा का संबंध

त्रिपुरासुर वध का यह दिव्य युद्ध कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था।
इसी कारण इस तिथि को त्रिपुरी पूर्णिमा या देव दीपावली भी कहा जाता है।
इस दिन भगवान शिव की पूजा, दीपदान और स्नान का विशेष महत्व है।


🪔 धार्मिक महत्व और प्रेरणा


🔔 निष्कर्ष

त्रिपुरासुर वध कथा न केवल भगवान शिव की शक्ति का वर्णन करती है, बल्कि धर्म और अधर्म के शाश्वत संघर्ष का प्रतीक भी है।
जब अहंकार और अत्याचार अपने चरम पर पहुँचते हैं, तब शिव का “त्रिपुरांतक” रूप सृष्टि को संतुलन में लाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस कथा का स्मरण करने से व्यक्ति के जीवन में नकारात्मकता का नाश और दिव्यता का उदय होता है।

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